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November 3, 2025

Key line times

Key Line Times राष्ट्रीय हिंदी पाक्षिक समाचार पत्र है जो राजधानी दिल्ली से प्रकाशित होता है एंव भारत सरकार के सूचना एंव प्रसारण मंत्रालय के अंतर्गत आर.एन.आई. से रजिस्ट्रड है। इसका आर.एन.आई.न. DELHIN/2017/72528 है। यह समाचार पत्र 2017 से लगातार प्रकाशित हो रहा है।
साऊथ हावडा मे मुनि श्री जिनेशकुमार जी के सानिध्य मे भक्तामर, आयम्बिल जप अनुष्ठान एवं आयम्बिल तप महोत्सव का भव्य आयोजन…सुरेंद्र मुनोत, ऐसोसिएट एडिटर,Key Line Times *आयंबिल स्वाद विजय की साधना – मुनिश्री जिनेश कुमारजी* साउथ हावड़ा युगप्रधान आचार्य श्री महाश्रमण जी के सुशिष्य मुनि श्री जिनेशकुमार जी ठाणा-3 के सान्निध्य में भक्तामर आयंबिल जप अनुष्ठान एवं आयंबिल तप महोत्सव का भव्य आयोजन प्रेक्षा विहार में साउथ हावड़ा श्री जैन श्वेताम्बर तेरापंथी सभा द्वारा किया गया। इस अवसर पर उपस्थित जन समुदाय को संबोधित करते हुए मुनि श्री जिनेश कुमार जी ने कहा- जैन धर्म में स्तव स्तुति, स्तोत्र का महत्त्वपूर्ण स्थान है। जैन धर्म में भक्तामर स्तोत्र का बहुत बड़ा महत्व है। यह सर्वमान्य स्तोत्र है। स्तोत्र काव्यों में भक्तामर उत्कृष्ट रचना है। यह भक्तिकाव्य का छलकता निर्भर है। इस स्तोत्र की रचना आचार्य मानतुंग ने भगवान ऋषभ की स्तुति में की। जिससे उनके बंधन टूट गए और वे कारागृ‌ह से मुक्त हो गए। इसके पाठ, जप एवं अनुष्ठान से कष्ट दूर होते हैं। यह स्तोत्र महामंगलकारी एवं महाकल्याणकारी है। इसका सभी को जप करना चाहिए। मुनि श्री जिनेश कुमार जी ने भक्तामर एवं आयंबिल का जप अनुष्ठान सम्पन्न करवाया। आयंबिल महोत्सव के संदर्भ में विचार व्यक्त करते हुए मुनिश्री जिनेश कुमार जी ने कहा आयंबिल स्वाद विजय की साधना है। आयंबिल का अर्थ है-दिन में एक समय, एक बार, एक धान्य के अतिरिक्त कुछ नहीं खाना । इसमें नमक, मसाले, घी-तेल आदि कुछ भी दुसरा पदार्थ नहीं होना चाहिए। विगय-विकार से बचने के लिए आयंबिल एक अद्‌भुत उपाय है। आयंबिल की साधना से न रोग का भय और के ही भोग का भय रहता है। आयंबिल उदार विकारों में रामबाण औषधि है। इस तप से चिन्त प्रसन्न रहता है। यह तप अक्षय सुख निधि देने वाला, दुःख नाशक है। इस तप के महात्म्य को देखते हुए इसे अपना ने का प्रयत्न करना चाहिए। कार्यक्रम का शुभारंभ बाल मुनिश्री कुणाल कुमार जी के मंगल संगान से हुआ। स्वागत भाषण साउथ हावड़ा श्री जैन श्वेताम्बर तेरापंथी सभा के अध्यक्ष लक्ष्मीपत जी बाफणा के दिया। छोटी बालिका मायरा चिंडालिया ने अपने विचार व्यक्त किये। आभार ज्ञापन सभा मंत्री बसंत जी पटावरी ने व संचालन मुनिश्री परमानंदजी ने किया। अणुव्रत : समिति हावड़ा द्वारा अणुव्रत प्रबोधन प्रतियोगिता 2024 का बेनर अनावरण किया गया। प्रथम बार उपासक श्रेणी में प्रवेश प्राप्त करने पर मनीषा भंसाली का सभा द्वारा सम्मान किया गया। गत दिनों कर्नाटक में दिवंगत हुई साध्वी लावण्यश्री जी की स्मृति में चार लोगस्स का ध्यान किया गया। अनेक तपस्वियों ने तपस्या के प्रत्याख्यान किये। इस अवसर पर अच्छी संख्या में बृहत्तर कोलकाता के श्रद्धालुगण उपस्थित रहे। कार्यक्रम को सफल बनाने में तेरापंथी सभा, तेरापंथ महिला मंडल तेरापंथ युवक परिषद, ते. प्रो. फो.आदि कार्यकर्ताओं का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा।

साऊथ हावडा मे मुनि श्री जिनेशकुमार जी के सानिध्य मे भक्तामर, आयम्बिल जप अनुष्ठान एवं आयम्बिल तप महोत्सव का भव्य आयोजन…सुरेंद्र मुनोत, ऐसोसिएट एडिटर,Key Line Times *आयंबिल स्वाद विजय की साधना – मुनिश्री जिनेश कुमारजी* साउथ हावड़ा युगप्रधान आचार्य श्री महाश्रमण जी के सुशिष्य मुनि श्री जिनेशकुमार जी ठाणा-3 के सान्निध्य में भक्तामर आयंबिल जप अनुष्ठान एवं आयंबिल तप महोत्सव का भव्य आयोजन प्रेक्षा विहार में साउथ हावड़ा श्री जैन श्वेताम्बर तेरापंथी सभा द्वारा किया गया। इस अवसर पर उपस्थित जन समुदाय को संबोधित करते हुए मुनि श्री जिनेश कुमार जी ने कहा- जैन धर्म में स्तव स्तुति, स्तोत्र का महत्त्वपूर्ण स्थान है। जैन धर्म में भक्तामर स्तोत्र का बहुत बड़ा महत्व है। यह सर्वमान्य स्तोत्र है। स्तोत्र काव्यों में भक्तामर उत्कृष्ट रचना है। यह भक्तिकाव्य का छलकता निर्भर है। इस स्तोत्र की रचना आचार्य मानतुंग ने भगवान ऋषभ की स्तुति में की। जिससे उनके बंधन टूट गए और वे कारागृ‌ह से मुक्त हो गए। इसके पाठ, जप एवं अनुष्ठान से कष्ट दूर होते हैं। यह स्तोत्र महामंगलकारी एवं महाकल्याणकारी है। इसका सभी को जप करना चाहिए। मुनि श्री जिनेश कुमार जी ने भक्तामर एवं आयंबिल का जप अनुष्ठान सम्पन्न करवाया। आयंबिल महोत्सव के संदर्भ में विचार व्यक्त करते हुए मुनिश्री जिनेश कुमार जी ने कहा आयंबिल स्वाद विजय की साधना है। आयंबिल का अर्थ है-दिन में एक समय, एक बार, एक धान्य के अतिरिक्त कुछ नहीं खाना । इसमें नमक, मसाले, घी-तेल आदि कुछ भी दुसरा पदार्थ नहीं होना चाहिए। विगय-विकार से बचने के लिए आयंबिल एक अद्‌भुत उपाय है। आयंबिल की साधना से न रोग का भय और के ही भोग का भय रहता है। आयंबिल उदार विकारों में रामबाण औषधि है। इस तप से चिन्त प्रसन्न रहता है। यह तप अक्षय सुख निधि देने वाला, दुःख नाशक है। इस तप के महात्म्य को देखते हुए इसे अपना ने का प्रयत्न करना चाहिए। कार्यक्रम का शुभारंभ बाल मुनिश्री कुणाल कुमार जी के मंगल संगान से हुआ। स्वागत भाषण साउथ हावड़ा श्री जैन श्वेताम्बर तेरापंथी सभा के अध्यक्ष लक्ष्मीपत जी बाफणा के दिया। छोटी बालिका मायरा चिंडालिया ने अपने विचार व्यक्त किये। आभार ज्ञापन सभा मंत्री बसंत जी पटावरी ने व संचालन मुनिश्री परमानंदजी ने किया। अणुव्रत : समिति हावड़ा द्वारा अणुव्रत प्रबोधन प्रतियोगिता 2024 का बेनर अनावरण किया गया। प्रथम बार उपासक श्रेणी में प्रवेश प्राप्त करने पर मनीषा भंसाली का सभा द्वारा सम्मान किया गया। गत दिनों कर्नाटक में दिवंगत हुई साध्वी लावण्यश्री जी की स्मृति में चार लोगस्स का ध्यान किया गया। अनेक तपस्वियों ने तपस्या के प्रत्याख्यान किये। इस अवसर पर अच्छी संख्या में बृहत्तर कोलकाता के श्रद्धालुगण उपस्थित रहे। कार्यक्रम को सफल बनाने में तेरापंथी सभा, तेरापंथ महिला मंडल तेरापंथ युवक परिषद, ते. प्रो. फो.आदि कार्यकर्ताओं का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा।

सुरत मे वर्षावास के दौरान आचार्य महाश्रमणजी ने कहा कि इन्द्रिय विषय बनते हैं लोभ के हेतु ….सुरेंद्र मुनोत, ऐसोसिएट एडिटर,Key Line Times सोमवार, वेसु, सूरत (गुजरात) ,डायमण्ड सिटि सूरत में चतुर्मास कर रहे जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता, शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी सोमवार को महावीर समवसरण में अचानक प्रारम्भ हुई तीव्र वर्षा के कारण नहीं पधार पाए तो युगप्रधान आचार्यश्री ने श्रद्धालुओं को अपने प्रवास स्थल से ही मंगल प्रेरणा प्रदान करने का निर्णय किया और कुछ ही समय में मंगल प्रवचन प्रारम्भ कर दिया। युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने समुपस्थित तथा एलइडी स्क्रीन के समक्ष महावीर समवसरण में बैठी जनता को आयारो आगम के माध्यम से पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि इस आगम के दूसरे अध्ययन में बताया गया है कि जो गुण है, वह मूल स्थान है और जो मूल स्थान है, वह गुण है। इन्द्रियों के विषय गुण कहलाते हैं। इन्द्रिय विषय आधार हैं। जैसे श्रत्रेन्द्रिय का विषय शब्द, घ्राणेन्द्रिय का विषय गंध, रसनेन्द्रिय का विषय रस, चक्षुरेन्द्रिय का विषय रूप और स्पर्शनेन्द्रिय का विषय स्पर्श। आदमी के पास पांच ज्ञानेन्द्रियां हैं। इसी प्रकार पांच कर्मेन्द्रियां भी बताई गयी हैं। आदमी कानों के द्वारा सुनता है, आंखों से देखता है, जिह्वा से स्वाद चखता है, त्वचा से स्पर्श होता है। इस प्रकार पाचों इन्द्रियों के अपने-अपने विषय और अपने-अपने व्यापार होते हैं। ये इन्द्रियों के विषय लोभ के हेतु बनते हैं। इन पांच विषयों के प्रति प्राणी का आकर्षण, आसक्ति और लोभ होता है। कषाय का चौथा अंग लोभ को बताया गया है। लोभ मोहनीय कर्म के परिवार का सदस्य है। आदमी को पाप कर्मों का बंध कराने वाला मोहनीय कर्म ही होता है। लोभ तो दसवें गुणस्थान तक रहने वाला होता है। गृहस्थों में पैसे प्रति लोभ होता है, मान-सम्मान की मांग, समाज में ऊंचे स्थान की मांग भी एक प्रकार की लोभ की चेतना का प्रतीक बन सकता है। इस लोभ के वशीभूत होकर मनुष्य कुछ अकरणीय कार्य भी कर सकता है। लोभ के कारण आदमी हिंसा में भी जा सकता है, झूठ भी बोल सकता है। आदमी को जितना संभव हो सके, लोभ को कम करने का प्रयास करना चाहिए। संतोष की चेतना का विकास हो तो आदमी लोभ से बच सकता है। आचार्यश्री के मंगल प्रवचन के उपरान्त साध्वीवर्या संबुद्धयशाजी ने भी जनता को संबोधित किया। बालिका प्रिया सोनी ने चौबीसी के गीत का संगान किया।

सुरत मे वर्षावास के दौरान आचार्य महाश्रमणजी ने कहा कि इन्द्रिय विषय बनते हैं लोभ के हेतु ….सुरेंद्र मुनोत, ऐसोसिएट एडिटर,Key Line Times सोमवार, वेसु, सूरत (गुजरात) ,डायमण्ड सिटि सूरत में चतुर्मास कर रहे जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता, शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी सोमवार को महावीर समवसरण में अचानक प्रारम्भ हुई तीव्र वर्षा के कारण नहीं पधार पाए तो युगप्रधान आचार्यश्री ने श्रद्धालुओं को अपने प्रवास स्थल से ही मंगल प्रेरणा प्रदान करने का निर्णय किया और कुछ ही समय में मंगल प्रवचन प्रारम्भ कर दिया। युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने समुपस्थित तथा एलइडी स्क्रीन के समक्ष महावीर समवसरण में बैठी जनता को आयारो आगम के माध्यम से पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि इस आगम के दूसरे अध्ययन में बताया गया है कि जो गुण है, वह मूल स्थान है और जो मूल स्थान है, वह गुण है। इन्द्रियों के विषय गुण कहलाते हैं। इन्द्रिय विषय आधार हैं। जैसे श्रत्रेन्द्रिय का विषय शब्द, घ्राणेन्द्रिय का विषय गंध, रसनेन्द्रिय का विषय रस, चक्षुरेन्द्रिय का विषय रूप और स्पर्शनेन्द्रिय का विषय स्पर्श। आदमी के पास पांच ज्ञानेन्द्रियां हैं। इसी प्रकार पांच कर्मेन्द्रियां भी बताई गयी हैं। आदमी कानों के द्वारा सुनता है, आंखों से देखता है, जिह्वा से स्वाद चखता है, त्वचा से स्पर्श होता है। इस प्रकार पाचों इन्द्रियों के अपने-अपने विषय और अपने-अपने व्यापार होते हैं। ये इन्द्रियों के विषय लोभ के हेतु बनते हैं। इन पांच विषयों के प्रति प्राणी का आकर्षण, आसक्ति और लोभ होता है। कषाय का चौथा अंग लोभ को बताया गया है। लोभ मोहनीय कर्म के परिवार का सदस्य है। आदमी को पाप कर्मों का बंध कराने वाला मोहनीय कर्म ही होता है। लोभ तो दसवें गुणस्थान तक रहने वाला होता है। गृहस्थों में पैसे प्रति लोभ होता है, मान-सम्मान की मांग, समाज में ऊंचे स्थान की मांग भी एक प्रकार की लोभ की चेतना का प्रतीक बन सकता है। इस लोभ के वशीभूत होकर मनुष्य कुछ अकरणीय कार्य भी कर सकता है। लोभ के कारण आदमी हिंसा में भी जा सकता है, झूठ भी बोल सकता है। आदमी को जितना संभव हो सके, लोभ को कम करने का प्रयास करना चाहिए। संतोष की चेतना का विकास हो तो आदमी लोभ से बच सकता है। आचार्यश्री के मंगल प्रवचन के उपरान्त साध्वीवर्या संबुद्धयशाजी ने भी जनता को संबोधित किया। बालिका प्रिया सोनी ने चौबीसी के गीत का संगान किया।

कांदिवली (मुंबई) मे साध्वी डा. मंगलप्रज्ञा ने अपने प्रवचनों मै कहा कि स्वरविज्ञान से होता है अनेक समस्याओं का समाधान….सुरेंद्र मुनोत, ऐसोसिएट एडिटर, Key Line Times समाचार प्रदाता विकास धाकड़ ! तेरापंथ भवन कांदिवली में साध्वीश्री डॉ मंगल प्रज्ञा जी के सानिध्य में एवं तेरापंथ युवक परिषद कांदिवली और मलाड के तत्वावधान में स्वर विज्ञान कार्यशाला आयोजित की गई। इस अवसर पर उपस्थित विशाल धर्मपरिषद को सम्बोधित करते हुए साध्वीश्री डॉ मंगलप्रज्ञा जी ने कहा- स्वरविज्ञान जेनपरम्परा का प्राचीन महत्त्वपूर्ण उपक्रम है। यह साधना प्राणशक्ति की साधना है। स्वरविज्ञान की साधना करना व्यक्ति पर निर्भर है। यह एक ऐसी साधना है, जिसका सम्यकज्ञान हो तो अनेक समस्याओं से निजात पा सकते हैं। हठयोग की भाषा में चंद्र स्वर को ईड़ा, सूर्यस्वर को पिंगला और दोनों स्वर की संयुक्ति को सुषुम्ना कहा जाता है। तिथि, वार और दिशा के साथ स्वरों का सही नियोजन करके करनीय और अकरणीय कार्य का निर्णय किया जा सकता है। सोमवार, बुधवार और शुक्रवार – ये तीनों चन्द्र स्वर से संबंधित है, जबकि मंगलवार, शनिवार और रविवार- ये तीनों सूर्यस्वर से जुड़े हैं। गुरुवार सब के साथ जुड़ा है,जिसका गुरु प्रबल होता है वहां समस्याएं हावी नहीं होती। साध्वी श्री डॉ मंगल प्रज्ञा जी ने कहा- व्यक्ति कोई भी कार्य करता है, वह सफल होना चाहता है, इसके लिए स्वरों का ज्ञान आवश्यक है। हर सौम्य कार्य, या किसी भी कार्य के स्थायित्व के लिए चन्द्र स्वर का होना आवश्यक है। पृथ्वी जल, वायु, अग्नि और आकाश – इन पांच तत्वों के साथ भी स्वर संयोजन किया जाता है। किसी कार्य को इच्छानुसार सम्पादित करने के लिए स्वरों को बदला भी- जा सकता है। गर्मी के समय चन्द्रस्वर की साधना करने से और सर्दी में सूर्यस्वर की साधना करने से अत्यधिक सर्दी या गर्मी का अहसास नहीं होता। भोजन करते समय सूर्य स्वर चले तो पाचन सही होता है। स्वस्थता के लिए स्वरों का संतुलन आवश्यक है। साध्वी सुदर्शन प्रभा जी, साध्वी अतुलयशा जी, साध्वी राजुलप्रभा जी,साध्वी चेतन्य प्रभा जी और साध्वी शौर्य प्रभा जी ने”अद्भूत स्वर विज्ञान का ज्ञान”गीत का सामूहिक संगान किया। साध्वी सुदर्शन प्रभा जी ने ध्यान का प्रयोग करवाया। साध्वी राजुल प्रभा जी ने प्रवचन से पूर्व आगम वाणी का रसास्वादन करवाया।

कांदिवली (मुंबई) मे साध्वी डा. मंगलप्रज्ञा ने अपने प्रवचनों मै कहा कि स्वरविज्ञान से होता है अनेक समस्याओं का समाधान….सुरेंद्र मुनोत, ऐसोसिएट एडिटर, Key Line Times समाचार प्रदाता विकास धाकड़ ! तेरापंथ भवन कांदिवली में साध्वीश्री डॉ मंगल प्रज्ञा जी के सानिध्य में एवं तेरापंथ युवक परिषद कांदिवली और मलाड के तत्वावधान में स्वर विज्ञान कार्यशाला आयोजित की गई। इस अवसर पर उपस्थित विशाल धर्मपरिषद को सम्बोधित करते हुए साध्वीश्री डॉ मंगलप्रज्ञा जी ने कहा- स्वरविज्ञान जेनपरम्परा का प्राचीन महत्त्वपूर्ण उपक्रम है। यह साधना प्राणशक्ति की साधना है। स्वरविज्ञान की साधना करना व्यक्ति पर निर्भर है। यह एक ऐसी साधना है, जिसका सम्यकज्ञान हो तो अनेक समस्याओं से निजात पा सकते हैं। हठयोग की भाषा में चंद्र स्वर को ईड़ा, सूर्यस्वर को पिंगला और दोनों स्वर की संयुक्ति को सुषुम्ना कहा जाता है। तिथि, वार और दिशा के साथ स्वरों का सही नियोजन करके करनीय और अकरणीय कार्य का निर्णय किया जा सकता है। सोमवार, बुधवार और शुक्रवार – ये तीनों चन्द्र स्वर से संबंधित है, जबकि मंगलवार, शनिवार और रविवार- ये तीनों सूर्यस्वर से जुड़े हैं। गुरुवार सब के साथ जुड़ा है,जिसका गुरु प्रबल होता है वहां समस्याएं हावी नहीं होती। साध्वी श्री डॉ मंगल प्रज्ञा जी ने कहा- व्यक्ति कोई भी कार्य करता है, वह सफल होना चाहता है, इसके लिए स्वरों का ज्ञान आवश्यक है। हर सौम्य कार्य, या किसी भी कार्य के स्थायित्व के लिए चन्द्र स्वर का होना आवश्यक है। पृथ्वी जल, वायु, अग्नि और आकाश – इन पांच तत्वों के साथ भी स्वर संयोजन किया जाता है। किसी कार्य को इच्छानुसार सम्पादित करने के लिए स्वरों को बदला भी- जा सकता है। गर्मी के समय चन्द्रस्वर की साधना करने से और सर्दी में सूर्यस्वर की साधना करने से अत्यधिक सर्दी या गर्मी का अहसास नहीं होता। भोजन करते समय सूर्य स्वर चले तो पाचन सही होता है। स्वस्थता के लिए स्वरों का संतुलन आवश्यक है। साध्वी सुदर्शन प्रभा जी, साध्वी अतुलयशा जी, साध्वी राजुलप्रभा जी,साध्वी चेतन्य प्रभा जी और साध्वी शौर्य प्रभा जी ने”अद्भूत स्वर विज्ञान का ज्ञान”गीत का सामूहिक संगान किया। साध्वी सुदर्शन प्रभा जी ने ध्यान का प्रयोग करवाया। साध्वी राजुल प्रभा जी ने प्रवचन से पूर्व आगम वाणी का रसास्वादन करवाया।

उप दंडक श्री विजयभाई पटेल के नेतृत्व में सुबीर में निकाली गई “तिरंगा यात्रा”…राजेश भाई एल पवार,राज्य संवाददाता गुजरात,Key Line Times तिरंगा हुआ सुबीर गांव यात्रा ने प्रमुख मार्गों पर जन जागरूकता जागृत की गुजरात राज्य अहवा : डांग जिले के सुबीर में विधान सभा के उप मुख्य आरक्षी श्री विजय भाई पटेल की अध्यक्षता में “तिरंगा यात्रा” निकाली गई। जुलूस हाथ में तिरंगा झंडा लेकर राजकीय माध्यमिक विद्यालय सुबीर से बिरसा मुंडा सर्किल पहुंचा। अधिकारी, पदाधिकारी और छात्र-छात्राएं जनजागरूकता के लिए तिरंगे झंडे के साथ मुख्य मार्गों पर निकले। गौरतलब है कि 8 से 12 अगस्त तक राज्य भर में ‘हर घर तिरंगा’ कार्यक्रम के तहत विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किये जा रहे हैं। जिसमें ट्राइकलर सेल्फी, ट्राइकलर ओथ, ट्राइकलर कैनवस, ट्राइकलर ट्रिब्यूट, ट्राइकलर मेला और ट्राइकलर रन जैसे कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं। पुलिस बैंड सुरावली के साथ सुबीर की तिरंगा यात्रा में उप दंडकश्री, जिला पंचायत अध्यक्ष श्रीमती निर्मलाबेन गाइन, राज्य जनजाति मोर्चा मंत्री श्री सुभाषभाई गाइन, कलेक्टर श्री बी.बी. चौधरी, दक्षिण डांग वन प्रभाग के उप वन संरक्षक श्री रवि प्रसाद, डिप्टी शामिल थे। वन संरक्षक उत्तर श्री दिनेश रबारी सहित अधिकारी, जिला शिक्षा अधिकारी श्री जिग्नेश त्रिवेदी, भाजपा अध्यक्ष श्री किशोरभाई गावित सहित पदाधिकारी, ग्रामीण, 500 से अधिक स्कूली छात्र शामिल हुए। रिपोर्ट राजेसभाई एल पवार

उप दंडक श्री विजयभाई पटेल के नेतृत्व में सुबीर में निकाली गई “तिरंगा यात्रा”…राजेश भाई एल पवार,राज्य संवाददाता गुजरात,Key Line Times तिरंगा हुआ सुबीर गांव यात्रा ने प्रमुख मार्गों पर जन जागरूकता जागृत की गुजरात राज्य अहवा : डांग जिले के सुबीर में विधान सभा के उप मुख्य आरक्षी श्री विजय भाई पटेल की अध्यक्षता में “तिरंगा यात्रा” निकाली गई। जुलूस हाथ में तिरंगा झंडा लेकर राजकीय माध्यमिक विद्यालय सुबीर से बिरसा मुंडा सर्किल पहुंचा। अधिकारी, पदाधिकारी और छात्र-छात्राएं जनजागरूकता के लिए तिरंगे झंडे के साथ मुख्य मार्गों पर निकले। गौरतलब है कि 8 से 12 अगस्त तक राज्य भर में ‘हर घर तिरंगा’ कार्यक्रम के तहत विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किये जा रहे हैं। जिसमें ट्राइकलर सेल्फी, ट्राइकलर ओथ, ट्राइकलर कैनवस, ट्राइकलर ट्रिब्यूट, ट्राइकलर मेला और ट्राइकलर रन जैसे कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं। पुलिस बैंड सुरावली के साथ सुबीर की तिरंगा यात्रा में उप दंडकश्री, जिला पंचायत अध्यक्ष श्रीमती निर्मलाबेन गाइन, राज्य जनजाति मोर्चा मंत्री श्री सुभाषभाई गाइन, कलेक्टर श्री बी.बी. चौधरी, दक्षिण डांग वन प्रभाग के उप वन संरक्षक श्री रवि प्रसाद, डिप्टी शामिल थे। वन संरक्षक उत्तर श्री दिनेश रबारी सहित अधिकारी, जिला शिक्षा अधिकारी श्री जिग्नेश त्रिवेदी, भाजपा अध्यक्ष श्री किशोरभाई गावित सहित पदाधिकारी, ग्रामीण, 500 से अधिक स्कूली छात्र शामिल हुए। रिपोर्ट राजेसभाई एल पवार

गुजरात के सुरत मे आचार्य महाश्रमणजी ने अपने प्रवचनों मे कहा कि ज्ञान और आचार से जीवन की गति होगी अच्छी ….सुरेन्द्र मुनोत, ऐसोसिएट एडिटर,Key Line Times *-आचार्यश्री ने वायुकाय के जीवों की हिंसा से बचने की दी प्रेरणा* *-एन.आर.आई. श्रद्धालुओं ने भी अपने आराध्य के समक्ष दी अपनी भावनाओं की अभिव्यक्ति* *-मुनि पारसकुमारजी ने महातपस्वी आचार्यश्री से 49 की तपस्या का किया प्रत्याख्यान* *11.08.2024, रविवार, वेसु, सूरत (गुजरात) :* जन-जन का कल्याण करने के लिए पचपन हजार किलोमीटर से अधिक की पदयात्रा करने वाले अखण्ड परिव्राजक, जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता, शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी वर्तमान समय में अपनी धवल सेना संग भारत के सबसे उन्नत प्रदेशों में ख्यात गुजरात प्रदेश के डायमण्ड व सिल्क सिटि के रूप में विश्व विख्यात सूरत शहर में चतुर्मास कर रहे हैं। भगवान महावीर युनिवर्सिटि के परिसर में बने संयम विहार में चतुर्मास करने वाले युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी की मंगल सन्निधि में निरंतर देश-विदेश से श्रद्धालुओं के पहुंचकर आध्यात्मिक लाभ प्राप्त कर रहे हैं। रविवार को महावीर समवसरण में सूरत के श्रद्धालुओं के साथ जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा के तत्त्वावधान में आयोजित एन.आर.आई. समिट के द्विदिवसीय सम्मेलन में भाग लेने वाले 15 देशों के अप्रवासी श्रद्धालु भी उपस्थित थे। जनता को सर्वप्रथम साध्वीप्रमुखा विश्रुतविभाजी ने जनता को संबोधित किया। तदुपरान्त युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने अपनी अमृतवाणी का रसपान कराते हुए कहा कि आयारो आगम में वायुकाय की हिंसा की बात बताई गयी है। जिस प्रकार जल, पृथ्वी, अग्नि व वनस्पति सजीव है तो जैन आगमों में वायु को भी सजीव माना गया है। इसमें वायुकाय के जीवों की हिंसा हो सकती है। प्रश्न हो सकता है कि वायुकाय के जीवों की हिंसा कौन करता है तो यह बताया गया कि जो आचार में रमण नहीं करते, जो आचार निष्ठ नहीं होते, वे वायुकाय की हिंसा करते हैं। साता के मानस से आकुल लोग वायुकाय के जीवों की हिंसा करने वाले होते हैं। गर्मी के दिनों में आदमी हवा के बंद होने और गर्मी के कारण बहुत परेशान होता है। वह हवा लेने के लिए तमाम संसाधन से हवा लेने का प्रयास करता है। हवा के लिए सामान्य आदमी कितनी व्यवस्था भी करता है। पंखा, कूलर, एसी आदि का प्रयोग गृहस्थ करता है। जैसे जीवन में भोजन, पानी की आवश्यकता होती है, उसी प्रकार गर्मी से राहत पाने के लिए इन उपकरणों, यंत्रों की आवश्यकता होती है। ऐसे में साधु हाथ के पंखे का प्रयोग नहीं करता, वह साधना की बात हो सकती है। आदमी को यथासंभव संयम रखने का प्रयास करना चाहिए। आदमी के जीवन में ज्ञान का विकास भी होना चाहिए तो आचार पक्ष भी सुदृ़ढ़ होना चाहिए। हालांकि इन सूक्ष्म हिंसा आदमी यथासंभव तो प्रयास करे, किन्तु आवश्यक हिंसा तो संभव है। आदमी के जीवन में ज्ञान के विकास के साथ आचार का भी विकास होना चाहिए। विद्यार्थी, महाविद्यालय और विश्वविद्यालयों में पढ़ने वाले होते हैं। विद्यार्थी ज्ञानार्जन कर विद्वान, डॉक्टर, वकील, न्यायाधीश, इंजीनियर्स, प्राध्यापक आदि होते हैं। इसका अर्थ कि उन्होंने वर्षों अपना लगाया होगा, परिश्रम किया होगा, तब जाकर विशेष विद्वान बनते हैं। साधु-साध्वियां भी अच्छा ज्ञान रखने वाले हैं। हिन्दी, अंग्रेजी, ज्योतिष, संस्कृत आदि का अध्ययन कर तब जाकर वे विद्वार चारित्रात्मा के रूप में सामने आते हैं। परम पूज्य आचार्यश्री तुलसी और आचार्यश्री महाप्रज्ञजी के ज्ञान का तो कहना ही क्या। कितने-कितने ग्रंथ, साहित्य आदि इसके प्रमाण हैं। ज्ञान जीवन का एक पक्ष है। ज्ञान की आराधना भी एक सारस्वत साधना है। ज्ञान की आराधना के लिए संयम, त्याग का होना भी आवश्यक होता है। ज्ञानवान बनने के लिए श्रद्धा, निष्ठा, समर्पण और त्याग की आवश्यकता है। जीवन का दूसरा पक्ष आचार होता है। ज्ञान हो और आचार नहीं हो तो जीवन की गति अच्छी नहीं हो सकती। इसलिए आदमी का आचरण भी उन्नत बने तो जीवन की गति अच्छी हो सकती है। ईमानदारी, प्रमाणिकता, निष्ठा, शांति रहे। आचार्यश्री के मंगल प्रवचन के उपरान्त मुनि पारसकुमारजी ने 49 की तपस्या का प्रत्याख्यान किया। आचार्यश्री ने उन्हें शुभाशीष प्रदान करते हुए प्रत्याख्यान कराया। तदुपरान्त अनेक श्रद्धालु तपस्वियों ने अपनी-अपनी भावना के अनुसार तपस्याओं का प्रत्याख्यान किया। मुनि उदितकुमारजी ने लोगों को तपस्या के संदर्भ में उत्प्रेरित किया। एन.आर.आई. समिट के संभागी भी ऐसे आध्यात्मिक माहौल में आकर स्वयं को धन्य महसूस कर रहे थे। एन.आर.आई. बालक सार्थ हरकावत ने अपनी प्रस्तुति दी। वर्ल्ड पीस सेण्टर लन्दन ट्रस्ट के श्री आशु बोहरा व श्री जीतू ढेलड़िया ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। नीदरलैण्ड से बालिका आज्ञा भूतोड़िया ने चौबीसी के गीत को प्रस्तुति दी। पान्डेसरा ज्ञानशाला के ज्ञानार्थियों ने अपनी भावपूर्ण प्रस्तुति दी।

गुजरात के सुरत मे आचार्य महाश्रमणजी ने अपने प्रवचनों मे कहा कि ज्ञान और आचार से जीवन की गति होगी अच्छी ….सुरेन्द्र मुनोत, ऐसोसिएट एडिटर,Key Line Times *-आचार्यश्री ने वायुकाय के जीवों की हिंसा से बचने की दी प्रेरणा* *-एन.आर.आई. श्रद्धालुओं ने भी अपने आराध्य के समक्ष दी अपनी भावनाओं की अभिव्यक्ति* *-मुनि पारसकुमारजी ने महातपस्वी आचार्यश्री से 49 की तपस्या का किया प्रत्याख्यान* *11.08.2024, रविवार, वेसु, सूरत (गुजरात) :* जन-जन का कल्याण करने के लिए पचपन हजार किलोमीटर से अधिक की पदयात्रा करने वाले अखण्ड परिव्राजक, जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता, शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी वर्तमान समय में अपनी धवल सेना संग भारत के सबसे उन्नत प्रदेशों में ख्यात गुजरात प्रदेश के डायमण्ड व सिल्क सिटि के रूप में विश्व विख्यात सूरत शहर में चतुर्मास कर रहे हैं। भगवान महावीर युनिवर्सिटि के परिसर में बने संयम विहार में चतुर्मास करने वाले युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी की मंगल सन्निधि में निरंतर देश-विदेश से श्रद्धालुओं के पहुंचकर आध्यात्मिक लाभ प्राप्त कर रहे हैं। रविवार को महावीर समवसरण में सूरत के श्रद्धालुओं के साथ जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा के तत्त्वावधान में आयोजित एन.आर.आई. समिट के द्विदिवसीय सम्मेलन में भाग लेने वाले 15 देशों के अप्रवासी श्रद्धालु भी उपस्थित थे। जनता को सर्वप्रथम साध्वीप्रमुखा विश्रुतविभाजी ने जनता को संबोधित किया। तदुपरान्त युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने अपनी अमृतवाणी का रसपान कराते हुए कहा कि आयारो आगम में वायुकाय की हिंसा की बात बताई गयी है। जिस प्रकार जल, पृथ्वी, अग्नि व वनस्पति सजीव है तो जैन आगमों में वायु को भी सजीव माना गया है। इसमें वायुकाय के जीवों की हिंसा हो सकती है। प्रश्न हो सकता है कि वायुकाय के जीवों की हिंसा कौन करता है तो यह बताया गया कि जो आचार में रमण नहीं करते, जो आचार निष्ठ नहीं होते, वे वायुकाय की हिंसा करते हैं। साता के मानस से आकुल लोग वायुकाय के जीवों की हिंसा करने वाले होते हैं। गर्मी के दिनों में आदमी हवा के बंद होने और गर्मी के कारण बहुत परेशान होता है। वह हवा लेने के लिए तमाम संसाधन से हवा लेने का प्रयास करता है। हवा के लिए सामान्य आदमी कितनी व्यवस्था भी करता है। पंखा, कूलर, एसी आदि का प्रयोग गृहस्थ करता है। जैसे जीवन में भोजन, पानी की आवश्यकता होती है, उसी प्रकार गर्मी से राहत पाने के लिए इन उपकरणों, यंत्रों की आवश्यकता होती है। ऐसे में साधु हाथ के पंखे का प्रयोग नहीं करता, वह साधना की बात हो सकती है। आदमी को यथासंभव संयम रखने का प्रयास करना चाहिए। आदमी के जीवन में ज्ञान का विकास भी होना चाहिए तो आचार पक्ष भी सुदृ़ढ़ होना चाहिए। हालांकि इन सूक्ष्म हिंसा आदमी यथासंभव तो प्रयास करे, किन्तु आवश्यक हिंसा तो संभव है। आदमी के जीवन में ज्ञान के विकास के साथ आचार का भी विकास होना चाहिए। विद्यार्थी, महाविद्यालय और विश्वविद्यालयों में पढ़ने वाले होते हैं। विद्यार्थी ज्ञानार्जन कर विद्वान, डॉक्टर, वकील, न्यायाधीश, इंजीनियर्स, प्राध्यापक आदि होते हैं। इसका अर्थ कि उन्होंने वर्षों अपना लगाया होगा, परिश्रम किया होगा, तब जाकर विशेष विद्वान बनते हैं। साधु-साध्वियां भी अच्छा ज्ञान रखने वाले हैं। हिन्दी, अंग्रेजी, ज्योतिष, संस्कृत आदि का अध्ययन कर तब जाकर वे विद्वार चारित्रात्मा के रूप में सामने आते हैं। परम पूज्य आचार्यश्री तुलसी और आचार्यश्री महाप्रज्ञजी के ज्ञान का तो कहना ही क्या। कितने-कितने ग्रंथ, साहित्य आदि इसके प्रमाण हैं। ज्ञान जीवन का एक पक्ष है। ज्ञान की आराधना भी एक सारस्वत साधना है। ज्ञान की आराधना के लिए संयम, त्याग का होना भी आवश्यक होता है। ज्ञानवान बनने के लिए श्रद्धा, निष्ठा, समर्पण और त्याग की आवश्यकता है। जीवन का दूसरा पक्ष आचार होता है। ज्ञान हो और आचार नहीं हो तो जीवन की गति अच्छी नहीं हो सकती। इसलिए आदमी का आचरण भी उन्नत बने तो जीवन की गति अच्छी हो सकती है। ईमानदारी, प्रमाणिकता, निष्ठा, शांति रहे। आचार्यश्री के मंगल प्रवचन के उपरान्त मुनि पारसकुमारजी ने 49 की तपस्या का प्रत्याख्यान किया। आचार्यश्री ने उन्हें शुभाशीष प्रदान करते हुए प्रत्याख्यान कराया। तदुपरान्त अनेक श्रद्धालु तपस्वियों ने अपनी-अपनी भावना के अनुसार तपस्याओं का प्रत्याख्यान किया। मुनि उदितकुमारजी ने लोगों को तपस्या के संदर्भ में उत्प्रेरित किया। एन.आर.आई. समिट के संभागी भी ऐसे आध्यात्मिक माहौल में आकर स्वयं को धन्य महसूस कर रहे थे। एन.आर.आई. बालक सार्थ हरकावत ने अपनी प्रस्तुति दी। वर्ल्ड पीस सेण्टर लन्दन ट्रस्ट के श्री आशु बोहरा व श्री जीतू ढेलड़िया ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। नीदरलैण्ड से बालिका आज्ञा भूतोड़िया ने चौबीसी के गीत को प्रस्तुति दी। पान्डेसरा ज्ञानशाला के ज्ञानार्थियों ने अपनी भावपूर्ण प्रस्तुति दी।

गुवाहाटी में मुनि श्री प्रशांत जी के सानिध्य में मंत्र दीक्षा का आयोजन…..सुरेंद्र मुनोत, ऐसोसिएट एडिटर,Key Line Times मंत्र दीक्षा का अर्थ अच्छे संकल्पों की दीक्षा-शिक्षा : मुनि प्रशांत गुवाहाटी, 11 अगस्त। अखिल भारतीय तेरापंथ युवक परिषद् के निर्देशन एवं तेरापंथ युवक परिषद्, गुवाहाटी तत्वावधान में मंत्र दीक्षा कार्यशाला मुनि श्री प्रशांत कुमारजी, मुनि श्री कुमुद कुमारजी के सान्निध्य में आयोजित हुई। कार्यक्रम को संबोधित करते हुए मुनि श्री प्रशांत कुमारजी ने कहा – प्रात: उठते ही नवकार मंत्र का जप करना चाहिए, उसे अपना जीवन साथी बना लेना चाहिए। यह मंत्र नहीं अपितु शक्तिशाली महामंत्र है। चार गति संसार एवं मोक्ष को जानने का सटीक तरीका है। मनुष्य गति में अध्यात्म जुड़ जाए तो हमारी यह गति सार्थक बन जाती है। जीवन को अच्छा बनाने के लिए सद्गुणों का विकास होना जरूरी है। आठ कर्मों के कारण ही हम संसार में घूम रहे हैं। आठों ही कर्म को सीखने के साथ किस कारण से किस कर्म बंधन होता है ये जानकर कर्म बंधन से बचना चाहिए। जीवन में गुण एवं अवगुण दोनों आ सकते हैं। कौन-सा संस्कार हमें ग्रहण करना है ये चिंतन करना चाहिए। हमारे जीवन निर्माण में मित्र का भी महत्व रहता है। गलत मित्र का साथ हमारे जीवन को गलत पथ पर ले जाता है, पाप कर्म से जितना बचने का मनोभाव होगा उतना ही हमारा जीवन व्यवहार अच्छा बनेगा। मंत्र दीक्षा स्वीकार करने वाले ज्ञानार्थी वीतराग बनने का चिंतन करते रहें। मंत्र दीक्षा का मतलब कुछ संकल्पों की दीक्षा। मां का चिंतन, व्यवहार, आचरण कार्यशैली एवं जीवनशैली का बहुत असर बच्चों पर होता है। सद्संस्कारी बच्चे का भविष्य सुखद होता है। माता-पिता का अपने कर्तव्य का सम्यक् पालन बच्चे के व्यक्तित्व का निर्माण करते हैं। माता-पिता का मंगल भाव बच्चों के लिए सुखद होता है। हमें अपनी जिंदगी को ज्ञान की रोशनी एवं गुणों की सुगंध से भरनी चाहिए। हमें देव गुरु धर्म के प्रति पूरी श्रद्धा रखनी चाहिए। मुनि श्री कुमुद कुमारजी ने कहा – हमारे जीवन में संस्कार का बहुत महत्व है। जितना श्वास का महत्व होता है उतना ही संस्कार जरूरी है। बिना संस्कार के जीवन अच्छा नहीं होता। संस्कारी बच्चे भविष्य को सुखद बना देते हैं। ज्ञानशाला जीवन निर्माण की प्रयोगशाला है। प्रारम्भ से मिले संस्कार जीवन पर्यंत काम आते हैं। संस्कारों का सिंचन गर्भावस्था में ही होना चाहिए। घर परिवेश का वातावरण का असर बच्चों के मस्तिष्क पर होता है उसी आधार पर उसका व्यवहार एवं आचरण बनता है। हमारी भावी पीढ़ी मूलभूत संस्कारों से भावित रहे, ऐसा प्रयास सबको करना चाहिए। मंत्र दीक्षा स्वीकार करने वाले ज्ञानार्थी अपने जीवन को गौरवमय बनाएं, जिससे दूसरों को प्रेरणा मिल सके। कार्यक्रम का शुभारंभ तेरापंथ युवक परिषद् के विजय गीत से हुआ। नवकार मंत्र गीत पर ज्ञानशाला के ज्ञानार्थी ने रोचक प्रस्तुति दी। तेरापंथ युवक परिषद् अध्यक्ष सतीश कुमार भादानी ने विषय प्रस्तुति दी। आभार तेयुप उपाध्यक्ष नवीन भंसाली ने व्यक्त किया। कार्यक्रम का कुशल संचालन तेरापंथ युवक परिषद् मंत्री पंकज सेठिया ने किया। इस आशय की जानकारी कार्यकारिणी सदस्य सय्यम छाजेड़ ने दी।। समाचार प्रदाता ,पूजा महनोत , गौहाटी

गुवाहाटी में मुनि श्री प्रशांत जी के सानिध्य में मंत्र दीक्षा का आयोजन…..सुरेंद्र मुनोत, ऐसोसिएट एडिटर,Key Line Times मंत्र दीक्षा का अर्थ अच्छे संकल्पों की दीक्षा-शिक्षा : मुनि प्रशांत गुवाहाटी, 11 अगस्त। अखिल भारतीय तेरापंथ युवक परिषद् के निर्देशन एवं तेरापंथ युवक परिषद्, गुवाहाटी तत्वावधान में मंत्र दीक्षा कार्यशाला मुनि श्री प्रशांत कुमारजी, मुनि श्री कुमुद कुमारजी के सान्निध्य में आयोजित हुई। कार्यक्रम को संबोधित करते हुए मुनि श्री प्रशांत कुमारजी ने कहा – प्रात: उठते ही नवकार मंत्र का जप करना चाहिए, उसे अपना जीवन साथी बना लेना चाहिए। यह मंत्र नहीं अपितु शक्तिशाली महामंत्र है। चार गति संसार एवं मोक्ष को जानने का सटीक तरीका है। मनुष्य गति में अध्यात्म जुड़ जाए तो हमारी यह गति सार्थक बन जाती है। जीवन को अच्छा बनाने के लिए सद्गुणों का विकास होना जरूरी है। आठ कर्मों के कारण ही हम संसार में घूम रहे हैं। आठों ही कर्म को सीखने के साथ किस कारण से किस कर्म बंधन होता है ये जानकर कर्म बंधन से बचना चाहिए। जीवन में गुण एवं अवगुण दोनों आ सकते हैं। कौन-सा संस्कार हमें ग्रहण करना है ये चिंतन करना चाहिए। हमारे जीवन निर्माण में मित्र का भी महत्व रहता है। गलत मित्र का साथ हमारे जीवन को गलत पथ पर ले जाता है, पाप कर्म से जितना बचने का मनोभाव होगा उतना ही हमारा जीवन व्यवहार अच्छा बनेगा। मंत्र दीक्षा स्वीकार करने वाले ज्ञानार्थी वीतराग बनने का चिंतन करते रहें। मंत्र दीक्षा का मतलब कुछ संकल्पों की दीक्षा। मां का चिंतन, व्यवहार, आचरण कार्यशैली एवं जीवनशैली का बहुत असर बच्चों पर होता है। सद्संस्कारी बच्चे का भविष्य सुखद होता है। माता-पिता का अपने कर्तव्य का सम्यक् पालन बच्चे के व्यक्तित्व का निर्माण करते हैं। माता-पिता का मंगल भाव बच्चों के लिए सुखद होता है। हमें अपनी जिंदगी को ज्ञान की रोशनी एवं गुणों की सुगंध से भरनी चाहिए। हमें देव गुरु धर्म के प्रति पूरी श्रद्धा रखनी चाहिए। मुनि श्री कुमुद कुमारजी ने कहा – हमारे जीवन में संस्कार का बहुत महत्व है। जितना श्वास का महत्व होता है उतना ही संस्कार जरूरी है। बिना संस्कार के जीवन अच्छा नहीं होता। संस्कारी बच्चे भविष्य को सुखद बना देते हैं। ज्ञानशाला जीवन निर्माण की प्रयोगशाला है। प्रारम्भ से मिले संस्कार जीवन पर्यंत काम आते हैं। संस्कारों का सिंचन गर्भावस्था में ही होना चाहिए। घर परिवेश का वातावरण का असर बच्चों के मस्तिष्क पर होता है उसी आधार पर उसका व्यवहार एवं आचरण बनता है। हमारी भावी पीढ़ी मूलभूत संस्कारों से भावित रहे, ऐसा प्रयास सबको करना चाहिए। मंत्र दीक्षा स्वीकार करने वाले ज्ञानार्थी अपने जीवन को गौरवमय बनाएं, जिससे दूसरों को प्रेरणा मिल सके। कार्यक्रम का शुभारंभ तेरापंथ युवक परिषद् के विजय गीत से हुआ। नवकार मंत्र गीत पर ज्ञानशाला के ज्ञानार्थी ने रोचक प्रस्तुति दी। तेरापंथ युवक परिषद् अध्यक्ष सतीश कुमार भादानी ने विषय प्रस्तुति दी। आभार तेयुप उपाध्यक्ष नवीन भंसाली ने व्यक्त किया। कार्यक्रम का कुशल संचालन तेरापंथ युवक परिषद् मंत्री पंकज सेठिया ने किया। इस आशय की जानकारी कार्यकारिणी सदस्य सय्यम छाजेड़ ने दी।। समाचार प्रदाता ,पूजा महनोत , गौहाटी

🌸 *चित्त समाधि, शांति व संपोषण प्रदान करने वाला हो समिट : युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण* 🌸 *-शांतिदूत की मंगल सन्निधि में एन.आर.आई समिट 2024 का हुआ शुभारम्भ* *-15 देशों के 200 से अधिक श्रद्धालु आध्यात्मिक संपोषण से होंगे लाभान्वित* *10.08.2024, शनिवार, वेसु, सूरत (गुजरात) :* अपनी अमृतवाणी से जन-जन का कल्याण करने वाले, लोगों को सद्भावना, नैतिकता व नशामुक्ति रूपी सन्मार्ग दिखाने वाले, जैन श्वेताम्बर तेरापंथ के वर्तमान अधिशास्ता, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी की मंगल सन्निधि में जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा द्वारा आयोजित तेरापंथ एन.आर.आई समिट 2024 में भाग लेने और अपने जीवन को आध्यात्मिकता से भावित बनाने के लिए विश्व के लगभग पन्द्रह देशों से 200 से अधिक श्रद्धालु डायमण्ड सिटि सूरत के भगवान महावीर युनिवर्सिटि परिसर में बने भव्य, विशाल संयम विहार में पहुंचे तो पूरा वातावरण वैश्विक सद्भावना से आप्लावित हो गया। मानवता के मसीहा महाश्रमणजी की मंगल सन्निधि में उपस्थित हुए इन श्रद्धालुओं को आचार्यश्री ने मंगल आशीष प्रदान करने के साथ ही मुख्य प्रवचन कार्यक्रम में पावन प्रेरणा भी प्रदान की। यह प्रेरणा उन श्रद्धालुओं को भावविभोर तो बना ही रही थी, इसके साथ उन्हें गहराई से अपने धर्म और संस्कारों की भावनाओं को पुष्ट बनाने में सहायक भी बनी। आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में आस्ट्रेलिया, न्यू गिन्नी, आस्ट्रिया, बेल्जियम, हांगकांग, इण्डोनेशिया, मलेशिया, नीदरलैण्ड, साउदी अरब, सिंगापुर, युनाइटेड किंगडम, युनाइटेड स्टेट ऑफ अमेरिका, बहरिन, युनाइटेड स्टेट ऑफ अमिरात जैसे देशों से अप्रवासी तेरापंथी श्रद्धालु अपने बच्चों और परिवार के साथ पहुंच चुके थे। तेरापंथ के वर्तमान अधिशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी जैसे ही महावीर समवसरण में पधारे तो पन्द्रह देशों से आए श्रद्धालु भी भारतीय ध्वज की अगुवानी में अपने-अपने देश के राष्ट्रीय ध्वज के साथ पहुंचे। युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने आयारो आगम के माध्यम से पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि आयारो के प्रथम अध्ययन में शस्त्र परिज्ञा के विषय में बताया गया है कि छह जीव निकायों के प्रति अहिंसा की भावना को पुष्ट बनाए रखने की प्रेरणा प्रदान की गयी है। इसमें मनुष्य और अन्य सभी जीवों को समान बताया गया है। इसमें कहा गया है कि मैं जीव और जीना चाहता हूं तो अन्य जीव भी जीना चाहते होंगे। दूसरी बात बताई गयी कि मानव को सुख प्रिय है तो अन्य सभी प्राणियों को सुख प्रिय होता है। तीसरी बात बताई गयी कि मानव को दुःख अप्रिय है तो अन्य जीवों को भी दुःख अप्रिय होता है। इन समानताओं को तुला के रूप में देखा जा सकता है। इस तुला पर ध्यान देकर आदमी को अहिंसा पर विशेष ध्यान देने का प्रयास करना चाहिए। जिस प्रकार मानव जीना चाहता है, मरना नहीं चाहता तो वह भी किसी अन्य प्राणी को न मारे और उन्हें भी जीने का अधिकार दे। पूर्णरूपेण जीव हिंसा से बचाव नहीं हो सकता। इसलिए हिंसा के तीन प्रकार बताए गए हैं-आरम्भजा हिंसा, प्रतिरक्षात्मिकी हिंसा व संकल्पजा हिंसा। जीव चलाने के लिए खेती-बाड़ी, रसोई आदि के कार्य भी जीव हिंसा होती है, किन्तु यह जीवन चलाने के लिए होती है। यह कोई जघन्य हिंसा नहीं होती। हिंसा का दूसरा प्रकार है प्रतिरक्षात्मिकी। रक्षा के लिए कहीं कुछ बल प्रयोग करना पड़े, हिंसा को काम में लेना पड़े, अपने देश, परिवार, समाज और कही शांति बनाए रखने के लिए शस्त्र का प्रयोग करना पड़ा है तो वह प्रतिरक्षात्मिकी हिंसा होती है। कोई राष्ट्र किसी पर चलाकर आक्रमण न करे, इतनी अहिंसा हर राष्ट्र की नीति में होनी चाहिए कि अनावश्यक हमला और हिंसा नहीं करेंगे। दूसरा कोई राष्ट्र मेरे राष्ट्र पर आक्रमण करे या तैयारी करे तो फिर अपने राष्ट्र की रक्षा, मातृभूमि की रक्षा, देशवासियों की रक्षा के लिए आवश्यक हिंसा हो जाती है। तीसरी बात है संकल्पजा हिंसा। विदेशें में रहने वाले, बाहर रहने वाले, होटल, हॉस्टल आदि जगहों पर भी जाना हो तो नॉनवेज भोजन का सेवन न हो, ऐसा प्रयास करना चाहिए। जितना संभव हो सके तो नॉनवेज से युक्त दवाई भी लेने से बचने का प्रयास होना चाहिए। एन.आर.आई. लोग में भी धार्मिक भावनाओं का संचार किया जाना चाहिए। समणश्रेणी द्वारा भारत से बाहर जाकर धार्मिक संस्कारों से जोड़ने और उसे सुरक्षित करने का प्रयास किया जाता होगा। भारत में फिर भी साधु-साध्वियों के सम्पर्क का मौका मिल सकता है, लेकिन दूर देशों में रहने वाले लोगों को समण श्रेणी का कितना योग मिलता है। तेरापंथी महासभा विदेश में रहने वाले लोगों से सम्पर्क बनाए रखते हैं, इस दूरस्थ सम्पर्क से संस्कारों को सुरक्षित बनाया जा सकता है। आज के आधुनिक युग में यंत्र और मीडिया के माध्यम से पहुंचना बहुत आसान हो गया है। इस प्रकार आदमी को सभी प्राणियों के प्रति समानता का भाव रखते आदमी हिंसा से बचने और अहिंसा के भाव को पुष्ट बनाने का प्रयास हो सकता है। आचार्यश्री ने एन.आर.आई. समिट में संभागी बने लोगों को पावन आशीष प्रदान करते हुए कहा कि इस समिट के माध्यम से इतने लोगों का एक साथ पहुंचने का उपक्रम बहुत अच्छा होता है। साधु-साध्वियों से सम्पर्क के लिए यहां आने से कितना लाभ प्राप्त हो सकता है। इसके अलावा यंत्रों के माध्यम से, पुस्तकों व समणियों से संस्कार और धार्मिक ज्ञान का लाभ प्राप्त किया जा सकता है। इससे बालपीढ़ी को अच्छे संस्कार प्राप्त होता रहे। जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा बाहर रहने वाले लोगों का तेरापंथ धर्मसंघ से जुड़ाव पुष्ट रहे, इस दृष्टि से इस सम्मेलन का विशेष महत्त्व है। आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में आज से आरम्भ हुए तेरापंथ एन.आर.आई. समिट के द्विदिवसीय कार्यक्रम का शुभारम्भ हुआ। इस संदर्भ में जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा के अध्यक्ष श्री मनसुखलाल सेठिया, इस समिट के कन्वेनर श्री जयेश जैन, श्री सुरेन्द्र पटावरी (बोरड़) व चतुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति-सूरत के अध्यक्ष श्री संजय सुराणा ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। आचार्यश्री ने अपने श्रीमुख से एन.आर.आई. समिट में उपस्थित श्रद्धालुओं को मंगल पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि आज इतनी संख्या में एन.आर.आई. उपस्थित हुए हैं। समणियों के जाने व वहां रहने से दूर देशों में रहने वालों को संपोषण प्राप्त हो सकता है। उधर के लोग यहां साधु-संतों की सन्निधि में पहुंच जाते हैं। महासभा के नए-नए उन्मेष आते हैं जो संगठन के लिए बहुत अच्छी बात होती है। यह लोगों और बालपीढ़ी को अच्छा संपोषण देने वाली सिद्ध हो और जीवन में शांति, चित्त में समाधि और अपनी आत्मा के कल्याण के लिए यथासंभव प्रयास हो।

🌸 *चित्त समाधि, शांति व संपोषण प्रदान करने वाला हो समिट : युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण* 🌸 *-शांतिदूत की मंगल सन्निधि में एन.आर.आई समिट 2024 का हुआ शुभारम्भ* *-15 देशों के 200 से अधिक श्रद्धालु आध्यात्मिक संपोषण से होंगे लाभान्वित* *10.08.2024, शनिवार, वेसु, सूरत (गुजरात) :* अपनी अमृतवाणी से जन-जन का कल्याण करने वाले, लोगों को सद्भावना, नैतिकता व नशामुक्ति रूपी सन्मार्ग दिखाने वाले, जैन श्वेताम्बर तेरापंथ के वर्तमान अधिशास्ता, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी की मंगल सन्निधि में जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा द्वारा आयोजित तेरापंथ एन.आर.आई समिट 2024 में भाग लेने और अपने जीवन को आध्यात्मिकता से भावित बनाने के लिए विश्व के लगभग पन्द्रह देशों से 200 से अधिक श्रद्धालु डायमण्ड सिटि सूरत के भगवान महावीर युनिवर्सिटि परिसर में बने भव्य, विशाल संयम विहार में पहुंचे तो पूरा वातावरण वैश्विक सद्भावना से आप्लावित हो गया। मानवता के मसीहा महाश्रमणजी की मंगल सन्निधि में उपस्थित हुए इन श्रद्धालुओं को आचार्यश्री ने मंगल आशीष प्रदान करने के साथ ही मुख्य प्रवचन कार्यक्रम में पावन प्रेरणा भी प्रदान की। यह प्रेरणा उन श्रद्धालुओं को भावविभोर तो बना ही रही थी, इसके साथ उन्हें गहराई से अपने धर्म और संस्कारों की भावनाओं को पुष्ट बनाने में सहायक भी बनी। आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में आस्ट्रेलिया, न्यू गिन्नी, आस्ट्रिया, बेल्जियम, हांगकांग, इण्डोनेशिया, मलेशिया, नीदरलैण्ड, साउदी अरब, सिंगापुर, युनाइटेड किंगडम, युनाइटेड स्टेट ऑफ अमेरिका, बहरिन, युनाइटेड स्टेट ऑफ अमिरात जैसे देशों से अप्रवासी तेरापंथी श्रद्धालु अपने बच्चों और परिवार के साथ पहुंच चुके थे। तेरापंथ के वर्तमान अधिशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी जैसे ही महावीर समवसरण में पधारे तो पन्द्रह देशों से आए श्रद्धालु भी भारतीय ध्वज की अगुवानी में अपने-अपने देश के राष्ट्रीय ध्वज के साथ पहुंचे। युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने आयारो आगम के माध्यम से पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि आयारो के प्रथम अध्ययन में शस्त्र परिज्ञा के विषय में बताया गया है कि छह जीव निकायों के प्रति अहिंसा की भावना को पुष्ट बनाए रखने की प्रेरणा प्रदान की गयी है। इसमें मनुष्य और अन्य सभी जीवों को समान बताया गया है। इसमें कहा गया है कि मैं जीव और जीना चाहता हूं तो अन्य जीव भी जीना चाहते होंगे। दूसरी बात बताई गयी कि मानव को सुख प्रिय है तो अन्य सभी प्राणियों को सुख प्रिय होता है। तीसरी बात बताई गयी कि मानव को दुःख अप्रिय है तो अन्य जीवों को भी दुःख अप्रिय होता है। इन समानताओं को तुला के रूप में देखा जा सकता है। इस तुला पर ध्यान देकर आदमी को अहिंसा पर विशेष ध्यान देने का प्रयास करना चाहिए। जिस प्रकार मानव जीना चाहता है, मरना नहीं चाहता तो वह भी किसी अन्य प्राणी को न मारे और उन्हें भी जीने का अधिकार दे। पूर्णरूपेण जीव हिंसा से बचाव नहीं हो सकता। इसलिए हिंसा के तीन प्रकार बताए गए हैं-आरम्भजा हिंसा, प्रतिरक्षात्मिकी हिंसा व संकल्पजा हिंसा। जीव चलाने के लिए खेती-बाड़ी, रसोई आदि के कार्य भी जीव हिंसा होती है, किन्तु यह जीवन चलाने के लिए होती है। यह कोई जघन्य हिंसा नहीं होती। हिंसा का दूसरा प्रकार है प्रतिरक्षात्मिकी। रक्षा के लिए कहीं कुछ बल प्रयोग करना पड़े, हिंसा को काम में लेना पड़े, अपने देश, परिवार, समाज और कही शांति बनाए रखने के लिए शस्त्र का प्रयोग करना पड़ा है तो वह प्रतिरक्षात्मिकी हिंसा होती है। कोई राष्ट्र किसी पर चलाकर आक्रमण न करे, इतनी अहिंसा हर राष्ट्र की नीति में होनी चाहिए कि अनावश्यक हमला और हिंसा नहीं करेंगे। दूसरा कोई राष्ट्र मेरे राष्ट्र पर आक्रमण करे या तैयारी करे तो फिर अपने राष्ट्र की रक्षा, मातृभूमि की रक्षा, देशवासियों की रक्षा के लिए आवश्यक हिंसा हो जाती है। तीसरी बात है संकल्पजा हिंसा। विदेशें में रहने वाले, बाहर रहने वाले, होटल, हॉस्टल आदि जगहों पर भी जाना हो तो नॉनवेज भोजन का सेवन न हो, ऐसा प्रयास करना चाहिए। जितना संभव हो सके तो नॉनवेज से युक्त दवाई भी लेने से बचने का प्रयास होना चाहिए। एन.आर.आई. लोग में भी धार्मिक भावनाओं का संचार किया जाना चाहिए। समणश्रेणी द्वारा भारत से बाहर जाकर धार्मिक संस्कारों से जोड़ने और उसे सुरक्षित करने का प्रयास किया जाता होगा। भारत में फिर भी साधु-साध्वियों के सम्पर्क का मौका मिल सकता है, लेकिन दूर देशों में रहने वाले लोगों को समण श्रेणी का कितना योग मिलता है। तेरापंथी महासभा विदेश में रहने वाले लोगों से सम्पर्क बनाए रखते हैं, इस दूरस्थ सम्पर्क से संस्कारों को सुरक्षित बनाया जा सकता है। आज के आधुनिक युग में यंत्र और मीडिया के माध्यम से पहुंचना बहुत आसान हो गया है। इस प्रकार आदमी को सभी प्राणियों के प्रति समानता का भाव रखते आदमी हिंसा से बचने और अहिंसा के भाव को पुष्ट बनाने का प्रयास हो सकता है। आचार्यश्री ने एन.आर.आई. समिट में संभागी बने लोगों को पावन आशीष प्रदान करते हुए कहा कि इस समिट के माध्यम से इतने लोगों का एक साथ पहुंचने का उपक्रम बहुत अच्छा होता है। साधु-साध्वियों से सम्पर्क के लिए यहां आने से कितना लाभ प्राप्त हो सकता है। इसके अलावा यंत्रों के माध्यम से, पुस्तकों व समणियों से संस्कार और धार्मिक ज्ञान का लाभ प्राप्त किया जा सकता है। इससे बालपीढ़ी को अच्छे संस्कार प्राप्त होता रहे। जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा बाहर रहने वाले लोगों का तेरापंथ धर्मसंघ से जुड़ाव पुष्ट रहे, इस दृष्टि से इस सम्मेलन का विशेष महत्त्व है। आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में आज से आरम्भ हुए तेरापंथ एन.आर.आई. समिट के द्विदिवसीय कार्यक्रम का शुभारम्भ हुआ। इस संदर्भ में जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा के अध्यक्ष श्री मनसुखलाल सेठिया, इस समिट के कन्वेनर श्री जयेश जैन, श्री सुरेन्द्र पटावरी (बोरड़) व चतुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति-सूरत के अध्यक्ष श्री संजय सुराणा ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। आचार्यश्री ने अपने श्रीमुख से एन.आर.आई. समिट में उपस्थित श्रद्धालुओं को मंगल पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि आज इतनी संख्या में एन.आर.आई. उपस्थित हुए हैं। समणियों के जाने व वहां रहने से दूर देशों में रहने वालों को संपोषण प्राप्त हो सकता है। उधर के लोग यहां साधु-संतों की सन्निधि में पहुंच जाते हैं। महासभा के नए-नए उन्मेष आते हैं जो संगठन के लिए बहुत अच्छी बात होती है। यह लोगों और बालपीढ़ी को अच्छा संपोषण देने वाली सिद्ध हो और जीवन में शांति, चित्त में समाधि और अपनी आत्मा के कल्याण के लिए यथासंभव प्रयास हो।

डांग जिले के लश्कर्या गांव में डांग जिले के प्रमुख राजा शीलपत की प्रतिमा का अनावरण किया गया डांग जिले को आज भी यहां के लोग स्वतंत्र मानते हैं, जिसका सबसे अच्छा उदाहरण यहां के लोगों ने साबित किया है कि यह घर कहां काम करता था, तो इसका उत्तर गुजरात के लिए मिलता है, आज लोग डांग को एक स्वतंत्र क्षेत्र मानते हैं। डांग जिले में शिल्पत राजा की मूर्ति अहवा के पास लस्करिया गांव में स्थापित की गई महेशभाई अहिरे के नेतृत्व में और गाडवी राज्य के मुकेशभाई पटेल और राजवी द्वारा समर्थित और वसुराना राजवी और पंकज पालवे और जीतूभाई गमित, साथ ही पाटिल और अधिकारियों ने 9-8-2024 को विश्व आदिवासी दिवस के अवसर पर महेशभाई अहिरे के साथ मिलकर शिलपट किया। मूर्ति स्थापित करने के लिए राजा साहब साथ गए थे, उनका नाम शिल्पत राजा साहब भी है, जो डांग जिले के प्रमुख राजा थे, जिन्होंने अंग्रेजों की 5000 हजार की सेना से लड़कर डांग जिले की प्रकृति को बचाया था। जब स्थानीय शासन विभाग प्रमुख राजा साहब के लिए 2 फीट जगह देने के लिए आगे बढ़ता रहा, जिसमें महेशभाई अहीर ने आर पार के नारे के साथ राजा साहब की मूर्ति स्थापित की, डांग जिला एक स्वतंत्र जिला है, 1976 में ग्राज़ियार फॉरेन टेटी टेटी को एक स्वतंत्र राज्य माना गया, और 1952 में लिस्पर का 99 साल का समझौता भी पूरा हो गया, लेकिन सरकार आदिवासियों को अपना अस्तित्व बढ़ाने के अपने कर्तव्य से विमुख दिखाई दी 9 अगस्त आदिवासी दिवस के अवसर पर डांग जिले से आदिवासी नेताओं को लाया गया महेश अहीर ने बी.एस. प्राप्त किया। पी। राष्ट्रपति डांग रिपोर्ट राजेसभाई एल पवार

डांग जिले के लश्कर्या गांव में डांग जिले के प्रमुख राजा शीलपत की प्रतिमा का अनावरण किया गया डांग जिले को आज भी यहां के लोग स्वतंत्र मानते हैं, जिसका सबसे अच्छा उदाहरण यहां के लोगों ने साबित किया है कि यह घर कहां काम करता था, तो इसका उत्तर गुजरात के लिए मिलता है, आज लोग डांग को एक स्वतंत्र क्षेत्र मानते हैं। डांग जिले में शिल्पत राजा की मूर्ति अहवा के पास लस्करिया गांव में स्थापित की गई महेशभाई अहिरे के नेतृत्व में और गाडवी राज्य के मुकेशभाई पटेल और राजवी द्वारा समर्थित और वसुराना राजवी और पंकज पालवे और जीतूभाई गमित, साथ ही पाटिल और अधिकारियों ने 9-8-2024 को विश्व आदिवासी दिवस के अवसर पर महेशभाई अहिरे के साथ मिलकर शिलपट किया। मूर्ति स्थापित करने के लिए राजा साहब साथ गए थे, उनका नाम शिल्पत राजा साहब भी है, जो डांग जिले के प्रमुख राजा थे, जिन्होंने अंग्रेजों की 5000 हजार की सेना से लड़कर डांग जिले की प्रकृति को बचाया था। जब स्थानीय शासन विभाग प्रमुख राजा साहब के लिए 2 फीट जगह देने के लिए आगे बढ़ता रहा, जिसमें महेशभाई अहीर ने आर पार के नारे के साथ राजा साहब की मूर्ति स्थापित की, डांग जिला एक स्वतंत्र जिला है, 1976 में ग्राज़ियार फॉरेन टेटी टेटी को एक स्वतंत्र राज्य माना गया, और 1952 में लिस्पर का 99 साल का समझौता भी पूरा हो गया, लेकिन सरकार आदिवासियों को अपना अस्तित्व बढ़ाने के अपने कर्तव्य से विमुख दिखाई दी 9 अगस्त आदिवासी दिवस के अवसर पर डांग जिले से आदिवासी नेताओं को लाया गया महेश अहीर ने बी.एस. प्राप्त किया। पी। राष्ट्रपति डांग रिपोर्ट राजेसभाई एल पवार

🌸 *बाह्य और अध्यात्म दोनों जगत जाने मानव : अध्यात्मवेत्ता आचार्यश्री महाश्रमण* 🌸 *-आगमवाणी की वर्षा में अभिस्नात बन रही डायमण्ड सिटि की जनता* *-जनता को साध्वीवर्याजी ने किया संबोधित* *09.08.2024, शुक्रवार, वेसु, सूरत (गुजरात) :* सूरत शहर में आसमान से होने वाली अब बरसात भले ही मंद हो गयी है अथवा कह दें बंद-सी हो गयी है, किन्तु जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अधिशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि आचार्यश्री महाश्रमणजी के श्रीमुख से निरंतर अमृतमयी वर्षा हो रही है। इस अमृतमयी वर्षा में सराबोर होने के लिए प्रतिदिन हजारों की संख्या में श्रद्धालु उपस्थित होते हैं और अपने जीवन को इन अमृत बूंदों से भावित बनाने का प्रयास करते हैं। शुक्रवार को महावीर समवसरण से भगवान महावीर के प्रतिनिधि आचार्यश्री महाश्रमणजी ने आयारो आगम पर आधारित अपने पावन पाथेय में कहा कि दो शब्द प्रयुक्त हुए हैं-अध्यात्म और बाह्य। जो अध्यात्म को जानता है, वह बाह्य को जानता है। जो बाह्य को जानता है, वह अध्यात्म को जानता है। एक अध्यात्म का जगत है और दूसरा बाह्य जगत है। एक चेतना और आत्मा का जगत है और दूसरा भौतिकता का जगत है, अचैतन्य का जगत है। अंतरात्मा में होने वाली प्रवृत्ति अध्यात्म है। शरीर, वाणी और मन की भिन्नता होने पर भी चेतना की समानता है, वह अध्यात्म है। वीतरागता चेतना अध्यात्म है। वीतरागता से बाहर रहना बाह्य जगत में रहना होता है। ज्ञान अध्यात्म जगत का भी हो सकता है और बाह्य जगत का भी हो सकता है। ज्ञान अपने आप में प्रकाश है। ज्ञान दोनों को जानता है। ज्ञान अपने आप में पवित्र तत्त्व होता है। आदमी के पास अच्छी बातों का भी ज्ञान हो सकता है और बुरी बातों का भी ज्ञान हो सकता है। जानने के बाद छोड़ने योग्य, ग्रहण करने योग्य और जानने योग्य। पाप और पुण्य को जाना जाता है तो संवर को भी जाना जाता है तो निर्जरा को भी जाना जाता है। जानने के बाद जो छोड़ने योग्य होता है, उसे छोड़ने का प्रयास करना चाहिए तथा जो ग्रहण करने योग्य हो, उसे ग्रहण करने का प्रयास करना चाहिए। पक्ष को जानने वाले के लिए प्रतिपक्ष को भी जानना आवश्यक होता है। किसी पक्ष का खण्डन करने के लिए उस पक्ष की भी जानकारी रखने का प्रयास होना चाहिए। नव तत्त्व के आलोक में आदमी ध्यान दे कि संवर, निर्जरा व मोक्ष को जानते हैं जो अध्यात्म का पक्ष है तो पुण्य, पाप, बंध और आश्रव को भी जानना चाहिए जो बाह्य का जगत होता है। किसी भी एक पक्ष का ज्ञान होना और दूसरे पक्ष का ज्ञान नहीं होता तो वहां अधूरेपन की बात हो सकती है। ज्ञान के साथ विज्ञान की बात को जानने का प्रयास हो। अध्यात्म और विज्ञान का कहीं समनव्य भी हो सकता है। अध्यात्म को गहराई से पकड़ने के लिए बाह्य का ज्ञान भी अपेक्षित होता है। जब तक बाह्य का अच्छा ज्ञान नहीं होता, तो शायद अध्यात्म की अनुपालना में कमी भी हो सकती है। इसलिए आदमी को अध्यात्म और बाह्य को जानकर चलने से परिपूर्णता की बात हो सकती है। मंगल प्रवचन के उपरान्त आचार्यश्री ‘चन्दन की चुटकी भली’ में वर्णित एक और आख्यान के क्रम को सम्पन्न करते अपनी नीति को शुद्ध बनाए रखने की प्रेरणा प्रदान की। आचार्यश्री के मंगल प्रवचन व आख्यान के उपरान्त साध्वीवर्या सम्बुद्धयशाजी ने भी जनता को उद्बोधित किया। तेरापंथ कन्या मण्डल-सूरत ने चौबीसी में उल्लखित छठे तीर्थंकर पद्मप्रभु के गीत का संगान किया। तपस्वियों ने अपनी-अपनी धारणा के अनुसार अपनी-अपनी तपस्याओं का प्रत्याख्यान किया। बालक प्रबल कोटड़िया ने गीत का संगान किया।

🌸 *बाह्य और अध्यात्म दोनों जगत जाने मानव : अध्यात्मवेत्ता आचार्यश्री महाश्रमण* 🌸 *-आगमवाणी की वर्षा में अभिस्नात बन रही डायमण्ड सिटि की जनता* *-जनता को साध्वीवर्याजी ने किया संबोधित* *09.08.2024, शुक्रवार, वेसु, सूरत (गुजरात) :* सूरत शहर में आसमान से होने वाली अब बरसात भले ही मंद हो गयी है अथवा कह दें बंद-सी हो गयी है, किन्तु जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अधिशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि आचार्यश्री महाश्रमणजी के श्रीमुख से निरंतर अमृतमयी वर्षा हो रही है। इस अमृतमयी वर्षा में सराबोर होने के लिए प्रतिदिन हजारों की संख्या में श्रद्धालु उपस्थित होते हैं और अपने जीवन को इन अमृत बूंदों से भावित बनाने का प्रयास करते हैं। शुक्रवार को महावीर समवसरण से भगवान महावीर के प्रतिनिधि आचार्यश्री महाश्रमणजी ने आयारो आगम पर आधारित अपने पावन पाथेय में कहा कि दो शब्द प्रयुक्त हुए हैं-अध्यात्म और बाह्य। जो अध्यात्म को जानता है, वह बाह्य को जानता है। जो बाह्य को जानता है, वह अध्यात्म को जानता है। एक अध्यात्म का जगत है और दूसरा बाह्य जगत है। एक चेतना और आत्मा का जगत है और दूसरा भौतिकता का जगत है, अचैतन्य का जगत है। अंतरात्मा में होने वाली प्रवृत्ति अध्यात्म है। शरीर, वाणी और मन की भिन्नता होने पर भी चेतना की समानता है, वह अध्यात्म है। वीतरागता चेतना अध्यात्म है। वीतरागता से बाहर रहना बाह्य जगत में रहना होता है। ज्ञान अध्यात्म जगत का भी हो सकता है और बाह्य जगत का भी हो सकता है। ज्ञान अपने आप में प्रकाश है। ज्ञान दोनों को जानता है। ज्ञान अपने आप में पवित्र तत्त्व होता है। आदमी के पास अच्छी बातों का भी ज्ञान हो सकता है और बुरी बातों का भी ज्ञान हो सकता है। जानने के बाद छोड़ने योग्य, ग्रहण करने योग्य और जानने योग्य। पाप और पुण्य को जाना जाता है तो संवर को भी जाना जाता है तो निर्जरा को भी जाना जाता है। जानने के बाद जो छोड़ने योग्य होता है, उसे छोड़ने का प्रयास करना चाहिए तथा जो ग्रहण करने योग्य हो, उसे ग्रहण करने का प्रयास करना चाहिए। पक्ष को जानने वाले के लिए प्रतिपक्ष को भी जानना आवश्यक होता है। किसी पक्ष का खण्डन करने के लिए उस पक्ष की भी जानकारी रखने का प्रयास होना चाहिए। नव तत्त्व के आलोक में आदमी ध्यान दे कि संवर, निर्जरा व मोक्ष को जानते हैं जो अध्यात्म का पक्ष है तो पुण्य, पाप, बंध और आश्रव को भी जानना चाहिए जो बाह्य का जगत होता है। किसी भी एक पक्ष का ज्ञान होना और दूसरे पक्ष का ज्ञान नहीं होता तो वहां अधूरेपन की बात हो सकती है। ज्ञान के साथ विज्ञान की बात को जानने का प्रयास हो। अध्यात्म और विज्ञान का कहीं समनव्य भी हो सकता है। अध्यात्म को गहराई से पकड़ने के लिए बाह्य का ज्ञान भी अपेक्षित होता है। जब तक बाह्य का अच्छा ज्ञान नहीं होता, तो शायद अध्यात्म की अनुपालना में कमी भी हो सकती है। इसलिए आदमी को अध्यात्म और बाह्य को जानकर चलने से परिपूर्णता की बात हो सकती है। मंगल प्रवचन के उपरान्त आचार्यश्री ‘चन्दन की चुटकी भली’ में वर्णित एक और आख्यान के क्रम को सम्पन्न करते अपनी नीति को शुद्ध बनाए रखने की प्रेरणा प्रदान की। आचार्यश्री के मंगल प्रवचन व आख्यान के उपरान्त साध्वीवर्या सम्बुद्धयशाजी ने भी जनता को उद्बोधित किया। तेरापंथ कन्या मण्डल-सूरत ने चौबीसी में उल्लखित छठे तीर्थंकर पद्मप्रभु के गीत का संगान किया। तपस्वियों ने अपनी-अपनी धारणा के अनुसार अपनी-अपनी तपस्याओं का प्रत्याख्यान किया। बालक प्रबल कोटड़िया ने गीत का संगान किया।

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