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November 2, 2025

Key line times

Key Line Times राष्ट्रीय हिंदी पाक्षिक समाचार पत्र है जो राजधानी दिल्ली से प्रकाशित होता है एंव भारत सरकार के सूचना एंव प्रसारण मंत्रालय के अंतर्गत आर.एन.आई. से रजिस्ट्रड है। इसका आर.एन.आई.न. DELHIN/2017/72528 है। यह समाचार पत्र 2017 से लगातार प्रकाशित हो रहा है।
मासिक एकत्रीकरण में विभिन्न रंगों की कविताओं की प्रस्तुति….सतविंदर कौर,ऐसोसिएट एडिटर, Key Line Times. चंडीगढ़, साहित्य विज्ञान केंद्र चंडीगढ़ के मासिक एकत्रीकरण में केंद्र की प्रिय सदस्य स्वर्गीय किरण बेदी जी को दो मिनट का मौन धारण कर याद किया गया, जो कुछ दिन पहले ही इस दुनिया से विदा हो गई थीं। केंद्र के प्रधान गुरदर्शन सिंह मावी जी ने उनके इस केंद्र से लंबे समय से जुड़े होने और उनके योगदान की सराहना की। राजविंदर सिंह गड्डू ने किरण बेदी के साथ अपने संबंधों का ज़िक्र किया। राजिंदर सिंह धीमान, दर्शन सिंह सिद्धू, सुरजीत सिंह धीर, पाल अजनबी ने कविताओं के माध्यम से किरण बेदी को श्रद्धांजलि अर्पित की। परम दुआबा, तरसेम राज, जसपाल कंवल, गुरदास सिंह दास ने गीतों के जरिए उनकी आत्मा को याद किया। प्रताप सिंह पारस, दर्शन तियूणा, डॉ. मनजीत बल्ल, दविंदर कौर ढिल्लों, बलविंदर ढिल्लों, लाभ सिंह लहिली, सुखदेव सिंह काहलों ने सामाजिक सरोकार से जुड़े गीत प्रस्तुत किए। हरिंदर कालड़ा ने भगवान शब्द की उत्पत्ति पर चर्चा की। भरेपूर सिंह, गुरजीत सिंह जंड, वरिंदर चठा, मलकीत बसरा, तिलक सेठी, परलाद सिंह, चरनजीत कलेर, मलकीत नागरा, सुरिंदर कुमार, सिंह गोसल, चरनजीत कौर बाट, मिक्की पासी, सुखविंदर रफीक ने विभिन्न विषयों को छूने वाली कविताएं पेश कीं। प्रधानमंत्री भाषण में डॉ. दीपक मनमोहन सिंह ने कार्यक्रम की सराहना करते हुए भविष्य में अपना सहयोग बनाए रखने का विश्वास दिलाया। डॉ. अवतार सिंह पतंग ने इस केंद्र की अन्य गतिविधियों पर प्रकाश डाला और सभी का धन्यवाद किया। मंच का संचालन दविंदर कौर ढिल्लों ने बहुत ही सलीके से किया। इस मौके पर हरजीत सिंह, डी.पी. सिंह, कंवलदीप कौर, सुरजन सिंह जस्सल, रीना, दमनप्रीत, सुनील सेठी, डी.पी. कपूर, अमन, मनप्रीत कौर उपस्थित थे।

मासिक एकत्रीकरण में विभिन्न रंगों की कविताओं की प्रस्तुति….सतविंदर कौर,ऐसोसिएट एडिटर, Key Line Times. चंडीगढ़, साहित्य विज्ञान केंद्र चंडीगढ़ के मासिक एकत्रीकरण में केंद्र की प्रिय सदस्य स्वर्गीय किरण बेदी जी को दो मिनट का मौन धारण कर याद किया गया, जो कुछ दिन पहले ही इस दुनिया से विदा हो गई थीं। केंद्र के प्रधान गुरदर्शन सिंह मावी जी ने उनके इस केंद्र से लंबे समय से जुड़े होने और उनके योगदान की सराहना की। राजविंदर सिंह गड्डू ने किरण बेदी के साथ अपने संबंधों का ज़िक्र किया। राजिंदर सिंह धीमान, दर्शन सिंह सिद्धू, सुरजीत सिंह धीर, पाल अजनबी ने कविताओं के माध्यम से किरण बेदी को श्रद्धांजलि अर्पित की। परम दुआबा, तरसेम राज, जसपाल कंवल, गुरदास सिंह दास ने गीतों के जरिए उनकी आत्मा को याद किया। प्रताप सिंह पारस, दर्शन तियूणा, डॉ. मनजीत बल्ल, दविंदर कौर ढिल्लों, बलविंदर ढिल्लों, लाभ सिंह लहिली, सुखदेव सिंह काहलों ने सामाजिक सरोकार से जुड़े गीत प्रस्तुत किए। हरिंदर कालड़ा ने भगवान शब्द की उत्पत्ति पर चर्चा की। भरेपूर सिंह, गुरजीत सिंह जंड, वरिंदर चठा, मलकीत बसरा, तिलक सेठी, परलाद सिंह, चरनजीत कलेर, मलकीत नागरा, सुरिंदर कुमार, सिंह गोसल, चरनजीत कौर बाट, मिक्की पासी, सुखविंदर रफीक ने विभिन्न विषयों को छूने वाली कविताएं पेश कीं। प्रधानमंत्री भाषण में डॉ. दीपक मनमोहन सिंह ने कार्यक्रम की सराहना करते हुए भविष्य में अपना सहयोग बनाए रखने का विश्वास दिलाया। डॉ. अवतार सिंह पतंग ने इस केंद्र की अन्य गतिविधियों पर प्रकाश डाला और सभी का धन्यवाद किया। मंच का संचालन दविंदर कौर ढिल्लों ने बहुत ही सलीके से किया। इस मौके पर हरजीत सिंह, डी.पी. सिंह, कंवलदीप कौर, सुरजन सिंह जस्सल, रीना, दमनप्रीत, सुनील सेठी, डी.पी. कपूर, अमन, मनप्रीत कौर उपस्थित थे।

साध्वी संगीतश्री चौदह नियम कार्यशाला*- जी के सानिध्य में व्रत चेतना जागरण का उपक्रम…कुसुम लुनिया शाहदरा, दिल्ली, श्रमण संस्कृति का मूलभूत अंग है व्रत। जैन , बौद्ध आदि परम्पराओ मे जीवन परिष्कार की दृष्टि से व्रतों को अतिरिक्त मूल्य दिया गया है।वर्तमान युग मे जैन परिवारों मे कुछ व्रतों को अनुष्ठान के रूप में स्वीकार किया जाता है। श्रावक की पहली भूमिका सम्यक दीक्षा होती है, दूसरी भूमिका में व्रत दीक्षा स्वीकार की जाती है।भगवान महावीर ने बारह व्रत रूप संयम धर्म का निरूपण गृहस्थों के लिए किया। दैनिक जीवन मे व्रतों का सीमाकरण करने की विधि है चौदह नियम , इन्हे अपने जीवन मे अवश्य धारण करना चाहिए। युगप्रधान आचार्य श्री महाश्रमण जी की विदुषी शिष्या साध्वी श्री संगीत श्री ने उपरोक्त प्रेरणा शाहदरा सभा के चातुर्मासिक स्थल ओसवाल भवन में चौदह नियम कार्यशाला को संबोधित करते हुए दी। इस अवसर पर साध्वीश्री कमल विभा जी ने प्रतिबोध देते हुए फरमाया कि दैनिक प्रवृतियों के सीमाकरण हेतु 1- सचित्त, 2-द्रव्य, 3-विगय छह, 4- पन्नी, 5- ताबूंल, 6- वस्त्र, 7- कुसुम, 8- वाहन, 9- शयन,10- विलेपन, 11-अब्रह्मचर्य, 12- दिशा, 13- स्नान, 14-भक्त ( आहार) का नियमित उपयोग हेतु व्रत प्रत्याख्यान त्याग आवश्यक है। इससे समुद्र के जल जितना पाप एक लोटे के जल में समा जाता है।सीमाकरण का बहुत महत्व है , अतः सभी को चौदह नियम स्वीकारने चाहिए। साध्वी श्री की प्रेरणा से अधिकाशं व्यक्तियों ने व्रतों को स्वीकार कर धन्यता का अनुभव किया। विशेष ज्ञातव्य रहे कि साध्वीश्री संगीत श्री जी, साध्वीश्री शान्तिप्रभाजी, साध्वीश्री कमल विभाजी और साध्वीश्री मुदिताश्री जी चारो साध्वियां विगत सात वर्षो से स्वयं वर्षी तप की साधना कर रही हैं । आपने शाहदरा क्षेत्र में भी सघन परिश्रम से श्रावक समाज की सार सम्भाल करके घर्म संघ की जडो को सिंचित किया है

साध्वी संगीतश्री चौदह नियम कार्यशाला*- जी के सानिध्य में व्रत चेतना जागरण का उपक्रम…कुसुम लुनिया शाहदरा, दिल्ली, श्रमण संस्कृति का मूलभूत अंग है व्रत। जैन , बौद्ध आदि परम्पराओ मे जीवन परिष्कार की दृष्टि से व्रतों को अतिरिक्त मूल्य दिया गया है।वर्तमान युग मे जैन परिवारों मे कुछ व्रतों को अनुष्ठान के रूप में स्वीकार किया जाता है। श्रावक की पहली भूमिका सम्यक दीक्षा होती है, दूसरी भूमिका में व्रत दीक्षा स्वीकार की जाती है।भगवान महावीर ने बारह व्रत रूप संयम धर्म का निरूपण गृहस्थों के लिए किया। दैनिक जीवन मे व्रतों का सीमाकरण करने की विधि है चौदह नियम , इन्हे अपने जीवन मे अवश्य धारण करना चाहिए। युगप्रधान आचार्य श्री महाश्रमण जी की विदुषी शिष्या साध्वी श्री संगीत श्री ने उपरोक्त प्रेरणा शाहदरा सभा के चातुर्मासिक स्थल ओसवाल भवन में चौदह नियम कार्यशाला को संबोधित करते हुए दी। इस अवसर पर साध्वीश्री कमल विभा जी ने प्रतिबोध देते हुए फरमाया कि दैनिक प्रवृतियों के सीमाकरण हेतु 1- सचित्त, 2-द्रव्य, 3-विगय छह, 4- पन्नी, 5- ताबूंल, 6- वस्त्र, 7- कुसुम, 8- वाहन, 9- शयन,10- विलेपन, 11-अब्रह्मचर्य, 12- दिशा, 13- स्नान, 14-भक्त ( आहार) का नियमित उपयोग हेतु व्रत प्रत्याख्यान त्याग आवश्यक है। इससे समुद्र के जल जितना पाप एक लोटे के जल में समा जाता है।सीमाकरण का बहुत महत्व है , अतः सभी को चौदह नियम स्वीकारने चाहिए। साध्वी श्री की प्रेरणा से अधिकाशं व्यक्तियों ने व्रतों को स्वीकार कर धन्यता का अनुभव किया। विशेष ज्ञातव्य रहे कि साध्वीश्री संगीत श्री जी, साध्वीश्री शान्तिप्रभाजी, साध्वीश्री कमल विभाजी और साध्वीश्री मुदिताश्री जी चारो साध्वियां विगत सात वर्षो से स्वयं वर्षी तप की साधना कर रही हैं । आपने शाहदरा क्षेत्र में भी सघन परिश्रम से श्रावक समाज की सार सम्भाल करके घर्म संघ की जडो को सिंचित किया है

आचार्यश्री ने की दिल्ली में सन् 2027 के चातुर्मास की घोषणा…सुरेंद्र मुनोत, ऐसोसिएट एडिटर, Key Line Times उपभोग–परिभोग का सीमाकरण आवश्यक : आचार्य महाश्रमण* *चातुर्मास की अर्ज करने दिल्ली से पहुंचे विधानसभा स्पीकर रामनिवास गोयल* *जैन एकता के बिंदुओं को शांतिदूत ने किया व्याख्यायित* *29.09.2024, रविवार, सूरत (गुजरात)* दिल्ली जैन समाज के लिए आज का दिन चिरस्मरणीय बन गया जब जैन श्वेतांबर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अधिशास्ता युगप्रधान आचार्य श्री महाश्रमण जी ने सन् 2027 चातुर्मास देश की राजधानी दिल्ली में करने की घोषणा की। इन दिनों संयम विहार चातुर्मास स्थल देश भर के श्रद्धालुओं से जनाकीर्ण बना हुआ है वही गत दो दिनों से राजधानी दिल्ली ने वृहद संख्या में श्रावक समाज गुरु चरणों में आगामी चातुर्मास की अर्ज के साथ उपस्थित है। जैन समाज के निवेदन के साथ मानों दिल्ली का सकल समाज जुड़ा हुआ है। इसका प्रत्यक्ष उदाहरण देखने को मिला जब दिल्ली विधान सभा अध्यक्ष श्री रामनिवास गोयल एवं राज्य सभा सांसद श्री लहरसिंह सिरोहिया भी दिल्ली वासियों के साथ इस अर्ज में शामिल होने हेतु आज उपस्थित थे। दिल्ली वासियों की मनोकामना को साकार रूप देते हुए आचार्यश्री ने जैसे ही सन् 2027 का चातुर्मास दिल्ली में करने की घोषणा की हजारों की संख्या में उपस्थित श्रद्धालुओं ने जय जय ज्योतिचरण के नारों से परिसर को गुंजायमान कर दिया। पूर्व में आचार्यश्री का सन् 2025 का चतुर्मास अहमदाबाद, सन् 2026 का लाडनूं (राजस्थान) में घोषित है इसी कड़ी में अब दिल्ली भी जुड़ गया है। महावीर समवसरण में आगम व्याख्या के अंतर्गत मंगल प्रवचन में धर्म देशना देते हुए आचार्यश्री ने कहा– व्यक्ति के भीतर में अनेक संज्ञाएँ व वृतियां होती है, दुर्वृतियाँ व सद्वृतियाँ भी। गुस्सा, अहंकार, लोभ आदि दुर्वृतियों की श्रेणी में व संतोष, शांति व निर्लोभता सही वृत्तियों की श्रेणी में आते है। वर्तमान में साधु साध्वियों में भी पूर्ण कषाय का विलय नहीं होता पर वे सुप्त अवस्था में रहते हैं, कभी अल्प व कभी ज्यादा। परिग्रह की बुद्धि का त्याग करने वाला परिग्रह का त्याग कर देता है। परिग्रह के छूटने के साथ उसका ममत्व व परिग्रह भी कम हो जाता है, भीतरी ममत्व छूटने से बाहरी ममत्व भी छूट जाता है। दुर्वृतियों के कारण व्यक्ति अपराध में भी चला जा सकता है। गरीबी भी उसका एक निमित्त बन सकती है। उपादान मूल व निमित उसका कारण है। राग-द्वेष का निमित मिल जाने से ममत्व की वृद्धि हो जाती है। व्यक्ति इच्छाओं का उपभोग–परिभोग का सीमाकरण करे यह आवश्यक है। बारह व्रत हमारी जीवन शैली को परिस्कृत बना देता है। व्यक्ति के भीतर अनासक्ति की चेतना का विकास हो। भक्तामर के एक श्लोक का उल्लेख करते हुए गुरुदेव ने कहा कि भक्तामर स्तोत्र जैन धर्म का प्रसिद्ध स्तोत्र। जैन एकता के कई बिंदुओं में एक भक्तामर है। नवकार महामंत्र सभी स्वीकार करते है। श्वेतांबर हो या दिगंबर परंपरा भक्तामर दोनो अम्नायाओं में मान्य है। यह जैन एकता का तत्व है। इसी प्रकार तत्वार्थ सूत्र जो उमास्वाति द्वारा लिखित है। सैद्धांतिक ग्रंथ है जो दोनों परंपराओं में मान्य है। भगवान महावीर की निर्वाण शताब्दी आज से लगभग 50 वर्ष पूर्व दिल्ली में वृहद रूप में मनाई गई थी। उस समय में जैन शासन की एकता का एक रूप सामने आया था। एक ग्रंथ श्रमण सुत्तम, जैन प्रतीक एवं जैन ध्वज का यह पचरंगा रूप सभी उस समय सामने आए थे। वर्तमान में भी महावीर जयंती का समारोह सकल संप्रदायों में एक साथ मनाया जाता है। संवतसरी और दसलक्षण पर्व के पश्चात क्षमापना पर्व भी एक साथ मनाया जाता है। कार्यक्रम में साध्वीप्रमुखा श्री विश्रुतविभा जी ने सारगर्भित वक्तव्य प्रदान किया। सूरत के विधायक श्री संदीप देसाई, श्री चन्द्र किशोर झा, श्री अशोक कुमार बैद ने अपने विचार व्यक्त किए। तेरापंथ किशोर मंडल सूरत के सदस्यों ने चौबीसी के गीत का संगान किया। साथ ही बारडोली की श्रीमति ललिता गणेशलाला कुमठ ने 41 दिन की तपस्या का प्रत्याख्यान किया। दिल्ली पधारने के संदर्भ में दिल्ली विधानसभा स्पीकर श्री रामनिवास गोयल ने आचार्य श्री से दिल्ली पधारने हेतु अपने विचारों की अभिव्यक्ति दी एवं दिल्ली में चातुर्मास हेतु अर्ज की। राज्यसभा सांसद श्री लहरसिंह सिरोहिया, पंजाब केसरी की चेयर पर्सन श्रीमती किरण चोपड़ा, श्री सुखराज सेठिया, तेरापंथ महासभा अध्यक्ष श्री मनसुखलाल सेठिया आदि दिल्ली से समागत गणमान्य वक्ताओं ने भी अपना निवेदन व्यक्त किया।

आचार्यश्री ने की दिल्ली में सन् 2027 के चातुर्मास की घोषणा…सुरेंद्र मुनोत, ऐसोसिएट एडिटर, Key Line Times उपभोग–परिभोग का सीमाकरण आवश्यक : आचार्य महाश्रमण* *चातुर्मास की अर्ज करने दिल्ली से पहुंचे विधानसभा स्पीकर रामनिवास गोयल* *जैन एकता के बिंदुओं को शांतिदूत ने किया व्याख्यायित* *29.09.2024, रविवार, सूरत (गुजरात)* दिल्ली जैन समाज के लिए आज का दिन चिरस्मरणीय बन गया जब जैन श्वेतांबर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अधिशास्ता युगप्रधान आचार्य श्री महाश्रमण जी ने सन् 2027 चातुर्मास देश की राजधानी दिल्ली में करने की घोषणा की। इन दिनों संयम विहार चातुर्मास स्थल देश भर के श्रद्धालुओं से जनाकीर्ण बना हुआ है वही गत दो दिनों से राजधानी दिल्ली ने वृहद संख्या में श्रावक समाज गुरु चरणों में आगामी चातुर्मास की अर्ज के साथ उपस्थित है। जैन समाज के निवेदन के साथ मानों दिल्ली का सकल समाज जुड़ा हुआ है। इसका प्रत्यक्ष उदाहरण देखने को मिला जब दिल्ली विधान सभा अध्यक्ष श्री रामनिवास गोयल एवं राज्य सभा सांसद श्री लहरसिंह सिरोहिया भी दिल्ली वासियों के साथ इस अर्ज में शामिल होने हेतु आज उपस्थित थे। दिल्ली वासियों की मनोकामना को साकार रूप देते हुए आचार्यश्री ने जैसे ही सन् 2027 का चातुर्मास दिल्ली में करने की घोषणा की हजारों की संख्या में उपस्थित श्रद्धालुओं ने जय जय ज्योतिचरण के नारों से परिसर को गुंजायमान कर दिया। पूर्व में आचार्यश्री का सन् 2025 का चतुर्मास अहमदाबाद, सन् 2026 का लाडनूं (राजस्थान) में घोषित है इसी कड़ी में अब दिल्ली भी जुड़ गया है। महावीर समवसरण में आगम व्याख्या के अंतर्गत मंगल प्रवचन में धर्म देशना देते हुए आचार्यश्री ने कहा– व्यक्ति के भीतर में अनेक संज्ञाएँ व वृतियां होती है, दुर्वृतियाँ व सद्वृतियाँ भी। गुस्सा, अहंकार, लोभ आदि दुर्वृतियों की श्रेणी में व संतोष, शांति व निर्लोभता सही वृत्तियों की श्रेणी में आते है। वर्तमान में साधु साध्वियों में भी पूर्ण कषाय का विलय नहीं होता पर वे सुप्त अवस्था में रहते हैं, कभी अल्प व कभी ज्यादा। परिग्रह की बुद्धि का त्याग करने वाला परिग्रह का त्याग कर देता है। परिग्रह के छूटने के साथ उसका ममत्व व परिग्रह भी कम हो जाता है, भीतरी ममत्व छूटने से बाहरी ममत्व भी छूट जाता है। दुर्वृतियों के कारण व्यक्ति अपराध में भी चला जा सकता है। गरीबी भी उसका एक निमित्त बन सकती है। उपादान मूल व निमित उसका कारण है। राग-द्वेष का निमित मिल जाने से ममत्व की वृद्धि हो जाती है। व्यक्ति इच्छाओं का उपभोग–परिभोग का सीमाकरण करे यह आवश्यक है। बारह व्रत हमारी जीवन शैली को परिस्कृत बना देता है। व्यक्ति के भीतर अनासक्ति की चेतना का विकास हो। भक्तामर के एक श्लोक का उल्लेख करते हुए गुरुदेव ने कहा कि भक्तामर स्तोत्र जैन धर्म का प्रसिद्ध स्तोत्र। जैन एकता के कई बिंदुओं में एक भक्तामर है। नवकार महामंत्र सभी स्वीकार करते है। श्वेतांबर हो या दिगंबर परंपरा भक्तामर दोनो अम्नायाओं में मान्य है। यह जैन एकता का तत्व है। इसी प्रकार तत्वार्थ सूत्र जो उमास्वाति द्वारा लिखित है। सैद्धांतिक ग्रंथ है जो दोनों परंपराओं में मान्य है। भगवान महावीर की निर्वाण शताब्दी आज से लगभग 50 वर्ष पूर्व दिल्ली में वृहद रूप में मनाई गई थी। उस समय में जैन शासन की एकता का एक रूप सामने आया था। एक ग्रंथ श्रमण सुत्तम, जैन प्रतीक एवं जैन ध्वज का यह पचरंगा रूप सभी उस समय सामने आए थे। वर्तमान में भी महावीर जयंती का समारोह सकल संप्रदायों में एक साथ मनाया जाता है। संवतसरी और दसलक्षण पर्व के पश्चात क्षमापना पर्व भी एक साथ मनाया जाता है। कार्यक्रम में साध्वीप्रमुखा श्री विश्रुतविभा जी ने सारगर्भित वक्तव्य प्रदान किया। सूरत के विधायक श्री संदीप देसाई, श्री चन्द्र किशोर झा, श्री अशोक कुमार बैद ने अपने विचार व्यक्त किए। तेरापंथ किशोर मंडल सूरत के सदस्यों ने चौबीसी के गीत का संगान किया। साथ ही बारडोली की श्रीमति ललिता गणेशलाला कुमठ ने 41 दिन की तपस्या का प्रत्याख्यान किया। दिल्ली पधारने के संदर्भ में दिल्ली विधानसभा स्पीकर श्री रामनिवास गोयल ने आचार्य श्री से दिल्ली पधारने हेतु अपने विचारों की अभिव्यक्ति दी एवं दिल्ली में चातुर्मास हेतु अर्ज की। राज्यसभा सांसद श्री लहरसिंह सिरोहिया, पंजाब केसरी की चेयर पर्सन श्रीमती किरण चोपड़ा, श्री सुखराज सेठिया, तेरापंथ महासभा अध्यक्ष श्री मनसुखलाल सेठिया आदि दिल्ली से समागत गणमान्य वक्ताओं ने भी अपना निवेदन व्यक्त किया।

आचार्यश्री महाश्रमणजी ने दान की गतियों को भी किया व्याख्यायित….सुरेंद्र मुनोत, ऐसोसिएट एडिटर, Key Line Times वेसु, सूरत (गुजरात), ताप्ती नदी के तट पर बसा सूरत शहर भारत के पश्चिम भाग में होने के कारण अरब सागर से भी अति निकट है। इस कारण यहां के वातावरण में भी समुद्रता की निकटता वाली स्थिति सहज ही देखने को मिलती है। बरसात न हो तो उमस भरी गर्मी लोगों को बेहाल करती है और बरसात हो जाए तो वह सामान्यतया लोगों को परेशान करती है। गत दो-तीन दिनों से बरसात का दौर जारी है। कभी तीव्र तो कभी मंद और कभी पूरी तरह बंद होने वाली बरसात लोगों को उमस वाली गर्मी से राहत प्रदान कर रही है। शुक्रवार को भी प्रायः पूरे दिन आसमान में बादल छाए रहे और यदा-कदा वर्षा का क्रम जारी रहा, किन्तु जन-जन का कल्याण करने वाले युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी का मंगल प्रवचन ही नहीं, श्रद्धालुओं व बाहर से आने वाले संघबद्ध लोगों को दर्शन, सेवा, उपासना पर मंगल आशीष देने का क्रम यथावत रहा। मानवता के मसीहा, जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अधिशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी ने शुक्रवार को महावीर समवसरण में उपस्थित जनता को अपनी अमृतवाणी का रसपान कराते हुए कहा कि आयारो आगम में बताया गया है कि गृहस्थ के जीवन काम और अर्थ दो तत्त्व होते हैं। धर्म और मोक्ष तत्त्व भी प्राप्त हो सकते हैं। काम और अर्थ रूपी मानव जीवन की दुपहिया गाड़ी पर धर्म और मोक्ष का अंकुश रहता है तो मानव जीवन की दुपहिया गाड़ी अच्छे ढंग से चल सकती है। अगर निरंकुश हो जाए, इस पर किसी प्रकार का नियंत्रण न हो तो मानव दुःखों के गर्त जाकर गिर सकता है। काम मानव जीवन का साध्य बन जाता है और उसका साधन बनता है अर्थ। ये दोनों आदमी के जीवन की सांसारिक बातें हो जाती हैं। गृहस्थ जीवन में आदमी अर्थ का अर्जन करता है और उसका उपयोग भी करता है। कोई भोग में उपयोग करता है तो कोई दान में भी उपयोग करता है। संस्कृत साहित्य में धन की तीन गतियां बताई गई हैं- दान, भोग और नाश। जो आदमी धन का न तो दान देता है और न ही भोग करता है तो उस अर्थ का नाश भी हो सकता है। मानव दान कहां देता है, यह विवेक की बात होती है। कोई सामाजिक कार्य में यथा विद्यालयों में, चिकित्सालयों में, गरीबों को, गौशाला, प्याऊ, रुग्णोें आदि की सेवा आदि में दान देना लौकिक दान है और सामाजिक क्षेत्र का दान होता है। इसमें आदमी की दयालुता प्रकाशित होती है। कहीं कोई आपराधिक गतिविधियों को चलाने में अर्थ को देता है। कोई-कोई आदमी धर्म आदि के कार्यों में दान करता है। धार्मिक गतिविधियों में दान देना बहुत अच्छी बात होती है। धार्मिक साहित्य के प्रकाशन आदि में भी दान दिया जाता है। आदमी खुद के जीवन को अच्छे ढंग से चलाने के लिए अर्थ का खर्च करता है, वह उसका भोग करता है। जो आदमी न दान करता है न ही भोग करता है, उसके अर्थ अर्थात् धन का कभी नाश भी हो सकता है। जो आदमी स्वयं को अमर के समान मानकर काम और अर्थ में आसक्ति करता है, उसके जीवन की दुपहिया गर्त की ओर जा सकती है। इसलिए अर्थ और काम पर धर्म व मोक्ष का अंकुश रखने का प्रयास करे, ताकि जीवन सुगति को प्राप्त हो सके। आचार्यश्री के मंगल प्रवचन के उपरान्त साध्वीवर्या साध्वी सम्बुद्धयशाजी ने भी श्रद्धालुओं को उद्बोधित किया। अनेक तपस्वियों ने अपनी-अपनी तपस्या का प्रत्याख्यान किया।

आचार्यश्री महाश्रमणजी ने दान की गतियों को भी किया व्याख्यायित….सुरेंद्र मुनोत, ऐसोसिएट एडिटर, Key Line Times वेसु, सूरत (गुजरात), ताप्ती नदी के तट पर बसा सूरत शहर भारत के पश्चिम भाग में होने के कारण अरब सागर से भी अति निकट है। इस कारण यहां के वातावरण में भी समुद्रता की निकटता वाली स्थिति सहज ही देखने को मिलती है। बरसात न हो तो उमस भरी गर्मी लोगों को बेहाल करती है और बरसात हो जाए तो वह सामान्यतया लोगों को परेशान करती है। गत दो-तीन दिनों से बरसात का दौर जारी है। कभी तीव्र तो कभी मंद और कभी पूरी तरह बंद होने वाली बरसात लोगों को उमस वाली गर्मी से राहत प्रदान कर रही है। शुक्रवार को भी प्रायः पूरे दिन आसमान में बादल छाए रहे और यदा-कदा वर्षा का क्रम जारी रहा, किन्तु जन-जन का कल्याण करने वाले युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी का मंगल प्रवचन ही नहीं, श्रद्धालुओं व बाहर से आने वाले संघबद्ध लोगों को दर्शन, सेवा, उपासना पर मंगल आशीष देने का क्रम यथावत रहा। मानवता के मसीहा, जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अधिशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी ने शुक्रवार को महावीर समवसरण में उपस्थित जनता को अपनी अमृतवाणी का रसपान कराते हुए कहा कि आयारो आगम में बताया गया है कि गृहस्थ के जीवन काम और अर्थ दो तत्त्व होते हैं। धर्म और मोक्ष तत्त्व भी प्राप्त हो सकते हैं। काम और अर्थ रूपी मानव जीवन की दुपहिया गाड़ी पर धर्म और मोक्ष का अंकुश रहता है तो मानव जीवन की दुपहिया गाड़ी अच्छे ढंग से चल सकती है। अगर निरंकुश हो जाए, इस पर किसी प्रकार का नियंत्रण न हो तो मानव दुःखों के गर्त जाकर गिर सकता है। काम मानव जीवन का साध्य बन जाता है और उसका साधन बनता है अर्थ। ये दोनों आदमी के जीवन की सांसारिक बातें हो जाती हैं। गृहस्थ जीवन में आदमी अर्थ का अर्जन करता है और उसका उपयोग भी करता है। कोई भोग में उपयोग करता है तो कोई दान में भी उपयोग करता है। संस्कृत साहित्य में धन की तीन गतियां बताई गई हैं- दान, भोग और नाश। जो आदमी धन का न तो दान देता है और न ही भोग करता है तो उस अर्थ का नाश भी हो सकता है। मानव दान कहां देता है, यह विवेक की बात होती है। कोई सामाजिक कार्य में यथा विद्यालयों में, चिकित्सालयों में, गरीबों को, गौशाला, प्याऊ, रुग्णोें आदि की सेवा आदि में दान देना लौकिक दान है और सामाजिक क्षेत्र का दान होता है। इसमें आदमी की दयालुता प्रकाशित होती है। कहीं कोई आपराधिक गतिविधियों को चलाने में अर्थ को देता है। कोई-कोई आदमी धर्म आदि के कार्यों में दान करता है। धार्मिक गतिविधियों में दान देना बहुत अच्छी बात होती है। धार्मिक साहित्य के प्रकाशन आदि में भी दान दिया जाता है। आदमी खुद के जीवन को अच्छे ढंग से चलाने के लिए अर्थ का खर्च करता है, वह उसका भोग करता है। जो आदमी न दान करता है न ही भोग करता है, उसके अर्थ अर्थात् धन का कभी नाश भी हो सकता है। जो आदमी स्वयं को अमर के समान मानकर काम और अर्थ में आसक्ति करता है, उसके जीवन की दुपहिया गर्त की ओर जा सकती है। इसलिए अर्थ और काम पर धर्म व मोक्ष का अंकुश रखने का प्रयास करे, ताकि जीवन सुगति को प्राप्त हो सके। आचार्यश्री के मंगल प्रवचन के उपरान्त साध्वीवर्या साध्वी सम्बुद्धयशाजी ने भी श्रद्धालुओं को उद्बोधित किया। अनेक तपस्वियों ने अपनी-अपनी तपस्या का प्रत्याख्यान किया।

अमृतवाणी स्वर संगम 2024 के EAST ZONE FINALE हुआ कोलकाता में….सुरेंद्र मुनोत, ऐसोसिएट एडिटर, Key Line Times कोलकाता, अमृतवाणी स्वर संगम 2024 के इस्ट जोन फिनाले 22-09-2024 को कोलकाता मे आयोजित हुआ। आयोजन मे सहयोगी के रूप में जैन श्वेताम्बर तेरापंथ सभा (कलकत्ता पूर्वांचल) ट्रस्ट का महनीय सहयोग मिला। पूर्वांचल सभा के मुख्य न्यासी श्री बाबुलाल जी गंघ, अध्यक्ष श्री संजय जी सिंघी के साथ उनकी पूरी टीम उपस्थित थीं। EAST ZONE के संयोजक श्री पंकज डोसी एवं श्री आलोक बरमेचा के साथ पूर्वांचल सभा की पूरी टीम का श्रम मुखर रहा। म्यूजिक टीम, साउण्ड सिस्टम बहुत अच्छा था। निर्णायक के रूप में संगीत विशेषज्ञ व्यक्तियों का सहयोग रहा। श्री सुशील जी हीरावत, श्री सुबोध जी छाज़ेड एवं श्री जगत जी कोठारी का उदारभाव सहयोग मिला। आप सबके सुंदर सहयोग ने आयोजन को सफलता प्रदान की। सबके प्रति हार्दिक आभार। समाज के महानुभावों की गरिमामय उपस्थिति ने आयोजन को सफल बनाया। अमृतवाणी स्वर संगम के सभी प्रतिभागियों की शानदार प्रस्तुति रही। सबके प्रति मंगलकामना। परिणाम इस प्रकार रहा- श्रद्धा गुजरानी, नौगाँव सलोनी आँचलिया, सलकिया अरिहन्त शामसुखा, कोलकाता, इन तीनों ने GRAND FINALE के लिए प्रवेश किया। कार्यक्रम में अभातेयुप के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री रमेश जी डागा, महामंत्री श्री अमित जी नाहटा, महासभा के कोषाध्यक्ष श्री मदन जी मरोठी, जैन विश्व भारती के सहमंत्री श्री नवीन जी बेंगानी, आचार्य तुलसी शांति प्रतिष्ठान की ट्रस्टी श्रीमती संगीता शामसुखा, अमृतवाणी के पूर्व अध्यक्ष श्री प्रकाश जी बैद, ट्रस्टी श्री रतन दूगड़, श्रीमती संगीता जी सेखानी, कोलकाता महानगर की विभिन्न संस्थाओं के पदाधिकारियों की गरिमामय उपस्थिति रही। व्यवस्थाओं में श्री नवीन बैंगानी का अच्छा सहयोग रहा। प्रत्यक्ष परोक्ष सभी सहयोगी महानुभावों के प्रति हार्दिक आभार। कार्यक्रम का कुशल संचालन स्वर संगम के राष्ट्रीय संयोजक श्री पन्ना लाल जी पुगलिया ने किया। अमृतवाणी परिवार

अमृतवाणी स्वर संगम 2024 के EAST ZONE FINALE हुआ कोलकाता में….सुरेंद्र मुनोत, ऐसोसिएट एडिटर, Key Line Times कोलकाता, अमृतवाणी स्वर संगम 2024 के इस्ट जोन फिनाले 22-09-2024 को कोलकाता मे आयोजित हुआ। आयोजन मे सहयोगी के रूप में जैन श्वेताम्बर तेरापंथ सभा (कलकत्ता पूर्वांचल) ट्रस्ट का महनीय सहयोग मिला। पूर्वांचल सभा के मुख्य न्यासी श्री बाबुलाल जी गंघ, अध्यक्ष श्री संजय जी सिंघी के साथ उनकी पूरी टीम उपस्थित थीं। EAST ZONE के संयोजक श्री पंकज डोसी एवं श्री आलोक बरमेचा के साथ पूर्वांचल सभा की पूरी टीम का श्रम मुखर रहा। म्यूजिक टीम, साउण्ड सिस्टम बहुत अच्छा था। निर्णायक के रूप में संगीत विशेषज्ञ व्यक्तियों का सहयोग रहा। श्री सुशील जी हीरावत, श्री सुबोध जी छाज़ेड एवं श्री जगत जी कोठारी का उदारभाव सहयोग मिला। आप सबके सुंदर सहयोग ने आयोजन को सफलता प्रदान की। सबके प्रति हार्दिक आभार। समाज के महानुभावों की गरिमामय उपस्थिति ने आयोजन को सफल बनाया। अमृतवाणी स्वर संगम के सभी प्रतिभागियों की शानदार प्रस्तुति रही। सबके प्रति मंगलकामना। परिणाम इस प्रकार रहा- श्रद्धा गुजरानी, नौगाँव सलोनी आँचलिया, सलकिया अरिहन्त शामसुखा, कोलकाता, इन तीनों ने GRAND FINALE के लिए प्रवेश किया। कार्यक्रम में अभातेयुप के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री रमेश जी डागा, महामंत्री श्री अमित जी नाहटा, महासभा के कोषाध्यक्ष श्री मदन जी मरोठी, जैन विश्व भारती के सहमंत्री श्री नवीन जी बेंगानी, आचार्य तुलसी शांति प्रतिष्ठान की ट्रस्टी श्रीमती संगीता शामसुखा, अमृतवाणी के पूर्व अध्यक्ष श्री प्रकाश जी बैद, ट्रस्टी श्री रतन दूगड़, श्रीमती संगीता जी सेखानी, कोलकाता महानगर की विभिन्न संस्थाओं के पदाधिकारियों की गरिमामय उपस्थिति रही। व्यवस्थाओं में श्री नवीन बैंगानी का अच्छा सहयोग रहा। प्रत्यक्ष परोक्ष सभी सहयोगी महानुभावों के प्रति हार्दिक आभार। कार्यक्रम का कुशल संचालन स्वर संगम के राष्ट्रीय संयोजक श्री पन्ना लाल जी पुगलिया ने किया। अमृतवाणी परिवार

आचार्य महाश्रमणजी ने अपने प्रवचनों मे कहा कि अच्छी गति-प्रगति कर रहा है जैन विश्व भारती …सुरेंद्र मुनोत, ऐसोसिएट एडिटर, Key Line Times वेसु, सूरत (गुजरात) डामण्ड सिटि सूरत में भव्य चतुर्मास कर रहे जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अधिशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि आचार्यश्री महाश्रमणजी की मंगल सन्निधि में अभी भी निरंतर संस्थाओं के अधिवेशन का क्रम भी जारी है तो उसके साथ-साथ देश के विभिन्न हिस्सों से श्रद्धालु जनता संघबद्ध रूप में उपस्थित होकर पावन आशीर्वाद प्राप्त कर रही है। गुरुवार को आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में एक ओर जहां जैन विश्व भारती के द्विदिवसीय वार्षिक अधिवेशन का उपक्रम रहा तो दूसरी ओर सूरत के लगभग 28 विद्यालयों के विद्यार्थियों ने उपस्थित होकर आचार्यश्री से पावन आशीर्वाद प्राप्त किया। गुरुवार को महावीर समवसरण से भगवान महावीर के प्रतिनिधि आचार्यश्री महाश्रमणजी ने पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि आयारो आगम में कहा गया है कि आदमी कामासक्त होता है, कामनाओं से ग्रस्त होता है। ऐसा आदमी वैर को बढ़ाने वाला होता है। अपने आपको दुःखी बनाना, पाप कर्मों का बंधन करना भी स्वयं के प्रति वैर बढ़ा लेने की बात होती है। कामनाओं की पूर्ति होते ही आगे की कामना हो जाती है। यदि कामनाओं की पूर्ति नहीं होती आदमी के मन में आक्रोश भी आ सकता है। किसी आदमी में सत्ता प्राप्ति की कामना, किसी को धन प्राप्ति की कामना, किसी को यश-ख्याति की कामना आदि-आदि अनेक प्रकार की कामनाएं पनपती रहती हैं। कामनाओं का होना ही दुःख का कारण होता है। कामनाओं के कारण होने वाले दुःख से बचने व उसे कम करने के लिए मानव को अपनी कामनाओं को कम करने का प्रयास करना चाहिए। आदमी अपने जीवन में अच्छे कार्य में पुरुषार्थ करे और उन अच्छे कार्यों के द्वारा भौतिक पदार्थों की कामना नहीं करना चाहिए। कई बार पुरुषार्थ के बाद भी प्रतिफल प्राप्त हो जाए, यह कोई जरूरी नहीं होता। इससे भी आदमी को दुःखी नहीं बनना चाहिए। कर्म करने के बाद भी यदि मनोनुकूल फल नहीं भी मिले तो भी आदमी को समता व शांति में रहने का प्रयास करना चाहिए। आदमी को अपने पुरुषार्थ में कमी नहीं रखना चाहिए, परिणाम हाथ की बात नहीं। साधु-साध्वी भी यदि कई लोगों पर ध्यान देने के बाद भी एक भी मुमुक्षु तैयार नहीं कर सके तो सोचना चाहिए कि सबको जोड़ लेना और धर्म से जोड़ देना मेरे क्षेत्र की बात नहीं। इसलिए आदमी को अनपेक्षित कामनाओं से बचने का प्रयास करना चाहिए। आदमी को जीवन में पुरुषार्थ करने का प्रयास करना चाहिए। कामना भी हो तो आत्मकल्याण की कामना हो तो जीवन का अच्छा क्रम बन सकता है। आचार्यश्री की अनुज्ञा से मुनि उदितकुमारजी ने तेरापंथ दर्शन और तत्त्वज्ञान के संदर्भ में साध्य और साधन पर अपनी विचाराभिव्यक्ति दी। आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में जैन विश्व भारती का द्विदिवसीय वार्षिक अधिवेशन का आज मंचीय उपक्रम भी था। इस क्रम में जैन विश्व भारती के अध्यक्ष श्री अमरचंद लुंकड़ ने अपनी भावाभिव्यक्ति देते हुए गत दो वर्ष में हुए जैन विश्व भारती के गति-प्रगति का विवरण वीडियो के माध्यम से प्रस्तुत किया। जैन विश्व भारती के मंत्री श्री सलिल लोढ़ा ने अपनी अभिव्यक्ति दी। जैन विश्व भारती के आध्यात्मिक पर्यवेक्षक मुनि कीर्तिकुमारजी ने अपनी विचाराभिव्यक्ति दी। इस अवसर पर शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ से संबद्ध विविध संस्थाएं हैं, उनमें एक है जैन विश्व भारती। इस संस्था का जन्म आचार्यश्री तुलसी के समय हुआ था। यह संस्था अपनी शताब्दी के उत्तर्राध में चल रही है। इस संस्था ने विकास किया है। कई बार भौतिक सहयोग आध्यात्मिक गतिविधियों के लिए आवश्यक होता है। गुरुदेव तुलसी तो वहां लगातार दो-दो चतुर्मास करते थे। इसमें मान्य विश्वविद्यालय विकसित हुआ है। वहां एक आश्रम का-सा रूप है। वहां योगक्षेम वर्ष का आयोजन हुआ था। आचार्यश्री तुलसी ने जैन विश्व भारती को कामधेनु कहा था। शिक्षा, शोध, साधना, साहित्य आदि गतिविधियां खूब आगे बढ़ती रहें। मैंने तो वहां योगक्षेम वर्ष का निर्धारण भी कर दिया है। खूब अच्छा विकास होता रहे। आचार्यश्री के मंगल आशीर्वचन के उपरान्त साध्वी स्तुतिप्रभाजी ने गीत का संगान किया। सूरत के लगभग 28 स्कूल के विद्यार्थियों ने ‘बदले युग की धारा’ गीत का संगान किया। आचार्यश्री ने इस संदर्भ में आशीष प्रदान करते हुए कहा कि शिक्षा के साथ अच्छे संस्कार भी विद्यार्थियों को प्रदान किया जाता रहे। विद्यार्थियों के जीवन में अच्छे गुणों और संस्कारों का विकास होता रहे।

आचार्य महाश्रमणजी ने अपने प्रवचनों मे कहा कि अच्छी गति-प्रगति कर रहा है जैन विश्व भारती …सुरेंद्र मुनोत, ऐसोसिएट एडिटर, Key Line Times वेसु, सूरत (गुजरात) डामण्ड सिटि सूरत में भव्य चतुर्मास कर रहे जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अधिशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि आचार्यश्री महाश्रमणजी की मंगल सन्निधि में अभी भी निरंतर संस्थाओं के अधिवेशन का क्रम भी जारी है तो उसके साथ-साथ देश के विभिन्न हिस्सों से श्रद्धालु जनता संघबद्ध रूप में उपस्थित होकर पावन आशीर्वाद प्राप्त कर रही है। गुरुवार को आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में एक ओर जहां जैन विश्व भारती के द्विदिवसीय वार्षिक अधिवेशन का उपक्रम रहा तो दूसरी ओर सूरत के लगभग 28 विद्यालयों के विद्यार्थियों ने उपस्थित होकर आचार्यश्री से पावन आशीर्वाद प्राप्त किया। गुरुवार को महावीर समवसरण से भगवान महावीर के प्रतिनिधि आचार्यश्री महाश्रमणजी ने पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि आयारो आगम में कहा गया है कि आदमी कामासक्त होता है, कामनाओं से ग्रस्त होता है। ऐसा आदमी वैर को बढ़ाने वाला होता है। अपने आपको दुःखी बनाना, पाप कर्मों का बंधन करना भी स्वयं के प्रति वैर बढ़ा लेने की बात होती है। कामनाओं की पूर्ति होते ही आगे की कामना हो जाती है। यदि कामनाओं की पूर्ति नहीं होती आदमी के मन में आक्रोश भी आ सकता है। किसी आदमी में सत्ता प्राप्ति की कामना, किसी को धन प्राप्ति की कामना, किसी को यश-ख्याति की कामना आदि-आदि अनेक प्रकार की कामनाएं पनपती रहती हैं। कामनाओं का होना ही दुःख का कारण होता है। कामनाओं के कारण होने वाले दुःख से बचने व उसे कम करने के लिए मानव को अपनी कामनाओं को कम करने का प्रयास करना चाहिए। आदमी अपने जीवन में अच्छे कार्य में पुरुषार्थ करे और उन अच्छे कार्यों के द्वारा भौतिक पदार्थों की कामना नहीं करना चाहिए। कई बार पुरुषार्थ के बाद भी प्रतिफल प्राप्त हो जाए, यह कोई जरूरी नहीं होता। इससे भी आदमी को दुःखी नहीं बनना चाहिए। कर्म करने के बाद भी यदि मनोनुकूल फल नहीं भी मिले तो भी आदमी को समता व शांति में रहने का प्रयास करना चाहिए। आदमी को अपने पुरुषार्थ में कमी नहीं रखना चाहिए, परिणाम हाथ की बात नहीं। साधु-साध्वी भी यदि कई लोगों पर ध्यान देने के बाद भी एक भी मुमुक्षु तैयार नहीं कर सके तो सोचना चाहिए कि सबको जोड़ लेना और धर्म से जोड़ देना मेरे क्षेत्र की बात नहीं। इसलिए आदमी को अनपेक्षित कामनाओं से बचने का प्रयास करना चाहिए। आदमी को जीवन में पुरुषार्थ करने का प्रयास करना चाहिए। कामना भी हो तो आत्मकल्याण की कामना हो तो जीवन का अच्छा क्रम बन सकता है। आचार्यश्री की अनुज्ञा से मुनि उदितकुमारजी ने तेरापंथ दर्शन और तत्त्वज्ञान के संदर्भ में साध्य और साधन पर अपनी विचाराभिव्यक्ति दी। आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में जैन विश्व भारती का द्विदिवसीय वार्षिक अधिवेशन का आज मंचीय उपक्रम भी था। इस क्रम में जैन विश्व भारती के अध्यक्ष श्री अमरचंद लुंकड़ ने अपनी भावाभिव्यक्ति देते हुए गत दो वर्ष में हुए जैन विश्व भारती के गति-प्रगति का विवरण वीडियो के माध्यम से प्रस्तुत किया। जैन विश्व भारती के मंत्री श्री सलिल लोढ़ा ने अपनी अभिव्यक्ति दी। जैन विश्व भारती के आध्यात्मिक पर्यवेक्षक मुनि कीर्तिकुमारजी ने अपनी विचाराभिव्यक्ति दी। इस अवसर पर शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ से संबद्ध विविध संस्थाएं हैं, उनमें एक है जैन विश्व भारती। इस संस्था का जन्म आचार्यश्री तुलसी के समय हुआ था। यह संस्था अपनी शताब्दी के उत्तर्राध में चल रही है। इस संस्था ने विकास किया है। कई बार भौतिक सहयोग आध्यात्मिक गतिविधियों के लिए आवश्यक होता है। गुरुदेव तुलसी तो वहां लगातार दो-दो चतुर्मास करते थे। इसमें मान्य विश्वविद्यालय विकसित हुआ है। वहां एक आश्रम का-सा रूप है। वहां योगक्षेम वर्ष का आयोजन हुआ था। आचार्यश्री तुलसी ने जैन विश्व भारती को कामधेनु कहा था। शिक्षा, शोध, साधना, साहित्य आदि गतिविधियां खूब आगे बढ़ती रहें। मैंने तो वहां योगक्षेम वर्ष का निर्धारण भी कर दिया है। खूब अच्छा विकास होता रहे। आचार्यश्री के मंगल आशीर्वचन के उपरान्त साध्वी स्तुतिप्रभाजी ने गीत का संगान किया। सूरत के लगभग 28 स्कूल के विद्यार्थियों ने ‘बदले युग की धारा’ गीत का संगान किया। आचार्यश्री ने इस संदर्भ में आशीष प्रदान करते हुए कहा कि शिक्षा के साथ अच्छे संस्कार भी विद्यार्थियों को प्रदान किया जाता रहे। विद्यार्थियों के जीवन में अच्छे गुणों और संस्कारों का विकास होता रहे।

फारबिसगंज तेरापंथ भवन में एक दिवसीय कार्यशाला का आयोजन…मीनू धाडेंवा, जिला संवाददाता, Key LINE TIMES फारबिसगंज, फारबिसगंज के तेरापंथ भवन मे आचार्य श्री महाश्रमण जी की विदुषी सुशिष्या साध्वी श्री स्वर्णरेखा जी ठाणा चार की सन्निधि में नेपाल बिहार झारखंड स्तरीय एक दिवसीय कार्यकर्ता प्रशिक्षण कार्यशाला का आयोजन किया गया। तेरापंथ धर्म संघ की मुख्य संस्था है जैन श्वेतांबर तेरापंथी महासभा। इसी संस्था शिरोमणि महासभा के तत्वाधान में एक दिवसीय कार्यकर्ता प्रशिक्षण कार्यशाला का आयोजन स्थानीय फारबिसगंज सभा के द्वारा करवाया गया। इस कार्यशाला के मुख्य अतिथि महासभा के अध्यक्ष मनसुखदास जी सेठिया, सभा के पूर्व अध्यक्ष एवं पंच मंडल के सदस्य सुरेश जी गोयल उपाध्यक्ष बसंत जी सुराणा, उपाध्यक्ष विजयराज जी चोपड़ा एवं उनकी टीम थी। इस कार्यशाला में नेपाल बिहार झारखंड तीनो क्षेत्रों से करीबन 34 शहरो के अध्यक्ष मंत्री एवं अन्य पदाधिकारी गण के साथ लगभग 150 व्यक्तियों ने इसमें भाग लिया। कार्यकर्ता प्रशिक्षण कार्यशाला का कार्यक्रम तीन सत्रों में चला साध्वी श्री स्वर्णरेखाजी ने अपने मंगल उद्बोधन में बताया कि कार्यकर्ता के गुणो की व्याख्या करते हुए बताया कि कार्यकर्ता में केकड़ावृति नहीं जटायु वृत्ति होनी चाहिए। कार्यकर्ता को पदलिप्सा त्याग कर संघसेवा में हमेशा तैयार रहना चाहिए। आचार्य श्री भिक्षु ,आचार्य श्री तुलसी ,आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी एवं आचार्य श्री महाश्रमण जी सभी ने सफल कार्यकर्ता होने के लिए एक ही मंत्र दिया है वह है अंग्रेजी के पांच शब्द।एक सफल कार्यकर्ता “आई “को त्याग कर “वी “में आए और “ईगो” को अपने जीवन से हटाते हुए “लव ” की “लाईट” से दुनिया को प्रकाशित करें। एक कार्यकर्ता अपना कार्य सुरंग से करके निकल जाता है। और किसी को पता भी नहीं चलता है यही एक सच्चे कार्यकर्ता की पहचान है। फारबिसगंज समाज की तरफ से एक बहुत ही सुंदर प्रस्तुति प्रस्तुत की गई। जिसमें स्थानीय सभा ने स्वागत गीतिका का संगान किया। तेरापंथ युवक परिषद में फूलों के माध्यम से कार्यकर्ता में क्या गुण होने चाहिए इस पर एक परिसंवाद प्रस्तुत किया स्थानीय महिला मंडल एवं कन्या मंडल ने सांची कहूं तोरे आवन से हमारी नगरी में आई बहार अध्यक्ष जी ….स्वागत गीतिका के द्वारा सभी का मन मोह लिया। महासभा के अध्यक्ष मनसुख दास जी सेठिया ने सभा के करणीय कार्यों के बारे में चर्चा की। । संघ निर्देशिका पुस्तक का पठन करके हम सभा के सभी नियमों को भलीभांति से जान सकते हैं। महासभा के संवाहक अनूप जी बोथरा ने बिहार क्षेत्र में महासभा के कार्यों की जानकारी दी। महासभा के संवाहक नेमचंदजी ने सभा की नियमावली का वाचन किया।साध्वी श्रीस्वर्ण रेखा जी ने मंगल पाठ के द्वारा इस कार्यशाला का समापन करवाया। संवाददाता मीनू धाड़ेवा

फारबिसगंज तेरापंथ भवन में एक दिवसीय कार्यशाला का आयोजन…मीनू धाडेंवा, जिला संवाददाता, Key LINE TIMES फारबिसगंज, फारबिसगंज के तेरापंथ भवन मे आचार्य श्री महाश्रमण जी की विदुषी सुशिष्या साध्वी श्री स्वर्णरेखा जी ठाणा चार की सन्निधि में नेपाल बिहार झारखंड स्तरीय एक दिवसीय कार्यकर्ता प्रशिक्षण कार्यशाला का आयोजन किया गया। तेरापंथ धर्म संघ की मुख्य संस्था है जैन श्वेतांबर तेरापंथी महासभा। इसी संस्था शिरोमणि महासभा के तत्वाधान में एक दिवसीय कार्यकर्ता प्रशिक्षण कार्यशाला का आयोजन स्थानीय फारबिसगंज सभा के द्वारा करवाया गया। इस कार्यशाला के मुख्य अतिथि महासभा के अध्यक्ष मनसुखदास जी सेठिया, सभा के पूर्व अध्यक्ष एवं पंच मंडल के सदस्य सुरेश जी गोयल उपाध्यक्ष बसंत जी सुराणा, उपाध्यक्ष विजयराज जी चोपड़ा एवं उनकी टीम थी। इस कार्यशाला में नेपाल बिहार झारखंड तीनो क्षेत्रों से करीबन 34 शहरो के अध्यक्ष मंत्री एवं अन्य पदाधिकारी गण के साथ लगभग 150 व्यक्तियों ने इसमें भाग लिया। कार्यकर्ता प्रशिक्षण कार्यशाला का कार्यक्रम तीन सत्रों में चला साध्वी श्री स्वर्णरेखाजी ने अपने मंगल उद्बोधन में बताया कि कार्यकर्ता के गुणो की व्याख्या करते हुए बताया कि कार्यकर्ता में केकड़ावृति नहीं जटायु वृत्ति होनी चाहिए। कार्यकर्ता को पदलिप्सा त्याग कर संघसेवा में हमेशा तैयार रहना चाहिए। आचार्य श्री भिक्षु ,आचार्य श्री तुलसी ,आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी एवं आचार्य श्री महाश्रमण जी सभी ने सफल कार्यकर्ता होने के लिए एक ही मंत्र दिया है वह है अंग्रेजी के पांच शब्द।एक सफल कार्यकर्ता “आई “को त्याग कर “वी “में आए और “ईगो” को अपने जीवन से हटाते हुए “लव ” की “लाईट” से दुनिया को प्रकाशित करें। एक कार्यकर्ता अपना कार्य सुरंग से करके निकल जाता है। और किसी को पता भी नहीं चलता है यही एक सच्चे कार्यकर्ता की पहचान है। फारबिसगंज समाज की तरफ से एक बहुत ही सुंदर प्रस्तुति प्रस्तुत की गई। जिसमें स्थानीय सभा ने स्वागत गीतिका का संगान किया। तेरापंथ युवक परिषद में फूलों के माध्यम से कार्यकर्ता में क्या गुण होने चाहिए इस पर एक परिसंवाद प्रस्तुत किया स्थानीय महिला मंडल एवं कन्या मंडल ने सांची कहूं तोरे आवन से हमारी नगरी में आई बहार अध्यक्ष जी ….स्वागत गीतिका के द्वारा सभी का मन मोह लिया। महासभा के अध्यक्ष मनसुख दास जी सेठिया ने सभा के करणीय कार्यों के बारे में चर्चा की। । संघ निर्देशिका पुस्तक का पठन करके हम सभा के सभी नियमों को भलीभांति से जान सकते हैं। महासभा के संवाहक अनूप जी बोथरा ने बिहार क्षेत्र में महासभा के कार्यों की जानकारी दी। महासभा के संवाहक नेमचंदजी ने सभा की नियमावली का वाचन किया।साध्वी श्रीस्वर्ण रेखा जी ने मंगल पाठ के द्वारा इस कार्यशाला का समापन करवाया। संवाददाता मीनू धाड़ेवा

*-आचार्यश्री महाश्रमणजी ने लोभ को बताया पाप का बाप, लोभ को छोड़ने को किया अभिप्रेरित…सुरेंद्र मुनोत, ऐसोसिएट एडिटर, Key Line Times वेसु, सूरत (गुजरात) , सूरत शहर में चतुर्मास करने वाले जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता, महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी की मंगल सन्निधि में अनेकानेक कार्यक्रम, अधिवेशन, सेमिनार, गोष्ठी आदि के साथ-साथ अनेक उपक्रम भी संचालित हो रहे हैं। आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में चतुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति के अंतर्गत स्थानीय तेरापंथ किशोर मण्डल द्वारा दोदिवसीय तेरापंथ हस्तकला उत्सव का समायोजन किया गया। आचार्यश्री के मंगल आशीष से प्रारम्भ हुए इस उत्सव को दो दिनों में सैंकड़ों लोगों ने देखा, जाना व समझा। किशोरों द्वारा सुन्दर ढंग से हाथों से विभिन्न वस्तुओं पर बनाई गई कलाकृति प्रदर्शित की गई थी, जो दर्शकों को काफी आकर्षित कर रही थी। नारियल, अखरोट के छिलको पर कलाकारी, लकड़ी, वस्त्र इत्यादि चीजों पर की गयी चित्रकारी उनके हुनर को दर्शा रही थी। बुधवार को जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता, अध्यात्मवेत्ता, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने महावीर समवसरण में उपस्थित श्रद्धालुओं को आयारो आगम के माध्यम से पावन प्रतिबोध प्रदान करते हुए कहा कि आदमी में लोभ की वृत्ति होती है। तत्त्वज्ञान के अनुसार दसवें गुणस्थान तक लोभ बना रहता है। मान और माया तो पहले समाप्त हो जाते हैं, किन्तु लोभ सबसे अंत में समाप्त होने वाला होता है। सामान्य आदमी लोभ के कारण माया भी कर सकता है, लोभ के कारण झूठ बोल सकता है और लोभ के कारण ही हिंसा, हत्या जैसा जघन्य पाप भी कर सकता है। इसलिए लोभ को पाप का बाप कहा गया है। लोभ ही समस्त पापों का जनक होता है। लोभ के कारण आदमी कामनाओं से भावित होता है और फिर उसे करने के लिए वह कुछ भी करने को तैयार हो जाता है। जो आदमी लोभ की प्रवृत्ति को छोड़कर अलोभी बन जाए तो उसकी आत्मा कितनी निष्पाप बन सकता है। अलोभ से लोभ को जीतने का प्रयास करना चाहिए। संतोष से लोभ पर विजय प्राप्त किया जा सकता है। आदमी लोभ को कम करने का प्रयास करना चाहिए। संतोष परम सुख होता है। गृहस्थ जीवन में कोई धनाढ्य हो सकता है। किसी के पास गाड़ी, बंगला, रुपया, पैसा आदि हो सकता है। भवन में एसी आदि की सुविधा हो सकती है, यथा अनेक प्रकार की सुविधाएं हो सकती हैं। इस भौतिक संसाधनों से सुविधा भले प्राप्त हो सकती है, किन्तु शांति की प्राप्ति नहीं हो सकती। मानसिक शांति के लिए जीवन में साधना का होना आवश्यक होता है। मानसिक शांति की प्राप्ति साधना हो सकती है। जहां आकांक्षा, तृष्णा नहीं होती, वहां शांति होती है। अहिंसा, संयम, तप, त्याग की साधना शांति का मार्ग प्रशस्त कर सकते हैं। इसलिए आदमी को शांति के पथ पर आगे बढ़ने का प्रयास करना चाहिए। चतुर्मास का यह समय चल रहा है। चतुर्मास का आधा हिस्सा बीत गया है। अब चतुर्मास का उत्तर्राध चल रहा है। जैन साधु इन चार महीने तक एक स्थान पर रहता है। यह स्थिरता से साधना करने का समय होता है। इस दौरान जितना संभव हो सके आदमी को शांति प्राप्ति का प्रयास करना चाहिए। गृहस्थ का जीवन जीने वाले जितना संभव हो सके, परिग्रह कम करने, संतोष व अलोभ की चेतना का विकास करने का प्रयास होगा, उतना ही परम सुख की प्राप्ति की दिशा में गति हो सकती है। जैन विश्व भारती द्वारा आचार्य भारमलजी की चित्रकथा को आचार्यश्री के समक्ष लोकार्पित किया गया। इस संदर्भ में आचार्यश्री ने पावन आशीर्वाद प्रदान किया। तेरापंथ कन्या मण्डल-सूरत ने चौबीसी के गीत का संगान किया। प्रोफेसर धर्मचंद जैन ने अपनी पचासवीं कृति ‘भारतीय राजनीतिक व्यवस्था और राष्ट्रपति के दो भाग’ को पूज्यप्रवर के समक्ष लोकार्पित करते हुए अपनी भावनाओं की अभिव्यक्ति दी। इस संदर्भ में आचार्यश्री ने पावन आशीर्वाद प्रदान किया। कच्छ-भुज से समागत श्री झवेरीजी, श्री हितेश खांडोर, श्री कीर्तिभाई ने अपनी अभिव्यक्ति दी। इस संदर्भ में आचार्यश्री ने पावन आशीर्वाद प्रदान किया।

*-आचार्यश्री महाश्रमणजी ने लोभ को बताया पाप का बाप, लोभ को छोड़ने को किया अभिप्रेरित…सुरेंद्र मुनोत, ऐसोसिएट एडिटर, Key Line Times वेसु, सूरत (गुजरात) , सूरत शहर में चतुर्मास करने वाले जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता, महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी की मंगल सन्निधि में अनेकानेक कार्यक्रम, अधिवेशन, सेमिनार, गोष्ठी आदि के साथ-साथ अनेक उपक्रम भी संचालित हो रहे हैं। आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में चतुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति के अंतर्गत स्थानीय तेरापंथ किशोर मण्डल द्वारा दोदिवसीय तेरापंथ हस्तकला उत्सव का समायोजन किया गया। आचार्यश्री के मंगल आशीष से प्रारम्भ हुए इस उत्सव को दो दिनों में सैंकड़ों लोगों ने देखा, जाना व समझा। किशोरों द्वारा सुन्दर ढंग से हाथों से विभिन्न वस्तुओं पर बनाई गई कलाकृति प्रदर्शित की गई थी, जो दर्शकों को काफी आकर्षित कर रही थी। नारियल, अखरोट के छिलको पर कलाकारी, लकड़ी, वस्त्र इत्यादि चीजों पर की गयी चित्रकारी उनके हुनर को दर्शा रही थी। बुधवार को जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता, अध्यात्मवेत्ता, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने महावीर समवसरण में उपस्थित श्रद्धालुओं को आयारो आगम के माध्यम से पावन प्रतिबोध प्रदान करते हुए कहा कि आदमी में लोभ की वृत्ति होती है। तत्त्वज्ञान के अनुसार दसवें गुणस्थान तक लोभ बना रहता है। मान और माया तो पहले समाप्त हो जाते हैं, किन्तु लोभ सबसे अंत में समाप्त होने वाला होता है। सामान्य आदमी लोभ के कारण माया भी कर सकता है, लोभ के कारण झूठ बोल सकता है और लोभ के कारण ही हिंसा, हत्या जैसा जघन्य पाप भी कर सकता है। इसलिए लोभ को पाप का बाप कहा गया है। लोभ ही समस्त पापों का जनक होता है। लोभ के कारण आदमी कामनाओं से भावित होता है और फिर उसे करने के लिए वह कुछ भी करने को तैयार हो जाता है। जो आदमी लोभ की प्रवृत्ति को छोड़कर अलोभी बन जाए तो उसकी आत्मा कितनी निष्पाप बन सकता है। अलोभ से लोभ को जीतने का प्रयास करना चाहिए। संतोष से लोभ पर विजय प्राप्त किया जा सकता है। आदमी लोभ को कम करने का प्रयास करना चाहिए। संतोष परम सुख होता है। गृहस्थ जीवन में कोई धनाढ्य हो सकता है। किसी के पास गाड़ी, बंगला, रुपया, पैसा आदि हो सकता है। भवन में एसी आदि की सुविधा हो सकती है, यथा अनेक प्रकार की सुविधाएं हो सकती हैं। इस भौतिक संसाधनों से सुविधा भले प्राप्त हो सकती है, किन्तु शांति की प्राप्ति नहीं हो सकती। मानसिक शांति के लिए जीवन में साधना का होना आवश्यक होता है। मानसिक शांति की प्राप्ति साधना हो सकती है। जहां आकांक्षा, तृष्णा नहीं होती, वहां शांति होती है। अहिंसा, संयम, तप, त्याग की साधना शांति का मार्ग प्रशस्त कर सकते हैं। इसलिए आदमी को शांति के पथ पर आगे बढ़ने का प्रयास करना चाहिए। चतुर्मास का यह समय चल रहा है। चतुर्मास का आधा हिस्सा बीत गया है। अब चतुर्मास का उत्तर्राध चल रहा है। जैन साधु इन चार महीने तक एक स्थान पर रहता है। यह स्थिरता से साधना करने का समय होता है। इस दौरान जितना संभव हो सके आदमी को शांति प्राप्ति का प्रयास करना चाहिए। गृहस्थ का जीवन जीने वाले जितना संभव हो सके, परिग्रह कम करने, संतोष व अलोभ की चेतना का विकास करने का प्रयास होगा, उतना ही परम सुख की प्राप्ति की दिशा में गति हो सकती है। जैन विश्व भारती द्वारा आचार्य भारमलजी की चित्रकथा को आचार्यश्री के समक्ष लोकार्पित किया गया। इस संदर्भ में आचार्यश्री ने पावन आशीर्वाद प्रदान किया। तेरापंथ कन्या मण्डल-सूरत ने चौबीसी के गीत का संगान किया। प्रोफेसर धर्मचंद जैन ने अपनी पचासवीं कृति ‘भारतीय राजनीतिक व्यवस्था और राष्ट्रपति के दो भाग’ को पूज्यप्रवर के समक्ष लोकार्पित करते हुए अपनी भावनाओं की अभिव्यक्ति दी। इस संदर्भ में आचार्यश्री ने पावन आशीर्वाद प्रदान किया। कच्छ-भुज से समागत श्री झवेरीजी, श्री हितेश खांडोर, श्री कीर्तिभाई ने अपनी अभिव्यक्ति दी। इस संदर्भ में आचार्यश्री ने पावन आशीर्वाद प्रदान किया।

मदुरै में मोटर चालकों को यातायात नियमों का पालन करने के लिए किया गया प्रोत्साहित… सतीश जैन,ऐसोसिएट एडिटर, Key Line Times मदूरै,यातायात पुलिस विभाग लगातार वाहन चालकों को यातायात नियमों के प्रति जागरूक कर रहा है। इसके बाद यातायात नियमों का पालन करने वाले और वाहन चलाने वाले वाहन चालकों को पुरस्कार और सराहना दी जाती है। ऐसे में आज 23.09.24 को अराराडी की बैठक में मदुरै ट्रैफिक पुलिस की डिप्टी कमिश्नर एस वनिता ने कहा. ट्रैफिक सिग्नल पर, उन्होंने वाहन चालकों को स्टॉप लाइन पर ठीक से रुकने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए पेन, मिठाइयाँ और जागरूकता पुस्तिकाएँ वितरित कीं। उनके साथ सहायक परिवहन आयुक्त श्री इलामरण सर भी थे। नव युवक तिलकर थिटल ट्रैफिक पुलिस इंस्पेक्टर श्री थंगामणि ने मिलकर काम किया।

मदुरै में मोटर चालकों को यातायात नियमों का पालन करने के लिए किया गया प्रोत्साहित… सतीश जैन,ऐसोसिएट एडिटर, Key Line Times मदूरै,यातायात पुलिस विभाग लगातार वाहन चालकों को यातायात नियमों के प्रति जागरूक कर रहा है। इसके बाद यातायात नियमों का पालन करने वाले और वाहन चलाने वाले वाहन चालकों को पुरस्कार और सराहना दी जाती है। ऐसे में आज 23.09.24 को अराराडी की बैठक में मदुरै ट्रैफिक पुलिस की डिप्टी कमिश्नर एस वनिता ने कहा. ट्रैफिक सिग्नल पर, उन्होंने वाहन चालकों को स्टॉप लाइन पर ठीक से रुकने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए पेन, मिठाइयाँ और जागरूकता पुस्तिकाएँ वितरित कीं। उनके साथ सहायक परिवहन आयुक्त श्री इलामरण सर भी थे। नव युवक तिलकर थिटल ट्रैफिक पुलिस इंस्पेक्टर श्री थंगामणि ने मिलकर काम किया।

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