सुरत मे आचार्य महाश्रमणजी ने कहा कि परिग्रही मानव के लिए तप, दम और नियम की साधना कठिन…सुरेंद्र मुनोत, ऐसोसिएट एडिटर, Key Line Times 28.08.2024, बुधवार, वेसु, सूरत (गुजरात), युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी मंगल सन्निधि अखिल भारतीय तेरापंथ महिला मण्डल के तत्त्वावधान में द्विदिवसीय तेरापंथ कन्या मण्डल के ‘ज्योतिर्मय’ थीम पर आधारित 20वें अधिवेशन के अंतिम दिन मुख्य प्रवचन कार्यक्रम के दौरान मंचीय उपक्रम बुधवार को रहा। देश-विदेश के विभिन्न हिस्सों से पहुंची सैंकड़ों कन्याओं को युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने पावन पाथेय प्रदान किया तो साध्वीप्रमुखाजी ने कन्याओं को मंगल प्रेरणा प्रदान की। बुधवार को महावीर समवसरण में उपस्थित जनता व अधिवेशन में सम्मिलित कन्याओं को शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि जो आदमी परिग्रही होता है, परिग्रह में अनुरक्त रहता है, मोह-माया की दुनिया में रमण करने वाला होता है तथा बाह्य आकर्षणों से आक्रान्त रहता है, इन्द्रिय विषयों के सेवन में रचा-पचा रहता है, ऐसे आदमी को यह पता ही नहीं होता कि उसे आगे भी जाना है। जहां चेतना आसक्ति में निमग्न है, वैसे आदमी के जीवन में न तप दिखाई देता है, दम दिखाई देता और न ही नियम दिखाई देता है। जीवन में तप, दम और नियम की बात बताई गयी है। स्वाद विजय की साधना तपस्या होती है। आसन विजय की साधना भी तपस्या होती है। विशेष साधक आसन विजय, निद्रा विजय और क्षुधा विजय करने वाले होते हैं। भोजन तो प्राणी को अपने जीवन को और देह को चलाने के लिए भोजन की आवश्यकता होती है। शरीर से काम लेना है तो शरीर को भोजन के रूप में भाड़ा देना होता है। सामान्य मानव हो अथवा साधु, सभी को शरीर से कार्य करना है, विहार करना है, सेवा करना है तो शरीर को पोषण देने के लिए भोजन की आवश्यकता होती है। साधु के लिए बताया गया कि भोजन करने तो भी उसमें ज्यादा स्वाद लेकर नहीं करना चाहिए। अस्वाद की स्थिति होनी चाहिए। स्वाद विजय और उनोदरी भी तपस्या है। आसन विजय की भी साधना है। सोने, बैठने आदि में भी एक आसन में स्थित हो जाना भी साधना होती है। फिर निद्रा जय एक प्रकार की साधना है, किन्तु सामान्य मानव के लिए निद्रा की आवश्यकता होती है। उपयुक्त मात्रा में नींद, उपयुक्त मात्रा में भोजन आदि में संतुलन रखने का प्रयास करना चाहिए। इन्द्रिय विजय की साधना को दम कहा गया है। इसी प्रकार मानव अपने जीवन में अनेक कार्यों को नियमित रूप से करने का नियम भी ले सकता है। मानव को अपने जीवन में तप, दम और नियम को जीवन में रखने का अभ्यास करना चाहिए तथा आत्मा को अध्यात्म से भावित करने का लक्ष्य रखने प्रयास और उस दिशा में पुरुषार्थ करने का प्रयास करना चाहिए। मंगल प्रवचन के उपरान्त आचार्यश्री गजसुकुमाल मुनि के मोक्ष में जाने व उनके वियोग आदि प्रसंगों को आख्यान रूप में प्रदान किया। तदुपरान्त आचार्यश्री ने आख्यान के इस क्रम को सम्पन्न करने की घोषणा भी की। अनेकानेक तपस्वियों ने अपनी-अपनी तपस्या का प्रत्याख्यान किया। आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में जैन श्वेताम्बर तेरापंथ महिला मण्डल के तत्त्वावधान में आयोजित द्विदिवसीय तेरापंथ कन्या मण्डल के 20वें राष्ट्रीय अधिवेशन की ‘ज्योतिर्मय’ थीम के साथ समायोजित हुआ। इसके अंतिम मुख्य प्रवचन कार्यक्रम में मंचीय उपक्रम रहा। इस संदर्भ में अखिल भारतीय तेरापंथ महिला मण्डल की अध्यक्ष श्रीमती सरिता डागा ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। तेरापंथ कन्या मण्डल की प्रभारी श्रीमती अदिति सेखानी ने वार्षिक प्रतिवेदन प्रस्तुत किया। तेरापंका कन्या मण्डल-सूरत ने अपनी प्रस्तुति दी। उपस्थित कन्याओं ने चौबीसी के गीत का संगान किया।तदुपरान्त साध्वीप्रमुखा साध्वी विश्रुतविभाजी ने उपस्थित कन्याओं को मंगल अभिप्रेरणा देते हुए कन्याओं को जीवन ज्योतित करने की पावन प्रेरणा प्रदान की। युगप्रधान आचार्यश्री ने अधिवेशन में उपस्थित कन्याओं को पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि मनुष्य एक विकसित प्राणी होता है और वह जो उत्कृष्ट साधना कर सकता है, अन्य कोई प्राणी साधना नहीं कर सकता। कन्या मण्डल का यह अधिवेशन अखिल भारतीय तेरापंथ महिला मण्डल के अंतर्गत हो रहा है। कन्याओं में श्री, लज्जा, धैर्य, कीर्ति, बुद्धि और लक्ष्मी रूपी विशेषणों का विकास होता रहे। इन छह देवी रूपों कन्याएं अच्छा विकास करें। कन्याएं अच्छी श्राविकाएं बनें और अच्छे धार्मिक-आध्यात्मिक कार्य करती रहें और स्वयं के विकास का प्रयास करती रहें।