सुरत चातुर्मास के दौरान आचार्य महाश्रमणजी ने कहा कि आत्मकल्याण के लिए निवृत्ति की प्रवृत्ति का हो विकास …सुरेंद्र मुनोत, ऐसोसिएट एडिटर, Key Line Times 14.08.2024, बुधवार, वेसु, सूरत (गुजरात), सिल्क सिटि सूरत के वेसु में स्थित भगवान महावीर युनिवर्सिटि परिसर में संयम विहार में चतुर्मास कर रहे जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी की मंगल सन्निधि में नित नवीन गतिविधियों और कार्यक्रमों का समायोजन हो रहा है। अनेक उपक्रम भी चलाए जा रहे हैं। बुधवार को प्रातः मंगल प्रवचन से पूर्व युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी चतुर्मास प्रवास स्थल में जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा द्वारा अत्याधुनिक उपकरणों से सुसज्जीत ‘महाश्रमण दर्शन म्यूजियम’ में पधारे। आचार्यश्री के श्रीमुख से मंगलपाठ का श्रवण कर महासभा के अध्यक्ष श्री मनसुखलाल सेठिया व चतुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति के अध्यक्ष श्री संजय सुराणा ने म्यूजियम का लोकार्पण किया। आचार्यश्री ने सम्पूर्ण म्यूजियम का अवलोकन किया। इस म्यूजियम में मोशन सेंसर गेम के द्वारा सत्संस्कार, वर्चुअल रियलटी के माध्यम से महाश्रमण संवाद, ट्रेडमिल के माध्यम से अहिंसा यात्रा का अनुभव, माइन्ड गेम से महाश्रमण आह्वान, प्रोजेक्शन मैपिंग द्वारा महाश्रमण जीवन दर्शन, टच बेस्ड टेक्नोलॉजी द्वारा अहिंसा यात्रा दर्शन, महाप्राण ध्वनि, प्रेक्षाध्यान कक्ष, 180 डिग्री फिल्म आदि अनेक संभाग बने हुए हैं, जो लोगों को जैन धर्म, तेरापंथ धर्मसंघ, आचार्यश्री महाश्रमणजी के जीवन दर्शन कराने वाली है। आचार्यश्री म्यूजियम के अवलोकन के उपरान्त पुनः प्रवास कक्ष में पधारे और कुछ ही समय उपरान्त मंगल प्रवचन हेतु ‘महावीर समवसरण में पधार गए। युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने आयारो आगम के माध्यम से पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि आदमी के जीवन में अनेक अवस्थाएं होती हैं। बचपन, कैशोर्य, युवावस्था, प्रौढ़ तथा अंतिम अवस्था वृद्धावस्था भी होती है। जिसको पूर्ण जीवन प्राप्त होता है, उसके जीवन में बचपन से लेकर वृद्धावस्था तक की सभी अवस्थाएं आती हैं। उम्र के हिसाब से आदमी अपने जीवन में भागदौड़, उछल-कूद, परिश्रम, बोझ, भार उठाना आदि-आदि कार्य कर सकता है। एक अवस्था के बाद भागदौड़, उछल-कूद, परिश्रम, भार ढोने आदि की स्थिति नहीं रह जाती। कई-कई आदमी वृद्धावस्था में काफी सक्रिय हो सकते हैं। आगम में बताया गया कि साधु जीवन में साठ वर्ष की सम्पन्नता के बाद स्थवीर हो जाता है। 70-75 वर्ष की अवस्था आ गयी तो आदमी को संन्यास की ओर आगे बढ़ने का प्रयास होना चाहिए। सभा-संस्थाओं में पद नहीं, संरक्षक, सलाहकर बनकर स्वयं को धर्म-अध्यात्म की साधना में आगे बढ़ने का प्रयास करना चाहिए। कई बार आदमी को बुढ़ापा देखकर चिंताग्रस्त भी हो जाता है। यहां बताया गया कि वृद्धावस्था को देखकर चिंताग्रस्त नहीं, चिंतन से युक्त होना चाहिए। वृद्धावस्था आने के बाद आदमी को अपनी आत्मा के कल्याण के लिए धर्म, ध्यान, साधना, जप, स्वाध्याय आदि करने का प्रयास करना चाहिए। एक सूत्र दिया गया कि जब तक बुढ़ापा पीड़ित न करने लगे, शरीर में कोई बीमारी न लग जाए तथा इन्द्रियां क्षीण न हो जाएं, तब तक आदमी को खूब धर्म का समाचरण कर लेने का प्रयास करना चाहिए। अपने जीवन में धार्मिक-आध्यात्मिक सेवा देने का प्रयास कर लेना चाहिए। इस अवस्था में खानपान का संयम रहे, धर्म-ध्यान होता रहे, विवेक रहे। आदमी को आत्मकल्याण के लिए इस अवस्था में निवृत्ति की दिशा में आगे बढ़े और धार्मिक प्रवृत्ति को आगे बढ़ाने का प्रयास करे। मंगल प्रवचन के उपरान्त आचार्यश्री ने गजसुकुमाल के आख्यान क्रम को आगे बढ़ाया। आज महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी की मंगल सन्निधि में अनेक मासखमण की तपस्या करने वाले तपस्वियों ने अपनी-अपनी तपस्या का प्रत्याख्यान किया। युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी की मंगल सन्निधि में जैन विश्व भारती के समण संस्कृति संकाय के दीक्षान्त समारोह का मंचीय उपक्रम समायोजित हुआ। इस संदर्भ में जैन विश्व भारती के आध्यात्मिक पर्यवेक्षक मुनि कीर्तिकुमारजी, समण संस्कृति संकाय के विभागाध्यक्ष श्री मालचन्द बैंगानी व श्री पुखराज डागा ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। जैन विद्या पाठ्यक्रम से जुड़ी महिलाओं ने गीत का संगान किया। आचार्यश्री ने पावन आशीष प्रदान करते हुए कहा कि जैन विश्व भारती का एक भाग समण संस्कृति संकाय है। इसके माध्यम से जैन विद्या के प्रसार का प्रयास किया जा रहा है। जैन विद्या का अच्छा प्रयास होता रहे। अपना अच्छा आध्यात्मिक-धार्मिक विकास होता रहे। इस दौरान जैन विश्व भारती के पदाधिकारियों द्वारा आगम मंथन प्रतियोगिता की पश्न पुस्तिका आचार्यश्री के समक्ष लोकार्पित किया गया।