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आचार्य महाश्रमणजी ने कहा कि अनुशासन, विधि, व्यवस्था व बहुश्रुतता के द्योतक थे श्रीमज्जयाचार्य …….सुरेंद्र मुनोत,ऐसोसिएट एडिटर, Key Line Times 30.08.2024, शुक्रवार, वेसु, सूरत (गुजरात) , महावीर समवसरण में उपस्थित जनता को जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अनुशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, अहिंसा यात्रा के प्रणेता आचार्यश्री महाश्रमणजी ने आयारो आगम के माध्यम से पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि सभी प्राणियों को जीवन प्रिय होता है। मनुष्य हो अथवा कोई अन्य छोटे से छोटा प्राणी ही क्यों न हो, सभी को जीवन प्रिय होता है, कोई मरना नहीं चाहता। प्राणी की यह सामान्य प्रवृत्ति होती है कि कोई मरना नहीं चाहता। मनुष्य इस बात पर ध्यान दे कि यदि वह नहीं मरना चाहता तो दूसरे भी मरना नहीं चाहते। सभी को अपने समान ही समझने का प्रयास करना चाहिए। ऐसी स्थिति में मनुष्य जितना अन्य प्राणियों की हिंसा से बच सके, बचने का प्रयास करना चाहिए। आदमी यह सोचे कि जैसे वह सुख चाहता है, कष्ट नहीं चाहता, मरना नहीं चाहता तो भला दूसरा दुःख, कष्ट और मरना क्यों चाहेगा। ऐसा विचार कर आदमी को अहिंसा की साधना करने का प्रयास करना चाहिए। अपनी आत्मा के हित के लिए और दूसरों को किसी भी प्रकार का अपनी ओर से कष्ट न देने की भावना अहिंसा की भावना होती है। साधु के लिए अहिंसा पूर्णरूपेण पालनीय होती है और जिंदगी भर अहिंसा के मार्ग पर चलने वाले होते हैं। आज भाद्रव कृष्णा द्वादशी है। यह तिथि ऐसे महापुरुष से जुड़ी हुई है, जिन्होंने इतनी छोटी उम्र में अहिंसा आदि महाव्रतों के पालक बन गए। वे महापुरुष थे तेरापंथ धर्मसंघ के चतुर्थ आचार्य जीतमल स्वामी, जिन्हें जयाचार्य भी कहते हैं। उन्हें श्रीमज्जयाचार्य भी कहते हैं। श्रीमज् शब्द उन्हीं के नाम के आगे क्यों जुड़ा है, इस पर विचार किया जा सकता है। उनका संयम पर्याय भी काफी लम्बा रहा। उनकी ज्ञान चेतना भी बहुत विशिष्ट थी। छोटी उम्र में रचना करना, आगम पर कार्य करना कितनी बड़ी बात होती है। हमारे धर्मसंघ में आगम पर कार्य आचार्यश्री तुलसी के समय वि.सं. 2012 से शुरु हुआ जो काम अभी भी चल रहा है। काफी काम हो चुका है और अभी अवशिष्ट भी है। ऐसा लगता है कि आगमों पर कार्य श्रीमज्जयाचार्यजी ने भी किया। उन्होंने कई आगमों पर उन्होंने राजस्थानी भाषा में जोड़ की रचना कर दी। भगवती जोड़ को देखें तो आश्चर्य होता है कि इतने बड़े ग्रन्थ पर उन्होंने राजस्थानी भाषा में राग-रागणियों में अपनी विशेष समीक्षा आदि लिख दिए। उनके कितने ही ग्रंथ को देख लें तो तेरापंथ धर्मसंघ के दर्शन को जाना जा सकता है। अनेकानेक ग्रंथ उनकी विद्वता के यशोगान करने वाले हैं। वे आगमवेत्ता, तत्त्ववेत्ता आचार्य थे। एक आचार्य के सामने और भी व्यवस्था संबंधी कार्य होते हुए भी इतने साहित्य व ग्रंथ की रचना कर देना उनकी प्रज्ञा और मेधा का द्योतक प्रतीत हो रहा है। वे अनुशासन, विधि, व्यवस्था रखने वाले आचार्य थे। धर्मसंघ में साध्वीप्रमुखा का पद भी उन्हीं के द्वारा प्राप्त है। उनके बाद से यह परंपरा चली और उसके बाद आचार्यों ने इस परंपरा को आगे बढ़ाया है। उन्होंने साध्वी समुदाय की व्यवस्था में नया अध्याय जोड़ा था। उन्होंने महासंती सरदारांजी को मुखिया के रूप में आगे लाए। वे अनुशासन व्यवस्था के पक्ष में भी एक महत्त्वपूर्ण कदम था, जिसकी प्रासंगिकता आज भी प्रतीत हो रही है। वे बहुश्रुत, कुशल व्यवस्था प्रबंधकारक आचार्य थे। उनके जीवन में अध्यात्म और साधना का पक्ष भी है। उन्होंने अपने जीवन के अंतिम समय में विशेष साधना भी की। जयाचार्य का महाप्रयाण आज के दिन जयपुर में हुआ था। आज के दिन पंचम आचार्य के रूप में मघवागणी प्राप्त हुए। श्रीमज्जयाचार्यजी ने अनुदान धर्मसंघ को दिए हैं, वे बहुत महत्त्वपूर्ण हैं। हम उनके आभारी हैं। उनके जैसा महान व्यक्तित्व प्राप्त होना, धर्मसंघ का सौभाग्य था। ऐसे आचार्यप्रवर की हम अभिवंदना करते हैं। आचार्यश्री ने उनकी अभ्यर्थना में गीत का आंशिक संगान किया। मंगल प्रवचन के उपरान्त मुनि दिनेशकुमारजी के नेतृत्व में चतुर्विध धर्मसंघ ने आचार्यश्री के मुखारविंद और केशलुंचन की निर्जरा में सहभागी बनाने हेतु निवेदन करने से पूर्व त्रिपदी द्वारा वंदना भी की। आचार्यश्री ने लोच के संदर्भ में साधु-साध्वियों को एक-एक घंटा आगम स्वाध्याय, श्रावक-श्राविकाओं को अतिरिक्त रूपी में सात सामायिक करने की प्रेरणा प्रदान की। कार्यक्रम में आचार्यश्री के मंगल प्रवचन से पूर्व साध्वीप्रमुखाजी का उद्बोधन हुआ। अनेकानेक तपस्वियों ने अपनी-अपनी तपस्या का प्रत्याख्यान श्रीमुख से स्वीकार किया। तदुपरान्त मुख्यमुनिश्री महावीरकुमारजी ने श्रीमज्जयाचार्य की अभ्यर्थना में गीत का संगान किया। साध्वीवर्या सम्बुद्धयशाजी ने भी श्रीमज्जयाचार्यजी की अभ्यर्थना में अपनी विचाराभिव्यक्ति दी। कार्यक्रम में ठाणे के पूर्व सांसद श्री संजीव नाईक, राजस्थान पत्रिका के संपादक श्री शैलेन्द्र तिवारी, टेक्सटाइल युवा बिग्रेड के अध्यक्ष श्री ललित शर्मा ने आचार्यश्री के दर्शन किए। पूर्व सांसद श्री संजीव नाईक ने अपनी भावनाओं की अभिव्यक्ति दी। आचार्यश्री ने उन्हें पावन आशीर्वाद प्रदान किया।
आचार्य महाश्रमणजी ने अपने प्रवचन मे कहा कि काल का भरोसा नहीं तो आत्मकल्याण के प्रति रहें सजग…..सुरेंद्र मुनोत, ऐसोसिएट एडिटर, Key Line Times 29.08.2024, गुरुवार, वेसु, सूरत (गुजरात) , चतुर्मासकाल के दौरान जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ में पर्युषण महापर्व की उपासना भी बड़े ही आध्यात्मिक तरीके से सुसम्पन्न होती है। आध्यात्मिकता की दिशा में ले जाने इस महापर्व का शुभारम्भ एक सितम्बर से प्रारम्भ होने वाला है। इन आठ दिनों में जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता, महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी की मंगल सन्निधि में हजारों-हजारों की संख्या में श्रद्धालु धर्म, ध्यान, स्वाध्याय, तपस्या, जप, नौकारसी, पोरसी आदि-आदि धार्मिक अनुष्ठानों से ओतप्रोत नजर आएंगे। गुरुवार को महावीर समवसरण में उपस्थित जनता को जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अधिशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी ने आयारो आगम के माध्यम से पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि आदमी जो गृहस्थ है, परिग्रह से युक्त होता है, इस कारण उसमें ज्यादा आसक्ति भी हो सकती है। इस संसार में दो चीजे हैं-धु्रव और अधु्रव। आत्मा धु्रव है तो स्थूल शरीर अधु्रव होता है। भौतिक संसाधन अधु्रव होते हैं। आदमी भोग-विलास में आसक्त होता है। कहा गया है कि जो धु्रव को छोड़कर अधु्रव का परिसेवन करता है, उसके धु्रव और अधु्रव दोनों ही नष्ट हो जाते हैं। मानव का शरीर अधु्रव है। धन-वैभव स्थाई नहीं होता। मृत्यु निकट आ रही है। जन्म के साथ में मृत्यु भी आती है। जितना समय होता है, उसके बाद मृत्यु आती है और जीव को ले जाती है। यही पूरी दुनिया की स्थिति है। शरीर अशाश्वत है, धन-सम्पत्ति भी धु्रव नहीं है तो आदमी का कर्त्तव्य है कि आदमी अपने जीवन में धर्म का संचय करे। प्रश्न हो सकता है कि आदमी धर्म का संचय कैसे कर सकता है? जैन धर्म के अनुसार बताया गया कि सामायिक करना, नौकारसी, पोरसी, जप, ध्यान, जीवन में ईमानदारी, भोजन में सात्विकता, शुद्ध दान देता है तो उसके जीवन में धर्म का संचय हो सकता है। पर्युषण महापर्व और भगवती संवत्सरी निकट आ रहे हैं। भाद्रव कृष्णा चतुर्दशी से पर्युषण प्रारम्भ हो रहा है। यह अवसर वर्ष में एक बार आता है। इन दिनों में जितना संभव हो सके धर्म, ध्यान, साधना, प्रवचन सुनना, प्रतिक्रमण में भाग लेना संवत्सरी भगवती का उपवास, पौषध आदि का इन आठ दिनों में आदमी को अपने धर्म के खाते को भर लेने का प्रयास करना चाहिए। इस दौरान तो जितना संभव हो सके, सामायिक करें, जप करें तो प्रत्येक साल धर्म की अच्छी आराधना होती है तो धर्म का संचय हो जाता है। ‘आयारो’ आगम में भी बताया गया कि अधु्रव को छोड़कर धु्रव की दिशा में आगे बढ़ने का प्रयास करना चाहिए। मृत्यु का कोई भरोसा होता नहीं होता, इसलिए जितना संभव हो सके, आज से भले और अभी से धर्म के संचय और साधना के दिशा में आगे बढ़ने का प्रयास करना चाहिए। मुमुक्षु बाइयां उपस्थित हैं। मुमुक्षु का जीवन भी कितना अच्छा है। सौभाग्य से ऐसा अवसर प्राप्त होता है। जीवन का क्या भरोसा, मृत्यु के लिए कोई भी क्षण अनवसर नहीं है, इसलिए आदमी को अपनी आत्मा के कल्याण के लिए प्रयास करने का प्रयास करना चाहिए। नवयुवक ज्यादा ध्यान, जप नहीं कर सकता तो ईमानदारी रखो, जहां तक संभव हो सके नशीली पदार्थों का त्याग हो, जमीकंद का त्याग हो, गुस्से से बचने का प्रयास हो, नॉनवेज का प्रयोग न हो, तो भी धर्म का समाचरण हो सकता है। इसलिए जितना संभव हो सके, धर्म के रास्ते पर चलने का प्रयास करना चाहिए। स्वयं ही युग के साथ न चलें, युग को भी अपने साथ चलाने का प्रयास करना चाहिए। काल का कोई भरोसा नहीं होता, इसलिए आदमी को आत्मकल्याण के प्रति जागरूक रहने का प्रयास करना चाहिए। मंगल प्रवचन के उपरान्त अनेकानेक तपस्वियों ने अपनी-अपनी धारणा के अनुसार आचार्यश्री के श्रीमुख से अपनी तपस्या का प्रत्याख्यान किया। अणुव्रत विश्व भारती सोसायटी के अध्यक्ष श्री अविनाश नाहर ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। अणुव्रत विश्व भारती सोसायटी द्वारा ‘बच्चों का देश’ पुस्तक के रजत जयंती का विशेषांक भी श्रीचरणों में लोकार्पित किया गया। इस पुस्तक के संपादक श्री संचय जैन ने भी इस अवसर पर अपनी भावाभिव्यक्ति दी। इस संदर्भ में आचार्यश्री ने आशीष प्रदान करते हुए कहा कि अणुव्रत पत्रिका और ‘बच्चों का देश’ रजत जयंती के प्रसंग से जुड़ा हुआ है। बच्चे मानों भविष्य होते हैं। बच्चों में अणुव्रत के संस्कार आ जाएं और उनका ज्ञान प्रखर हो तो बच्चे आगे जाकर बहुत कार्यकारी हो सकते हैं। इसके माध्यम से बालपीढ़ी में अच्छा विकास हो। नैतिकता, आध्यात्मिकता, धर्म आदि भी विकास हो, ऐसा प्रयास होता रहे। जहां भी जैसा अवसर मिले, इसके कार्य को आगे बढ़ाने का प्रयास होता रहे। तेरापंथ किशोर मण्डल-सूरत ने चौबीसी के गीत का संगान किया। तेरापंथ कन्या मण्डल ने भी चौबीसी के गीत का संगान किया। *01 सितंबर से पर्युषण महापर्व का शुभारंभ* तेरापंथ धर्मसंघ में इन आठ दिनों के आध्यात्मिक अनुष्ठान के लिए प्रतिदिन के नियम भी निर्धारित होते हैं तो आठ दिनों को अलग-अलग दिवस का नाम भी प्रदान किया जाता है। इसके अंतिम संवत्सरी महापर्व और तदुपरान्त समस्त चराचर जगत से क्षमापना का उपक्रम भी बहुत ही आध्यात्मिक माहौल में मनाया जाता है। दिनांक 01 सितंबर से शुरू होने वाले पर्युषण का प्रथम दिवस खाद्य संयम दिवस के रूप में मनाया जायेगा वहीं दूसरा स्वाध्याय दिवस, तीसरा सामायिक दिवस, चौथा वाणी संयम दिवस, पांचवां अणुव्रत चेतना दिवस, छठा जप दिवस, सातवां ध्यान दिवस, आठवें शिखर दिवस के रूप में संवत्सरी महापर्व का उपक्रम रहता है। इन सभी के बाद क्षमापना महापर्व मनाया जाता है। इन दिनों में श्रावक समाज के लिए विशेष रूप से साधना निर्धारित होती है जिसके तहत प्रतिदिन तीन सामायिक, दो घंटा मौन, ब्रह्मचर्य का पालन, नौ द्रव्यों से अधिक खाने का त्याग, सचित्त और जमीकंद खाने का त्याग, जप व ध्यान आधा घंटा और रात्रि भोजन के त्याग की बात भी होती है।
चंडीगढ़ मे सिनियर सीटीजन एसोसिएसन द्वारा महिला सशक्तिकरण परियोजना का आयोजन… सतविंदर कौर,ऐसोसिएट एडिटर, Key Line Times चंडीगढ़ सीनियर सिटिज़न्स एसोसिएशन ने आज अपने महिला सशक्तिकरण परियोजना की शुरुआत कम्युनिटी सेंटर रामदरबार में की। इसका उद्घाटन क्षेत्रीय पार्षद श्रीमती नेहा द्वारा किया गया। इस कार्यक्रम में 50 से अधिक महिलाओं ने भाग लिया और उन्हें हमारे महिला स्वयंसेवक श्रीमती अलका वालिया, सचिव वेलफेयर और ओशन सोसाइटी सचिव द्वारा सैनिटरी नैपकिन, बिस्कुट और फल वितरित किए गए। श्री सुभाष अग्रवाल, अध्यक्ष और श्री ब्रिगेडियर सप्रा, उपाध्यक्ष ने बताया कि यह परियोजना 4 साल बाद फिर से शुरू की गई है। हर महीने रामदरबार में एक बैठक आयोजित की जाएगी, और परियोजना-23 वेलफेयर सचिव यह सुनिश्चित करेंगे कि क्षेत्र में रहने वाली अधिकतम महिलाएं इसमें भाग लें। पार्षद श्रीमती नेहा से एक सिलाई शिक्षा केंद्र की शुरुआत के लिए भी अनुरोध किया गया, और उन्होंने इस परियोजना के लिए अपना पूर्ण समर्थन व्यक्त किया। श्री एस के माहेश्वरी, श्री विकास गोयल, श्रीमती मीनू , श्री विवेक शर्मा, श्रीमती स्वीटी और श्री पी.के. सूरी ने भी उद्घाटन कार्यक्रम में अपनी उपस्थिति दर्ज की।
सुरत मे आचार्य महाश्रमणजी ने कहा कि परिग्रही मानव के लिए तप, दम और नियम की साधना कठिन…सुरेंद्र मुनोत, ऐसोसिएट एडिटर, Key Line Times 28.08.2024, बुधवार, वेसु, सूरत (गुजरात), युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी मंगल सन्निधि अखिल भारतीय तेरापंथ महिला मण्डल के तत्त्वावधान में द्विदिवसीय तेरापंथ कन्या मण्डल के ‘ज्योतिर्मय’ थीम पर आधारित 20वें अधिवेशन के अंतिम दिन मुख्य प्रवचन कार्यक्रम के दौरान मंचीय उपक्रम बुधवार को रहा। देश-विदेश के विभिन्न हिस्सों से पहुंची सैंकड़ों कन्याओं को युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने पावन पाथेय प्रदान किया तो साध्वीप्रमुखाजी ने कन्याओं को मंगल प्रेरणा प्रदान की। बुधवार को महावीर समवसरण में उपस्थित जनता व अधिवेशन में सम्मिलित कन्याओं को शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि जो आदमी परिग्रही होता है, परिग्रह में अनुरक्त रहता है, मोह-माया की दुनिया में रमण करने वाला होता है तथा बाह्य आकर्षणों से आक्रान्त रहता है, इन्द्रिय विषयों के सेवन में रचा-पचा रहता है, ऐसे आदमी को यह पता ही नहीं होता कि उसे आगे भी जाना है। जहां चेतना आसक्ति में निमग्न है, वैसे आदमी के जीवन में न तप दिखाई देता है, दम दिखाई देता और न ही नियम दिखाई देता है। जीवन में तप, दम और नियम की बात बताई गयी है। स्वाद विजय की साधना तपस्या होती है। आसन विजय की साधना भी तपस्या होती है। विशेष साधक आसन विजय, निद्रा विजय और क्षुधा विजय करने वाले होते हैं। भोजन तो प्राणी को अपने जीवन को और देह को चलाने के लिए भोजन की आवश्यकता होती है। शरीर से काम लेना है तो शरीर को भोजन के रूप में भाड़ा देना होता है। सामान्य मानव हो अथवा साधु, सभी को शरीर से कार्य करना है, विहार करना है, सेवा करना है तो शरीर को पोषण देने के लिए भोजन की आवश्यकता होती है। साधु के लिए बताया गया कि भोजन करने तो भी उसमें ज्यादा स्वाद लेकर नहीं करना चाहिए। अस्वाद की स्थिति होनी चाहिए। स्वाद विजय और उनोदरी भी तपस्या है। आसन विजय की भी साधना है। सोने, बैठने आदि में भी एक आसन में स्थित हो जाना भी साधना होती है। फिर निद्रा जय एक प्रकार की साधना है, किन्तु सामान्य मानव के लिए निद्रा की आवश्यकता होती है। उपयुक्त मात्रा में नींद, उपयुक्त मात्रा में भोजन आदि में संतुलन रखने का प्रयास करना चाहिए। इन्द्रिय विजय की साधना को दम कहा गया है। इसी प्रकार मानव अपने जीवन में अनेक कार्यों को नियमित रूप से करने का नियम भी ले सकता है। मानव को अपने जीवन में तप, दम और नियम को जीवन में रखने का अभ्यास करना चाहिए तथा आत्मा को अध्यात्म से भावित करने का लक्ष्य रखने प्रयास और उस दिशा में पुरुषार्थ करने का प्रयास करना चाहिए। मंगल प्रवचन के उपरान्त आचार्यश्री गजसुकुमाल मुनि के मोक्ष में जाने व उनके वियोग आदि प्रसंगों को आख्यान रूप में प्रदान किया। तदुपरान्त आचार्यश्री ने आख्यान के इस क्रम को सम्पन्न करने की घोषणा भी की। अनेकानेक तपस्वियों ने अपनी-अपनी तपस्या का प्रत्याख्यान किया। आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में जैन श्वेताम्बर तेरापंथ महिला मण्डल के तत्त्वावधान में आयोजित द्विदिवसीय तेरापंथ कन्या मण्डल के 20वें राष्ट्रीय अधिवेशन की ‘ज्योतिर्मय’ थीम के साथ समायोजित हुआ। इसके अंतिम मुख्य प्रवचन कार्यक्रम में मंचीय उपक्रम रहा। इस संदर्भ में अखिल भारतीय तेरापंथ महिला मण्डल की अध्यक्ष श्रीमती सरिता डागा ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। तेरापंथ कन्या मण्डल की प्रभारी श्रीमती अदिति सेखानी ने वार्षिक प्रतिवेदन प्रस्तुत किया। तेरापंका कन्या मण्डल-सूरत ने अपनी प्रस्तुति दी। उपस्थित कन्याओं ने चौबीसी के गीत का संगान किया।तदुपरान्त साध्वीप्रमुखा साध्वी विश्रुतविभाजी ने उपस्थित कन्याओं को मंगल अभिप्रेरणा देते हुए कन्याओं को जीवन ज्योतित करने की पावन प्रेरणा प्रदान की। युगप्रधान आचार्यश्री ने अधिवेशन में उपस्थित कन्याओं को पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि मनुष्य एक विकसित प्राणी होता है और वह जो उत्कृष्ट साधना कर सकता है, अन्य कोई प्राणी साधना नहीं कर सकता। कन्या मण्डल का यह अधिवेशन अखिल भारतीय तेरापंथ महिला मण्डल के अंतर्गत हो रहा है। कन्याओं में श्री, लज्जा, धैर्य, कीर्ति, बुद्धि और लक्ष्मी रूपी विशेषणों का विकास होता रहे। इन छह देवी रूपों कन्याएं अच्छा विकास करें। कन्याएं अच्छी श्राविकाएं बनें और अच्छे धार्मिक-आध्यात्मिक कार्य करती रहें और स्वयं के विकास का प्रयास करती रहें।
आचार्य महाश्रमणजी ने अपने प्रवचन मे कहा कि प्रमाद के कारण अनेकानेक योनियों में भ्रमण करती है आत्मा…सुरेंद्र मुनोत, ऐसोसिएट एडिटर, Key Line Times 27.08.2024, मंगलवार, वेसु, सूरत (गुजरात),सम्पूर्ण भारत ही नहीं पूरे विश्व में अपनी समृद्धि के लिए विख्यात गुजरात राज्य का सबसे प्राचीन तथा हीरे और कपड़े के व्यवसाय से सुप्रसिद्ध सूरत नगरी वर्तमान में अध्यात्म नगरी के रूप में अपनी छटा बिखेर रही है। सूरत की बदलती इस सूरत का कारण जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, अध्यात्मवेत्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी का इस नगरी में पावन चतुर्मास। ऐसे महागुरु की सन्निधि में देश ही नहीं विदेशों से भी श्रद्धालुओं के पहुंचने से व्यापारिक नगरी अध्यात्म प्रेमियों की नगरी भी बन रही है। प्रतिदिन हजारों की संख्या में श्रद्धालु मानवता के मसीहा के दर्शन व मंगल प्रवचन से जीवन अपने जीवन को धन्य बना रहे हैं। इतना ही तेरापंथ धर्मसंघ से जुड़ी संस्थाओं व संगठनों के अधिवेशन आदि के कार्यक्रमों का भी अनवत क्रम बना हुआ है। मंगलवार को भी अखिल भारतीय तेरापंथ महिला मण्डल के तत्त्वावधान में तेरापंथ कन्या मण्डल का 20 अधिवेशन भी शुभारम्भ हुआ। महावीर समवसरण में मंगलवार को जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ वर्तमान अधिशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि आचार्यश्री महाश्रमणजी के मंगल प्रवचन से पूर्व साध्वीवर्याजी ने उपस्थित जनता को उद्बोधित किया। तदुपरान्त शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने आयारो आगम के माध्यम समुपस्थित जनता को पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि प्राणी अनेक योनियों में जाता है और नाना प्रकार के आघातों का प्रतिसंवेदन करता है, कष्ट भी भोगता है। प्रश्न हो सकता है कि अलग-अलग योनियों में जीवन को कौन ले जाता है? आगम में उत्तर प्रदान किया गया कि प्राणी अपने प्रमाद के कारण अनेक रूप वाली योनियों में जाता है और आघातों का अनुभव भी करता है। जैन आगमों में बताया गया है कि सुख और दुःख की कर्ता-धर्ता स्वयं उस प्राणी की आत्मा ही होती है। जैसा कर्म आत्मा करती है, प्राणी उसी प्रकार सुख अथवा दुःख को प्राप्त करता है। प्राणी के कर्म ही उसे कष्ट देने वाले होते हैं। पाप का आचरण करने वाला यथा चोरी, हिंसा, हत्या, लूट, किसी को कष्ट देने वाला अपने लिए स्वयं दुःख का प्रबन्ध कर लेता है। दुःख, कष्ट को दूर करने लिए प्राणी को अधिक से अधिक प्रमाद से बचने का प्रयास करना चाहिए। प्रमाद से बचने के लिए प्राणी को प्रमाद से बचते हुए आत्मकल्याण की दिशा में आगे बढ़ने का प्रयास हो तो संभव है, कभी मोक्ष की प्राप्ति भी हो सकती है। आदमी को अपने कर्म पर ध्यान देने का प्रयास करना चाहिए। आदमी के अपने भीतर में उत्पन्न हो रहे प्रमाद से भी बचने का प्रयास करना चाहिए। मंगल प्रवचन के उपरान्त आचार्यश्री गजसुकुमाल मुनि के आख्यान क्रम का वाचन किया। कार्यक्रम में गुजरात की धरा से संबद्ध मुनि निकुंजकुमारजी अपनी भावनाओं की अभिव्यक्ति दी। ‘रश्मियां रश्मिरथ की, गाथा महाश्रमण की’ विशेषांक को श्रीमती प्रभा जैन, श्री विनोद मरोठी आदि ने पूज्यप्रवर के समक्ष लोकार्पित किया। इस संदर्भ में श्रीमती प्रभा जैन ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी।
अणुव्रत विश्व भारती द्वारा प्रसिद्ध उद्योगपति श्री रतन टाटा को दिया गया अणुव्रत पुरस्कार…आर.के.जैन,एडिटर इन चीफ, Key Line Times मुंबई 27-8-2024 *अणुव्रत विश्व भारती द्वारा दिये जाने वाले प्रतिष्ठित ‘‘अणुव्रत पुरस्कार’’ वर्ष 2023 के लिए प्रसिद्ध उद्योगपति व समाज सेवी श्री रतन टाटा को मुम्बई स्थित उनके आवास पर भेंट किया गया*। अणुव्रत विश्व भारती सोसायटी के अध्यक्ष श्री अविनाश नाहर के साथ वहां पहुंचे प्रतिनिधि मण्डल ने श्री रतन टाटा को पुरस्कार स्वरूप स्मृति चिन्ह, प्रशिस्त पत्र सहित 1.51 लाख की राशि भेंट की। इस अवसर पर अणुविभा के महामंत्री श्री भीखम सुराणा, मुम्बई कस्टम कमिश्नर श्री अशोक कुमार कोठारी, अणुविभा उपाध्यक्ष श्री विनोद कुमार व सहमंत्री श्री मनोज सिंघवी उपस्थित थे। अणुविभा अध्यक्ष श्री नाहर ने श्री रतन टाटा को अणुव्रत पुरस्कार सौंपते हुए मानव जाति को उनके सकारात्मक योगदान की प्रशंसा की एवं दुनिया में मानवीयता का एक श्रेष्ठ उदाहरण प्रस्तुत करने के लिए सम्पूर्ण अणुविभा परिवार की ओर से बधाई ज्ञापित की। उन्होंने आगे बताया कि अणुव्रत अनुशास्ता आचार्य श्री महाश्रमण ने श्री रतन टाटा के प्रति अपनी मंगल कामनाएं प्रेषित की हैं तथा उनके अच्छे स्वास्थ्य की कामना की है। श्री रतन टाटा ने अणुव्रत अनुशास्ता के प्रति अपना हार्दिक आदर व सम्मान व्यक्त किया। उल्लेखनीय है कि 75वर्षों से गतिमान अणुव्रत आंदोलन मानवीय एकता, नैतिकता, अहिंसा व सद्भावना के क्षेत्र में विशद कार्य कर रहा हैं। आचार्य तुलसी द्वारा प्रणीत यह आंदोलन संयुक्त राष्ट्र तक अपनी विशेष पहचान स्थापित कर चुका है। अणुव्रत पुरस्कार की श्रृंखला में अभी तक देश के गणमान्य व्यक्तियों को सम्मानित किया गया है, जिनमें – श्री आत्माराम, श्री जैनेन्द्र कुमार, श्री शिवाजी भावे, श्री शिवराज पाटिल, श्री नीतिश कुमार, डॉ. ए.पी. जे. अब्दुल कलाम, डॉ. मनोहन सिंह, श्री टी.एन. शेषन, श्री प्रकाश आमटे इत्यादि शामिल है। इस अवसर पर अणुविभा प्रतिनिधि मण्डल ने श्री रतन टाटा को अणुव्रत साहित्य, ‘अणुव्रत’ व ‘बच्चों का देश’ पत्रिकाओं के विशेषांक भेंट किये एवं अणुव्रत की प्रवृत्तियों चुनावशुद्धि अभियान, अणुव्रत डिजिटल डिटॉक्स, एलिवेट, पर्यावरण जागरूकता अभियान, नशामुक्ति अभियान, जीवन विज्ञान आदि के बारे में जानकारी प्रदान की। श्री रतन टाटा ने मनाव समाज की भलाई के लिए अणुव्रत आंदोलन द्वारा किये जा रहे प्रयासों की सराहना की। समाचार प्रदाता.. कुसुम लुनिया राष्ट्रीय संगठनमंत्री अणुविभा
आचार्य महाश्रमणजी ने कहा कि गृहस्थ हो या साधु, जीवन में रखे समता….सुरेंद्र मुनोत, ऐसोसिएट एडिटर, Key Line Times 26.08.2024, सोमवार, वेसु, सूरत (गुजरात) ,सूरत शहर के वेसु क्षेत्र में स्थित भगवान महावीर युनिवर्सिटि परिसर में बने भव्य संयम विहार में जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी वर्ष 2024 का चतुर्मास कर रहे हैं। सोमवार को अध्यात्म जगत के पुरोधा आचार्यश्री महाश्रमणजी ने उपस्थित जनता को पावन प्रतिबोध प्रदान करते हुए कहा कि आयारो आगम के एक सूक्त में समता धर्म का समाचरण करने का संदेश दिया गया है। मनुष्य अपने जीवन में हर्षान्वित हो जाते हैं तो कभी आक्रोश और गुस्से में भी आ जाते हैं। अनुकूल स्थिति होता है तो आदमी प्रसन्न हो जाता है और प्रतिकूल परिस्थिति आ जाए तो आदमी दुःखी हो जाता है, कष्ट की अनुभूति करने लगता है। इसलिए यह बताया गया कि यह जीवन अनेक बार उच्च गोत्र वाला भी बन गया और अनेक बार नीच गोत्र वाला भी बन गया। कोई हीन नहीं और कोई अतिरिक्त नहीं होता। सामान्य व्यवहार में बड़ा और छोटा, हीन और अतिरिक्त, उच्चता और नीचता की बात हो सकती है। कोई उम्र में बहुत ज्यादा तो कोई बहुत उम्र वाला हो सकता है। कोई राजनीति में बहुत ऊंचे पद पर होता है तो कोई नीचे पद भी होता है। कोई धन-धान्य से बहुत उच्च होता है तो कोई धनहीन होता है। यह उच्चता और नीचता इस जीवनकाल की बातें हैं। मनुष्य अपनी आत्मा पर ध्यान दे कि आज कोई धनहीन है वो कभी किसी जन्म में बहुत उच्च कोटि का धनवान हो सकता है। कभी कोई बहुत ज्ञानवान रहा हो सकता है तो कभी कोई अल्पज्ञानी भी रहा हो सकता है। सिद्धों की दृष्टि से देखा जाए तो कोई हीन और कोई अतिरिक्त नहीं होता। इसलिए आयारो में बताया गया कि आत्मा के संदर्भ में कोई हीन नहीं और कोई अतिरिक्त नहीं होता। इसलिए कोई ऊंच और नीच की बात नहीं है। संसारी अवस्था में देखें तो भी जो इस जन्म में पिता है, वह अगले जन्म में अपने पुत्र का पुत्र हो जाए। इसलिए आयारो आगम में यह प्रेरणा दी गई कि कभी जीवन में उच्चता की स्थिति आ जाए अथवा कभी मंदता और नीचता की स्थिति आ जाए तो भी मानव हर्ष और विषाद में जाने से बचने का प्रयास करना चाहिए। जिन्दगी में भौतिक अनुकूलता मिले तो ज्यादा खुशी नहीं मनाना और कभी भौतिक प्रतिकूलता प्राप्त होने से लगी तो बहुत ज्यादा दुःखी नहीं बनना चाहिए। जहां तक संभव हो दोनों ही परिस्थितियों में समता में रहने का प्रयास करना चाहिए। साधु के लिए बताया गया कि साधु को भोजन मिले तो भी ठीक और नहीं मिले तो भी ठीक कहा गया है। अगर भोजन नहीं मिला तो साधु यह सोचे कि मुझे तपस्या का मौका मिल गया और मिल गया तो शरीर को पोषण मिल सकेगा। इस प्रकार का चिंतन कर साधु को समता में रहने का प्रयास करना चाहिए। साधु को तो समता मूर्ति तो होना ही चाहिए, गृहस्थों को भी जहां तक संभव हो सके, समता में रहने का प्रयास करना चाहिए। परिवार में कभी कोई कटु बोल दे तो भी समता और शांति रखने का प्रयास रखना चाहिए। परिवार में कलह की स्थिति न बने, ऐसा प्रयास करना चाहिए। समता रखने वाला बड़ा होता है। इसलिए साधु हो अथवा गृहस्थ उसे अपने जीवन में समता रखने का प्रयास करना चाहिए। मंगल प्रवचन के उपरान्त आचार्यश्री ने गजसुकुमाल मुनि के आख्यान क्रम का वाचन किया। तदुपरान्त आचार्यश्री श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के अवसर पर जनता को पावन पाथेय प्रदान करते हुआ कि आज भाद्रव कृष्णा अष्टमी का प्रसंग है। मैंने आचार्यश्री महाप्रज्ञजी की आज्ञा से श्रीमद्भगवद्गीता व जैन आगम पर कई भाषण दिए थे। श्रीमद्भगवद्गीता में 18 अध्यायों में श्रीकृष्ण व अर्जुन का संवाद है। इन ग्रंथों से अच्छी बातें अपनाकर आगे बढ़ते रहने का प्रयास करें। तेरापंथ किशोर मण्डल-सूरत ने चौबीसी के गीत तथा तेरापंथ कन्या मण्डल-सूरत ने पुरानी ढाल को प्रस्तुति दी।