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Previous: आचार्य महाश्रमणजी ने कहा कि गृहस्थ हो या साधु, जीवन में रखे समता….सुरेंद्र मुनोत, ऐसोसिएट एडिटर, Key Line Times 26.08.2024, सोमवार, वेसु, सूरत (गुजरात) ,सूरत शहर के वेसु क्षेत्र में स्थित भगवान महावीर युनिवर्सिटि परिसर में बने भव्य संयम विहार में जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी वर्ष 2024 का चतुर्मास कर रहे हैं। सोमवार को अध्यात्म जगत के पुरोधा आचार्यश्री महाश्रमणजी ने उपस्थित जनता को पावन प्रतिबोध प्रदान करते हुए कहा कि आयारो आगम के एक सूक्त में समता धर्म का समाचरण करने का संदेश दिया गया है। मनुष्य अपने जीवन में हर्षान्वित हो जाते हैं तो कभी आक्रोश और गुस्से में भी आ जाते हैं। अनुकूल स्थिति होता है तो आदमी प्रसन्न हो जाता है और प्रतिकूल परिस्थिति आ जाए तो आदमी दुःखी हो जाता है, कष्ट की अनुभूति करने लगता है। इसलिए यह बताया गया कि यह जीवन अनेक बार उच्च गोत्र वाला भी बन गया और अनेक बार नीच गोत्र वाला भी बन गया। कोई हीन नहीं और कोई अतिरिक्त नहीं होता। सामान्य व्यवहार में बड़ा और छोटा, हीन और अतिरिक्त, उच्चता और नीचता की बात हो सकती है। कोई उम्र में बहुत ज्यादा तो कोई बहुत उम्र वाला हो सकता है। कोई राजनीति में बहुत ऊंचे पद पर होता है तो कोई नीचे पद भी होता है। कोई धन-धान्य से बहुत उच्च होता है तो कोई धनहीन होता है। यह उच्चता और नीचता इस जीवनकाल की बातें हैं। मनुष्य अपनी आत्मा पर ध्यान दे कि आज कोई धनहीन है वो कभी किसी जन्म में बहुत उच्च कोटि का धनवान हो सकता है। कभी कोई बहुत ज्ञानवान रहा हो सकता है तो कभी कोई अल्पज्ञानी भी रहा हो सकता है। सिद्धों की दृष्टि से देखा जाए तो कोई हीन और कोई अतिरिक्त नहीं होता। इसलिए आयारो में बताया गया कि आत्मा के संदर्भ में कोई हीन नहीं और कोई अतिरिक्त नहीं होता। इसलिए कोई ऊंच और नीच की बात नहीं है। संसारी अवस्था में देखें तो भी जो इस जन्म में पिता है, वह अगले जन्म में अपने पुत्र का पुत्र हो जाए। इसलिए आयारो आगम में यह प्रेरणा दी गई कि कभी जीवन में उच्चता की स्थिति आ जाए अथवा कभी मंदता और नीचता की स्थिति आ जाए तो भी मानव हर्ष और विषाद में जाने से बचने का प्रयास करना चाहिए। जिन्दगी में भौतिक अनुकूलता मिले तो ज्यादा खुशी नहीं मनाना और कभी भौतिक प्रतिकूलता प्राप्त होने से लगी तो बहुत ज्यादा दुःखी नहीं बनना चाहिए। जहां तक संभव हो दोनों ही परिस्थितियों में समता में रहने का प्रयास करना चाहिए। साधु के लिए बताया गया कि साधु को भोजन मिले तो भी ठीक और नहीं मिले तो भी ठीक कहा गया है। अगर भोजन नहीं मिला तो साधु यह सोचे कि मुझे तपस्या का मौका मिल गया और मिल गया तो शरीर को पोषण मिल सकेगा। इस प्रकार का चिंतन कर साधु को समता में रहने का प्रयास करना चाहिए। साधु को तो समता मूर्ति तो होना ही चाहिए, गृहस्थों को भी जहां तक संभव हो सके, समता में रहने का प्रयास करना चाहिए। परिवार में कभी कोई कटु बोल दे तो भी समता और शांति रखने का प्रयास रखना चाहिए। परिवार में कलह की स्थिति न बने, ऐसा प्रयास करना चाहिए। समता रखने वाला बड़ा होता है। इसलिए साधु हो अथवा गृहस्थ उसे अपने जीवन में समता रखने का प्रयास करना चाहिए। मंगल प्रवचन के उपरान्त आचार्यश्री ने गजसुकुमाल मुनि के आख्यान क्रम का वाचन किया। तदुपरान्त आचार्यश्री श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के अवसर पर जनता को पावन पाथेय प्रदान करते हुआ कि आज भाद्रव कृष्णा अष्टमी का प्रसंग है। मैंने आचार्यश्री महाप्रज्ञजी की आज्ञा से श्रीमद्भगवद्गीता व जैन आगम पर कई भाषण दिए थे। श्रीमद्भगवद्गीता में 18 अध्यायों में श्रीकृष्ण व अर्जुन का संवाद है। इन ग्रंथों से अच्छी बातें अपनाकर आगे बढ़ते रहने का प्रयास करें। तेरापंथ किशोर मण्डल-सूरत ने चौबीसी के गीत तथा तेरापंथ कन्या मण्डल-सूरत ने पुरानी ढाल को प्रस्तुति दी।Next: आचार्य महाश्रमणजी ने अपने प्रवचन मे कहा कि प्रमाद के कारण अनेकानेक योनियों में भ्रमण करती है आत्मा…सुरेंद्र मुनोत, ऐसोसिएट एडिटर, Key Line Times 27.08.2024, मंगलवार, वेसु, सूरत (गुजरात),सम्पूर्ण भारत ही नहीं पूरे विश्व में अपनी समृद्धि के लिए विख्यात गुजरात राज्य का सबसे प्राचीन तथा हीरे और कपड़े के व्यवसाय से सुप्रसिद्ध सूरत नगरी वर्तमान में अध्यात्म नगरी के रूप में अपनी छटा बिखेर रही है। सूरत की बदलती इस सूरत का कारण जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, अध्यात्मवेत्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी का इस नगरी में पावन चतुर्मास। ऐसे महागुरु की सन्निधि में देश ही नहीं विदेशों से भी श्रद्धालुओं के पहुंचने से व्यापारिक नगरी अध्यात्म प्रेमियों की नगरी भी बन रही है। प्रतिदिन हजारों की संख्या में श्रद्धालु मानवता के मसीहा के दर्शन व मंगल प्रवचन से जीवन अपने जीवन को धन्य बना रहे हैं। इतना ही तेरापंथ धर्मसंघ से जुड़ी संस्थाओं व संगठनों के अधिवेशन आदि के कार्यक्रमों का भी अनवत क्रम बना हुआ है। मंगलवार को भी अखिल भारतीय तेरापंथ महिला मण्डल के तत्त्वावधान में तेरापंथ कन्या मण्डल का 20 अधिवेशन भी शुभारम्भ हुआ। महावीर समवसरण में मंगलवार को जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ वर्तमान अधिशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि आचार्यश्री महाश्रमणजी के मंगल प्रवचन से पूर्व साध्वीवर्याजी ने उपस्थित जनता को उद्बोधित किया। तदुपरान्त शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने आयारो आगम के माध्यम समुपस्थित जनता को पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि प्राणी अनेक योनियों में जाता है और नाना प्रकार के आघातों का प्रतिसंवेदन करता है, कष्ट भी भोगता है। प्रश्न हो सकता है कि अलग-अलग योनियों में जीवन को कौन ले जाता है? आगम में उत्तर प्रदान किया गया कि प्राणी अपने प्रमाद के कारण अनेक रूप वाली योनियों में जाता है और आघातों का अनुभव भी करता है। जैन आगमों में बताया गया है कि सुख और दुःख की कर्ता-धर्ता स्वयं उस प्राणी की आत्मा ही होती है। जैसा कर्म आत्मा करती है, प्राणी उसी प्रकार सुख अथवा दुःख को प्राप्त करता है। प्राणी के कर्म ही उसे कष्ट देने वाले होते हैं। पाप का आचरण करने वाला यथा चोरी, हिंसा, हत्या, लूट, किसी को कष्ट देने वाला अपने लिए स्वयं दुःख का प्रबन्ध कर लेता है। दुःख, कष्ट को दूर करने लिए प्राणी को अधिक से अधिक प्रमाद से बचने का प्रयास करना चाहिए। प्रमाद से बचने के लिए प्राणी को प्रमाद से बचते हुए आत्मकल्याण की दिशा में आगे बढ़ने का प्रयास हो तो संभव है, कभी मोक्ष की प्राप्ति भी हो सकती है। आदमी को अपने कर्म पर ध्यान देने का प्रयास करना चाहिए। आदमी के अपने भीतर में उत्पन्न हो रहे प्रमाद से भी बचने का प्रयास करना चाहिए। मंगल प्रवचन के उपरान्त आचार्यश्री गजसुकुमाल मुनि के आख्यान क्रम का वाचन किया। कार्यक्रम में गुजरात की धरा से संबद्ध मुनि निकुंजकुमारजी अपनी भावनाओं की अभिव्यक्ति दी। ‘रश्मियां रश्मिरथ की, गाथा महाश्रमण की’ विशेषांक को श्रीमती प्रभा जैन, श्री विनोद मरोठी आदि ने पूज्यप्रवर के समक्ष लोकार्पित किया। इस संदर्भ में श्रीमती प्रभा जैन ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी।