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सुरत मे चातुर्मास के दौरान आचार्य महाश्रमणजी ने कहा कि तेरापंथ समाज के लिए गौरव के समान है महासभा जैसी महारथि संस्था ….सुरेंद्र मुनोत, ऐसोसिएट एडिटर, Key Line Times वेसु, सूरत (गुजरात), सूरत शहर के वेसु में स्थित भगवान महावीर युनिवर्सिटि परिसर में चतुर्मास कर रहे जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी की मंगल सन्निधि में गुरुवार से तेरापंथ धर्मसंघ की ‘संस्था शिरोमणि’ जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा के तत्त्वावधान में आयोजित सभा प्रतिनिधि सम्मेलन के त्रिदिवसीय कार्यक्रम का शुभारम्भ हुआ। प्रातः 8.15 बजे महासभा के अध्यक्ष श्री मनसुखलाल सेठिया, महामंत्री श्री विनोद बैद के नेतृत्व में महासभा के पदाधिकारियों व प्रतिनिधियों ने युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी के मुखारविन्द से मंगलपाठ का श्रवण किया। तदुपरान्त महावीर समवसरण में उपस्थित प्रतिनिधियों के समक्ष महासभा के अध्यक्ष श्री मनसुखलाल सेठिया ने सम्मेलन के शुभारम्भ की घोषणा करते हुए श्रावक निष्ठा पत्र का वाचन किया। इस दौरान सभागीत को प्रस्तुति दी गई। तत्पश्चात चतुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति के अध्यक्ष श्री संजय सुराणा, तेरापंथी सभा-सूरत के अध्यक्ष श्री मुकेश बैद, पर्वतपाटिया के अध्यक्ष श्री गौतम ढेलड़िया व उधना सभा के अध्यक्ष श्री निर्मल चपलोत ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। महासभा के टीम ने गीत का संगान किया। महासभा के प्रतिनिधि सम्मेलन के इस प्रथम सत्र का संचालन महासभा के महामंत्री श्री विनोद बैद ने किया। जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा के इस प्रतिनिधि सम्मेलन में भाग लेने के लिए देश-विदेश की लगभग 525 सभाओं व उपसभाओं से लगभग 1800 से अधिक प्रतिनिधि उपस्थित हो चुके हैं। हालांकि प्रतिनिधियों के पहुंचने का क्रम अभी भी जारी है। जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने समुपस्थित विशाल जनमेदिनी तथा तेरापंथी सभाओं के प्रतिनिधियों को आयारो आगम के माध्यम से पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि आदमी जब वृद्ध हो जाता है तो शरीर में शिथिलता हो जाती है। आदमी बहुत ज्यादा कार्य नहीं कर सकता। इस वृद्धावस्था में कई-कई वृद्धों की बहुत अच्छी सेवा उनके द्वारा परिवार द्वारा होती है, अच्छी सेवा व सहयोग देते हैं। कई बार वृद्धों को वृद्धाश्रम भेजने आदि की बात भी सामने आती है। कई बार किसी-किसी वृद्धि के जीवन में कठिनाई, परिवार में कलह आदि की स्थिति बन जाए तो वैसे लोग चित्त समाधि केन्द्र में रहते हैं तो पारिवारिक जीवन से मुक्ति मिल सकती है और वहां अपना धर्म, ध्यान, सेवा, साधना आदि का कार्य हो सकता है तथा वहां आत्मकल्याण की दृष्टि से अच्छा कार्य हो सकता है। आयारो आगम में कहा गया है कि इस असार संसार में कोई किसी का त्राण और शरण नहीं बन सकता। भारत के पास संत संपदा, ग्रंथ संपदा और पंथ संपदा भी है। पंथों से पथदर्शन, ग्रंथों से ज्ञान और संतों सद्प्रेरणा प्राप्त हो। इनसे प्रेरणा लेकर आदमी को अपने कर्त्तव्य के प्रति जागरूक रहने का प्रयास करना चाहिए। आचार्यश्री के मंगल प्रवचन के उपरान्त साध्वीप्रमुखा विश्रुतविभाजी ने उपस्थित जनता व सभा प्रतिनिधि सम्मेलन के संभागियों को संबोधित किया। मुनि निकुंजकुमारजी ने आचार्यश्री से 31 की तपस्या का प्रत्याख्यान किया। तदुपरान्त अनेकानेक तपस्वियों ने अपनी-अपनी धारणा के अनुसार तपस्या का प्रत्याख्यान किया। लगभग 27 तपस्वियों ने मासखमण की तपस्या का प्रत्याख्यान किया। युगप्रधान आचार्यश्री के मंगल सन्निधि में स्वतंत्रता दिवस से प्रारम्भ त्रिदिवसीय सभा प्रतिनिधि सम्मेलन के मंचीय उपक्रम प्रारम्भ हुआ। महासभा के अध्यक्ष श्री मनसुखलाल सेठिया ने इस संदर्भ में अपनी अभिव्यक्ति देते हुए आचार्यश्री महाश्रमण आरोग्य योजना, आचार्य महाश्रमण इण्टरनेशनल स्कूल आदि अनेक योजनाओं के शुभारम्भ की घोषणा की। तदुपरान्त महासभा के आध्यात्मिक पर्यवेक्षक मुनि विश्रुतकुमारजी ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। इस संदर्भ में शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने पावन आशीष प्रदान करते हुए कहा कि व्यक्ति एक इकाई होती है और अनेक व्यक्तियों से मिलकर समाज व संगठन बन सकता है। व्यक्ति में रूप में रहना भी एक पद्धति है और समूहिक जीवन में समाज व संगठन की बात भी आती है। तेरापंथ समाज में तेरापंथी महासभा/सभाएं सामने आईं। धर्मसंघ की दृष्टि से महासभा व सभा कितनी जिम्मेवार होती हैं। साधु, साध्वियों, समणियों के यात्रा, विहार, प्रवास, चतुर्मास आदि कार्यों को अच्छे रूप में करने का प्रयास करती है। आज तेरापंथी सभा प्रतिनिधि सम्मेलन महासभा के तत्त्वावधान में हो रहा है। महासभा का रूप निखरा हुआ प्रतीत हो रहा है। तेरापंथी सभाएं काफी जिम्मेवार होती हैं। इनके होने से कार्य कितना सुव्यवस्थित हो जाता है। महासभा जैसी महारथि संस्था समाज के लिए गौरव के समान है। समाज की धार्मिक-आध्यात्मिक सार-संभाल आदि का कार्य अच्छे रूप में होता रहे। सभी में खूब धार्मिक चेतना व जागरणा बनी रहे। आचार्यश्री के मंगल पाथेय के उपरान्त चतुर्मास प्रवास व्यस्था समिति के अध्यक्ष श्री संजय सुराणा ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। इस कार्यक्रम का संचालन महासभा के महामंत्री श्री विनोद बैद ने किया। इसके पूर्व प्रातःकाल की मंगल बेला में भारत के 78वें स्वतंत्रता दिवस की धूम की चतुर्मास प्रवास स्थल में दिखाई दे रही थी। चारों ओर लहराता तिरंगा झण्डा भारत के वैभव की गाथा गा रहा था। लगभग साढ़े सात बजे चतुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति की ओर से ध्वजारोहण का उपक्रम समायोजित हुआ। जहां आचार्यश्री महाश्रमणजी स्वयं पधारे और पावन आशीर्वाद प्रदान किया। तदुपरान्त चतुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति के अध्यक्ष श्री संजय सुराणा व जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा के अध्यक्ष श्री मनसुखलाल सेठिया द्वारा ध्वजारोहण कर उपस्थित लोगों को स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनाएं प्रदान की गईं।
सुरत चातुर्मास के दौरान आचार्य महाश्रमणजी ने कहा कि आत्मकल्याण के लिए निवृत्ति की प्रवृत्ति का हो विकास …सुरेंद्र मुनोत, ऐसोसिएट एडिटर, Key Line Times 14.08.2024, बुधवार, वेसु, सूरत (गुजरात), सिल्क सिटि सूरत के वेसु में स्थित भगवान महावीर युनिवर्सिटि परिसर में संयम विहार में चतुर्मास कर रहे जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी की मंगल सन्निधि में नित नवीन गतिविधियों और कार्यक्रमों का समायोजन हो रहा है। अनेक उपक्रम भी चलाए जा रहे हैं। बुधवार को प्रातः मंगल प्रवचन से पूर्व युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी चतुर्मास प्रवास स्थल में जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा द्वारा अत्याधुनिक उपकरणों से सुसज्जीत ‘महाश्रमण दर्शन म्यूजियम’ में पधारे। आचार्यश्री के श्रीमुख से मंगलपाठ का श्रवण कर महासभा के अध्यक्ष श्री मनसुखलाल सेठिया व चतुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति के अध्यक्ष श्री संजय सुराणा ने म्यूजियम का लोकार्पण किया। आचार्यश्री ने सम्पूर्ण म्यूजियम का अवलोकन किया। इस म्यूजियम में मोशन सेंसर गेम के द्वारा सत्संस्कार, वर्चुअल रियलटी के माध्यम से महाश्रमण संवाद, ट्रेडमिल के माध्यम से अहिंसा यात्रा का अनुभव, माइन्ड गेम से महाश्रमण आह्वान, प्रोजेक्शन मैपिंग द्वारा महाश्रमण जीवन दर्शन, टच बेस्ड टेक्नोलॉजी द्वारा अहिंसा यात्रा दर्शन, महाप्राण ध्वनि, प्रेक्षाध्यान कक्ष, 180 डिग्री फिल्म आदि अनेक संभाग बने हुए हैं, जो लोगों को जैन धर्म, तेरापंथ धर्मसंघ, आचार्यश्री महाश्रमणजी के जीवन दर्शन कराने वाली है। आचार्यश्री म्यूजियम के अवलोकन के उपरान्त पुनः प्रवास कक्ष में पधारे और कुछ ही समय उपरान्त मंगल प्रवचन हेतु ‘महावीर समवसरण में पधार गए। युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने आयारो आगम के माध्यम से पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि आदमी के जीवन में अनेक अवस्थाएं होती हैं। बचपन, कैशोर्य, युवावस्था, प्रौढ़ तथा अंतिम अवस्था वृद्धावस्था भी होती है। जिसको पूर्ण जीवन प्राप्त होता है, उसके जीवन में बचपन से लेकर वृद्धावस्था तक की सभी अवस्थाएं आती हैं। उम्र के हिसाब से आदमी अपने जीवन में भागदौड़, उछल-कूद, परिश्रम, बोझ, भार उठाना आदि-आदि कार्य कर सकता है। एक अवस्था के बाद भागदौड़, उछल-कूद, परिश्रम, भार ढोने आदि की स्थिति नहीं रह जाती। कई-कई आदमी वृद्धावस्था में काफी सक्रिय हो सकते हैं। आगम में बताया गया कि साधु जीवन में साठ वर्ष की सम्पन्नता के बाद स्थवीर हो जाता है। 70-75 वर्ष की अवस्था आ गयी तो आदमी को संन्यास की ओर आगे बढ़ने का प्रयास होना चाहिए। सभा-संस्थाओं में पद नहीं, संरक्षक, सलाहकर बनकर स्वयं को धर्म-अध्यात्म की साधना में आगे बढ़ने का प्रयास करना चाहिए। कई बार आदमी को बुढ़ापा देखकर चिंताग्रस्त भी हो जाता है। यहां बताया गया कि वृद्धावस्था को देखकर चिंताग्रस्त नहीं, चिंतन से युक्त होना चाहिए। वृद्धावस्था आने के बाद आदमी को अपनी आत्मा के कल्याण के लिए धर्म, ध्यान, साधना, जप, स्वाध्याय आदि करने का प्रयास करना चाहिए। एक सूत्र दिया गया कि जब तक बुढ़ापा पीड़ित न करने लगे, शरीर में कोई बीमारी न लग जाए तथा इन्द्रियां क्षीण न हो जाएं, तब तक आदमी को खूब धर्म का समाचरण कर लेने का प्रयास करना चाहिए। अपने जीवन में धार्मिक-आध्यात्मिक सेवा देने का प्रयास कर लेना चाहिए। इस अवस्था में खानपान का संयम रहे, धर्म-ध्यान होता रहे, विवेक रहे। आदमी को आत्मकल्याण के लिए इस अवस्था में निवृत्ति की दिशा में आगे बढ़े और धार्मिक प्रवृत्ति को आगे बढ़ाने का प्रयास करे। मंगल प्रवचन के उपरान्त आचार्यश्री ने गजसुकुमाल के आख्यान क्रम को आगे बढ़ाया। आज महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी की मंगल सन्निधि में अनेक मासखमण की तपस्या करने वाले तपस्वियों ने अपनी-अपनी तपस्या का प्रत्याख्यान किया। युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी की मंगल सन्निधि में जैन विश्व भारती के समण संस्कृति संकाय के दीक्षान्त समारोह का मंचीय उपक्रम समायोजित हुआ। इस संदर्भ में जैन विश्व भारती के आध्यात्मिक पर्यवेक्षक मुनि कीर्तिकुमारजी, समण संस्कृति संकाय के विभागाध्यक्ष श्री मालचन्द बैंगानी व श्री पुखराज डागा ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। जैन विद्या पाठ्यक्रम से जुड़ी महिलाओं ने गीत का संगान किया। आचार्यश्री ने पावन आशीष प्रदान करते हुए कहा कि जैन विश्व भारती का एक भाग समण संस्कृति संकाय है। इसके माध्यम से जैन विद्या के प्रसार का प्रयास किया जा रहा है। जैन विद्या का अच्छा प्रयास होता रहे। अपना अच्छा आध्यात्मिक-धार्मिक विकास होता रहे। इस दौरान जैन विश्व भारती के पदाधिकारियों द्वारा आगम मंथन प्रतियोगिता की पश्न पुस्तिका आचार्यश्री के समक्ष लोकार्पित किया गया।