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मुंबई ज्ञानशाला द्वारा नवज्ञा कार्यशाला का सफल आयोजन….सुरेंद्र मुनोत, ऐसोसिएट एडिटर, Key Line Times. 2 अक्टूबर बुधवार, श्री जैन श्वेतांबर तेरापंथी सभा मुंबई के तत्वावधान में मुम्बई ज्ञानशाला विभाग द्वारा महाप्रज्ञ पब्लिक स्कूल कालबादेवी के प्रांगण में आचार्य महाश्रमण जी के सुशिष्य मुनि श्री कुलदीप कुमारजी एवं सहवर्ती मुनि श्री मुकुलकुमारजी के सान्निध्य में *”नवज्ञा – नव विचार नव दिशा”* कार्यशाला का आयोजन किया गया। इस कार्यशाला की रूपरेखा आंचलिक संयोजिका श्रीमती राजश्री जी कच्छारा,आंचलिक सह संयोजिका अंजु जी चौधरी एवं विभागीय संयोजिका चंचल जी परमार ने की। कार्यक्रम की शुभ शुरुआत मुनिश्री ने नमस्कार महामंत्र से की। परामर्शक मधु जी मेहता ने ध्यान के प्रयोग करवाए। कार्यक्रम के प्रथम चरण में आशुभाषण प्रतियोगिता रखी गयी जिसमे 18 प्रतियोगियों ने भाग लिया, सभी को विषय उसी समय दिए गए । इस प्रतियोगिता में प्रथम – रेखा धाकड़ (सायन कोलीवाड़ा) ,द्वितीय- कविता बदामिया (पालघर) एवं तृतीय – कुसुम हिरण (चेम्बूर) व मीना मेडतवाल (वाशी) ने प्राप्त किया। सभी विजेताओं व प्रतिभागियों को सम्मानित किया गया । आशुभाषण प्रतियोगिता का संचालन समिति सदस्या निर्मला जी मेहता ने किया और उसके निर्णायक की भूमिका मुंबई ज्ञानशाला की दोनों पूर्व आंचलिक संयोजिका श्रीमती निर्मला जी चण्डालिया एवं श्रीमती सुमन जी चपलोत ने निभाई । कार्यक्रम के द्वितीय चरण में महाप्रज्ञ जोन की प्रशिक्षिकाओं ने मंगलाचरण की सुंदर प्रस्तुति दी। श्रद्धेय मुनिश्री कुलदीप कुमारजी ने प्रेरणास्पद शब्दो में ज्ञानशाला के इतिहास पर प्रकाश डाला व नए ज्ञानार्थियों को जोड़ने की प्रेरणा दी। मुनि श्री मुकुल कुमार जी ने नवज्ञा का अर्थ बताते हुए मिच्छामि दुक्कड़, खमत खमणा के अनेक रहस्यों को उद्घाटित किया । प्रत्याख्यान ,प्रायश्चित, सारणा -वारणा ,सूझता असूझता आदि को समझाते हुए भक्तामर के श्लोक व लाभ की सभी को सूक्ष्म जानकारी प्रदान की। प्रशिक्षिका कैसी हो, प्रशिक्षिका का गृहस्थ रूप कैसा हो आदि तथ्यों को समझाया। मुनिश्री द्वारा प्रदत्त नवरात्रि मंत्रों के जाप का संकल्प मुम्बई ज्ञानशाला की प्रशिक्षिकाओं ने लिया। परामर्शक हेमलता जी मादरेचा एवं नीलम जी कोठारी ने इन संकल्पों के लिए नवरात्रि मंत्र आराधना कार्ड बनाया और इस कार्ड द्वारा मुनिश्री के चरण कमलों में संकल्पों की भेंट समर्पित की गई । आंचलिक संयोजिका श्रीमती राजश्री कच्छारा ने स्वागत के स्वरों के साथ अपने भावों को अभिव्यक्त किया। मुंबई सभा के अध्यक्ष श्रीमान माणक जी धींग, महामंत्री दिनेश जी सुतरिया, नवरतन जी गन्ना, महाप्रज्ञ विद्या निधि फाउंडेशन ट्रस्ट के अध्यक्ष कुंदनमल जी धाकड़, दक्षिण मुंबई तेरापंथी सभा के अध्यक्ष सुरेश जी डागलिया,उपाध्यक्ष नितेश जी धाकड़, गणपत जी डागलिया, लक्ष्मीलाल जी डागलिया, तेयुप अध्यक्ष गिरीश जी सिसोदिया, महिला मंडल अध्यक्ष वनिता जी धाकड़ के साथ अन्य गणमान्य व्यक्ति उपस्थित रहे और अपने भावों की अभिव्यक्ति दी। तेरापंथ सभा दक्षिण मुंबई के ज्ञानशाला परिवार की तपस्वी प्रशिक्षक बहनों का सम्मान किया गया जिसका नामोल्लेख समिति सदस्य रेखा जी कच्छारा ने किया। विभागीय सह संयोजिका शीतल जी सांखला ने वीडियो प्रतिभागियों का नामोल्लेख किया। सूरत चातुर्मास में ज्ञानकुंज में वीडियो भेजने वाले मुम्बई ज्ञानशाला के भिक्षु, माणकगणी, डालगणी, कालुगणी एवं महाप्रज्ञ ज़ोन को सम्मानित किया गया, साथ ही ज्ञानशाला दिवस पर वीडियो बनाने वाले विजेताओं को भी सम्मानित किया गया। जिसमे प्रथम डालगणी जोन, द्वितीय भारमल जोन व तृतीय जोन मघवागणी जोन रहे। ज्ञानशाला प्रशिक्षक परीक्षा की तैयारी कराने के लिए प्रशिक्षक सपना जी डागलिया ठाणे, रेखा जी धाकड़ सायन कोलीवाड़ा, कुसुम जी हिरण चेंबूर, रत्ना जी कोठारी घाटकोपर , संगीता जी हिरण भायंदर व इंद्रा जी चण्डालिया को सम्मानित किया गया। 100 %उपस्थित रहने वाली ज्ञानशालाओ की प्रशिक्षिकाओ को सम्मानित किया गया और लक्की ड्रॉ भी निकाले गए। कार्यशाला का कुशल संचालन विभागीय सह संयोजिका संगीता जी बाफना एवं समिति सदस्य नयना जी धाकड़ ने किया तथा आभार ज्ञापन समिति सदस्या वनिता जी धाकड़ ने किया। कार्यक्रम को सफल बनाने में रेखा जी खाब्या, कामिनी जी बडाला, रिंकु जी भंसाली, सोनल जी हिंगड़, रमिला जी गन्ना, सुनीता जी कोठारी, मोनिका जी बापना, प्रीति जी एवं दक्षिण मुंबई की प्रशिक्षक बहनों का विशेष सहयोग रहा ।
अणुव्रत उद्बोधन सप्ताह का चौथा दिन पर्यावरण शुद्धि दिवस के रूप में समायोजित…सुरेंद्र मुनोत, ऐसोसिएट एडिटर, Key Line Times वेसु, सूरत (गुजरात) , आश्विन माह के शुक्लपक्ष में जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी की मंगल सन्निधि में नौ दिनों तक आध्यात्मिक अनुष्ठान का क्रम चल रहा है तो दूसरी ओर अणुव्रत उद्बोधन सप्ताह का क्रम भी संचालित हो रहा है। आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में इन विभिन्न आध्यात्मिक उपक्रमों से जुड़कर श्रद्धालु अपनी धार्मिक-आध्यात्मिक उन्नति करने का प्रयास कर रहे हैं। पूरे विश्व भर इस समय शक्ति की अधिष्ठात्री देवी की आराधना का क्रम भी चल रहा है। देश के विभिन्न हिस्सों में इस त्योहार अलग-अलग रूपों में मनाया जा रहा है। गुजरात प्रदेश में इन नौ दिनों में दुर्गापूजा के साथ-साथ गरबे की धूम भी देखने को मिलती है। गुजरात राज्य के डायमण्ड सिटि सूरत में चतुर्मास कर रहे जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अनुशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी की मंगल सन्निधि में महावीर समवसरण में शुक्रवार को भी आचार्यश्री के साथ उपस्थित जनता ने मंगल प्रवचन से पूर्व आध्यात्मिक अनुष्ठान से जुड़ी। लगभग आधे घंटे के आध्यात्मिक अनुष्ठान के उपरान्त जनता को आचार्यश्री ने अपनी अमृतवाणी का रसपान कराया। महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी ने उपस्थित जनता को आयारो आगम के माध्यम से पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि हमारे जीवन में आत्मा और शरीर दो तत्त्व हैं। आत्मा चैतन्यमय है तो शरीर पुद्गल है। चेतन और अचेतन दोनों का योग होना ही जीवन है। आत्मा और शरीर का अलग हो जाना ही मृत्यु है। चेतन का अचेतन के साथ वियोग हो जाना मृत्यु हो जाती है। आत्मा हमेशा के लिए शरीर से मुक्त हो जाए, वह मोक्ष हो जाता है। स्थूल शरीर के सिवाय दो शरीर और होते हैं। उनमें एक होता है तैजस शरीर है। उससे भी सूक्ष्मतर शरीर है कार्मण शरीर उसे कर्म शरीर भी कहा जाता है। आयारो में कहा गया है कि कर्म शरीर को प्रकंपित करो। ज्ञातव्य है कि यह कार्मण शरीर ही जन्म-मरण का कारण है। आदमी के जीवन में होने वाले प्रत्येक सुख-दुःख हर्ष-विसाद आदि का मूल कारण कार्मण शरीर होता है। इसलिए इसे कारण शरीर भी कहा जाता है। आदमी ज्ञान और संयम के द्वारा इसे कमजोर कर सकते हैं। आदमी के पास सम्यक् ज्ञान और सम्यक् चारित्र है तो इस कारण शरीर को प्रकंपित किया जा सकता है। अणुव्रत उद्बोधन सप्ताह के तीसरे दिन को पर्यावरण शुद्धि दिवस के रूप में समायोजित किया गया। इस कार्यक्रम में उपस्थित डॉ. दयांजलि ठक्कर ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि मेरा सौभाग्य है कि मुझे आचार्यश्री महाश्रमणजी के दर्शन का सौभाग्य मिल रहा है। हम सभी को पर्यावरण को प्रदूषित नहीं, जितना हो संभव हो सके, उसके शुद्धिकरण का प्रयास करें। जितना संभव हो सके पेड़-पौधों को लगाने का प्रयास करें। अणुव्रत अनुशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी ने अणुव्रत उद्बोधन सप्ताह के तीसरे दिन पर्यावरण शुद्धि दिवस के संदर्भ में पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि आदमी के जीवन में अहिंसा और संयम-ये दो तत्त्व रहते हैं तो अनेक समस्याओं का समाधान अपने आप हो सकता है। यह मानव जीवन के व्यवहार के साथ जुड़ा रहे। वृक्षों को अनावश्यक न काटा जाए, इसके लिए आगम में जागरूक किया गया है। वनस्पति और मानव में समानता की बात भी बताई गई है। वनस्पति भी प्राणी है, उसके प्रति संयम रखने का प्रयास हो। बिजली, पानी आदि का जितना संयम किया जा सके, करने का प्रयास करना चाहिए। अहिंसा और संयम के द्वारा पर्यावरण को ही नहीं, अपनी आत्मा को भी शुद्ध बनाया जा सकता है। पर्यावरण विशेषज्ञ डॉ. सर्वेश गौतम ने भी इस अवसर पर अपने विचार व्यक्त किए। तेरापंथ कन्या मण्डल-सूरत ने चौबीसी के गीत को प्रस्तुति दी। तेरापंथी सभा-चेन्नई केे अध्यक्ष श्री अशोक खंतग ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। चेन्नई ज्ञानशालाओं के ज्ञानार्थियों व प्रशिक्षिकाओं ने संयुक्त रूप से गीत को प्रस्तुति दी। इस संदर्भ में आचार्यश्री ने पावन आशीर्वाद प्रदान किया। बालक हर्षिल बरड़िया बालसुलभ गीत को प्रस्तुति दी।
डॉ. मोहन भागवत ने प्यारेराम प्राचीन मंदिर के किए दर्शन…सतीश चंद लुणावत, जिला संवाददाता अजमेर राजस्थान, Key Line Times. सरसंघचालक ने शाखा के स्वयंसेवकों के साथ मिलकर आंवला,बिल्वपत्र तथा पीपल आदि के 51 पौधों का किया पौधारोपण नित्य शाखा से ही समाज के लिए योग्य व्यक्ति निर्मित होंगे – मोहन भागवत बारां / 4 अक्टूबर: सतीशचंद लुणावत राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के परम पूजनीय सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत अपने चार दिवसीय बारां प्रवास के दूसरे दिन प्रातः बारां शहर के मांगरोल रोड स्थित प्राचीन प्यारेराम जी मंदिर के देवदर्शन के लिए पहुंचे वहां उन्होंने मंदिर दर्शन के पश्चात इस ऐतिहासिक मंदिर के इतिहास के विषय में विस्तृत जानकारी प्राप्त की । तीन शताब्दी पुराना है प्यारेराम जी मंदिर का इतिहास जहां महंत श्री प्यारेराम जी ने अनंत भगवान की प्रतिमा स्थापित कर तीन परकोटे वाले विशाल मंदिर का निर्माण करवाया था । देव दर्शन के पश्चात् परिसर में नित्य लगने वाली शिव मंदिर तरुण व्यवसायी शाखा में स्वयंसेवकों के साथ एक घंटे के निश्चित कार्यक्रमों में भाग लिया । शाखा के सभी स्वयंसेवकों ने शारीरिक कार्यक्रम यथा व्यायाम योग, प्रहार, सूर्य नमस्कार , खेल के पश्चात बौद्धिक कार्यक्रमों में सांघिक सुभाषित ,अमृतवचन तथा गीत का गायन किया । जिज्ञासा समाधान में शाखा के स्वयंसेवकों के द्वारा पूछे गए प्रश्नों का उतर देते हुए उन्होंने बताया कि भारत पहले से ही एक हिंदू राष्ट्र है , उसको और उन्नत तथा सामर्थ्यवान, बलशाली बनाना है । शाखा से समाज को जोड़ने के विषय में भागवत जी ने सूत्र बताते हुए कहा कि अपरिचित से परिचय बढ़ाना, परिचित को मित्र बनाना, मित्र को स्वयंसेवक बनाना चाहिए । नित्य शाखा से ही समाज के लिए योग्य स्वयंसेवक निर्मित होंगे। शाखा के पश्चात मंदिर परिसर के बाहर स्वयंसेवकों के साथ मिलकर पौधारोपण किया गया । आंवला, बिल्वपत्र तथा पीपल आदि प्रजाति के 51 पौधे लगाए गए । शाखा के स्वयंसेवकों ने पौधों की सार संभाल का संकल्प भी लिया । इसके पश्चात् शाखा टोली के साथ बैठक हुई । उन्होंने टोली बैठक में शाखा के विषय में विस्तार से जानकारी प्राप्त की । शाखा में होने वाले एक घण्टे के नियमित कार्यक्रमों के विषय पर विस्तृत चर्चा भी की ।
अणुव्रत उद्बोधन सप्ताह का दूसरा दिन अहिंसा दिवस के रूप में हुआ समायोजित….सुरेंद्र मुनोत, ऐसोसिएट एडिटर, Key Line Times वेसु, सूरत (गुजरात) , जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अधिशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी की मंगल सन्निधि में अणुव्रत उद्बोधन सप्ताह का शुभारम्भ हो चुका है। इस सप्ताह के दूसरे दिन अर्थात् बुधवार को अहिंसा दिवस के रूप में समायोजित किया गया। महावीर समवसरण में उपस्थित जनता को अहिंसा यात्रास के प्रणेता आचार्यश्री महाश्रमणजी ने आयारो आगम के माध्यम से प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि अनासक्त साधक शब्द और स्पर्श को सहन करता है। सहिष्णुता मानवता का एक गुण है और वह साधना भी होती है। मन अथवा शरीर के विपरित स्थिति आने पर भी सम भाव रखते हुए उसे सहन कर लेना एक अच्छी साधना होती है। शब्द भी कई बार ऐसे आते हैं, जो कटु होते हैं, अपमानकारक होते हैं। साधु को भी कटु शब्द सुनने को मिल सकते हैं। वहां साधु को शब्दों को सहन करने का प्रयास करना चाहिए। जीवन में बातचीत का काम पड़ता रहता है। बातचीत में कटु शब्द भी प्रयोग हो सकता है, हो सकता है कोई झूठा आरोप भी लगा सकता है। साधु को वैसे शब्दों और उसे सहने का प्रयास करना चाहिए। आज दो अक्टूबर है। अणुव्रत उद्बोधन सप्ताह का दूसरा दिन अहिंसा दिवस के रूप में समायोजित है। अणुव्रत उद्बोधन सप्ताह का यह सात दिन अणुव्रत के प्रचार-प्रसार की दृष्टि से भी बहुत महत्त्वपूर्ण है। अणुव्रत से जुड़ी हुई संस्थाएं अहिंसा, नैतिकता व नशामुक्ति का यथासंभव प्रचार-प्रसार करती रहें। आदमी यह प्रयास करे कि उसके जीवन में अहिंसा का प्रभाव बना रहे। आदमी की भाषा में, विचार में, व्यवहार में अहिंसा का भाव बना रहे। आज का दिन महात्मा गांधी से भी जुड़ा हुआ है। अहिंसा एक प्रकार की भगवती है, माता है, जीवनदाता है। अहिंसा मानों सभी प्राणियों को अभय बना देती है। अहिंसा शौर्य, वीर्य और बलवती हो, इसका प्रयास करना चाहिए। मंगल प्रवचन के उपरान्त आचार्यश्री ने नवरात्र में नौ दिनों होने वाले आध्यात्मिक अनुष्ठान की जानकारी देने के उपरान्त प्रेक्षाध्यान कल्याण वर्ष के संदर्भ में उपस्थित जनता को प्रेक्षाध्यान का प्रयोग भी कराया। ‘सादर स्मरण शासनमाता भाग-2’ शासनश्री साध्वी कल्पलताजी द्वारा लिखित पुस्तक को जैन विश्व भारती के पदाधिकारियों द्वारा आचार्यश्री के समक्ष लोकार्पित किया। आचार्यश्री ने इस संदर्भ में पावन आशीर्वाद प्रदान किया। मुनि उदितकुमारजी ने आयम्बिल अनुष्ठान के विषय में जानकारी दी। अहिंसा दिवस के संदर्भ में सूरत के बच्चों ने अपनी प्रस्तुति दी। मुम्बई के घाटकोपर उपाश्रय के ट्रस्टी श्री मुकेशभाई ने अपनी अभिव्यक्ति दी। आचार्यश्री ने उन्हें पावन आशीर्वाद प्रदान किया।
प्रसिद्ध लेखक सज्ञान मोदी जी का आलेख, “हर दिवस हो अहिंसा दिवस, हर घर बने अहिंसा आश्रम”……सुरेंद्र मुनोत, ऐसोसिएट एडिटर, Key Line Times आज देश गांधीजी की 155 वीं जयंती मना रहा है और आज ही पूरी दुनिया संयुक्त राष्ट्र महासभा में पारित प्रस्ताव के अनुसार 18 वां अंतरराष्ट्रीय अहिंसा दिवस भी मना रही है। यह भारत के लिए अत्यंत गौरव का विषय है। हालांकि संत और महात्मा किसी एक देश, प्रांत अथवा मत-संप्रदाय तक सीमित नहीं होते। वे सबके होते हैं और सभी उनके होते हैं। इसलिए संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा ने सर्वसहमति से गांधीजी के जन्मदिन को अंतरराष्ट्रीय अहिंसा दिवस घोषित किया। भारत के इस महान सत्पुरुष को पूरी दुनिया में इतने सम्मान से देखा जाता है, इसलिए हमें भी उनकी सामाजिक, वैचारिक और आध्यात्मिक विरासत को संभालकर रखना है। बल्कि उसे और भी समृद्ध करते जाना है। अहिंसा दिवस हमारे लिए आत्ममंथन का दिवस भी है। हम सब तटस्थ होकर अपने-अपने जीवन को देखें। हमारे जीवन में अहिंसा का क्या महत्व है? हमने अहिंसा को अपने जीवन में कितना स्थान दे रखा है? प्रेम, जीवदया, करुणा और क्षमा ये सब अहिंसा के ही रूप हैं। क्या हमारे परिवार में इन सबकी बढ़ोतरी हो रही है? क्या हमारे सामाजिक संबंधों में सौहार्द्र बढ़ रहा है? क्या लड़कियों अथवा महिलाओं के साथ अहिंसक व्यवहार की प्रतिष्ठापना हो पाई है? क्या बच्चों को प्रेमिल स्पर्श भरा लाड़-प्यार मिल पा रहा है? क्या जीवदया और करुणा आदि पवित्र संस्कारों से उनका सिंचन हो पा रहा है? क्या विद्यालयों-विश्वविद्यालयों में उन्हें उन्मुक्त और भयमुक्त चिंतन का वातावरण दिया जा रहा है? क्या बुजुर्गों को परिवार में वह सेवा और सम्मान मिल पा रहा है जिसके वे वास्तव में हकदार हैं? यह सब हमारे लिए सोचने के विषय हैं। क्योंकि यह सब आखिर में जाकर हिंसा और अहिंसा का हमारे जीवन में व्यावहारिक स्थान बताते हैं। अहिंसा का केवल राजनीतिक निरूपण कर देने से हम उसके प्रति लापरवाह हो जाते हैं। केवल युद्ध, मार-काट, दंगा-फसाद, तोड़-फोड़ जैसे सार्वजनिक हंगामें होने पर ही हम अहिंसा की दुहाई देने लगते हैं। लेकिन यह भूल जाते हैं कि उन हिंसक घटनाओं का वास्तविक स्रोत कहाँ है? उसके पीछे कौन-से पारिवारिक और सामाजिक संस्कार हैं? उसके पीछे कौन-कौन से छिपे असंतोष कार्य कर रहे हैं जो उन हिंसक घटनाओं में शामिल मनुष्यों के मानस को दीर्घकाल में हिंस्र बना चुके हैं। हिंसा के मूल में जो सामुदायिक भय और मानसिक असुरक्षा है, उसे हम स्वीकार नहीं कर पाते हैं। अन्यायपूर्ण सामाजिक परिस्थितियों से हम मुँह मोड़ लेते हैं। ऐतिहासिक पीड़ाबोध या विक्टिमहुड जो पीढ़ी-दर-पीढ़ी हमारे मन में, और हमारी नई पीढ़ियों के मन में पलता रहता है, उससे उबरने का कोई प्रयास कहीं दिखाई नहीं देता। बल्कि इतिहास की सच्ची-झूठी कहानियों से उसके विष को बढ़ाने का प्रयास ही सोशल मीडिया आदि पर दिखाई देता है। कितना हिंसक हो चुका है हमारा सारा वैमर्शिक वातावरण! क्या हमने थोड़ा ठहरकर इसपर सोचा है कभी? ऐसे में हमें थोड़ा ठहरकर सोचना है कि आखिर इतने संसाधन लगाकर भी हम कर क्या रहे हैं? हम कैसा देश बना रहे हैं? कैसा समाज बना रहे हैं? कैसा परिवार बना रहे हैं? नई पीढ़ी और युवाओं का मानस कैसा बना रहे हैं? समाज में आपसी भाईचारे को बढ़ा रहे हैं या उसे दूरगामी नुकसान पहुँचा रहे हैं? यह सब हमें ठंडे दिमाग से सोचना होगा। क्योंकि जिस हिंसक लहर पर सवार होकर हम जिस प्रकार के टकरावपूर्ण आदान-प्रदान में शामिल हो चुके हैं, उसमें फिर देश को और समाज को सामान्य अवस्था में लाना बहुत मुश्किल हो जाएगा। अगर बात बहुत आगे बढ़ गई तो देश को एकजुट रखना तक मुश्किल हो जाएगा, क्योंकि हम जाने-अनजाने हर समय तोड़नेवाले हिंसक संवादों में ही संलग्न रहने लगे हैं। गांधीजी कहते थे—“सत्य और अहिंसा का एक नियम है, एक निश्चित उद्देश्य है। उस पर न चलने पर कार्य की सिद्धि संदिग्ध हो जाएगी। सत्य का मार्ग जितना सीधा है, उतना तंग भी है। यही बात अहिंसा की भी है। यह तलवार की धार पर चलने के बराबर है। ध्यान की एकाग्रता के द्वारा एक नट रस्सी पर चल सकता है, परंतु सत्य और अहिंसा के मार्ग पर चलने के लिए कहीं बड़ी एकाग्रता की आवश्यकता पड़ती है। जरा सा चूके कि धड़ाम से जमीन पर आ गिरे। बिना आत्मशुद्धि के प्राणिमात्र के साथ एकता का अनुभव नहीं किया जा सकता है और आत्मशुद्धि के अभाव से अहिंसा धर्म का पालन करना भी हर तरह नामुमकिन है।” इसलिए हमें अपनी बोली और अपने व्यवहार में बहुत सजग-सतर्क रहने की आवश्यकता है। हमें आत्मशुद्धि के मार्ग पर बढ़ना है और प्राणिमात्र के साथ एकता साधनी है। उसका साधन तो अहिंसा ही हो सकती है। आज दाम्पत्य के पवित्र संबंध छोटी-छोटी बातों पर टूट रहे हैं। परिवार टूट रहे हैं, बिखर रहे हैं। इसका खामियाजा सबसे अधिक बच्चों और बुजुर्गों को झेलना पड़ रहा है। सगे-संबंधी, परिजनों और पड़ोसियों के साथ वैसी आत्मीयता का संबंध नहीं रहा। गाँवों, मोहल्लों में सामाजिक समरसता टूट रही है। सांप्रद्रायिक सौहार्द्र टूट रहा है। दलीय, क्षेत्रीय, प्रांतीय और भाषाई आधार पर परस्पर-सम्मान की भावना कम हो रही है। संघीय स्वायत्तता खतरे में दीखती है और संविधान द्वारा दीर्घकाल में स्थापित गरिमामयी संस्थाओं का सांस्थानिक ढाँचा भी चरमरा रहा लगता है। दिलों में दूरियाँ बढ़ रही है। कौमी एकता की बात ही नहीं होती, जबकि उससे उल्टी बातें-बहसें और नारेबाजियाँ सुनने को मिलती हैं। अब जबकि पहले ही इतना नुकसान हो चुका है ; हम सबके चाहने भर की देर है। अपने, व्यक्तिगत, पारिवारिक और सामाजिक जीवन को अहिंसा और प्रेम से भरना है। बस इतना ही करना है। व्यवस्था में हर जगह हम ही तो बैठे हैं, या हमारी ही संतानें बैठी हैं। जैसा हमारा जीवन, चिंतन और संस्कार होगा, वैसी ही हमारी व्यवस्था बनेगी। फिर तो हर दिवस ही अहिंसा दिवस होगा। फिर तो हर घर ही अहिंसा आश्रम बनेगा। गांधीजी की जयंती और अंतरराष्ट्रीय अहिंसा दिवस पर हम सब यह ठान लें और वैसी ही आगामी जीवन-योजना, पारिवारिक योजना बना लें तो ऐसा ही होकर रहेगा। सर्वत्र शुभ ही शुभ होगा, मंगल ही मंगल होगा।
सांप्रदायिक सौहार्द दिवस पर दो आध्यात्मिक महापुरुषों का आत्मीय मिलन….सुरेंद्र मुनोत, ऐसोसिएट एडिटर, Key Line Times शांतिदूत की मंगल सन्निधि में पहुंचे स्वामीनारायण संप्रदाय के गुरुहरि प्रेमस्वरूप स्वामीजी महाराज, अणुव्रत उद्बोधन सप्ताह का हुआ शुभारम्भ, महापुरुषों का दर्शन पुण्याई का प्रतिफल : स्वामी त्यागवल्लभजी, संप्रदाय अलग, किन्तु अहिंसा, संयम, तप सभी के अनुपालनीय : युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण वेसु, सूरत (गुजरात) , मानवता के मसीहा, शांतिदूत, अहिंसा यात्रा प्रणेता, जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अनुशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी की मंगल सन्निधि में अणुव्रत उद्बोधन सप्ताह का आध्यात्मिक शुभारम्भ हुआ। इस सप्ताह का प्रथम दिन सांप्रदायिक सौहार्द दिवस के रूप में समायोजित हुआ। जिसमें हरिधाम सोखड़ा योगी डिवाइन सोसायटी के अध्यक्ष प्रकट गुरुहरि प्रेमस्वरूप स्वामीजी महाराज व स्वामी त्यागवल्लभजी आदि शिष्यों के साथ आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में पहुंचे तो मानों सांप्रदायिक सौहार्द फलीभूत हो उठा। श्वेत वस्त्र में आचार्यश्री व उनके शिष्य तो केशरिया वस्त्र में प्रेमस्वरूप स्वामीजी व उनके शिष्यों के मिलन से महावीर समवसरण में अद्भुत दृश्य उत्पन्न कर रहा था। भारत के धाराओं का आध्यात्मिक मिलन जन-जन को प्रफुल्लित बना रहा था। कार्यक्रम के शुभारम्भ से पूर्व आचार्यश्री का तथा स्वामीजी का प्रवास कक्ष में वार्तालाप का क्रम भी रहा, जिसमें धर्म, अध्यात्म, देश, संस्कृति आदि विभिन्न विषयों का पर चर्चा-वार्ता हुई। महावीर समवसरण में आयोजित अणुव्रत उद्बोधन सप्ताह का शुभारम्भ शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी के मंगल महामंत्रोच्चार के साथ हुआ। सूरत के अणुव्रत कार्यकर्ताओं ने अणुव्रत गीत को प्रस्तुति दी। अणुव्रत समिति-सूरत के अध्यक्ष श्री विमल लोढ़ा, अणुव्रत विश्व भारती सोसायटी के उपाध्यक्ष श्री राजेश सुराणा ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। श्री विनोद बांठिया ने प्रेमस्वरूप स्वामी व स्वामी त्यागवल्लभजी का परिचय प्रस्तुत किया। हरिधाम सोखड़ा योगी डिवाइन सोसायटी के स्वामी त्यागवलल्लभजी ने अपने उद्बोधन में कहा कि आज बहुत सौभाग्य कि बात है कि एक दो महापुरुषों के दर्शन का अवसर जनता को मिली है। यह हजारों वर्षों के पुण्यों से यह सौभाग्य प्राप्त हो रहा है। आज सांप्रदायिक सौहार्द दिवस के अवसर पर गुरुहरि प्रेमस्वरूप स्वामीजी महाराज द्वारा लिखित मंगल पत्र का वाचन भी किया। उन्होंने आगे कहा कि मुझे जानकारी मिली कि आचार्यश्री महाश्रमणजी ने हजारों किलोमीटर की पदयात्रा कर जन-जन को सद्भावना, नैतिकता व नशामुक्ति का संदेश दिए हैं। विकृति की दिशा में आगे बढ़ रहे समाज को ऐसे महापुरुषों की मंगल प्रेरणा से अध्यात्म और साधना की ओर बढ़ाया जा सकता है। इस दौरान स्वामीजी ने राजकोट में स्थित अपने परिसर में पधारने की मधुर अर्ज भी की। अणुव्रत अनुशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी ने उपस्थित जनमेदिनी को पावन पाथेय प्रदान करते कहा कि शास्त्रों की कल्याणी वाणियां जीवन में आ जाएं तो जीवन का कल्याण हो सकता है। शास्त्रों में धर्म को उत्कृष्ट मंगल बताया गया है। दुनिया में दूसरों के लिए तथा स्वयं के लिए भी मंगलकामना करता है। मंगल के लिए शुभ मुहूर्त आदि देखने का प्रयास होता है, पदार्थों का प्रयोग भी होता है, किन्तु ये सारे छोटे मंगल हैं, सबसे बड़ा मंगल धर्म होता है। प्रश्न हो सकता है कि जैन धर्म, सनातन, स्वामीनारायण, सिक्ख आदि धर्म मंगल होता है। यहां बताया गया कि अहिंसा, संयम और तप रूपी धर्म सर्वश्रेष्ठ मंगल होता है। मानव जीवन में संप्रदाय का भी अपना महत्त्व है। संप्रदाय का साया मिलता है तो अनुकंपा प्राप्त हो सकती है। तेरापंथ के प्रथम गुरु आचार्यश्री भिक्षु स्वामी और इस प्रकार हमारे नवमे गुरु आचार्यश्री तुलसी हुए। उन्होंने कहा कि कोई जैन बने या न बने अपने धर्म में रहते हुए भी छोटे-छोटे नियमों को स्वीकार कर अपने जीवन उन्नत बनाया जा सकता है। अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य और परिग्रह हर जगह स्वीकार किया जाता है। वेश-भूषा और परिवेश में कुछ अंतर अवश्य हो सकता है कि जहां अहिंसा, संयम, सच्चाई की बात होती है, वहां लगभग समानता होती है। मर्यादाएं, व्यवस्थाएं परिवेश अलग-अलग हो सकते हैं। संप्रदाय तो हमने स्वीकार कर लिया, लेकिन जीवन में धर्म नहीं आया तो फिर क्या अर्थ। अहिंसा का पालन, इन्द्रियों का संयम, तपस्या आदि का लाभ सभी को प्राप्त होता है। आज अणुव्रत उद्बोधन सप्ताह का प्रारम्भ हुआ है। आचार्यश्री तुलसी ने अणुव्रत आन्दोलन चलाया और आज कितने अजैन लोग भी उससे जुड़े हुए हैं। अणुव्रत को बाजार, चौराहों, विद्यालयों और जेल में बंद कैदियों के बीच भी ले जाया जाए, ताकि उनका जीवन भी अच्छा बन सके। ये छोटे-छोटे नियम जैसे मैं नशा नहीं करूंगा, मैं निरपराध की हत्या नहीं करूंगा, ईमानदार रहूंगा, पर्यावरण की रक्षा करूंगा आदि-आदि नियम आदमी के जीवन में आते हैं तो जीवन अच्छा बन सकता है। उद्बोधन सप्ताह का प्रथम दिन सांप्रदायिक सौहार्द दिवस है तो आज दो संप्रदायों का मिलन हो रहा है। आज आप सभी से मिलना हुआ, बहुत अच्छा हुआ। हमारी आपके प्रति आध्यात्मिक मंगलकामनाएं हैं। चतुर्दशी के संदर्भ में आचार्यश्री ने हाजरी का वाचन किया। तदुपरान्त समस्त चारित्रात्माओं ने अपने स्थान पर खड़े होकर लेखपत्र का उच्चारण किया। आचार्यश्री के मंगलपाठ के साथ कार्यक्रम सुसम्पन्न हुआ।
युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण की मंगल सन्निधि में प्रेक्षाध्यान कल्याण वर्ष का भव्य शुभारम्भ….सुरेंद्र मुनोत, ऐसोसिएट एडिटर, Key Line Times महातपस्वी की मंगल सन्निधि में पहुंचे नेपाल के प्रथम पूर्व राष्ट्रपति डॉ. रामबरण यादव* *-आप जैसे महान विभूति दिखाते हैं राह : नेपाल के पूर्व राष्ट्रपति* *-प्रेक्षाध्यान पद्धति सभी के लिए हितकारी : युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण* *30.09.2024, सोमवार, वेसु, सूरत (गुजरात) :* जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अधिशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, अहिंसा यात्रा प्रणेता, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी की मंगल सन्निधि में सोमवार को प्रेक्षाध्यान कल्याण वर्ष का भव्य एवं आध्यात्मिक शुभारम्भ हुआ। इस अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में नेपाल के प्रथम पूर्व राष्ट्रपति डॉ. रामबरण यादव भी उपस्थित हुए। प्रेक्षाध्यान के पचासवें वर्ष के प्रारम्भ के अवसर पर आचार्यश्री की प्रेरणा से प्रेक्षाध्यान कल्याण वर्ष का डायमण्ड व सिल्क सिटि सूरत के महावीर समवसरण से प्रारम्भ होकर वर्ष 2025 के 30 सितम्बर तक चलेगा। महावीर समवसरण में सोमवार को मुख्य प्रवचन कार्यक्रम के लिए युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी पधारे तो पूरा प्रवचन पण्डाल जयघोष से गुंजायमान हो उठा। आचार्यश्री के मंगल महामंत्रोच्चार के साथ कार्यक्रम का शुभारम्भ हुआ। साध्वीवृंद ने प्रेक्षा गीत का संगान किया। सूरत चतुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति के अध्यक्ष श्री संजय सुराणा, अध्यात्म साधना केन्द्र के डायरेक्टर श्री केसी जैन, प्रेक्षा इण्टरनेशनल के अयध्यक्ष श्री अरविंद संचेती, जैन विश्व भारती के अध्यक्ष श्री अमरचंद लुंकड़ ने अपनी-अपनी भावाभिव्यक्ति दी। साध्वीप्रमुखा विश्रुतविभाजी ने प्रेक्षाध्यान कल्याण वर्ष शुभारम्भ के अवसर पर उपस्थित जनता को प्रेक्षाध्यान के विषय में प्रेरणा प्रदान की। नेपाल के पूर्व प्रथम राष्ट्रपति डॉ. रामबरण यादव ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि यह मेरा सौभाग्य है कि मुझे आचार्यश्री महाश्रमणजी के दर्शन करने अवसर प्राप्त हो रहा है। अभी पूरा विश्व घृणा के भावों को दूर करने के लिए संघर्ष कर रही है, ऐसी स्थिति में आचार्यश्री महाश्रमणजी जैसे महान संत की परम आवश्यकता है। मैं इस पावन अवसर पर मैं शुभकामना देता हूं कि भगवान महावीर की कृपा सभी पर बना रहे। मैं आचार्यश्री के विचारों से प्रभावित हूं और उनके दर्शन करने यहां आया हूं। आप जैसे विभूति ही हमें राह दिखा सकते हैं। प्रेक्षा इण्टरनेशनल के आध्यात्मिक पर्यवेक्षक मुनि कुमारश्रमणजी ने इस वर्ष के शुभारम्भ के संदर्भ में आचार्यश्री द्वारा प्रदान किए आशीर्वचनों का वाचन किया। तदुपरान्त युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने उपस्थित विशाल जनमेदिनी को पावन प्रतिबोध प्रदान करते हुए कहा कि आयारो आगम में बताया गया है कि अध्यात्म की साधना में शरीर के प्रति ममत्व भी छोड़ने की बात होती है। आदमी का ममत्व पदार्थों से होता है तो उससे भी ज्यादा ममत्व आदमी का अपने शरीर से भी हो सकता है। इसलिए अध्यात्म की साधना में अपने शरीर के प्रति ममत्व नहीं रखना, उच्च कोटि की साधना होती है। अध्यात्म की साधना में अहंकार और ममकार का भाव त्याज्य माना गया है। आज से प्रेक्षाध्यान कल्याण वर्ष प्रारम्भ हो रहा है। एक वर्ष की कालावधि है। सन् 1975 में परम पूज्य गुरुदेव तुलसी का ग्रीन हाउस में हो रहा था और वहां इस पद्धति का नामकरण हुआ था-प्रेक्षाध्यान। दुनिया में अनेक नामों से ध्यान पद्धतियां चल रही हैं। हमारे तेरापंथ धर्मसंघ में परम पूज्य आचार्यश्री तुलसी के सान्निध्य में प्रारम्भ होने वाले इस कार्य में आचार्यश्री महाप्रज्ञजी (तत्कालीन मुनि नथमलजी स्वामी ‘टमकोर’) मुख्य व्यक्ति थे। इसके प्रधान समायोजक आचार्यश्री महाप्रज्ञजी को देख सकते हैं। प्रेक्षाध्यान पद्धति हमारे धर्मसंघ का एक योगदान है। जैन विश्व भारती के तुलसी अध्यात्म नीडम में शिविर लगते तो आचार्यश्री महाप्रज्ञजी वहीं विराज जाते और ध्यान का प्रयोग कराते। अध्यात्म साधना केन्द्र भी ध्यान-साधना का केन्द्र रहा है। अहमदाबाद का प्रेक्षा विश्व भारती भी प्रेक्षाध्यान से जुड़ा हुआ है। अनेकानेक विदेशी भी इस उपक्रम से जुड़े हुए हैं। इन वर्षों में प्रेक्षाध्यान का रूप काफी निखरा हुआ प्रतीत हो रहा है। इस पद्धति से कोई भी जैन-अजैन व्यक्ति जुड़ सकता है। इस प्रकार देश-विदेश में हुआ है। आज सोश्यल मिडिया और ऑनलाइन क्लास आदि के माध्यम से अधुनिक उपकरणों से सुविधा हो गई है। आज डॉ. रामबरणजी यादव का आगमन हुआ है। नेपाल में मिलना हुआ था। प्रेक्षाध्यान कायोत्सर्ग के रूप में वृद्ध लोगों के लिए भी काफी सहायक भी है। आचार्यश्री महाप्रज्ञजी का स्मरण करें, गुरुदेव तुलसी को याद करें। सभी प्रेक्षाध्यान का यथासंभव प्रचार-प्रसार के साथ करने का भी प्रयास करना चाहिए। यह वर्ष अच्छे ढंग से चले, ऐसी मंगलकामना। इस अवसर पर आचार्यश्री ने उपस्थित जनता को कुछ समय के लिए प्रेक्षाध्यान का प्रयोग भी कराया। प्रेक्षाध्यान के शिविरार्थियों को आचार्यश्री ने उपसंपदा प्रदान की। कार्यक्रम में लिम्बायत विधायक श्रीमती संगीताबेन पाटिल ने आचार्यश्री के दर्शन करने के उपरान्त अपनी भावनाओं को अभिव्यक्ति दी। कार्यक्रम का संचालन प्रेक्षा इण्टरनेशनल के आध्यात्मिक पर्यवेक्षक मुनि कुमारश्रमणजी ने किया।