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🌸 *बाह्य और अध्यात्म दोनों जगत जाने मानव : अध्यात्मवेत्ता आचार्यश्री महाश्रमण* 🌸 *-आगमवाणी की वर्षा में अभिस्नात बन रही डायमण्ड सिटि की जनता* *-जनता को साध्वीवर्याजी ने किया संबोधित* *09.08.2024, शुक्रवार, वेसु, सूरत (गुजरात) :* सूरत शहर में आसमान से होने वाली अब बरसात भले ही मंद हो गयी है अथवा कह दें बंद-सी हो गयी है, किन्तु जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अधिशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि आचार्यश्री महाश्रमणजी के श्रीमुख से निरंतर अमृतमयी वर्षा हो रही है। इस अमृतमयी वर्षा में सराबोर होने के लिए प्रतिदिन हजारों की संख्या में श्रद्धालु उपस्थित होते हैं और अपने जीवन को इन अमृत बूंदों से भावित बनाने का प्रयास करते हैं। शुक्रवार को महावीर समवसरण से भगवान महावीर के प्रतिनिधि आचार्यश्री महाश्रमणजी ने आयारो आगम पर आधारित अपने पावन पाथेय में कहा कि दो शब्द प्रयुक्त हुए हैं-अध्यात्म और बाह्य। जो अध्यात्म को जानता है, वह बाह्य को जानता है। जो बाह्य को जानता है, वह अध्यात्म को जानता है। एक अध्यात्म का जगत है और दूसरा बाह्य जगत है। एक चेतना और आत्मा का जगत है और दूसरा भौतिकता का जगत है, अचैतन्य का जगत है। अंतरात्मा में होने वाली प्रवृत्ति अध्यात्म है। शरीर, वाणी और मन की भिन्नता होने पर भी चेतना की समानता है, वह अध्यात्म है। वीतरागता चेतना अध्यात्म है। वीतरागता से बाहर रहना बाह्य जगत में रहना होता है। ज्ञान अध्यात्म जगत का भी हो सकता है और बाह्य जगत का भी हो सकता है। ज्ञान अपने आप में प्रकाश है। ज्ञान दोनों को जानता है। ज्ञान अपने आप में पवित्र तत्त्व होता है। आदमी के पास अच्छी बातों का भी ज्ञान हो सकता है और बुरी बातों का भी ज्ञान हो सकता है। जानने के बाद छोड़ने योग्य, ग्रहण करने योग्य और जानने योग्य। पाप और पुण्य को जाना जाता है तो संवर को भी जाना जाता है तो निर्जरा को भी जाना जाता है। जानने के बाद जो छोड़ने योग्य होता है, उसे छोड़ने का प्रयास करना चाहिए तथा जो ग्रहण करने योग्य हो, उसे ग्रहण करने का प्रयास करना चाहिए। पक्ष को जानने वाले के लिए प्रतिपक्ष को भी जानना आवश्यक होता है। किसी पक्ष का खण्डन करने के लिए उस पक्ष की भी जानकारी रखने का प्रयास होना चाहिए। नव तत्त्व के आलोक में आदमी ध्यान दे कि संवर, निर्जरा व मोक्ष को जानते हैं जो अध्यात्म का पक्ष है तो पुण्य, पाप, बंध और आश्रव को भी जानना चाहिए जो बाह्य का जगत होता है। किसी भी एक पक्ष का ज्ञान होना और दूसरे पक्ष का ज्ञान नहीं होता तो वहां अधूरेपन की बात हो सकती है। ज्ञान के साथ विज्ञान की बात को जानने का प्रयास हो। अध्यात्म और विज्ञान का कहीं समनव्य भी हो सकता है। अध्यात्म को गहराई से पकड़ने के लिए बाह्य का ज्ञान भी अपेक्षित होता है। जब तक बाह्य का अच्छा ज्ञान नहीं होता, तो शायद अध्यात्म की अनुपालना में कमी भी हो सकती है। इसलिए आदमी को अध्यात्म और बाह्य को जानकर चलने से परिपूर्णता की बात हो सकती है। मंगल प्रवचन के उपरान्त आचार्यश्री ‘चन्दन की चुटकी भली’ में वर्णित एक और आख्यान के क्रम को सम्पन्न करते अपनी नीति को शुद्ध बनाए रखने की प्रेरणा प्रदान की। आचार्यश्री के मंगल प्रवचन व आख्यान के उपरान्त साध्वीवर्या सम्बुद्धयशाजी ने भी जनता को उद्बोधित किया। तेरापंथ कन्या मण्डल-सूरत ने चौबीसी में उल्लखित छठे तीर्थंकर पद्मप्रभु के गीत का संगान किया। तपस्वियों ने अपनी-अपनी धारणा के अनुसार अपनी-अपनी तपस्याओं का प्रत्याख्यान किया। बालक प्रबल कोटड़िया ने गीत का संगान किया।
सुरत मे वर्षावास के दौरान अपने प्रवचनों मे आचार्य महाश्रमणजी ने कहा कि त्रसकाय के जीवों की हिंसा से बचे मानव…सुरेंद्र मुनोत,ऐसोसिएट एडिटर ,Key Line Times वेसु, सूरत (गुजरात) , महावीर समवसरण में गुरुवार जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता, आध्यात्मिक सुगुरु आचार्यश्री महाश्रमणजी आगमवाणी के द्वारा पावन पाथेय प्रदान करने से पूर्व गत दिनों कालधर्म को प्राप्त हुई साध्वीश्री लावण्यश्रीजी की स्मृतिसभा का आयोजन किया गया। इस संदर्भ में साध्वीप्रमुखा विश्रुतविभाजी व मुख्यमुनिश्री महावीरकुमारजी ने आध्यात्मिक मंगलकामना की। तदुपरान्त आचार्यश्री महाश्रमणजी ने साध्वी लावण्यश्रीजी के संक्षिप्त जीवन परिचय प्रस्तुत करते हुए उनकी आत्मा के ऊर्ध्वारोहण के लिए आध्यात्मिक मंगलकामना की। उनकी आत्मा की शांति के लिए आचार्यश्री के साथ चतुर्विध धर्मसंघ ने चार लोगस्स का ध्यान किया। स्मृति सभा के उपरान्त महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी ने आयारो आगम के माध्यम से मंगल देशना देते हुए कहा कि इसे संसार कहा जाता है। षटजीव निकाय में पांच स्थावरकाय और एक त्रसकाय होते हैं। एक अपेक्षा से देखें तो पृथ्वीकाय, अपकाय व वनस्पतिकाय तीन स्थावर और तेजसकाय, वायुकाय व त्रसकाय ये तीन त्रसकाय होते हैं। तेजस और वायुकाय एक अपेक्षा से त्रसगति वाले माने गए हैं। पृथ्वीकाय, अपकाय और वनस्पतिकाय स्थावरकाय हैं। छहजीव निकाय में त्रसकाय द्विन्द्रिय से लेकर पंचेन्द्रिय तक के जीवों का एक समूह है। त्रसकाय के जीव गति करने वाले होते हैं, इसलिए त्रसकाय को संसार कहा जा सकता है। त्रसकाय के जीवों की वेदना तो स्पष्ट दिखाई देती है, जिसके जीवत्व को मंद आदमी भी पहचान सकता है। स्थावर जीव मानव जीवन को चलायमान रखने, टिकाए रखने में सहायक होते हैं। जीवन को चलाने के लिए स्थावर जीवों के प्राणातिपात होना तो आवश्यक ही हो जाता है। इससे सामान्य मनुष्य तो क्या साधु भी नहीं बच सकते। स्थावरकाय के जीवों के प्रति संदेह भले हो सकता है, किन्तु त्रसकाय के जीव तो स्पष्ट भी जाने जाते हैं। उन्हें तो कोई मंदमति भी जानता है। इसलिए आदमी को त्रसकाय जीवों को कष्ट न पहुंचे, अथवा उनकी हिंसा न हो, ऐसा प्रयास करना चाहिए। आयारो आगम की वाणी से प्रेरणा लेकर त्रसकाय के जीवों हिंसा से प्राणी को बचने का प्रयास करना चाहिए। साध्वी लावण्यश्रीजी की स्मृति सभा के शेष कार्यक्रम को प्रवचन के उपरान्त प्रारम्भ किया गया। इस क्रम में साध्वी दर्शनविभाजी, मुनि जितेन्द्रकुमारजी, साध्वी परागप्रभाजी, जैन श्वेताम्बर तेरापंथी सभा-सिंधनूर के मंत्री श्री आनंद जीरावला ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। तत्पश्चात ज्ञानशाला की प्रशिक्षिकाओं ने गीत का संगान किया।
राष्ट्रीय जागरूक ब्राह्मण संघ ने जिलाधिकारी बागपत को दिया ज्ञापन पत्र… बागपत, राष्ट्रीय जागरूक ब्राह्मण संघ ने बागपत के जिलाधिकारी को ज्ञापन पत्र देकर बताया कि 29 जौलाई की रात को करुण तिवारी के उपर बडौत के बिजलीघर पर वहाँ पर पहले से ही मौजूद प्राईवेट ठेकेदार के 15-20 लोगों ने शराब पीकर लाठी एंव डंडों से मारपिटाई की एंव गाली गलौज की, ज्ञापन पत्र के अनुसार इन गुंडे किस्म के लोगों को अधिशासी अभियंता नितिन जायसवाल का संरक्षण प्राप्त है। ज्ञापन पत्र मे आरोप लगाया गया है कि करुण तिवारी ने इस मामले की लिखित शिकायत बडौत थाने मे दी लेकिन थाना प्रभारी ने उनको डरा धमकाकर अपने मनमुताबिक रिपोर्ट लिखवा ली। ज्ञापन पत्र के माध्यम से बडौत थाना प्रभारी की संदिग्ध भूमिका की जाँच कराने की मांग की गयी। ज्ञापन पत्र के द्वारा जिलाधिकारी महोदय से इस मामले मे संबंधित दोषी लोगों एंव थाना प्रभारी बडौत के विरुद्ध निष्पक्ष जाँच कराने एंव कठोर कार्यवाही करने की मांग की। ज्ञापन पत्र पर मुख्य रूप से सुनील शर्मा, कपिल शर्मा, जितेंद्र शर्मा, ओमदत्त शर्मा, कृष्णदत्त शर्मा, सी.डी.शर्मा, विजय शर्मा, आचार्य प्रवीण, मामचंद शर्मा, आदित्य भारद्वाज, चमन शर्मा, विकास, राजकुमार शर्मा, संजीव आत्रेय,, आचार्य रमाशंकर, अरविंद शर्मा अनिरूद्ध शर्मा आदि के हस्ताक्षर थे।
*सेवा कार्य – काँवड़ियों के लिए भोजन व जलपान सेवा शिविर* *अखिल भारतीय तेरापंथ युवक परिषद्* के तीनों आयामों *सेवा – संस्कार – संगठन* में कार्यरत *तेरापंथ युवक परिषद् , उत्तर हावड़ा* एवं *तेरापंथ किशोर मंडल , उत्तर हावड़ा* द्वारा तारकेश्वर में सावन के तीसरे हफ्ते, भक्तों के लिए दिनांक 03/08/2024 शनिवार रात्रि 8:00 बजें से 04/08/2024 रविवार प्रातः 5:00 बजें तक तारकेश्वर सेवा शिविर *नसीबपुर* G.P.S ARTS PVT. LTD में काँवड़ियों के लिए सेवा शिविर का आयोजन किया गया । सर्वप्रथम नमस्कार महामंत्र का जाप किया गया तत्पश्चात सेवा कार्य में तेयुप उत्तर हावड़ा के साथियों ने उत्साह पूर्वक कांवड़ियों को ताजा पका हुआ भोजन सब्जी – पुड़ी, शुद्ध जल, शरबत, चाय, बच्चों के लिए टाफी, घायल काँवड़ियों के लिए प्राथमिक उपचार, दवाएं एवं विश्राम क्षेत्र की सुविधा प्रदान की । विशेष धन्यवाद तेयुप, उत्तर हावड़ा के परामर्शक *श्री महावीर कुमार दुगड़* एवं निवर्तमान अध्यक्ष *श्री संदीप कुमार डागा* जिनके प्रयास से यह कांवड़िया सेवा शिविर हो सका । आभार *श्री गंगराम पात्रा* (G.P.S. Arts Pvt Ltd.) का, जिन्होंने अपना स्थान कांवड़िया सेवा शिविर के लिए हम लोगों को दिया । *श्री जयचंद पटवा* एवं टीम जिन्होंने कांवड़ियों को ताजा पका हुआ भोजन एवं गरमा गर्म चाय का कार्यभार संभाला । तारकेश्वर कांवड़िया सेवा शिविर में विशिष्ट आमंत्रित सदस्यों, अभातेयुप सदस्य एवं उत्तर हावड़ा के निवर्तमान अध्यक्ष श्री संदीप कुमार डागा, वर्तमान अध्यक्ष श्री विनीत कोठारी, मंत्री श्री विनीत भंसाली एवं टीम, तेकिमं के प्रभारी श्री निश्चल रांका, संयोजक श्री नमन कुंडलिया, सहसंयोजक श्री ऋषभ डागा एवं टीम के सदस्यों सहीत अच्छी संख्या में उपस्थिति सभी लोगो ने भक्तों की उमड़ी भारी भीड़ को सेवा प्रदान की । *लगभग 20000 भक्तों को भोजन अथवा चाय, शरबत प्रदान किया गया ।* इस कार्यक्रम के पर्यवेक्षक *श्री अरुण कुमार बोहरा* संयोजक *श्री विवेक बांठिया, श्री मनीष चोरड़िया, श्री हर्ष दुगड़, श्री देव टांटिया* हैं । कांवड़िया सेवा शिविर में तेयुप, उत्तर हावड़ा के 34 सदस्यों तेकिमं के 11 सदस्यों सहित कुल 51 लोगों ने भोले भक्तों को सेवा प्रदान की ।
“सावन ” दस्तक दी सावन ने, सखियों के द्वार अमवा की डाली पे झूले, करे मनुहार मेहंदी रच आना, सोलह श्रृंगार निरखने खड़ा है, रिमझिम सावन तैयार। गड़गड़ाहट, मेघों की सरगम, हलधर गाये मल्हार रिमझिम सावन की, पिया से आतुर, बजे झंकार कोयल की कुहूक , आसमां में उड़ते पंछियों की कतार सजा है, सावन इंद्रधनुषी, मनभावन फुहार । बाबुल की गलियॉं, करे इंतजार दौड़ कर आना भैया भाभी का गले लग, करे प्यार का इजहार सत्तू, मॉं के हाथों के, सौंधी -सौंधी सी बहार लगे कलाई भैया की प्यारी, बांधू राखी रेशम तार । सावन का सिंजारा, संग चुनर गोटेदार मॉं की आशीष, मायके का उमड़ा प्यार सावन की तीज, कजरी गीतों की गुंजार चढ़ गया सखियों संग, ,”सावन” का खुमार। कनक पारख विशाखापट्टनम
गणेश जैन फलसूड़, जैसलमेर सरपंच,व पूर्व प्रधान ने वृक्षारोपण सैणि मैया गोशाला में वह सैणि मैया मन्दिर में किया गया है हरियालों राजस्थान एक पौधा माँ के नाम अभियान के तहत किये वृक्षारोपण सैणि मैया गोशाला में वह सैणि मैया मन्दिर में ग्राम पंचायत फलसूड़ में हरियालो राजस्थान के तहत जनप्रतिनिधियों वा प्रसासनिक अधिकारियों और गांव की नरेगा श्रमिक महिलाओं ने मिलकर किये पौधरोपण सभी ने वृक्षारोपण कर पर्यावरण को बचाने का संकल्प लिया,विकास अधिकारी भिमदान जी चारण, पुर्व प्रधान इन्द्र सिंह जी जोधा ने कहा की हम सभी धरती माता के प्रति अपनी जिम्मेदारी का निर्वाहन करते हुवे प्रगति का संरक्षण करें आने वाली पीढ़ियों को एक स्वच्छ वातावरण प्रदान करें इस दौरान भणियाणा के प्रधान पति निधि रणबीर गोघारा, फलसूड़ सरपंच रतन सिंह, इन्द्र सिंह जी जोधा, विकास अधिकारी भिमदान जी चारण सैणि मैया गोशाला अध्यक्ष ओमप्रकाश, कैशियर सुरेश कुमार, पुखराज सोनी राजु खां तेली गोशाला व्यवस्था पक गणेश जैन, सुरेन्द्र सिंह जी, दुर्गा दास सिंह जोधा जगदीश कुमार जीनगर, सुरेन्द्र, नरेंद्र, मांगीलाल जी गुजर हरियालो राजस्थान एक पेड़ मां के नाम अभियान में किया पौधारोपण ग्राम पंचायत मुख्यालय पर मुख्यमंत्री वृक्षारोपण अभियान एक पेड़ मां के नाम अभियान के तहत बुधवार को सार्वजनिक स्थानों पर पौधारोपण कार्यक्रम आयोजित किए गए। इस दौरान ग्राम पंचायत एवं राउमावि के तत्वावधान में सार्वजनिक स्थान, खेल मैदान, तहसील परिसर सहित अनेक स्थानों पर पौधारोपण कर उनकी नियमित देखभाल करने की शपथ ली गई। राज्य सरकार द्वारा मुख्यमंत्री वृक्षारोपण अभियान के तहत फलसूड़ पंचायत सरपंच रतन सिंह जी, सैणि मैया मन्दिर में गोशाला परिसर में पौधारोपण कार्यक्रम आयोजित कर पुर्व प्रधान इन्द्र सिंह जी जोघा ने नियमित देखभाल करने की शपथ दिलाई गई। इस दौरान विकास अधिकारी भिमदान जी चारण संबोधित करते हुए कहा कि पेड़ ही जीवन है। पेड़ों के बिना मनुष्य जीवन अधूरा है । पर्यावरण संतुलन के लिए पेड़ों का होना अति आवश्यक है। पेड़ हमें जीवन जीने के लिए ऑक्सीजन उपलब्ध करवाते हैं इसलिए हमें अधिक से अधिक पौधारोपण करना चाहिए। सरकार द्वारा चलाए गए एक पेड़ मां के नाम अभियान के दौरान प्रत्येक व्यक्ति एवं विद्यार्थी को एक पौधा अपनी मां के नाम से लगाकर उसकी नियमित देखभाल करनी चाहिए ।
🌸 *ज्ञानार्जन के विशेष माध्यम हैं श्रोत्र और चक्षु : मानवता के मसीहा महाश्रमण* 🌸 *-आगमवाणी को निरंतर प्रवाहित कर रहे तेरापंथ धर्मसंघ के आध्यात्मिक अनुशास्ता* *-आचार्यश्री द्वारा आख्यान के मधुर संगान व वर्णन का श्रवण कर निहाल हो रहा जनसमूह* *07.08.2024, बुधवार, वेसु, सूरत (गुजरात) :* डायमण्ड सिटि सूरत में आध्यात्मिकता का आलोक फैलाने को पधारे जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अधिशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, मानवता के मसीहा आचार्यश्री महाश्रमणजी के श्रीमुख से निरंतर ज्ञानगंगा प्रवाहित हो रही है। इस अविरल प्रवाहित ज्ञानगंगा में डुबकी लगाने को सूरत शहर की जनता उमड़ रही है। इसमें डुबकी लगाकर जनता अपने वर्तमान को ही नहीं, बल्कि अपने भविष्य को भी संवार रही है। बुधवार को महावीर समवसरण मे समुपस्थित जनता को मानवता के मसीहा आचार्यश्री महाश्रमणजी ने आयारो आगम के प्रथम अध्ययन में वर्णित श्लोकों की व्याख्या करते हुए कहा कि आदमी मूर्छा और आसक्ति के कारण भी हिंसा में प्रवृत्त होता है। आदमी के पास पांच इन्द्रियां होती हैं। उसमें संज्ञी मनुष्य इन्द्रिय जगत की दृष्टि से विकसित प्राणी होता है। इनमें भी श्रोत्र और चक्षु मनुष्य के ज्ञान को बढ़ाने वाला और बाह्य जगत से अच्छा सम्पर्क बढ़ाने वाला बन सकता है। श्रोत्र के द्वारा हम भाषा को सुनते हैं। भाषा व्यवहार जगत से जुड़ने का बहुत बड़ा माध्यम बनता है। सुनने के बाद उसी रूप में उसे देख लेने से उस बात की पुष्टि हो जाती है। वनस्पतिकाय के विषय में आदमी कभी सुन भी लेता और देख भी लेता है। इससे वनस्पतिकाय के विषय में जानकारी भी हो जाती है। कोई घर-गृहस्थी को छोड़कर साधु बन गया, लेकिन फिर भी गृहस्थी है। गृहत्यागी होने के बाद भी बार-बार विषयों का आसेवन करता है, असंयम का आचरण करने वाला होता है, प्रमाद में रहता है, तो उसमें साधुता नहीं होती है। ऊपरी वेश से भले गृह त्यागी, लेकिन वह गृहवासी ही होता है तो कोई-कोई गृहस्थ गृहवासी भी संयम की दृष्टि से कई भिक्षुओं से उत्तम होते हैं। गृहस्थ होते हुए भी अहिंसा, संयम के प्रति सजग, अपने नियमों की अनुपालना करने वाले होते हैं। जीवन में कई बार गुरु का नियंत्रण और अनुशासन होता है तो शिष्य कई अनाचारों, गलतियों व प्रमादों से शिष्य का बचाव हो सकता है। गुरु होते हैं तो मर्यादा-व्यवस्था का ध्यान देते हैं, कहीं अंगुली निर्देश होता है, सारणा-वारणा होता है तो वह अनुशासन अप्रिय होते हुए भी शिष्यों के लिए हितकारी सिद्ध हो सकता है। इसीलिए गुरु परंपरा, आचार्य परंपरा अपने आप में महत्त्वपूर्ण सिद्ध हो सकती है। साधु बनकर जो संयम की निर्मलता का प्रयास रखते हैं, वे ऊंची गति को प्राप्त कर सकते हैं। श्रोत्र और चक्षु इन्द्रियां ज्ञानार्जन का माध्यम बन सकती हैं। इस इन्द्रिय जगत में साधु को ही नहीं, साधारण मनुष्य भी अपनी इन्द्रियों का संयम करे, जीवन में साधना का विकास करने का प्रयास करे, विषयों-भोगों से बचने का प्रयास करे तो उसके जीवन का कल्याण हो सकता है। आदमी को वनस्पतिकाय के प्रति भी अहिंसा और संयम रखने का प्रयास करना चाहिए। आगमवाणी को प्रवाहित करने के उपरान्त शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने आख्यान क्रम का सुमधुर संगान व उसका व्याख्यान किया। अनेकानेक तपस्वियों ने महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी-अपनी तपस्याओं का प्रत्याख्यान किया। मुनि उदितकुमारजी ने तपस्या के संदर्भ में अपनी अभिव्यक्ति दी। तेरापंथ किशोर मण्डल-सूरत ने चौबीसी के गीत का संगान किया। तेरापंथ कन्या मण्डल-उधना ने भी चौबीसी के गीत का संगान किया।
🌸 *वनस्पति जनित पदार्थों के प्रति भी अप्रमत्त रहे मानव : मानवता के मसीहा महाश्रमण* 🌸 *-आज्ञा और अनाज्ञा को आगम के सूत्र के माध्यम से किया व्याख्यायित* *-आख्यान क्रम को भी युगप्रधान आचार्यश्री ने बढ़ाया आगे* *-साध्वीवर्याजी ने भी जनता को किया उद्बोधित* *06.08.2024, मंगलवार, वेसु, सूरत (गुजरात) :* जन-जन का कल्याण करने वाले जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ ग्यारहवें अनुशास्ता, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी वर्ष 2024 का चतुर्मास भारत के पश्चिम भाग में स्थित गुजरात राज्य के सूरत शहर में कर रहे हैं। सूरत शहर का यह चतुर्मास सूरत शहर की जनता के लिए ही नहीं, अपितु देश व विदेश के विभिन्न हिस्सों में रहने वाले श्रद्धालुओं को लाभान्वित बना रहा है। चतुर्मास प्रवास स्थल परिसर में विभिन्न हिस्सों से लोग यहां उपस्थित होकर चतुर्मास का लाभ उठा रहे हैं। मंगलवार को प्रातःकाल के मुख्य प्रवचन कार्यक्रम में महावीर समवसरण से मानवता के मसीहा आचार्यश्री महाश्रमणजी ने आयारो आगम के द्वारा पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि अहिंसा और हिंसा की बात है। जीवों को मारना प्रमत्त योग से प्राणातिपात है। हिंसा न करना अहिंसा है। हिंसा के साथ भीतर का राग-द्वेष का भाव, प्रमाद मूल कारण बनता है। प्राणी का मरना भी हिंसा है, लेकिन पापकर्म के बंध का कारण आदमी के भीतर राग-द्वेष के भाव कारण होता है। हिंसा भी दो रूप में होती है-द्रव्यतः हिंसा और भाव हिंसा। जिस प्रकार किसी प्राणी के पैर के नीचे दबकर मर जाने पर यदि वह आदमी अप्रमत्त है, आत्मलीन है तो प्राणी की हिंसा होने पर कर्म का बंध नहीं होता। कर्म का बंध भाव हिंसा से ही होता है। कही केवल द्रव्य हिंसा तो कही केवल भाव हिंसा और कहीं द्रव्य और भाव दोनों प्रकार की हिंसा होती है। जीव अपने आयुष्य से जी रहे हैं तो इसमें आदमी कोई दया नहीं है। कितने जीव संसार में मरते भी हैं तो वह भी उनका आयुष्य है, हमारी ओर से किसी प्रकार की हिंसा की बात उसमें नहीं होती है। कोई जानबूझकर मारे तो वह हिंसा की बात और जो नहीं मारने का संकल्प ले लेता है, उसके उतनी सीमा तक अहिंसा होती है। कोरी द्रव्य हिंसा, कोरी भाव हिंसा और उभय हिंसा। वनस्पतिकाय का जगत है। इतने पेड़-पौधे, काई आदि भी होते हैं। वनस्पतिकाय के प्रति जो अगुप्त वह अनाज्ञा ही है। राग-द्वेष के भाव से युक्त प्राणी अगुप्त होता है। आगम में सूक्ष्म तत्त्वों का अवबोध को आज्ञा बताया गया है। आगम अपने आप में आज्ञा है। जो वनस्पति से बनी जीवों में अगुप्त होता है, वह अनाज्ञा में होता है। आदमी को छह प्रकार के जीवों को जानकर उनकी हिंसा से बचने का प्रयास करना चाहिए। हमारे यहां यह प्रेरणा दी गयी है, मुमुक्षुओं को पहले नव तत्त्व की जानकारी प्रदान करने और उसका परीक्षण होने के बाद ही दीक्षा होनी चाहिए। आदमी को वनपस्ति जनित पदार्थों के प्रति भी समता, अनासक्ति और अप्रमत्तता का भाव रखने का प्रयास करना चाहिए। मंगल प्रवचन के उपरान्त आचार्यश्री आचार्यश्री तुलसी द्वारा रचित पुस्तक ‘चन्दन की चुटकी भली’ के आख्यान क्रम को आगे बढ़ाया। कार्यक्रम में साध्वीवर्या सम्बुद्धयशाजी का भी उद्बोधन हुआ।