कांदिवली (मुंबई) मे साध्वी डा. मंगलप्रज्ञा ने अपने प्रवचनों मै कहा कि स्वरविज्ञान से होता है अनेक समस्याओं का समाधान….सुरेंद्र मुनोत, ऐसोसिएट एडिटर, Key Line Times समाचार प्रदाता विकास धाकड़ ! तेरापंथ भवन कांदिवली में साध्वीश्री डॉ मंगल प्रज्ञा जी के सानिध्य में एवं तेरापंथ युवक परिषद कांदिवली और मलाड के तत्वावधान में स्वर विज्ञान कार्यशाला आयोजित की गई। इस अवसर पर उपस्थित विशाल धर्मपरिषद को सम्बोधित करते हुए साध्वीश्री डॉ मंगलप्रज्ञा जी ने कहा- स्वरविज्ञान जेनपरम्परा का प्राचीन महत्त्वपूर्ण उपक्रम है। यह साधना प्राणशक्ति की साधना है। स्वरविज्ञान की साधना करना व्यक्ति पर निर्भर है। यह एक ऐसी साधना है, जिसका सम्यकज्ञान हो तो अनेक समस्याओं से निजात पा सकते हैं। हठयोग की भाषा में चंद्र स्वर को ईड़ा, सूर्यस्वर को पिंगला और दोनों स्वर की संयुक्ति को सुषुम्ना कहा जाता है। तिथि, वार और दिशा के साथ स्वरों का सही नियोजन करके करनीय और अकरणीय कार्य का निर्णय किया जा सकता है। सोमवार, बुधवार और शुक्रवार – ये तीनों चन्द्र स्वर से संबंधित है, जबकि मंगलवार, शनिवार और रविवार- ये तीनों सूर्यस्वर से जुड़े हैं। गुरुवार सब के साथ जुड़ा है,जिसका गुरु प्रबल होता है वहां समस्याएं हावी नहीं होती। साध्वी श्री डॉ मंगल प्रज्ञा जी ने कहा- व्यक्ति कोई भी कार्य करता है, वह सफल होना चाहता है, इसके लिए स्वरों का ज्ञान आवश्यक है। हर सौम्य कार्य, या किसी भी कार्य के स्थायित्व के लिए चन्द्र स्वर का होना आवश्यक है। पृथ्वी जल, वायु, अग्नि और आकाश – इन पांच तत्वों के साथ भी स्वर संयोजन किया जाता है। किसी कार्य को इच्छानुसार सम्पादित करने के लिए स्वरों को बदला भी- जा सकता है। गर्मी के समय चन्द्रस्वर की साधना करने से और सर्दी में सूर्यस्वर की साधना करने से अत्यधिक सर्दी या गर्मी का अहसास नहीं होता। भोजन करते समय सूर्य स्वर चले तो पाचन सही होता है। स्वस्थता के लिए स्वरों का संतुलन आवश्यक है। साध्वी सुदर्शन प्रभा जी, साध्वी अतुलयशा जी, साध्वी राजुलप्रभा जी,साध्वी चेतन्य प्रभा जी और साध्वी शौर्य प्रभा जी ने”अद्भूत स्वर विज्ञान का ज्ञान”गीत का सामूहिक संगान किया। साध्वी सुदर्शन प्रभा जी ने ध्यान का प्रयोग करवाया। साध्वी राजुल प्रभा जी ने प्रवचन से पूर्व आगम वाणी का रसास्वादन करवाया।