सुरेंद्र मुनोत, ऐसोसिएट एडिटर, Key Line Times
सूरत(गुजरात),परमाराध्य शांतिदूत आचार्य श्री महाश्रमण जी के पावन अभावलय से सूरत शहर मानों इस चातुर्मास काल में एक धर्म तीर्थ के रूप में विख्यात हो गया है। धर्म नगरी सूरत में हजारों श्रद्धालु आचार्यश्री एवं चतुर्विध धर्म संघ द्वारा धार्मिक आराधना का लाभ प्राप्त कर रहे है वहीं स्वयं के आत्मोत्कर्ष का परम लक्ष्य का मार्ग भी प्राप्त कर रहे है। गुरूदेव के सान्निध्य में नौ दिवसीय सघन साधना शिविर का मंचीय कार्यक्रम आयोजित हुआ। इस शिविर में पुरुष एवं महिला वर्ग को साधना के क्षेत्र का विशेष प्रशिक्षण दिया गया। खानपान में द्रव्य सीमा, ब्रम्ह मुहूर्त में उठना, मोबाइल फोन का वर्जन, रात्रिभोजन त्याग, भूमि पर शयन जैसे कई कठोर नियमों का पालन कर इस शिविर में संभागियों ने संयम साधना मय जीवन जीने का प्रशिक्षण प्राप्त किया। गुरूदेव एवं चारित्रात्माओं द्वारा आगम एवं तत्व ज्ञान का शिक्षण भी इस दौरान दिया गया। इसी के साथ अणुविभा के अधिवेशन का क्रम भी रहा।
मंगल धर्म देशना देते हुए आचार्य श्री महाश्रमण ने कहा कि आदमी के जीवन में अरति व प्रसन्नता भी देखने को मिलती है। कई बार प्रिय वस्तु प्राप्त नहीं होती या व्यक्ति के चाहने पर भी वह मिलती नहीं या संयोग से वियोग में परिवर्तित हो जाती है। ऐसे में व्यक्ति को दुखी नहीं बनना चाहिए। हम इसे व आन्तरिक दुःख को अग्रहण करना सीखें, स्वीकार नहीं करना भी एक कला है। आनन्द के दो रूप होते है एक तो भीतरी व आध्यात्मिक आनंद व दूसरा बाह्य तथा पदार्थजन्य आनंद। वांछित व अवांछित आनंद। जो मिला उसमें ज्यादा खुशी न हो व जो नहीं मिला उसका ज्यादा दुःख न हो।
गुरुदेव ने आगे फरमाया – समाज व राजनीति के क्षेत्र में काम करने वाला कार्यकर्ता होता है, लेकिन वास्तव में कार्यकर्ता वह होता है जो परार्थ के लिए व दूसरे के हित लिए कार्य करता है। स्वयं के लिए कार्य करने वाला कार्यकर्ता नही होता। कार्यकर्ता के सामने भी कठिन परिस्थितियाँ आ सकती है। पर ऐसी स्थति में भी गुस्से में आकर अपना आपा नहीं खोना चाहिए व शांत रहने का प्रयास रखना चाहिए। एक कार्यकर्ता के व्यवहार में उदारता रहे, संस्थाओं के कार्य में भी सहनशीलता रखना जरूरी होता है। स्थिति चाहे अनुकूल हो या प्रतिकूल उसे सबमें शांति व संतुलन बनाये रखना चाहिए। स्वयं पर आत्मानुशासन हो, इंद्रियों का संयम हो। इसके द्वारा व्यक्ति अग्रहण की कला को सीख सकता है।
अणुव्रत का मंच नैतिक मूल्यों के विकास का मंच है। अणुव्रत में न हिंदू की बात है न मुसलमान की बात है। अणुव्रत में तो केवल इंसान की बात है। चाहे हिंदू हो चाहे मुसलमान चाहे सिख हो चाहे ईसाई वह अपना धर्म पालता रहे, अणुव्रत को कोई आपत्ति नहीं है। अणुव्रत का तो एक ही लक्ष्य है, इंसान में इंसानियत आए। उसके जीवन में अहिंसा, संयम और सादगी रहे। वर्तमान में भारत को पुनः विश्व गुरु बनाने की बात सामने आती है। भारत विश्व गुरु बने तब बने लेकिन मैं मानता हूं भारत अध्यात्म गुरु अवश्य बन सकता है क्योंकि उसके पास विपुल संत संपदा है। ग्रंथ रूपी ज्ञान संपदा है। संतों की तपस्या और ग्रंथों की ज्ञान संपदा के सहारे भारत आध्यात्मिक गुरु के रूप में अवश्य प्रतिष्ठित हो सकता है। आज डॉक्टर कुमार पाल भाई देसाई को अणुव्रत लेखक पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। आपके लेखन में सौष्ठवता है, मौलिकता है, सारभूतत्ता है इसीलिए आपका लेखन गरिमा पूर्ण होता है। भारत को पुनः अध्यात्म गुरु बनाने की दिशा में आप योगभूत बन सकते हैं।
तत्पश्चात मुख्यमुनि श्री महावीर कुमार जी, साध्वीप्रमुखा श्री विश्रुतविभा जी, साध्वीवर्या संबुद्धयशा जी मुनि श्री मनन कुमारजी ने उद्बोधन प्रदान किया।
पुरस्कार समारोह के अंतर्गत अणुविभा के अध्यक्ष श्री अविनाश नाहर ने कहा डॉक्टर कुमार पाल देसाई अच्छे लेखक हैं। अनेक प्रकार के साहित्य का आप संग्रहण करते हैं। लेखन कला आपको विरासत में मिली है। गुजरात के सुप्रसिद्ध अखबार गुजरात समाचार में आप वर्षों से लेखक हैं। आपका जीवन आपका व्यवहार अणुव्रत से सुसंगत है। आपको पुरस्कार प्रदान कर हम गौरव की अनुभूति कर रहे हैं। उपाध्यक्ष श्री राजेश सुराना ने पुरस्कार समारोह का संचालन किया। अणुविभा के पदाधिकारियों द्वारा पद्मश्री कुमारपाल भाई देसाई को अणुव्रत लेखक पुरस्कार से सम्मानित किया उन्होंने भी अपनी भावाभिव्यक्ति दी। अणुविभा द्वारा एलिवेट उपक्रम का मोबाइल ऐप भी इस दौरान लॉन्च किया गया।
सघन साधना शिविर के समापन के अवसर पर पुरुष एवं महिला वर्ग द्वारा पृथक पृथक सामूहिक गीत की प्रस्तुति दी गई। शिविर संभागी मुस्कान कोटड़िया, रिया डोसी, हर्षिता ने अपने अनुभव कहे। जैन श्वेताम्बर तेरापंथ महासभा के संगठन मंत्री श्री प्रकाश डाकलिया, शिविर संचालिका श्रीमती मधु देरासरिया ने वक्तव्य दिया।