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November 2, 2025

Key line times

Key Line Times राष्ट्रीय हिंदी पाक्षिक समाचार पत्र है जो राजधानी दिल्ली से प्रकाशित होता है एंव भारत सरकार के सूचना एंव प्रसारण मंत्रालय के अंतर्गत आर.एन.आई. से रजिस्ट्रड है। इसका आर.एन.आई.न. DELHIN/2017/72528 है। यह समाचार पत्र 2017 से लगातार प्रकाशित हो रहा है।
*-आचार्यश्री महाश्रमणजी ने लोभ को बताया पाप का बाप, लोभ को छोड़ने को किया अभिप्रेरित…सुरेंद्र मुनोत, ऐसोसिएट एडिटर, Key Line Times वेसु, सूरत (गुजरात) , सूरत शहर में चतुर्मास करने वाले जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता, महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी की मंगल सन्निधि में अनेकानेक कार्यक्रम, अधिवेशन, सेमिनार, गोष्ठी आदि के साथ-साथ अनेक उपक्रम भी संचालित हो रहे हैं। आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में चतुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति के अंतर्गत स्थानीय तेरापंथ किशोर मण्डल द्वारा दोदिवसीय तेरापंथ हस्तकला उत्सव का समायोजन किया गया। आचार्यश्री के मंगल आशीष से प्रारम्भ हुए इस उत्सव को दो दिनों में सैंकड़ों लोगों ने देखा, जाना व समझा। किशोरों द्वारा सुन्दर ढंग से हाथों से विभिन्न वस्तुओं पर बनाई गई कलाकृति प्रदर्शित की गई थी, जो दर्शकों को काफी आकर्षित कर रही थी। नारियल, अखरोट के छिलको पर कलाकारी, लकड़ी, वस्त्र इत्यादि चीजों पर की गयी चित्रकारी उनके हुनर को दर्शा रही थी। बुधवार को जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता, अध्यात्मवेत्ता, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने महावीर समवसरण में उपस्थित श्रद्धालुओं को आयारो आगम के माध्यम से पावन प्रतिबोध प्रदान करते हुए कहा कि आदमी में लोभ की वृत्ति होती है। तत्त्वज्ञान के अनुसार दसवें गुणस्थान तक लोभ बना रहता है। मान और माया तो पहले समाप्त हो जाते हैं, किन्तु लोभ सबसे अंत में समाप्त होने वाला होता है। सामान्य आदमी लोभ के कारण माया भी कर सकता है, लोभ के कारण झूठ बोल सकता है और लोभ के कारण ही हिंसा, हत्या जैसा जघन्य पाप भी कर सकता है। इसलिए लोभ को पाप का बाप कहा गया है। लोभ ही समस्त पापों का जनक होता है। लोभ के कारण आदमी कामनाओं से भावित होता है और फिर उसे करने के लिए वह कुछ भी करने को तैयार हो जाता है। जो आदमी लोभ की प्रवृत्ति को छोड़कर अलोभी बन जाए तो उसकी आत्मा कितनी निष्पाप बन सकता है। अलोभ से लोभ को जीतने का प्रयास करना चाहिए। संतोष से लोभ पर विजय प्राप्त किया जा सकता है। आदमी लोभ को कम करने का प्रयास करना चाहिए। संतोष परम सुख होता है। गृहस्थ जीवन में कोई धनाढ्य हो सकता है। किसी के पास गाड़ी, बंगला, रुपया, पैसा आदि हो सकता है। भवन में एसी आदि की सुविधा हो सकती है, यथा अनेक प्रकार की सुविधाएं हो सकती हैं। इस भौतिक संसाधनों से सुविधा भले प्राप्त हो सकती है, किन्तु शांति की प्राप्ति नहीं हो सकती। मानसिक शांति के लिए जीवन में साधना का होना आवश्यक होता है। मानसिक शांति की प्राप्ति साधना हो सकती है। जहां आकांक्षा, तृष्णा नहीं होती, वहां शांति होती है। अहिंसा, संयम, तप, त्याग की साधना शांति का मार्ग प्रशस्त कर सकते हैं। इसलिए आदमी को शांति के पथ पर आगे बढ़ने का प्रयास करना चाहिए। चतुर्मास का यह समय चल रहा है। चतुर्मास का आधा हिस्सा बीत गया है। अब चतुर्मास का उत्तर्राध चल रहा है। जैन साधु इन चार महीने तक एक स्थान पर रहता है। यह स्थिरता से साधना करने का समय होता है। इस दौरान जितना संभव हो सके आदमी को शांति प्राप्ति का प्रयास करना चाहिए। गृहस्थ का जीवन जीने वाले जितना संभव हो सके, परिग्रह कम करने, संतोष व अलोभ की चेतना का विकास करने का प्रयास होगा, उतना ही परम सुख की प्राप्ति की दिशा में गति हो सकती है। जैन विश्व भारती द्वारा आचार्य भारमलजी की चित्रकथा को आचार्यश्री के समक्ष लोकार्पित किया गया। इस संदर्भ में आचार्यश्री ने पावन आशीर्वाद प्रदान किया। तेरापंथ कन्या मण्डल-सूरत ने चौबीसी के गीत का संगान किया। प्रोफेसर धर्मचंद जैन ने अपनी पचासवीं कृति ‘भारतीय राजनीतिक व्यवस्था और राष्ट्रपति के दो भाग’ को पूज्यप्रवर के समक्ष लोकार्पित करते हुए अपनी भावनाओं की अभिव्यक्ति दी। इस संदर्भ में आचार्यश्री ने पावन आशीर्वाद प्रदान किया। कच्छ-भुज से समागत श्री झवेरीजी, श्री हितेश खांडोर, श्री कीर्तिभाई ने अपनी अभिव्यक्ति दी। इस संदर्भ में आचार्यश्री ने पावन आशीर्वाद प्रदान किया।

*-आचार्यश्री महाश्रमणजी ने लोभ को बताया पाप का बाप, लोभ को छोड़ने को किया अभिप्रेरित…सुरेंद्र मुनोत, ऐसोसिएट एडिटर, Key Line Times वेसु, सूरत (गुजरात) , सूरत शहर में चतुर्मास करने वाले जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता, महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी की मंगल सन्निधि में अनेकानेक कार्यक्रम, अधिवेशन, सेमिनार, गोष्ठी आदि के साथ-साथ अनेक उपक्रम भी संचालित हो रहे हैं। आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में चतुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति के अंतर्गत स्थानीय तेरापंथ किशोर मण्डल द्वारा दोदिवसीय तेरापंथ हस्तकला उत्सव का समायोजन किया गया। आचार्यश्री के मंगल आशीष से प्रारम्भ हुए इस उत्सव को दो दिनों में सैंकड़ों लोगों ने देखा, जाना व समझा। किशोरों द्वारा सुन्दर ढंग से हाथों से विभिन्न वस्तुओं पर बनाई गई कलाकृति प्रदर्शित की गई थी, जो दर्शकों को काफी आकर्षित कर रही थी। नारियल, अखरोट के छिलको पर कलाकारी, लकड़ी, वस्त्र इत्यादि चीजों पर की गयी चित्रकारी उनके हुनर को दर्शा रही थी। बुधवार को जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता, अध्यात्मवेत्ता, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने महावीर समवसरण में उपस्थित श्रद्धालुओं को आयारो आगम के माध्यम से पावन प्रतिबोध प्रदान करते हुए कहा कि आदमी में लोभ की वृत्ति होती है। तत्त्वज्ञान के अनुसार दसवें गुणस्थान तक लोभ बना रहता है। मान और माया तो पहले समाप्त हो जाते हैं, किन्तु लोभ सबसे अंत में समाप्त होने वाला होता है। सामान्य आदमी लोभ के कारण माया भी कर सकता है, लोभ के कारण झूठ बोल सकता है और लोभ के कारण ही हिंसा, हत्या जैसा जघन्य पाप भी कर सकता है। इसलिए लोभ को पाप का बाप कहा गया है। लोभ ही समस्त पापों का जनक होता है। लोभ के कारण आदमी कामनाओं से भावित होता है और फिर उसे करने के लिए वह कुछ भी करने को तैयार हो जाता है। जो आदमी लोभ की प्रवृत्ति को छोड़कर अलोभी बन जाए तो उसकी आत्मा कितनी निष्पाप बन सकता है। अलोभ से लोभ को जीतने का प्रयास करना चाहिए। संतोष से लोभ पर विजय प्राप्त किया जा सकता है। आदमी लोभ को कम करने का प्रयास करना चाहिए। संतोष परम सुख होता है। गृहस्थ जीवन में कोई धनाढ्य हो सकता है। किसी के पास गाड़ी, बंगला, रुपया, पैसा आदि हो सकता है। भवन में एसी आदि की सुविधा हो सकती है, यथा अनेक प्रकार की सुविधाएं हो सकती हैं। इस भौतिक संसाधनों से सुविधा भले प्राप्त हो सकती है, किन्तु शांति की प्राप्ति नहीं हो सकती। मानसिक शांति के लिए जीवन में साधना का होना आवश्यक होता है। मानसिक शांति की प्राप्ति साधना हो सकती है। जहां आकांक्षा, तृष्णा नहीं होती, वहां शांति होती है। अहिंसा, संयम, तप, त्याग की साधना शांति का मार्ग प्रशस्त कर सकते हैं। इसलिए आदमी को शांति के पथ पर आगे बढ़ने का प्रयास करना चाहिए। चतुर्मास का यह समय चल रहा है। चतुर्मास का आधा हिस्सा बीत गया है। अब चतुर्मास का उत्तर्राध चल रहा है। जैन साधु इन चार महीने तक एक स्थान पर रहता है। यह स्थिरता से साधना करने का समय होता है। इस दौरान जितना संभव हो सके आदमी को शांति प्राप्ति का प्रयास करना चाहिए। गृहस्थ का जीवन जीने वाले जितना संभव हो सके, परिग्रह कम करने, संतोष व अलोभ की चेतना का विकास करने का प्रयास होगा, उतना ही परम सुख की प्राप्ति की दिशा में गति हो सकती है। जैन विश्व भारती द्वारा आचार्य भारमलजी की चित्रकथा को आचार्यश्री के समक्ष लोकार्पित किया गया। इस संदर्भ में आचार्यश्री ने पावन आशीर्वाद प्रदान किया। तेरापंथ कन्या मण्डल-सूरत ने चौबीसी के गीत का संगान किया। प्रोफेसर धर्मचंद जैन ने अपनी पचासवीं कृति ‘भारतीय राजनीतिक व्यवस्था और राष्ट्रपति के दो भाग’ को पूज्यप्रवर के समक्ष लोकार्पित करते हुए अपनी भावनाओं की अभिव्यक्ति दी। इस संदर्भ में आचार्यश्री ने पावन आशीर्वाद प्रदान किया। कच्छ-भुज से समागत श्री झवेरीजी, श्री हितेश खांडोर, श्री कीर्तिभाई ने अपनी अभिव्यक्ति दी। इस संदर्भ में आचार्यश्री ने पावन आशीर्वाद प्रदान किया।

मदुरै में मोटर चालकों को यातायात नियमों का पालन करने के लिए किया गया प्रोत्साहित… सतीश जैन,ऐसोसिएट एडिटर, Key Line Times मदूरै,यातायात पुलिस विभाग लगातार वाहन चालकों को यातायात नियमों के प्रति जागरूक कर रहा है। इसके बाद यातायात नियमों का पालन करने वाले और वाहन चलाने वाले वाहन चालकों को पुरस्कार और सराहना दी जाती है। ऐसे में आज 23.09.24 को अराराडी की बैठक में मदुरै ट्रैफिक पुलिस की डिप्टी कमिश्नर एस वनिता ने कहा. ट्रैफिक सिग्नल पर, उन्होंने वाहन चालकों को स्टॉप लाइन पर ठीक से रुकने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए पेन, मिठाइयाँ और जागरूकता पुस्तिकाएँ वितरित कीं। उनके साथ सहायक परिवहन आयुक्त श्री इलामरण सर भी थे। नव युवक तिलकर थिटल ट्रैफिक पुलिस इंस्पेक्टर श्री थंगामणि ने मिलकर काम किया।

मदुरै में मोटर चालकों को यातायात नियमों का पालन करने के लिए किया गया प्रोत्साहित… सतीश जैन,ऐसोसिएट एडिटर, Key Line Times मदूरै,यातायात पुलिस विभाग लगातार वाहन चालकों को यातायात नियमों के प्रति जागरूक कर रहा है। इसके बाद यातायात नियमों का पालन करने वाले और वाहन चलाने वाले वाहन चालकों को पुरस्कार और सराहना दी जाती है। ऐसे में आज 23.09.24 को अराराडी की बैठक में मदुरै ट्रैफिक पुलिस की डिप्टी कमिश्नर एस वनिता ने कहा. ट्रैफिक सिग्नल पर, उन्होंने वाहन चालकों को स्टॉप लाइन पर ठीक से रुकने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए पेन, मिठाइयाँ और जागरूकता पुस्तिकाएँ वितरित कीं। उनके साथ सहायक परिवहन आयुक्त श्री इलामरण सर भी थे। नव युवक तिलकर थिटल ट्रैफिक पुलिस इंस्पेक्टर श्री थंगामणि ने मिलकर काम किया।

साउथ हावड़ा मे हुवा पूर्वांचल स्तरीय युवा सम्मेलन का भव्य आयोजन…सुरेंद्र मुनोत ऐसोसिएट एडिटर, Key Line Timea साउथ हावड़ा, युगप्रधान आचार्य श्री महाश्रमण जी के सुशिष्य मुनिश्री जिनेश कुमार जी ठाणा- 3 के सान्निध्य में अखिल भारतीय तेरापंथ युवक परिषद् के तत्वावधान में पूर्वांचल स्तरीय युवा सम्मेलन का आयोजन प्रेक्षा विहार में तेरापंथ युवक परिषद् साउथ हावड़ा द्वारा किया गया। सम्मेलन में अखिल भारतीय तेरापंथ युवक परिषद के अध्यक्ष रमेश डागा, महामंत्री अमित नाहटा, मुख्य वक्ता कल्याण परिषद के संयोजक के. सी. जैन मुख्य अतिथि आई.ए.एस. अफिसर वैभव चैधरी, अ.भा. ते.यु.प. के पूर्व अध्यक्ष रतनजी दुगड़, महासभा के पूर्व अध्यक्ष सुरेश जी गोयल, अ.भा.यु.प.के पूर्व सहमंत्री सचेतक अनंत बागरेचा, कार्यकारिणी सदस्य जय चोरडिया,महाप्रज्ञ मेडिकल प्रभारी विकास बोथरा, भिक्षु दर्शन कार्यशाला प्रभारी सूर्यप्रकाश डागा, कार्यकारिणी सदस्य दीप पुगलिया, सुमित छाजेड़, राजीव बोथरा, आदि गणमान्य व्यक्ति विशेष रूप से उपस्थित थे। उद्‌घाटन सत्र में संगठन और युवा विषय पर उपस्थित युवाओं को संबोधित करते हुए मुनि श्री जिनेश कुमार जी ने कहा- सामाजिक एवं धार्मिक चेतना के जागरण का एक सशक्त माध्यम है- संगठन । संगठन में शक्ति होती है। शक्ति-शक्ति को आकर्षित – करती है। शक्ति व दायित्व बोध के अभाव में अच्छे से अच्छा संगठन भी तिनके की तरह बिखर जाता है | उद्देश्य और दायित्व के साथ चलने वाला छोटे से छोटा संगठन भी आकाशव्यापी ऊँचाईयों को प्राप्त हो सकता है। गुरुदेव तुलसी की दूर दर्शिता, आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी एवं आचार्य श्री महाश्रमण जी के पावन सिंचन से यह बहुत फली और फूली है। संगठन को शक्तिशाली बनाने के लिए समन, अप्रतिबद्ध व शांति साधक व्यक्तियों का होना बहुत जरुरी है। ‘मुनि श्री ने आगे कहा- युवा स्वर्ग की सच्ची अनुभूति है। युवा समाज का यथार्थ प्रतिबिम्ब है। युवा शक्ति का प्रतीक व ऊर्जा का पुंज है। युवा देश की तकदीर व तस्वीर है। युवा पराक्रम का प्रतीक होता है। वह अपने पुरुषार्थ व पराक्रम के द्वारा असंभव प्रतीत होने वाले कार्य को भी संभव बना देता है। युवा शब्द या अर्थ है वायु की तरह गतिशील होना। युवाओं को श्रद्वाशील विचारशील, सहनशील, कर्मशील व चरित्र शील होना चाहिए। सेवा, संस्कार व संगठन के माध्यम से सभी युवा धर्मसंघ की खूब सेवा करते रहें। इस अवसर पर मुनि श्री परमानंद जी ने कहा- संगठन में शक्ति होती है। सेवा, संस्कार के कार्य भी तभी हो सकेंगे जब युवा संगठित, और एकजुट होंगें। इस अवसर पर बाल मुनिश्री कुणाल कुमार जी ने सुमधुर गीत का संगान किया। कार्यक्रम उद्‌घाटन सत्र का प्रारंभ मुनि श्री के नमस्कार महामंत्रोच्चार के साथ हुआ। शाखा परिषदों के अध्यक्ष मंत्रियों द्वारा विजय गीत का संगान किया गया। श्रावक निष्ठा पत्र का वाचन कल्याण परिषद् के संयोजक के सी. जैन ने किया। अ.भा.ते.यु.प. के अध्यक्ष रमेशजी डागा ने युवा सम्मेलन के उद्‌घाटन की घोषणा की। स्वागत भाषण तेरापंथ युवक परिषद् साउथ हावड़ा के अध्यक्ष गगनदीप बैद ने किया। साउथ हावड़ा श्री जैन श्वेताम्बर तेरापंथी सभा के सहमंत्री कपिल धारीवाल ने सभा की ओर से आगंतुकों का स्वागत करते हुए विचार-व्यक्त किये। राष्ट्रीय अध्यक्ष रमेशजी डागा ने सेवा संस्कार व संगठन के बारे में जानकारी देते हुए संगठित रहते हुए संस्था के प्रति समर्पित रहकर कार्य करने का आहवान किया मुख्य वक्ता कल्याण परिषद के संयोजक के सी. जैन ने युवाओं को प्रकृति के नियमों व श्वास के प्रति जागरूक रहकर धर्मसंध की सेवा करने की बात कही। मुख्य अतिथि I.A.S. ऑफिसर वैभव चौधरी ने कहा- युवापीढ़ी अपने जीवन में धर्म एवं संघ को सुदृढ़ करें। सभी एकजुट होकर एक दूसरे को सहयोग करें। ते.यु.प. एवं किशोर मंडल के सदस्यों ने सुमधुर गीत का संगान किया। अतिथियों एवं प्रायोजको का ते.यु.प. द्वारा सम्मान किया गया। कार्यक्रम का संचालन मुनिश्री परमानंद जी व मंत्री अमीत बैगवानी ने किया। द्वितीय सत्र संकल्प सत्र (हमारा संकल्प हमारे आयाम) में राष्ट्रीय अध्यक्ष ने अपने उदबोदन में कहा की 2016 से ही पूर्वांचल की सभी परिषदें अधिक सक्रियता के साथ कार्य कर रही है। आचार्य तुलसी की दूरगामी सोच थी की युवा कुछ भी कार्य कर सकता है । इस संस्था में कार्यकर्ताओं का निर्माण होता है। पूर्वांचल स्तरीय युवा सम्मेलन में भी युवक उपस्थित है सब क्वालिटी है और जो चाहते है की धर्म संघ का विकास हो। युवक परिषद एक मात्र संस्था है जिसके पास तीस आयाम है। अभातेयुप के पूर्व अध्यक्ष श्री रतन लाल दुगड़ ने बताया की जब परिषद का निर्माण हुआ तब आचार्य तुलसी से पूछा गया गुरुदेव हम क्या करें क्योंकि उस समय कोई कार्य करने को नही था और आज बोलते है हम क्या क्या करें। युवकों को अपने समय का नियोजन करना चाहिए। युवा सम्मेलन करने का उद्देश्य है की हम सब को एक दूसरे से प्रेरणा मिले। अभातेयुप संचेतक श्री अनंत बागरेचा , अभातेयुप सदस्य श्री विकास बोथरा, श्री सुमित छाजेड़,श्री दीप पुगलिया, श्री जय चोरड़िया, श्री राजीव बोथरा, श्री सूर्यप्रकाश डागा ने आयामों के विषय में जानकारी प्रदान की। अभातेयुप महामंत्री श्री अमित नाहटा ने कहा की हमारा युवक परिषद से जुड़ने का लक्ष्य है की हम अपने जीवन को और अच्छा कैसे बना सकें। हमारे अंदर बोलने का विकास हो। वर्तमान में फास्ट मनी का चलन आया जिससे हमारे युवकों को बचना चाहिए। छोटे बच्चों को नशे से बचाना है, बिज़नेस का ट्रेंड चेंज हो रहा है हमारे बिज़नेस को एक्सपेंड करने का समय है। स्वस्थ रहे , पैसा कमाएं, शांति का विकास करें आदि अनेक बातो पर प्रकाश डाला। तृतीय सत्र ऊर्जा सत्र में परिषद के उपाध्यक्ष श्री विक्रम भंडारी ने मुख्य वक्ता का स्वागत किया एवं अपने उदगार व्यक्त किये। मुख्य वक्ता श्री विक्रम जी सेठीया (Life Coach) ने कहा जीवन में हम जो भी पाते है वो धर्म से ही प्राप्त होता है हमे अपने जीवन में धर्म को पकड़ कर रखना चाहिए। विक्रम जी ने युवाओं में जोश एवं ऊर्जा का संचार किया। मुनिश्री ने प्रेरणा पाथेय प्रदान किया। उपस्थित सभी परिषदों का सम्मान किया गया। आभार ज्ञापन सहमंत्री श्री राहुल दुगड़ ने किया एवं संचालन मंत्री श्री अमित बेगवानी ने किया। सम्मेलन को सफल बनाने में उपाध्यक्ष एवं संयोजक श्री विक्रम भंडारी सह संयोजक श्री भानु प्रताप चोरड़िया सहित सम्पूर्ण प्रबंधन समिति एवं कार्यसमिति सदस्यों का विशेष श्रम रहा। युवा सम्मेलन में साउथ हावड़ा, उत्तर कलकत्ता, लिलुआ, साउथ कलकत्ता, पूर्वांचल कोलकाता, हिन्दमोटर, कोलकाता मेन, उत्तर हावड़ा, सेंथिया, मुर्शिदाबाद इस्लामपुर और दिनहट्टा की शाखा परिषदों ने सहभागिता दर्ज की। सम्मेलन में लगभग 200 युवक सहभागी बनें। सम्मेलन प्रारंभ होने से पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं महामंत्री ने युवा साथियों की उपस्थिति में ध्वजारोहण किया।

साउथ हावड़ा मे हुवा पूर्वांचल स्तरीय युवा सम्मेलन का भव्य आयोजन…सुरेंद्र मुनोत ऐसोसिएट एडिटर, Key Line Timea साउथ हावड़ा, युगप्रधान आचार्य श्री महाश्रमण जी के सुशिष्य मुनिश्री जिनेश कुमार जी ठाणा- 3 के सान्निध्य में अखिल भारतीय तेरापंथ युवक परिषद् के तत्वावधान में पूर्वांचल स्तरीय युवा सम्मेलन का आयोजन प्रेक्षा विहार में तेरापंथ युवक परिषद् साउथ हावड़ा द्वारा किया गया। सम्मेलन में अखिल भारतीय तेरापंथ युवक परिषद के अध्यक्ष रमेश डागा, महामंत्री अमित नाहटा, मुख्य वक्ता कल्याण परिषद के संयोजक के. सी. जैन मुख्य अतिथि आई.ए.एस. अफिसर वैभव चैधरी, अ.भा. ते.यु.प. के पूर्व अध्यक्ष रतनजी दुगड़, महासभा के पूर्व अध्यक्ष सुरेश जी गोयल, अ.भा.यु.प.के पूर्व सहमंत्री सचेतक अनंत बागरेचा, कार्यकारिणी सदस्य जय चोरडिया,महाप्रज्ञ मेडिकल प्रभारी विकास बोथरा, भिक्षु दर्शन कार्यशाला प्रभारी सूर्यप्रकाश डागा, कार्यकारिणी सदस्य दीप पुगलिया, सुमित छाजेड़, राजीव बोथरा, आदि गणमान्य व्यक्ति विशेष रूप से उपस्थित थे। उद्‌घाटन सत्र में संगठन और युवा विषय पर उपस्थित युवाओं को संबोधित करते हुए मुनि श्री जिनेश कुमार जी ने कहा- सामाजिक एवं धार्मिक चेतना के जागरण का एक सशक्त माध्यम है- संगठन । संगठन में शक्ति होती है। शक्ति-शक्ति को आकर्षित – करती है। शक्ति व दायित्व बोध के अभाव में अच्छे से अच्छा संगठन भी तिनके की तरह बिखर जाता है | उद्देश्य और दायित्व के साथ चलने वाला छोटे से छोटा संगठन भी आकाशव्यापी ऊँचाईयों को प्राप्त हो सकता है। गुरुदेव तुलसी की दूर दर्शिता, आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी एवं आचार्य श्री महाश्रमण जी के पावन सिंचन से यह बहुत फली और फूली है। संगठन को शक्तिशाली बनाने के लिए समन, अप्रतिबद्ध व शांति साधक व्यक्तियों का होना बहुत जरुरी है। ‘मुनि श्री ने आगे कहा- युवा स्वर्ग की सच्ची अनुभूति है। युवा समाज का यथार्थ प्रतिबिम्ब है। युवा शक्ति का प्रतीक व ऊर्जा का पुंज है। युवा देश की तकदीर व तस्वीर है। युवा पराक्रम का प्रतीक होता है। वह अपने पुरुषार्थ व पराक्रम के द्वारा असंभव प्रतीत होने वाले कार्य को भी संभव बना देता है। युवा शब्द या अर्थ है वायु की तरह गतिशील होना। युवाओं को श्रद्वाशील विचारशील, सहनशील, कर्मशील व चरित्र शील होना चाहिए। सेवा, संस्कार व संगठन के माध्यम से सभी युवा धर्मसंघ की खूब सेवा करते रहें। इस अवसर पर मुनि श्री परमानंद जी ने कहा- संगठन में शक्ति होती है। सेवा, संस्कार के कार्य भी तभी हो सकेंगे जब युवा संगठित, और एकजुट होंगें। इस अवसर पर बाल मुनिश्री कुणाल कुमार जी ने सुमधुर गीत का संगान किया। कार्यक्रम उद्‌घाटन सत्र का प्रारंभ मुनि श्री के नमस्कार महामंत्रोच्चार के साथ हुआ। शाखा परिषदों के अध्यक्ष मंत्रियों द्वारा विजय गीत का संगान किया गया। श्रावक निष्ठा पत्र का वाचन कल्याण परिषद् के संयोजक के सी. जैन ने किया। अ.भा.ते.यु.प. के अध्यक्ष रमेशजी डागा ने युवा सम्मेलन के उद्‌घाटन की घोषणा की। स्वागत भाषण तेरापंथ युवक परिषद् साउथ हावड़ा के अध्यक्ष गगनदीप बैद ने किया। साउथ हावड़ा श्री जैन श्वेताम्बर तेरापंथी सभा के सहमंत्री कपिल धारीवाल ने सभा की ओर से आगंतुकों का स्वागत करते हुए विचार-व्यक्त किये। राष्ट्रीय अध्यक्ष रमेशजी डागा ने सेवा संस्कार व संगठन के बारे में जानकारी देते हुए संगठित रहते हुए संस्था के प्रति समर्पित रहकर कार्य करने का आहवान किया मुख्य वक्ता कल्याण परिषद के संयोजक के सी. जैन ने युवाओं को प्रकृति के नियमों व श्वास के प्रति जागरूक रहकर धर्मसंध की सेवा करने की बात कही। मुख्य अतिथि I.A.S. ऑफिसर वैभव चौधरी ने कहा- युवापीढ़ी अपने जीवन में धर्म एवं संघ को सुदृढ़ करें। सभी एकजुट होकर एक दूसरे को सहयोग करें। ते.यु.प. एवं किशोर मंडल के सदस्यों ने सुमधुर गीत का संगान किया। अतिथियों एवं प्रायोजको का ते.यु.प. द्वारा सम्मान किया गया। कार्यक्रम का संचालन मुनिश्री परमानंद जी व मंत्री अमीत बैगवानी ने किया। द्वितीय सत्र संकल्प सत्र (हमारा संकल्प हमारे आयाम) में राष्ट्रीय अध्यक्ष ने अपने उदबोदन में कहा की 2016 से ही पूर्वांचल की सभी परिषदें अधिक सक्रियता के साथ कार्य कर रही है। आचार्य तुलसी की दूरगामी सोच थी की युवा कुछ भी कार्य कर सकता है । इस संस्था में कार्यकर्ताओं का निर्माण होता है। पूर्वांचल स्तरीय युवा सम्मेलन में भी युवक उपस्थित है सब क्वालिटी है और जो चाहते है की धर्म संघ का विकास हो। युवक परिषद एक मात्र संस्था है जिसके पास तीस आयाम है। अभातेयुप के पूर्व अध्यक्ष श्री रतन लाल दुगड़ ने बताया की जब परिषद का निर्माण हुआ तब आचार्य तुलसी से पूछा गया गुरुदेव हम क्या करें क्योंकि उस समय कोई कार्य करने को नही था और आज बोलते है हम क्या क्या करें। युवकों को अपने समय का नियोजन करना चाहिए। युवा सम्मेलन करने का उद्देश्य है की हम सब को एक दूसरे से प्रेरणा मिले। अभातेयुप संचेतक श्री अनंत बागरेचा , अभातेयुप सदस्य श्री विकास बोथरा, श्री सुमित छाजेड़,श्री दीप पुगलिया, श्री जय चोरड़िया, श्री राजीव बोथरा, श्री सूर्यप्रकाश डागा ने आयामों के विषय में जानकारी प्रदान की। अभातेयुप महामंत्री श्री अमित नाहटा ने कहा की हमारा युवक परिषद से जुड़ने का लक्ष्य है की हम अपने जीवन को और अच्छा कैसे बना सकें। हमारे अंदर बोलने का विकास हो। वर्तमान में फास्ट मनी का चलन आया जिससे हमारे युवकों को बचना चाहिए। छोटे बच्चों को नशे से बचाना है, बिज़नेस का ट्रेंड चेंज हो रहा है हमारे बिज़नेस को एक्सपेंड करने का समय है। स्वस्थ रहे , पैसा कमाएं, शांति का विकास करें आदि अनेक बातो पर प्रकाश डाला। तृतीय सत्र ऊर्जा सत्र में परिषद के उपाध्यक्ष श्री विक्रम भंडारी ने मुख्य वक्ता का स्वागत किया एवं अपने उदगार व्यक्त किये। मुख्य वक्ता श्री विक्रम जी सेठीया (Life Coach) ने कहा जीवन में हम जो भी पाते है वो धर्म से ही प्राप्त होता है हमे अपने जीवन में धर्म को पकड़ कर रखना चाहिए। विक्रम जी ने युवाओं में जोश एवं ऊर्जा का संचार किया। मुनिश्री ने प्रेरणा पाथेय प्रदान किया। उपस्थित सभी परिषदों का सम्मान किया गया। आभार ज्ञापन सहमंत्री श्री राहुल दुगड़ ने किया एवं संचालन मंत्री श्री अमित बेगवानी ने किया। सम्मेलन को सफल बनाने में उपाध्यक्ष एवं संयोजक श्री विक्रम भंडारी सह संयोजक श्री भानु प्रताप चोरड़िया सहित सम्पूर्ण प्रबंधन समिति एवं कार्यसमिति सदस्यों का विशेष श्रम रहा। युवा सम्मेलन में साउथ हावड़ा, उत्तर कलकत्ता, लिलुआ, साउथ कलकत्ता, पूर्वांचल कोलकाता, हिन्दमोटर, कोलकाता मेन, उत्तर हावड़ा, सेंथिया, मुर्शिदाबाद इस्लामपुर और दिनहट्टा की शाखा परिषदों ने सहभागिता दर्ज की। सम्मेलन में लगभग 200 युवक सहभागी बनें। सम्मेलन प्रारंभ होने से पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं महामंत्री ने युवा साथियों की उपस्थिति में ध्वजारोहण किया।

आचार्यश्री महाश्रमणजी ने स्वयं के कल्याण के साथ दूसरों का कल्याण करने को किया अभिप्रेरित….सुरेंद्र मुनोत, ऐसोसिएट एडिटर, Key Line Times वेसु, सूरत (गुजरात) , भारत की प्राचीन व्यापारिक नगरी, डायमण्ड सिटि, सिल्क सिटि के रूप में विख्यात सूरत शहर वर्तमान में आध्यात्मिक नगरी बनी हुई है। ताप्ती नदी के तट पर स्थित सूरत में आध्यात्मिकता की अलख जगा रहे हैं जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें देदीप्यमान महासूर्य आचार्यश्री महाश्रमण। उनके दर्शन तथा उनकी अमृतवाणी का श्रवण करने के लिए देश-विदेश से श्रद्धालुओं के पहुंचने का क्रम निरंतर जारी है। सूरतवासियों की ओर से की गई विशाल और भव्य चातुर्मासिक व्यवस्थाएं बाहर से आने वाले श्रद्धालुओं को आह्लादित करती हैं। पर्युषण के उपरान्त आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में देश के विभिन्न हिस्सों से लोग संघबद्ध रूप में दर्शनार्थ उपस्थित हो रहे हैं। जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता, अहिंसा यात्रा प्रणेता, शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने मंगलवार को महावीर समवसरण में उपस्थित जनता को ‘आयारो’ आगम के माध्यम से पावन प्रतिबोध प्रदान करते हुए कहा कि आदमी की प्रशंसा भी होती है। जो आदमी अच्छा कार्य करता है, वह प्रशंसा का पात्र बन जाता है। वह वीर प्रशंसनीय होता है जो बंधे हुए व्यक्तियों को मुक्त कर देता है। अनेक संदर्भों में आदमी वीर हो सकता है। निर्भीक होकर मोर्चा संभालने वाला सैनिक भी वीर होता है, साधुता की दीक्षा स्वीकार करने वाला भी वीर होता है। मनुष्य जन्म, श्रुति धर्म, श्रद्धावान हो जाना और संयमवीर्य हो जाना कठिन बताया गया है। वह आदमी वीर होता है, जो संयम के पथ पर आगे बढ़ने का प्रयास करता है। साधुता का स्वीकरण भी मानों एक धर्मयुद्ध है। भौतिकता की चकाचौंध को छोड़कर संयम की साधना और आत्मा के कल्याण के पथ पर आगे बढ़ना भी बहुत बड़ी बात होती है। यहां धर्मयुद्ध होता है, जिसमें साधक अपनी कामनाओं, वासनाओं, कषायों पर विजय प्राप्त करने हुए अपने आत्मा पर विजय प्राप्त कर लेता है, वह संग्राम में विजयी होने से वाले भी बड़ा योद्धा होता है, महावीर होता है। अपनी आत्मा को काम, क्रोध, लोभ व मोह से अपनी आत्मा को मुक्त कराने वाला वीर होता है और वह प्रशंसनीय भी होता है। जो दूसरों की आत्मा को पापों से मुक्त कराता है, स्वयं तरते हुए दूसरों को तारने वाला प्रशंसनीय होता है। युगप्रधान आचार्यश्री के मंगल प्रवचन के उपरान्त उपस्थित जनता को साध्वीवर्या साध्वी सम्बुद्धयशाजी ने भी मंगल प्रेरणा प्रदान की। जैन श्वेताम्बर तेरापंथी मानव हितकारी संघ राणावास संस्था के अध्यक्ष श्री मोहनलाल गादिया ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। संस्था से जुड़ी छात्राओं ने गीत का संगान किया। इस संदर्भ में आचार्यश्री ने आशीष प्रदान करते हुए कहा कि राणावास में परम पूज्य आचार्यश्री तुलसी का चतुर्मास हुआ था। वहां इतना शिक्षा का कार्य हो रहा है। वहां खूब अच्छा होता रहे।

आचार्यश्री महाश्रमणजी ने स्वयं के कल्याण के साथ दूसरों का कल्याण करने को किया अभिप्रेरित….सुरेंद्र मुनोत, ऐसोसिएट एडिटर, Key Line Times वेसु, सूरत (गुजरात) , भारत की प्राचीन व्यापारिक नगरी, डायमण्ड सिटि, सिल्क सिटि के रूप में विख्यात सूरत शहर वर्तमान में आध्यात्मिक नगरी बनी हुई है। ताप्ती नदी के तट पर स्थित सूरत में आध्यात्मिकता की अलख जगा रहे हैं जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें देदीप्यमान महासूर्य आचार्यश्री महाश्रमण। उनके दर्शन तथा उनकी अमृतवाणी का श्रवण करने के लिए देश-विदेश से श्रद्धालुओं के पहुंचने का क्रम निरंतर जारी है। सूरतवासियों की ओर से की गई विशाल और भव्य चातुर्मासिक व्यवस्थाएं बाहर से आने वाले श्रद्धालुओं को आह्लादित करती हैं। पर्युषण के उपरान्त आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में देश के विभिन्न हिस्सों से लोग संघबद्ध रूप में दर्शनार्थ उपस्थित हो रहे हैं। जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता, अहिंसा यात्रा प्रणेता, शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने मंगलवार को महावीर समवसरण में उपस्थित जनता को ‘आयारो’ आगम के माध्यम से पावन प्रतिबोध प्रदान करते हुए कहा कि आदमी की प्रशंसा भी होती है। जो आदमी अच्छा कार्य करता है, वह प्रशंसा का पात्र बन जाता है। वह वीर प्रशंसनीय होता है जो बंधे हुए व्यक्तियों को मुक्त कर देता है। अनेक संदर्भों में आदमी वीर हो सकता है। निर्भीक होकर मोर्चा संभालने वाला सैनिक भी वीर होता है, साधुता की दीक्षा स्वीकार करने वाला भी वीर होता है। मनुष्य जन्म, श्रुति धर्म, श्रद्धावान हो जाना और संयमवीर्य हो जाना कठिन बताया गया है। वह आदमी वीर होता है, जो संयम के पथ पर आगे बढ़ने का प्रयास करता है। साधुता का स्वीकरण भी मानों एक धर्मयुद्ध है। भौतिकता की चकाचौंध को छोड़कर संयम की साधना और आत्मा के कल्याण के पथ पर आगे बढ़ना भी बहुत बड़ी बात होती है। यहां धर्मयुद्ध होता है, जिसमें साधक अपनी कामनाओं, वासनाओं, कषायों पर विजय प्राप्त करने हुए अपने आत्मा पर विजय प्राप्त कर लेता है, वह संग्राम में विजयी होने से वाले भी बड़ा योद्धा होता है, महावीर होता है। अपनी आत्मा को काम, क्रोध, लोभ व मोह से अपनी आत्मा को मुक्त कराने वाला वीर होता है और वह प्रशंसनीय भी होता है। जो दूसरों की आत्मा को पापों से मुक्त कराता है, स्वयं तरते हुए दूसरों को तारने वाला प्रशंसनीय होता है। युगप्रधान आचार्यश्री के मंगल प्रवचन के उपरान्त उपस्थित जनता को साध्वीवर्या साध्वी सम्बुद्धयशाजी ने भी मंगल प्रेरणा प्रदान की। जैन श्वेताम्बर तेरापंथी मानव हितकारी संघ राणावास संस्था के अध्यक्ष श्री मोहनलाल गादिया ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। संस्था से जुड़ी छात्राओं ने गीत का संगान किया। इस संदर्भ में आचार्यश्री ने आशीष प्रदान करते हुए कहा कि राणावास में परम पूज्य आचार्यश्री तुलसी का चतुर्मास हुआ था। वहां इतना शिक्षा का कार्य हो रहा है। वहां खूब अच्छा होता रहे।

शांतिदूत की मंगल सन्निधि में पहुंचे केन्द्रीय जलशक्ति मंत्री सी.आर. पाटिल…सुरेंद्र मुनोत, ऐसोसिएट एडिटर, Key Line Times वेसु, सूरत (गुजरात), जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अधिशास्ता, मानवता के मसीहा आचार्यश्री महाश्रमणजी की मंगल सन्निधि में रविवार को केन्द्रीय जलशक्ति मंत्री तथा भाजपा के गुजरात राज्य प्रदेशाध्यक्ष श्री सी.आर. पाटिल उपस्थित हुए। उन्होंने आचार्यश्री को वंदन कर पावन आशीर्वाद प्राप्त करने के उपरान्त आचार्यश्री की मंगलवाणी श्रवण भी करने के साथ ही अपनी भावनाओं को भी अभिव्यक्ति दी। आचार्यश्री ने उन्हें पावन पाथेय भी प्रदान किया। युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने रविवार को महावीर समवसरण में उपस्थित श्रद्धालुओं को अपनी अमृतवाणी का रसपान कराते हुए कहा कि आयारो आगम में बताया गया है कि काम का अतिक्रमण करना मुश्किल होता है। काम शब्द का प्रयोग अनेक प्रकार के कार्यों के संदर्भ में होता है तो काम एक अर्थ कामना के संदर्भ में भी होता है। इन्द्रिय विषय के संदर्भ में भी काम शब्द का प्रयोग होता है। यहां कामना के संदर्भ में प्रयोग किया गया है। कामना होती है तो आदमी पदार्थों का संग्रह करता है, पदार्थों का परिग्रह रखता है। इच्छा काम के अंतर्गत सोना, चांदी आदि पदार्थों को प्राप्त करना, धन, मकान, पदवी आदि आते हैं। दूसरा बताया गया मदन काम। शब्द, रूप, रस, गंध, स्पर्श आदि की कामना मदन काम है। काम अनंतकाल से प्राणी के भीतर रहती है। इसलिए इस काम का पार पाना मुश्किल भी होता है। इच्छाओं को कम करना, लोभ का क्षय तथा संतोष को धारण करना बड़ा कठिन काम होता है। लोभ को पाप का बाप कहा जाता है। कितने-कितने पापों के जड़ में लोभ ही होता है। लोभ के कारण हिंसा में जा सकता है। लोभ के कारण आदमी झूठ बोल सकता है, छल-कपट कर सकता है। यहां तक कि लोभ के कारण आदमी किसी की हिंसा भी कर सकता है। इस कारण काम दुःख का भी बहुत बड़ा कारण है। कामनुवृद्धि के कारण शरीर और मन दोनों को दुःखी बनाने वाला हो सकता है। जो प्राणी वीतराग बन जाता है, वह दुःख का पार पा सकता है। काम अध्यात्म की साधना में परित्याज्य होता है। साधना की गहराई में जाने से कामनाओं का पार भी पा सकता है। आदमी को अपनी इच्छाओं को नियंत्रित करने का प्रयास करना चाहिए। भौतिक इच्छाओं की सीमा रखनी चाहिए। स्वदार, भोजन व धन में संतोष रखने का प्रयास करना चाहिए तथा अध्ययन, जप और दान में संतोष नहीं करना चाहिए। आज आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में केन्द्रीय जलशक्ति मंत्री व गुजरात भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष श्री सी.आर. पाटिल पहुंचे। उन्होंने आचार्यश्री को वंदन कर आशीष प्राप्त करने के उपरान्त उन्होंने अपनी भावनाओं को अभिव्यक्त करते हुए कहा कि हमारे आंगन में पूज्य संत आचार्यश्री महाश्रमणजी का पावन चतुर्मास हो रहा है, यह हम सभी के लिए परम सौभाग्य की बात है। आपके आगमन से यहां की जनता आह्लादित है। मैंने आपकी कीर्ति और ख्याति तो बहुत सुन रखी थी आज दर्शन का अवसर प्राप्त हुआ है। आपकी विकट पदयात्रा और जनकल्याण का जो कार्य किया है, वह अद्वितीय है। आपने अभी दान में संतोष नहीं करने की जो प्रेरणा दी है, वह भी समाज के लिए कल्याणकारी है। आप तो लोगों को नीति पर चलने का राह भी दिखाते हैं। राजनीति में तो लोगों को सेवा की भावना से आना चाहिए। मेरा मानना है कि जो आदमी धर्म को नहीं मानता, वह अनीति का कार्य करने में डरेगा नहीं, और धर्म में आस्था रखने वाला होगा तो वह नीति पर चलेगा, जिससे देश और समाज का भला हो सकेगा। आपने नशामुक्ति के जन-जन को उत्प्रेरित किया है। ऐसे महात्मा जो समाज के हित के विषय में सोचते हैं। मैं ऐसे आचार्यश्री को बारम्बार प्रणाम करता हूं। आचार्यश्री ने उन्हें आशीष प्रदान करते हुए कहा कि आज जलशक्ति मंत्रीजी का आना हुआ है। जल की बात है तो जल को रत्न की संज्ञा प्रदान की गयी है। धरती पर तीन रत्न है- जल, अन्न और सुभाषित। जैनिज्म में यहां तक कहा गया है कि जल भी सजीव है, इसलिए जल का फालतू व्यय नहीं करना चाहिए, ऐसा अहिंसा की दृष्टि से भी होता है। हम तो सद्भावना, नैतिकता और नशामुक्ति की प्रेरणा देते हैं। आचार्यश्री तुलसी ने अणुव्रत के छोटे-छोटे नियमों से लोगों को सत्पथ की प्रेरणा दी। राजनीति में खूब अच्छी नैतिकता बनी रहे।

शांतिदूत की मंगल सन्निधि में पहुंचे केन्द्रीय जलशक्ति मंत्री सी.आर. पाटिल…सुरेंद्र मुनोत, ऐसोसिएट एडिटर, Key Line Times वेसु, सूरत (गुजरात), जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अधिशास्ता, मानवता के मसीहा आचार्यश्री महाश्रमणजी की मंगल सन्निधि में रविवार को केन्द्रीय जलशक्ति मंत्री तथा भाजपा के गुजरात राज्य प्रदेशाध्यक्ष श्री सी.आर. पाटिल उपस्थित हुए। उन्होंने आचार्यश्री को वंदन कर पावन आशीर्वाद प्राप्त करने के उपरान्त आचार्यश्री की मंगलवाणी श्रवण भी करने के साथ ही अपनी भावनाओं को भी अभिव्यक्ति दी। आचार्यश्री ने उन्हें पावन पाथेय भी प्रदान किया। युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने रविवार को महावीर समवसरण में उपस्थित श्रद्धालुओं को अपनी अमृतवाणी का रसपान कराते हुए कहा कि आयारो आगम में बताया गया है कि काम का अतिक्रमण करना मुश्किल होता है। काम शब्द का प्रयोग अनेक प्रकार के कार्यों के संदर्भ में होता है तो काम एक अर्थ कामना के संदर्भ में भी होता है। इन्द्रिय विषय के संदर्भ में भी काम शब्द का प्रयोग होता है। यहां कामना के संदर्भ में प्रयोग किया गया है। कामना होती है तो आदमी पदार्थों का संग्रह करता है, पदार्थों का परिग्रह रखता है। इच्छा काम के अंतर्गत सोना, चांदी आदि पदार्थों को प्राप्त करना, धन, मकान, पदवी आदि आते हैं। दूसरा बताया गया मदन काम। शब्द, रूप, रस, गंध, स्पर्श आदि की कामना मदन काम है। काम अनंतकाल से प्राणी के भीतर रहती है। इसलिए इस काम का पार पाना मुश्किल भी होता है। इच्छाओं को कम करना, लोभ का क्षय तथा संतोष को धारण करना बड़ा कठिन काम होता है। लोभ को पाप का बाप कहा जाता है। कितने-कितने पापों के जड़ में लोभ ही होता है। लोभ के कारण हिंसा में जा सकता है। लोभ के कारण आदमी झूठ बोल सकता है, छल-कपट कर सकता है। यहां तक कि लोभ के कारण आदमी किसी की हिंसा भी कर सकता है। इस कारण काम दुःख का भी बहुत बड़ा कारण है। कामनुवृद्धि के कारण शरीर और मन दोनों को दुःखी बनाने वाला हो सकता है। जो प्राणी वीतराग बन जाता है, वह दुःख का पार पा सकता है। काम अध्यात्म की साधना में परित्याज्य होता है। साधना की गहराई में जाने से कामनाओं का पार भी पा सकता है। आदमी को अपनी इच्छाओं को नियंत्रित करने का प्रयास करना चाहिए। भौतिक इच्छाओं की सीमा रखनी चाहिए। स्वदार, भोजन व धन में संतोष रखने का प्रयास करना चाहिए तथा अध्ययन, जप और दान में संतोष नहीं करना चाहिए। आज आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में केन्द्रीय जलशक्ति मंत्री व गुजरात भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष श्री सी.आर. पाटिल पहुंचे। उन्होंने आचार्यश्री को वंदन कर आशीष प्राप्त करने के उपरान्त उन्होंने अपनी भावनाओं को अभिव्यक्त करते हुए कहा कि हमारे आंगन में पूज्य संत आचार्यश्री महाश्रमणजी का पावन चतुर्मास हो रहा है, यह हम सभी के लिए परम सौभाग्य की बात है। आपके आगमन से यहां की जनता आह्लादित है। मैंने आपकी कीर्ति और ख्याति तो बहुत सुन रखी थी आज दर्शन का अवसर प्राप्त हुआ है। आपकी विकट पदयात्रा और जनकल्याण का जो कार्य किया है, वह अद्वितीय है। आपने अभी दान में संतोष नहीं करने की जो प्रेरणा दी है, वह भी समाज के लिए कल्याणकारी है। आप तो लोगों को नीति पर चलने का राह भी दिखाते हैं। राजनीति में तो लोगों को सेवा की भावना से आना चाहिए। मेरा मानना है कि जो आदमी धर्म को नहीं मानता, वह अनीति का कार्य करने में डरेगा नहीं, और धर्म में आस्था रखने वाला होगा तो वह नीति पर चलेगा, जिससे देश और समाज का भला हो सकेगा। आपने नशामुक्ति के जन-जन को उत्प्रेरित किया है। ऐसे महात्मा जो समाज के हित के विषय में सोचते हैं। मैं ऐसे आचार्यश्री को बारम्बार प्रणाम करता हूं। आचार्यश्री ने उन्हें आशीष प्रदान करते हुए कहा कि आज जलशक्ति मंत्रीजी का आना हुआ है। जल की बात है तो जल को रत्न की संज्ञा प्रदान की गयी है। धरती पर तीन रत्न है- जल, अन्न और सुभाषित। जैनिज्म में यहां तक कहा गया है कि जल भी सजीव है, इसलिए जल का फालतू व्यय नहीं करना चाहिए, ऐसा अहिंसा की दृष्टि से भी होता है। हम तो सद्भावना, नैतिकता और नशामुक्ति की प्रेरणा देते हैं। आचार्यश्री तुलसी ने अणुव्रत के छोटे-छोटे नियमों से लोगों को सत्पथ की प्रेरणा दी। राजनीति में खूब अच्छी नैतिकता बनी रहे।

आज ग्राम पंचायत सोईन्तरा में मुख्य कार्यकारी अधिकारी श्री धीरज कुमार सिंह जी द्वारा ग्राम पंचायत का निरिक्षण किया गया….. मदा राम, जिला संवाददाता जोधपुर, Key Line Times मुख्य कार्यकारी अधिकारी द्वारा ग्राम पंचायत परिसर में पौधारोपण किया गया | मुख्य कार्यकारी अधिकारी द्वारा करवाए गये विकास कार्य सर्व समाज मुक्तिधाम में किए गए वृक्षारोपण कार्य तथा राजकीय उच्च माध्यमिक विधालय सोईंन्तरा में सार्वजनिक पुस्तकालय का भौतिक निरिक्षण किया गया इस दौरान मुख्य कार्यकारी अधिकारी द्वारा निर्देश दिए गए कि पेड़ों की निराई गुड़ाई करवाई जावें व् पुस्तकालय में जन सहयोग से आवश्यक ससांधन हेतु प्रेरित करें मुख्य कार्यकारी अधिकारी द्वारा ग्राम पंचायत के विकास कार्यों की सराहना की गई सरपंच गोविन्द सिंह सोईंन्तरा ने मुख्य कार्यकारी अधिकारी से ग्राम पंचायत क्षेत्र के विकास से संबंधित विषयों पर चर्चा की | इस दौरान अधिशाषी अभियंता अखिल तायल जी व् सहायक अभियंता संजय गुप्ता जी द्वारा ग्राम पंचायत कार्यालय रिकॉर्ड का अवलोकन किया गया व विकास र्कायों का निरिक्षण किया | इस दौरान विकास अधिकारी मगाराम सुथार, कनिष्ठ अभियंता कैलाश जीनगर, श्वेता गहलोत, बनवारीलाल मीना, रमेश मेहरा,ग्राम विकास अधिकारी रामगणेश मीना, कनिष्ठ सहायक पिंकी जोशी, आंगनबाड़ी कार्यकर्ता कैलाश कंवर, भंवरी जी, संगीता जी, शोभा कंवर जी, पुष्पा कंवर जी, आशा जी, देव कंवर जी,ककु, लीला जी, नेनु देवी जी, इमरती देवी जी, पांची देवी जी, शोभा,विद्यालय सहायक ममता शर्मा, मदन सिंह, भंवरलाल शर्मा आदि उपस्थित रहें|

आज ग्राम पंचायत सोईन्तरा में मुख्य कार्यकारी अधिकारी श्री धीरज कुमार सिंह जी द्वारा ग्राम पंचायत का निरिक्षण किया गया….. मदा राम, जिला संवाददाता जोधपुर, Key Line Times मुख्य कार्यकारी अधिकारी द्वारा ग्राम पंचायत परिसर में पौधारोपण किया गया | मुख्य कार्यकारी अधिकारी द्वारा करवाए गये विकास कार्य सर्व समाज मुक्तिधाम में किए गए वृक्षारोपण कार्य तथा राजकीय उच्च माध्यमिक विधालय सोईंन्तरा में सार्वजनिक पुस्तकालय का भौतिक निरिक्षण किया गया इस दौरान मुख्य कार्यकारी अधिकारी द्वारा निर्देश दिए गए कि पेड़ों की निराई गुड़ाई करवाई जावें व् पुस्तकालय में जन सहयोग से आवश्यक ससांधन हेतु प्रेरित करें मुख्य कार्यकारी अधिकारी द्वारा ग्राम पंचायत के विकास कार्यों की सराहना की गई सरपंच गोविन्द सिंह सोईंन्तरा ने मुख्य कार्यकारी अधिकारी से ग्राम पंचायत क्षेत्र के विकास से संबंधित विषयों पर चर्चा की | इस दौरान अधिशाषी अभियंता अखिल तायल जी व् सहायक अभियंता संजय गुप्ता जी द्वारा ग्राम पंचायत कार्यालय रिकॉर्ड का अवलोकन किया गया व विकास र्कायों का निरिक्षण किया | इस दौरान विकास अधिकारी मगाराम सुथार, कनिष्ठ अभियंता कैलाश जीनगर, श्वेता गहलोत, बनवारीलाल मीना, रमेश मेहरा,ग्राम विकास अधिकारी रामगणेश मीना, कनिष्ठ सहायक पिंकी जोशी, आंगनबाड़ी कार्यकर्ता कैलाश कंवर, भंवरी जी, संगीता जी, शोभा कंवर जी, पुष्पा कंवर जी, आशा जी, देव कंवर जी,ककु, लीला जी, नेनु देवी जी, इमरती देवी जी, पांची देवी जी, शोभा,विद्यालय सहायक ममता शर्मा, मदन सिंह, भंवरलाल शर्मा आदि उपस्थित रहें|

🌸 *सेवा के साथ साधना ही हो सेवा साधक श्रेणी की पहचान : आचार्यश्री महाश्रमण* 🌸 *-अभातेमम के राष्ट्रीय अधिवेशन में संभागी बने गुजरात के राज्यपाल आचार्य देवव्रत* आज के अपने प्रवचन मे आचार्य श्री महाश्रमणजी ने कहा कि अच्छी सेवा व गतिविधियों के संचालन में सक्षम प्रतीत हो रही है अभातेमम ….सुरेंद्र मुनोत, ऐसोसिएट एडिटर, Key Line Times वेस, सूरत (गुजरात) जन-जन को सन्मार्ग दिखाने वाले जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता, युगप्रधान आचार्यश्री की मंगल सन्निधि तथा अखिल भारतीय तेरापंथ महिला मण्डल के तत्त्वावधान में शुक्रवार को अखिल भारतीय तेरापंथ महिला मण्डल के 49वें राष्ट्रीय अधिवेशन ‘संरक्षणम्’ का शुभारम्भ हुआ। इस शुभारम्भ सत्र का आयोजन महावीर समवसरण में किया गया, जिसमें गुजरात के राज्यपाल आचार्य देवव्रत मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित थे। उन्होंने मंचासीन आचार्यश्री को वंदन कर पावन आशीर्वाद प्राप्त करने के उपरान्त अखिल भारतीय तेरापंथ महिला मण्डल के शुभारम्भ सत्र में समुपस्थित महिला शक्ति को संबोधित करते हुए सशक्त महिला शक्ति के जागरण व विकास की बात कही। शुभारम्भ सत्र में शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने भी समुपस्थित महिला संभागियों को पावन पाथेय प्रदान करने के साथ ही राज्यपाल महोदय को भी मंगल आशीर्वाद प्रदान किया। साध्वीप्रमुखाजी ने भी इस अवसर पर उपस्थित महिलाओं को अभिप्रेरणा प्रदान की। शनिवार को महावीर समवसरण में आयोजित मुख्य प्रवचन कार्यक्रम में समुपस्थित जनमेदिनी को शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने ‘आयारो’ आगम के माध्यम से पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि दो शब्द हैं-अनुश्रोत और प्रतिश्रोत। संसार के प्रवाह में बहना, इन्द्रिय विषयों में आसक्त रहना अनुश्रोत तथा त्याग, संयम और साधना के पथ पर चलना प्रतिश्रोतगामिता होती है। जिस दिशा में पानी का प्रवाह हो उस दिशा में तिनका भी बहता है, पानी की धारा के विपरित चलना, आगे बढ़ना प्रतिश्रोतगामिता होती है, जीवित होने की निशानी होती है। सामान्य आदमी अनुश्रोत में चलने वाला होता है। इन्द्रियों विषयों में आसक्त रहने वाला हो सकता है। साधु, साधक श्रोत के प्रतिकूल चलने वाला होता है। अध्यात्म का मार्ग श्रोत के विपरित चलने वाला पथ है। मेरा, मेरा का भाव, ममत्व, पदार्थों में आसक्ति, पदार्थों का आसक्ति के साथ उपभोग करना सामान्य आदमी की चर्या हो सकती है। जो साधु है, जो अनगार है, वह द्रष्टा है, पदार्थों के प्रति ज्ञाता-द्रष्टा भाव रखता है। जीवन को चलाने के लिए यदि किसी पदार्थ का उपयोग भी करता है तो उसका भाव होता है, और वह परिग्रह की आसक्ति से स्वयं को बचाने का प्रयास करता है। गृहस्थ अपने घर को चलाने का प्रयास करता है, शादी-विवाह, भरण-पोषण, परिवार की चिकित्सा, सुरक्षा, भोजन-पानी आदि की व्यवस्था करनी होती है और वह स्वयं आसक्त भाव से आसेवन करता है। गृहस्थ आदमी अपने जीवन में यह प्रयास रखे कि अपने जीवन में साधु नहीं भी बन पाए तो समयानुसार निवृत्ति की दिशा में आगे बढ़ जाए। सेवा साधक श्रेणी की बात है। इसका शिविर भी चल रहा है। यह भी साधना का अंग है। परिवार और समाज में रहते हुए भी अनासक्त भाव में रहने का प्रयास है। धार्मिक-आध्यात्मिक सेवा के साथ अपनी साधना भी चले, कुछ निवृत्ति और कुछ प्रवृत्ति हो। ज्यादा मूर्च्छा, आसक्ति न हो। जितना हो सके, कषाय से मुक्त व्यवहार करने का प्रयास करना चाहिए। कषाय और आसक्ति जितना प्रतनु बन सके, ऐसा प्रयास करना चाहिए। आचार्यश्री ने विशेष प्रेरणा करते हुए सेवा साधक के श्रेणी के लोग हैं तो सेवा निष्काम भाव से हो तो सेवा में शुद्धता रह सकती है। सेवा करके नाम कमाने का प्रयास सेवा में शुद्धता की कमी हो सकती है। सेवा में शुद्धता के लिए सेवा के साथ कामना न जुड़े। सेवा के साथ साधना करने वाला सेवा साधक हो सकता है। कार्यक्रम में साध्वीवर्या साध्वी सम्बुद्धयशाजी ने उपस्थित जनता को उद्बोधित किया। अखिल भारतीय तेरापंथ महिला मण्डल के 49वें राष्ट्रीय अधिवेशन ‘संरक्षणम्’ के दूसरे दिन तेरापंथ महिला मण्डल-सूरत ने मंगलाचरण को प्रस्तुति दी। अखिल भारतीय तेरापंथ महिला मण्डल की राष्ट्रीय अध्यक्ष श्रीमती सरिता डागा ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। आज के कार्यक्रम में अखिल भारतीय तेरापंथ महिला मण्डल द्वारा सुश्री कमला कठौतिया को श्राविका गौरव अलंकरण प्रदान किया। अभिनंदन पत्र का वाचन अभातेममम की पूर्व अध्यक्ष श्रीमती पुष्पा बैद ने किया। सीतादेवी सरावगी प्रतिभा पुरस्कार डॉ. तारा दुगड़ व सुश्री नीतू चौपड़ा को प्रदान किया गया। अभिनंदन पत्र का वाचन क्रमशः संरक्षिका श्रीमती शांता पुगलिया तथा उपाध्यक्षा श्रीमती सुमन नाहटा ने किया। पुरस्कार व सम्मान प्राप्तकर्ताओं ने अपनी श्रद्धाभिव्यक्ति दी। साध्वीप्रमुखाजी ने अखिल भारतीय तेरापंथ महिला मण्डल व पुरस्कार व सम्मान प्राप्तकर्ताओं को पावन प्रतिबोध प्रदान किया। आचार्यश्री ने इस अवसर पर पावन प्रतिबोध प्रदान करते हुए कहा कि किसी भी संस्था के निर्माण का अपना उद्देश्य होता है। तेरापंथ महिला मण्डल के अधिवेशन का प्रसंग है। कल भी राज्यपाल महोदय की उपस्थिति में अच्छा व सुव्यवस्थित कार्यक्रम हुआ। यह अच्छा महिलाओं का संगठन है। कहीं तेरापंथ समाज की महिलाओं का प्रतिनिधित्व करना है तो अखिल भारतीय तेरापंथ महिला मण्डल वह नेतृत्व करने में सक्षम प्रतीत हो रही है। जितना हो सके धार्मिक-आध्यात्मिक सेवा देने का गतिविधियों को व्यवस्थित रूप में संचालित करने का प्रयास होता रहे। कार्यक्रम का संचालन अखिल भारतीय तेरापंथ महिला मण्डल की मंत्री श्रीमती नीतू ओस्तवाल ने किया।

🌸 *सेवा के साथ साधना ही हो सेवा साधक श्रेणी की पहचान : आचार्यश्री महाश्रमण* 🌸 *-अभातेमम के राष्ट्रीय अधिवेशन में संभागी बने गुजरात के राज्यपाल आचार्य देवव्रत* आज के अपने प्रवचन मे आचार्य श्री महाश्रमणजी ने कहा कि अच्छी सेवा व गतिविधियों के संचालन में सक्षम प्रतीत हो रही है अभातेमम ….सुरेंद्र मुनोत, ऐसोसिएट एडिटर, Key Line Times वेस, सूरत (गुजरात) जन-जन को सन्मार्ग दिखाने वाले जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता, युगप्रधान आचार्यश्री की मंगल सन्निधि तथा अखिल भारतीय तेरापंथ महिला मण्डल के तत्त्वावधान में शुक्रवार को अखिल भारतीय तेरापंथ महिला मण्डल के 49वें राष्ट्रीय अधिवेशन ‘संरक्षणम्’ का शुभारम्भ हुआ। इस शुभारम्भ सत्र का आयोजन महावीर समवसरण में किया गया, जिसमें गुजरात के राज्यपाल आचार्य देवव्रत मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित थे। उन्होंने मंचासीन आचार्यश्री को वंदन कर पावन आशीर्वाद प्राप्त करने के उपरान्त अखिल भारतीय तेरापंथ महिला मण्डल के शुभारम्भ सत्र में समुपस्थित महिला शक्ति को संबोधित करते हुए सशक्त महिला शक्ति के जागरण व विकास की बात कही। शुभारम्भ सत्र में शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने भी समुपस्थित महिला संभागियों को पावन पाथेय प्रदान करने के साथ ही राज्यपाल महोदय को भी मंगल आशीर्वाद प्रदान किया। साध्वीप्रमुखाजी ने भी इस अवसर पर उपस्थित महिलाओं को अभिप्रेरणा प्रदान की। शनिवार को महावीर समवसरण में आयोजित मुख्य प्रवचन कार्यक्रम में समुपस्थित जनमेदिनी को शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने ‘आयारो’ आगम के माध्यम से पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि दो शब्द हैं-अनुश्रोत और प्रतिश्रोत। संसार के प्रवाह में बहना, इन्द्रिय विषयों में आसक्त रहना अनुश्रोत तथा त्याग, संयम और साधना के पथ पर चलना प्रतिश्रोतगामिता होती है। जिस दिशा में पानी का प्रवाह हो उस दिशा में तिनका भी बहता है, पानी की धारा के विपरित चलना, आगे बढ़ना प्रतिश्रोतगामिता होती है, जीवित होने की निशानी होती है। सामान्य आदमी अनुश्रोत में चलने वाला होता है। इन्द्रियों विषयों में आसक्त रहने वाला हो सकता है। साधु, साधक श्रोत के प्रतिकूल चलने वाला होता है। अध्यात्म का मार्ग श्रोत के विपरित चलने वाला पथ है। मेरा, मेरा का भाव, ममत्व, पदार्थों में आसक्ति, पदार्थों का आसक्ति के साथ उपभोग करना सामान्य आदमी की चर्या हो सकती है। जो साधु है, जो अनगार है, वह द्रष्टा है, पदार्थों के प्रति ज्ञाता-द्रष्टा भाव रखता है। जीवन को चलाने के लिए यदि किसी पदार्थ का उपयोग भी करता है तो उसका भाव होता है, और वह परिग्रह की आसक्ति से स्वयं को बचाने का प्रयास करता है। गृहस्थ अपने घर को चलाने का प्रयास करता है, शादी-विवाह, भरण-पोषण, परिवार की चिकित्सा, सुरक्षा, भोजन-पानी आदि की व्यवस्था करनी होती है और वह स्वयं आसक्त भाव से आसेवन करता है। गृहस्थ आदमी अपने जीवन में यह प्रयास रखे कि अपने जीवन में साधु नहीं भी बन पाए तो समयानुसार निवृत्ति की दिशा में आगे बढ़ जाए। सेवा साधक श्रेणी की बात है। इसका शिविर भी चल रहा है। यह भी साधना का अंग है। परिवार और समाज में रहते हुए भी अनासक्त भाव में रहने का प्रयास है। धार्मिक-आध्यात्मिक सेवा के साथ अपनी साधना भी चले, कुछ निवृत्ति और कुछ प्रवृत्ति हो। ज्यादा मूर्च्छा, आसक्ति न हो। जितना हो सके, कषाय से मुक्त व्यवहार करने का प्रयास करना चाहिए। कषाय और आसक्ति जितना प्रतनु बन सके, ऐसा प्रयास करना चाहिए। आचार्यश्री ने विशेष प्रेरणा करते हुए सेवा साधक के श्रेणी के लोग हैं तो सेवा निष्काम भाव से हो तो सेवा में शुद्धता रह सकती है। सेवा करके नाम कमाने का प्रयास सेवा में शुद्धता की कमी हो सकती है। सेवा में शुद्धता के लिए सेवा के साथ कामना न जुड़े। सेवा के साथ साधना करने वाला सेवा साधक हो सकता है। कार्यक्रम में साध्वीवर्या साध्वी सम्बुद्धयशाजी ने उपस्थित जनता को उद्बोधित किया। अखिल भारतीय तेरापंथ महिला मण्डल के 49वें राष्ट्रीय अधिवेशन ‘संरक्षणम्’ के दूसरे दिन तेरापंथ महिला मण्डल-सूरत ने मंगलाचरण को प्रस्तुति दी। अखिल भारतीय तेरापंथ महिला मण्डल की राष्ट्रीय अध्यक्ष श्रीमती सरिता डागा ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। आज के कार्यक्रम में अखिल भारतीय तेरापंथ महिला मण्डल द्वारा सुश्री कमला कठौतिया को श्राविका गौरव अलंकरण प्रदान किया। अभिनंदन पत्र का वाचन अभातेममम की पूर्व अध्यक्ष श्रीमती पुष्पा बैद ने किया। सीतादेवी सरावगी प्रतिभा पुरस्कार डॉ. तारा दुगड़ व सुश्री नीतू चौपड़ा को प्रदान किया गया। अभिनंदन पत्र का वाचन क्रमशः संरक्षिका श्रीमती शांता पुगलिया तथा उपाध्यक्षा श्रीमती सुमन नाहटा ने किया। पुरस्कार व सम्मान प्राप्तकर्ताओं ने अपनी श्रद्धाभिव्यक्ति दी। साध्वीप्रमुखाजी ने अखिल भारतीय तेरापंथ महिला मण्डल व पुरस्कार व सम्मान प्राप्तकर्ताओं को पावन प्रतिबोध प्रदान किया। आचार्यश्री ने इस अवसर पर पावन प्रतिबोध प्रदान करते हुए कहा कि किसी भी संस्था के निर्माण का अपना उद्देश्य होता है। तेरापंथ महिला मण्डल के अधिवेशन का प्रसंग है। कल भी राज्यपाल महोदय की उपस्थिति में अच्छा व सुव्यवस्थित कार्यक्रम हुआ। यह अच्छा महिलाओं का संगठन है। कहीं तेरापंथ समाज की महिलाओं का प्रतिनिधित्व करना है तो अखिल भारतीय तेरापंथ महिला मण्डल वह नेतृत्व करने में सक्षम प्रतीत हो रही है। जितना हो सके धार्मिक-आध्यात्मिक सेवा देने का गतिविधियों को व्यवस्थित रूप में संचालित करने का प्रयास होता रहे। कार्यक्रम का संचालन अखिल भारतीय तेरापंथ महिला मण्डल की मंत्री श्रीमती नीतू ओस्तवाल ने किया।

आचार्य श्री महाश्रमणजी ने अपने प्रवचन मे कहा कि गृहस्थ भी करे समतारस का आसेवन…सुरेंद्र मुनोत, ऐसोसिएट एडिटर, Key Line Times वेसु, सूरत (गुजरात), भारत का पश्चिम भाग में स्थित भारत का सबसे समृद्ध राज्य गुजरात और गुजरात राज्य का सबसे समृद्ध तथा विश्व में हीरे और कपड़े के व्यवसाय के लिए सुविख्यात सूरत शहर वर्तमान में धर्म और अध्यात्म नगरी के रूपी में भी ख्यापित हो रहा है। जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अधिशास्ता, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी इस नगरी में अपना भव्य चतुर्मास कर रहे हैं। इस अवसर का लाभ प्राप्त करने के लिए प्रतिदिन देश के विभिन्न हिस्सों से श्रद्धालु पहुंच रहे हैं और हजारों श्रद्धालु संयम विहार में रहकर इस अवसर का लाभ प्राप्त कर रहे हैं। आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में विविध आयोजनों, सम्मेलनों व अधिवेशनों का दौर भी अनवरत जारी है। शुक्रवार को भी आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा के तत्त्वावधान में एक नए प्रकल्प सेवा साधक श्रेणी का प्रथम त्रिदिवसीय शिविर का शुभारम्भ हुआ तो दूसरी ओर अखिल भारतीय तेरापंथ महिला मण्डल का वार्षिक अधिवेशन का क्रम भी प्रारम्भ हुआ। शुक्रवार को महावीर समवसरण में समुपस्थित जनता को जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि आचार्यश्री महाश्रमणजी ने ‘आयारो’ आगम के माध्यम से पावन प्रतिबोध प्रदान करते हुए कहा कि मानव जीवन में लाभ और अलाभ की बात होती है। साधु को भी लाभ की स्थिति में ज्यादा प्रसन्नता तथा अलाभ में बहुत ज्यादा शोक नहीं करना चाहिए। साधु को मद और शोक दोनों से भी बचने का प्रयास करना चाहिए। साधु को दोनों ही परिस्थितियों में समता का भाव रखने का प्रयास करना चाहिए। हमारे धर्मसंघ में दो बार अर्हत वंदना होती है, जिसके पाठ में लाभ और अलाभ में भी समता भाव रखने का प्रयास करना चाहिए। लाभ-अलाभ, सुख-दुःख, निंदा-प्रशंसा, मान और अपमान इन द्वंदात्मक स्थितियों में सम रहने की प्रेरणा दी गई है। साधु को समतामूर्ति, क्षमामूर्ति, त्यागमूर्ति, अहिंसामूर्ति, दयामूर्ति, यथार्थमूर्ति, महाव्रतमूर्ति होना चाहिए। गृहस्थ को भी अपने जीवन में समतारस का आसेवन करने का प्रयास करना चाहिए। गृहस्थ जीवन में व्यापार, धंधा आदि कार्य करते हैं। किसी वर्ष बहुत अच्छी इनकम हो जाए, कभी घाटा भी लग जाए, कभी सामान्य-सी स्थिति भी हो जाए तो ऐसी परिस्थितियों में गृहस्थ अपना मानसिक संतुलन बनाए रखने का प्रयास करना चाहिए। जीवन में कभी प्रिय का वियोग हो जाए तो भी मानसिक संतुलन बनाए रखने का प्रयास होना चाहिए। मन को दोनों ही स्थितियों में समता भाव में रखने का प्रयास होना चाहिए। ज्यादा राग और ज्यादा द्वेष भी विषमता की स्थिति ही होती है। आदमी को दोनों स्थितियों में सम भाव रखने का प्रयास करना चाहिए। इसलिए आदमी को लाभ होने पर मद न करे और शोक मिल जाने पर ज्यादा दुःखी नहीं बनने का प्रयास करना चाहिए। आज से आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा के तत्त्वावधान में त्रिदिवसीय सेवा साधक श्रेणी के शिविर का शुभारम्भ हुआ। इस संदर्भ में जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा के अध्यक्ष श्री मनसुखलाल सेठिया तथा इस श्रेणी के राष्ट्रीय संयोजक श्री किशनलाल डागलिया ने अपनी विचाराभिव्यक्ति दी। इस संदर्भ में आचार्यश्री ने पावन आशीष प्रदान करते हुए कहा कि जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा के तत्त्वावधान में सेवा साधक श्रेणी की परियोजना सामने आई है। समाज में अनेक गतिविधियां हैं। जीवन में आदमी साधना करे। मानव जीवन में धार्मिक-आध्यात्मिक अच्छी साधना भी चले और धार्मिक-आध्यात्मिक सेवा देने का भी प्रयास हो। इस शिविर से संभागियों को अच्छी जानकारी, अच्छा प्रशिक्षण व अच्छा लाभ प्राप्त हो। विकास परिषद के सदस्य श्री बनेचंद मालू ने अपनी भावाभिव्यक्ति थी।

आचार्य श्री महाश्रमणजी ने अपने प्रवचन मे कहा कि गृहस्थ भी करे समतारस का आसेवन…सुरेंद्र मुनोत, ऐसोसिएट एडिटर, Key Line Times वेसु, सूरत (गुजरात), भारत का पश्चिम भाग में स्थित भारत का सबसे समृद्ध राज्य गुजरात और गुजरात राज्य का सबसे समृद्ध तथा विश्व में हीरे और कपड़े के व्यवसाय के लिए सुविख्यात सूरत शहर वर्तमान में धर्म और अध्यात्म नगरी के रूपी में भी ख्यापित हो रहा है। जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अधिशास्ता, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी इस नगरी में अपना भव्य चतुर्मास कर रहे हैं। इस अवसर का लाभ प्राप्त करने के लिए प्रतिदिन देश के विभिन्न हिस्सों से श्रद्धालु पहुंच रहे हैं और हजारों श्रद्धालु संयम विहार में रहकर इस अवसर का लाभ प्राप्त कर रहे हैं। आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में विविध आयोजनों, सम्मेलनों व अधिवेशनों का दौर भी अनवरत जारी है। शुक्रवार को भी आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा के तत्त्वावधान में एक नए प्रकल्प सेवा साधक श्रेणी का प्रथम त्रिदिवसीय शिविर का शुभारम्भ हुआ तो दूसरी ओर अखिल भारतीय तेरापंथ महिला मण्डल का वार्षिक अधिवेशन का क्रम भी प्रारम्भ हुआ। शुक्रवार को महावीर समवसरण में समुपस्थित जनता को जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि आचार्यश्री महाश्रमणजी ने ‘आयारो’ आगम के माध्यम से पावन प्रतिबोध प्रदान करते हुए कहा कि मानव जीवन में लाभ और अलाभ की बात होती है। साधु को भी लाभ की स्थिति में ज्यादा प्रसन्नता तथा अलाभ में बहुत ज्यादा शोक नहीं करना चाहिए। साधु को मद और शोक दोनों से भी बचने का प्रयास करना चाहिए। साधु को दोनों ही परिस्थितियों में समता का भाव रखने का प्रयास करना चाहिए। हमारे धर्मसंघ में दो बार अर्हत वंदना होती है, जिसके पाठ में लाभ और अलाभ में भी समता भाव रखने का प्रयास करना चाहिए। लाभ-अलाभ, सुख-दुःख, निंदा-प्रशंसा, मान और अपमान इन द्वंदात्मक स्थितियों में सम रहने की प्रेरणा दी गई है। साधु को समतामूर्ति, क्षमामूर्ति, त्यागमूर्ति, अहिंसामूर्ति, दयामूर्ति, यथार्थमूर्ति, महाव्रतमूर्ति होना चाहिए। गृहस्थ को भी अपने जीवन में समतारस का आसेवन करने का प्रयास करना चाहिए। गृहस्थ जीवन में व्यापार, धंधा आदि कार्य करते हैं। किसी वर्ष बहुत अच्छी इनकम हो जाए, कभी घाटा भी लग जाए, कभी सामान्य-सी स्थिति भी हो जाए तो ऐसी परिस्थितियों में गृहस्थ अपना मानसिक संतुलन बनाए रखने का प्रयास करना चाहिए। जीवन में कभी प्रिय का वियोग हो जाए तो भी मानसिक संतुलन बनाए रखने का प्रयास होना चाहिए। मन को दोनों ही स्थितियों में समता भाव में रखने का प्रयास होना चाहिए। ज्यादा राग और ज्यादा द्वेष भी विषमता की स्थिति ही होती है। आदमी को दोनों स्थितियों में सम भाव रखने का प्रयास करना चाहिए। इसलिए आदमी को लाभ होने पर मद न करे और शोक मिल जाने पर ज्यादा दुःखी नहीं बनने का प्रयास करना चाहिए। आज से आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा के तत्त्वावधान में त्रिदिवसीय सेवा साधक श्रेणी के शिविर का शुभारम्भ हुआ। इस संदर्भ में जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा के अध्यक्ष श्री मनसुखलाल सेठिया तथा इस श्रेणी के राष्ट्रीय संयोजक श्री किशनलाल डागलिया ने अपनी विचाराभिव्यक्ति दी। इस संदर्भ में आचार्यश्री ने पावन आशीष प्रदान करते हुए कहा कि जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा के तत्त्वावधान में सेवा साधक श्रेणी की परियोजना सामने आई है। समाज में अनेक गतिविधियां हैं। जीवन में आदमी साधना करे। मानव जीवन में धार्मिक-आध्यात्मिक अच्छी साधना भी चले और धार्मिक-आध्यात्मिक सेवा देने का भी प्रयास हो। इस शिविर से संभागियों को अच्छी जानकारी, अच्छा प्रशिक्षण व अच्छा लाभ प्राप्त हो। विकास परिषद के सदस्य श्री बनेचंद मालू ने अपनी भावाभिव्यक्ति थी।

अष्टमाचार्य कालूगणी के पदारोहण दिवस पर युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण ने की अभिवंदना…सुरेंद्र मुनोत, ऐसोसिएट एडिटर, Key Line Times वेसु, सूरत (गुजरात),सिल्क सिटि सूरत के चतुर्मासकाल का दो महीने पूर्ण हो चुके हैं। भगवान महावीर युनिवर्सिटि परिसर में संयम विहार में चतुर्मास करने वाले जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी की सन्निधि में अभी भी श्रद्धालुओं के पहुंचने का तांता लगा ही हुआ है। देश के विभिन्न क्षेत्रों से संघबद्ध रूप दर्शन और सेवा में उपस्थित हो रहे हैं। इससे पूरा चतुर्मास परिसर गुलजार बना हुआ है। वहीं आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में निरंतर ही नये कार्यक्रमों के आयोजनाओं का क्रम भी अनवरत जारी है। भगवान महावीर समवसरण में उपस्थित भक्तिमान जनता को शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने अपनी अमृतवाणी का रसपान कराते हुए कहा कि भाद्रव मास का अंतिम भाद्रव शुक्ला पूर्णिमा है और आश्विन मास की प्रतिपदा एक साथ है। भाद्रव महीने के अनेक दिन ऐसे आते हैं, जो हमारे धर्मसंघ में महत्ता के साथ जुड़े हुए हैं। भाद्रव शुक्ला पूर्णिमा परम पूज्य कालूगणी से जुड़ा हुआ है। भाद्रव शुक्ला द्वादशी को पूज्य डालगणी का महाप्रयाण हो गया था तो भाद्रव शुक्ला पूर्णिमा को परम पूज्य कालूगणी का विधिवत् आचार्य पद पर प्रतिष्ठित किया गया था। आज परम पूज्य कालूगणी का आचार्य पदारोहण दिवस है। वे लगभग 33 वर्ष की अवस्था में हमारे धर्मसंघ के आचार्य बने थे। करीब 27 वर्षों का उनका आचार्यकाल रहा। उनके आचार्यकाल के सारे चतुर्मास राजस्थान में हुआ, मात्र एक चतुर्मास हरियाणा में उन्होंने किया। इसी प्रकार मर्यादा महोत्सव भी राजस्थान से बाहर एक ही किया। परम पूज्य कालूगणी के जन्मशताब्दी का आयोजन पर परम पूज्य आचार्यश्री तुलसी की सन्निधि में छापर हुआ था। हमारे धर्मसंघ को अष्टम आचार्य के रूप में प्राप्त हुए थे। उनके द्वारा दीक्षित दो शिष्य हमारे धर्मसंघ को आचार्य के रूप में प्राप्त हुए। दोनों ही आचार्य युगप्रधान आचार्य के रूप में सुशोभित हुए। परम पूज्य कालूगणी के बाद नवमें आचार्य के रूप में पूज्य गुरुदेवश्री तुलसी प्राप्त हुए तथा उनके उपरान्त दसवें आचार्य के रूप में परम पूज्य आचार्यश्री महाप्रज्ञजी प्राप्त हुए। हमारे धर्मसंघ को आचार्यों का अवदान मिला है। हम सभी परम पूज्य कालूगणी की वंदना, स्तुति, स्मरण करें। उन्होंने जो कार्य किया, उनके जीवन से प्रेरणाएं व शिक्षाएं प्राप्त होती रहें। आचार्यश्री के मंगल प्रवचन के उपरान्त साध्वीवर्या साध्वी सम्बुद्धयशाजी ने भी जनता को उद्बोधित किया। तेरापंथ किशोर मण्डल तथा तेरापंथ कन्या मण्डल-सूरत ने चौबीसी के पृथक्-पृथक् गीत को प्रस्तुति दी।

अष्टमाचार्य कालूगणी के पदारोहण दिवस पर युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण ने की अभिवंदना…सुरेंद्र मुनोत, ऐसोसिएट एडिटर, Key Line Times वेसु, सूरत (गुजरात),सिल्क सिटि सूरत के चतुर्मासकाल का दो महीने पूर्ण हो चुके हैं। भगवान महावीर युनिवर्सिटि परिसर में संयम विहार में चतुर्मास करने वाले जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी की सन्निधि में अभी भी श्रद्धालुओं के पहुंचने का तांता लगा ही हुआ है। देश के विभिन्न क्षेत्रों से संघबद्ध रूप दर्शन और सेवा में उपस्थित हो रहे हैं। इससे पूरा चतुर्मास परिसर गुलजार बना हुआ है। वहीं आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में निरंतर ही नये कार्यक्रमों के आयोजनाओं का क्रम भी अनवरत जारी है। भगवान महावीर समवसरण में उपस्थित भक्तिमान जनता को शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने अपनी अमृतवाणी का रसपान कराते हुए कहा कि भाद्रव मास का अंतिम भाद्रव शुक्ला पूर्णिमा है और आश्विन मास की प्रतिपदा एक साथ है। भाद्रव महीने के अनेक दिन ऐसे आते हैं, जो हमारे धर्मसंघ में महत्ता के साथ जुड़े हुए हैं। भाद्रव शुक्ला पूर्णिमा परम पूज्य कालूगणी से जुड़ा हुआ है। भाद्रव शुक्ला द्वादशी को पूज्य डालगणी का महाप्रयाण हो गया था तो भाद्रव शुक्ला पूर्णिमा को परम पूज्य कालूगणी का विधिवत् आचार्य पद पर प्रतिष्ठित किया गया था। आज परम पूज्य कालूगणी का आचार्य पदारोहण दिवस है। वे लगभग 33 वर्ष की अवस्था में हमारे धर्मसंघ के आचार्य बने थे। करीब 27 वर्षों का उनका आचार्यकाल रहा। उनके आचार्यकाल के सारे चतुर्मास राजस्थान में हुआ, मात्र एक चतुर्मास हरियाणा में उन्होंने किया। इसी प्रकार मर्यादा महोत्सव भी राजस्थान से बाहर एक ही किया। परम पूज्य कालूगणी के जन्मशताब्दी का आयोजन पर परम पूज्य आचार्यश्री तुलसी की सन्निधि में छापर हुआ था। हमारे धर्मसंघ को अष्टम आचार्य के रूप में प्राप्त हुए थे। उनके द्वारा दीक्षित दो शिष्य हमारे धर्मसंघ को आचार्य के रूप में प्राप्त हुए। दोनों ही आचार्य युगप्रधान आचार्य के रूप में सुशोभित हुए। परम पूज्य कालूगणी के बाद नवमें आचार्य के रूप में पूज्य गुरुदेवश्री तुलसी प्राप्त हुए तथा उनके उपरान्त दसवें आचार्य के रूप में परम पूज्य आचार्यश्री महाप्रज्ञजी प्राप्त हुए। हमारे धर्मसंघ को आचार्यों का अवदान मिला है। हम सभी परम पूज्य कालूगणी की वंदना, स्तुति, स्मरण करें। उन्होंने जो कार्य किया, उनके जीवन से प्रेरणाएं व शिक्षाएं प्राप्त होती रहें। आचार्यश्री के मंगल प्रवचन के उपरान्त साध्वीवर्या साध्वी सम्बुद्धयशाजी ने भी जनता को उद्बोधित किया। तेरापंथ किशोर मण्डल तथा तेरापंथ कन्या मण्डल-सूरत ने चौबीसी के पृथक्-पृथक् गीत को प्रस्तुति दी।

बिहार के फारबिसगंज मे हुआ विकास महोत्सव का आयोजन…मीनू धाडेंवा बिहार,15 सितम्बर रविवार फारबिसगंज बिहार में साध्वी श्री स्वर्णरेखा जी एवं सहवर्ती साध्वियों के सान्निध्य में विकास महोत्सव का भव्य आयोजन किया गया। साध्वी श्री जी ने हम श्रावकों को दिशा निर्देश देते हुए फरमाया विकास महोत्सव के अवसर पर हमें धर्मशासन की, भैक्षव शासन की प्रभावना करने के कार्य करने चाहिए। सम्यक्त़व का विकास हो ऐसे कार्य करने चाहिए धर्म संघ की अप्रभावना ना करें अन्यथा हम विकास महोत्सव मनाने के अधिकारी नहीं है। फारबिसगंज जैन श्वेतांबर तेरापंथ सभा ,महिला मंडल, युवक परिषद ,कन्या मंडल एवं ज्ञानशाला के बच्चों ने मिलकर के सामूहिक रूप से एक कार्यक्रम की अति सुंदर प्रस्तुति दी। नेपाल बिहार स्तरीय इस प्रोग्राम में लगभग आसपास के 40 क्षेत्रों से 500 से 600 श्रावकों की उपस्थिति रही। संवाददाता- मीनू धाड़ेवा

बिहार के फारबिसगंज मे हुआ विकास महोत्सव का आयोजन…मीनू धाडेंवा बिहार,15 सितम्बर रविवार फारबिसगंज बिहार में साध्वी श्री स्वर्णरेखा जी एवं सहवर्ती साध्वियों के सान्निध्य में विकास महोत्सव का भव्य आयोजन किया गया। साध्वी श्री जी ने हम श्रावकों को दिशा निर्देश देते हुए फरमाया विकास महोत्सव के अवसर पर हमें धर्मशासन की, भैक्षव शासन की प्रभावना करने के कार्य करने चाहिए। सम्यक्त़व का विकास हो ऐसे कार्य करने चाहिए धर्म संघ की अप्रभावना ना करें अन्यथा हम विकास महोत्सव मनाने के अधिकारी नहीं है। फारबिसगंज जैन श्वेतांबर तेरापंथ सभा ,महिला मंडल, युवक परिषद ,कन्या मंडल एवं ज्ञानशाला के बच्चों ने मिलकर के सामूहिक रूप से एक कार्यक्रम की अति सुंदर प्रस्तुति दी। नेपाल बिहार स्तरीय इस प्रोग्राम में लगभग आसपास के 40 क्षेत्रों से 500 से 600 श्रावकों की उपस्थिति रही। संवाददाता- मीनू धाड़ेवा

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