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अणुव्रत उद्बोधन सप्ताह का दूसरा दिन अहिंसा दिवस के रूप में हुआ समायोजित….सुरेंद्र मुनोत, ऐसोसिएट एडिटर, Key Line Times वेसु, सूरत (गुजरात) , जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अधिशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी की मंगल सन्निधि में अणुव्रत उद्बोधन सप्ताह का शुभारम्भ हो चुका है। इस सप्ताह के दूसरे दिन अर्थात् बुधवार को अहिंसा दिवस के रूप में समायोजित किया गया। महावीर समवसरण में उपस्थित जनता को अहिंसा यात्रास के प्रणेता आचार्यश्री महाश्रमणजी ने आयारो आगम के माध्यम से प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि अनासक्त साधक शब्द और स्पर्श को सहन करता है। सहिष्णुता मानवता का एक गुण है और वह साधना भी होती है। मन अथवा शरीर के विपरित स्थिति आने पर भी सम भाव रखते हुए उसे सहन कर लेना एक अच्छी साधना होती है। शब्द भी कई बार ऐसे आते हैं, जो कटु होते हैं, अपमानकारक होते हैं। साधु को भी कटु शब्द सुनने को मिल सकते हैं। वहां साधु को शब्दों को सहन करने का प्रयास करना चाहिए। जीवन में बातचीत का काम पड़ता रहता है। बातचीत में कटु शब्द भी प्रयोग हो सकता है, हो सकता है कोई झूठा आरोप भी लगा सकता है। साधु को वैसे शब्दों और उसे सहने का प्रयास करना चाहिए। आज दो अक्टूबर है। अणुव्रत उद्बोधन सप्ताह का दूसरा दिन अहिंसा दिवस के रूप में समायोजित है। अणुव्रत उद्बोधन सप्ताह का यह सात दिन अणुव्रत के प्रचार-प्रसार की दृष्टि से भी बहुत महत्त्वपूर्ण है। अणुव्रत से जुड़ी हुई संस्थाएं अहिंसा, नैतिकता व नशामुक्ति का यथासंभव प्रचार-प्रसार करती रहें। आदमी यह प्रयास करे कि उसके जीवन में अहिंसा का प्रभाव बना रहे। आदमी की भाषा में, विचार में, व्यवहार में अहिंसा का भाव बना रहे। आज का दिन महात्मा गांधी से भी जुड़ा हुआ है। अहिंसा एक प्रकार की भगवती है, माता है, जीवनदाता है। अहिंसा मानों सभी प्राणियों को अभय बना देती है। अहिंसा शौर्य, वीर्य और बलवती हो, इसका प्रयास करना चाहिए। मंगल प्रवचन के उपरान्त आचार्यश्री ने नवरात्र में नौ दिनों होने वाले आध्यात्मिक अनुष्ठान की जानकारी देने के उपरान्त प्रेक्षाध्यान कल्याण वर्ष के संदर्भ में उपस्थित जनता को प्रेक्षाध्यान का प्रयोग भी कराया। ‘सादर स्मरण शासनमाता भाग-2’ शासनश्री साध्वी कल्पलताजी द्वारा लिखित पुस्तक को जैन विश्व भारती के पदाधिकारियों द्वारा आचार्यश्री के समक्ष लोकार्पित किया। आचार्यश्री ने इस संदर्भ में पावन आशीर्वाद प्रदान किया। मुनि उदितकुमारजी ने आयम्बिल अनुष्ठान के विषय में जानकारी दी। अहिंसा दिवस के संदर्भ में सूरत के बच्चों ने अपनी प्रस्तुति दी। मुम्बई के घाटकोपर उपाश्रय के ट्रस्टी श्री मुकेशभाई ने अपनी अभिव्यक्ति दी। आचार्यश्री ने उन्हें पावन आशीर्वाद प्रदान किया।
प्रसिद्ध लेखक सज्ञान मोदी जी का आलेख, “हर दिवस हो अहिंसा दिवस, हर घर बने अहिंसा आश्रम”……सुरेंद्र मुनोत, ऐसोसिएट एडिटर, Key Line Times आज देश गांधीजी की 155 वीं जयंती मना रहा है और आज ही पूरी दुनिया संयुक्त राष्ट्र महासभा में पारित प्रस्ताव के अनुसार 18 वां अंतरराष्ट्रीय अहिंसा दिवस भी मना रही है। यह भारत के लिए अत्यंत गौरव का विषय है। हालांकि संत और महात्मा किसी एक देश, प्रांत अथवा मत-संप्रदाय तक सीमित नहीं होते। वे सबके होते हैं और सभी उनके होते हैं। इसलिए संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा ने सर्वसहमति से गांधीजी के जन्मदिन को अंतरराष्ट्रीय अहिंसा दिवस घोषित किया। भारत के इस महान सत्पुरुष को पूरी दुनिया में इतने सम्मान से देखा जाता है, इसलिए हमें भी उनकी सामाजिक, वैचारिक और आध्यात्मिक विरासत को संभालकर रखना है। बल्कि उसे और भी समृद्ध करते जाना है। अहिंसा दिवस हमारे लिए आत्ममंथन का दिवस भी है। हम सब तटस्थ होकर अपने-अपने जीवन को देखें। हमारे जीवन में अहिंसा का क्या महत्व है? हमने अहिंसा को अपने जीवन में कितना स्थान दे रखा है? प्रेम, जीवदया, करुणा और क्षमा ये सब अहिंसा के ही रूप हैं। क्या हमारे परिवार में इन सबकी बढ़ोतरी हो रही है? क्या हमारे सामाजिक संबंधों में सौहार्द्र बढ़ रहा है? क्या लड़कियों अथवा महिलाओं के साथ अहिंसक व्यवहार की प्रतिष्ठापना हो पाई है? क्या बच्चों को प्रेमिल स्पर्श भरा लाड़-प्यार मिल पा रहा है? क्या जीवदया और करुणा आदि पवित्र संस्कारों से उनका सिंचन हो पा रहा है? क्या विद्यालयों-विश्वविद्यालयों में उन्हें उन्मुक्त और भयमुक्त चिंतन का वातावरण दिया जा रहा है? क्या बुजुर्गों को परिवार में वह सेवा और सम्मान मिल पा रहा है जिसके वे वास्तव में हकदार हैं? यह सब हमारे लिए सोचने के विषय हैं। क्योंकि यह सब आखिर में जाकर हिंसा और अहिंसा का हमारे जीवन में व्यावहारिक स्थान बताते हैं। अहिंसा का केवल राजनीतिक निरूपण कर देने से हम उसके प्रति लापरवाह हो जाते हैं। केवल युद्ध, मार-काट, दंगा-फसाद, तोड़-फोड़ जैसे सार्वजनिक हंगामें होने पर ही हम अहिंसा की दुहाई देने लगते हैं। लेकिन यह भूल जाते हैं कि उन हिंसक घटनाओं का वास्तविक स्रोत कहाँ है? उसके पीछे कौन-से पारिवारिक और सामाजिक संस्कार हैं? उसके पीछे कौन-कौन से छिपे असंतोष कार्य कर रहे हैं जो उन हिंसक घटनाओं में शामिल मनुष्यों के मानस को दीर्घकाल में हिंस्र बना चुके हैं। हिंसा के मूल में जो सामुदायिक भय और मानसिक असुरक्षा है, उसे हम स्वीकार नहीं कर पाते हैं। अन्यायपूर्ण सामाजिक परिस्थितियों से हम मुँह मोड़ लेते हैं। ऐतिहासिक पीड़ाबोध या विक्टिमहुड जो पीढ़ी-दर-पीढ़ी हमारे मन में, और हमारी नई पीढ़ियों के मन में पलता रहता है, उससे उबरने का कोई प्रयास कहीं दिखाई नहीं देता। बल्कि इतिहास की सच्ची-झूठी कहानियों से उसके विष को बढ़ाने का प्रयास ही सोशल मीडिया आदि पर दिखाई देता है। कितना हिंसक हो चुका है हमारा सारा वैमर्शिक वातावरण! क्या हमने थोड़ा ठहरकर इसपर सोचा है कभी? ऐसे में हमें थोड़ा ठहरकर सोचना है कि आखिर इतने संसाधन लगाकर भी हम कर क्या रहे हैं? हम कैसा देश बना रहे हैं? कैसा समाज बना रहे हैं? कैसा परिवार बना रहे हैं? नई पीढ़ी और युवाओं का मानस कैसा बना रहे हैं? समाज में आपसी भाईचारे को बढ़ा रहे हैं या उसे दूरगामी नुकसान पहुँचा रहे हैं? यह सब हमें ठंडे दिमाग से सोचना होगा। क्योंकि जिस हिंसक लहर पर सवार होकर हम जिस प्रकार के टकरावपूर्ण आदान-प्रदान में शामिल हो चुके हैं, उसमें फिर देश को और समाज को सामान्य अवस्था में लाना बहुत मुश्किल हो जाएगा। अगर बात बहुत आगे बढ़ गई तो देश को एकजुट रखना तक मुश्किल हो जाएगा, क्योंकि हम जाने-अनजाने हर समय तोड़नेवाले हिंसक संवादों में ही संलग्न रहने लगे हैं। गांधीजी कहते थे—“सत्य और अहिंसा का एक नियम है, एक निश्चित उद्देश्य है। उस पर न चलने पर कार्य की सिद्धि संदिग्ध हो जाएगी। सत्य का मार्ग जितना सीधा है, उतना तंग भी है। यही बात अहिंसा की भी है। यह तलवार की धार पर चलने के बराबर है। ध्यान की एकाग्रता के द्वारा एक नट रस्सी पर चल सकता है, परंतु सत्य और अहिंसा के मार्ग पर चलने के लिए कहीं बड़ी एकाग्रता की आवश्यकता पड़ती है। जरा सा चूके कि धड़ाम से जमीन पर आ गिरे। बिना आत्मशुद्धि के प्राणिमात्र के साथ एकता का अनुभव नहीं किया जा सकता है और आत्मशुद्धि के अभाव से अहिंसा धर्म का पालन करना भी हर तरह नामुमकिन है।” इसलिए हमें अपनी बोली और अपने व्यवहार में बहुत सजग-सतर्क रहने की आवश्यकता है। हमें आत्मशुद्धि के मार्ग पर बढ़ना है और प्राणिमात्र के साथ एकता साधनी है। उसका साधन तो अहिंसा ही हो सकती है। आज दाम्पत्य के पवित्र संबंध छोटी-छोटी बातों पर टूट रहे हैं। परिवार टूट रहे हैं, बिखर रहे हैं। इसका खामियाजा सबसे अधिक बच्चों और बुजुर्गों को झेलना पड़ रहा है। सगे-संबंधी, परिजनों और पड़ोसियों के साथ वैसी आत्मीयता का संबंध नहीं रहा। गाँवों, मोहल्लों में सामाजिक समरसता टूट रही है। सांप्रद्रायिक सौहार्द्र टूट रहा है। दलीय, क्षेत्रीय, प्रांतीय और भाषाई आधार पर परस्पर-सम्मान की भावना कम हो रही है। संघीय स्वायत्तता खतरे में दीखती है और संविधान द्वारा दीर्घकाल में स्थापित गरिमामयी संस्थाओं का सांस्थानिक ढाँचा भी चरमरा रहा लगता है। दिलों में दूरियाँ बढ़ रही है। कौमी एकता की बात ही नहीं होती, जबकि उससे उल्टी बातें-बहसें और नारेबाजियाँ सुनने को मिलती हैं। अब जबकि पहले ही इतना नुकसान हो चुका है ; हम सबके चाहने भर की देर है। अपने, व्यक्तिगत, पारिवारिक और सामाजिक जीवन को अहिंसा और प्रेम से भरना है। बस इतना ही करना है। व्यवस्था में हर जगह हम ही तो बैठे हैं, या हमारी ही संतानें बैठी हैं। जैसा हमारा जीवन, चिंतन और संस्कार होगा, वैसी ही हमारी व्यवस्था बनेगी। फिर तो हर दिवस ही अहिंसा दिवस होगा। फिर तो हर घर ही अहिंसा आश्रम बनेगा। गांधीजी की जयंती और अंतरराष्ट्रीय अहिंसा दिवस पर हम सब यह ठान लें और वैसी ही आगामी जीवन-योजना, पारिवारिक योजना बना लें तो ऐसा ही होकर रहेगा। सर्वत्र शुभ ही शुभ होगा, मंगल ही मंगल होगा।
सांप्रदायिक सौहार्द दिवस पर दो आध्यात्मिक महापुरुषों का आत्मीय मिलन….सुरेंद्र मुनोत, ऐसोसिएट एडिटर, Key Line Times शांतिदूत की मंगल सन्निधि में पहुंचे स्वामीनारायण संप्रदाय के गुरुहरि प्रेमस्वरूप स्वामीजी महाराज, अणुव्रत उद्बोधन सप्ताह का हुआ शुभारम्भ, महापुरुषों का दर्शन पुण्याई का प्रतिफल : स्वामी त्यागवल्लभजी, संप्रदाय अलग, किन्तु अहिंसा, संयम, तप सभी के अनुपालनीय : युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण वेसु, सूरत (गुजरात) , मानवता के मसीहा, शांतिदूत, अहिंसा यात्रा प्रणेता, जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अनुशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी की मंगल सन्निधि में अणुव्रत उद्बोधन सप्ताह का आध्यात्मिक शुभारम्भ हुआ। इस सप्ताह का प्रथम दिन सांप्रदायिक सौहार्द दिवस के रूप में समायोजित हुआ। जिसमें हरिधाम सोखड़ा योगी डिवाइन सोसायटी के अध्यक्ष प्रकट गुरुहरि प्रेमस्वरूप स्वामीजी महाराज व स्वामी त्यागवल्लभजी आदि शिष्यों के साथ आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में पहुंचे तो मानों सांप्रदायिक सौहार्द फलीभूत हो उठा। श्वेत वस्त्र में आचार्यश्री व उनके शिष्य तो केशरिया वस्त्र में प्रेमस्वरूप स्वामीजी व उनके शिष्यों के मिलन से महावीर समवसरण में अद्भुत दृश्य उत्पन्न कर रहा था। भारत के धाराओं का आध्यात्मिक मिलन जन-जन को प्रफुल्लित बना रहा था। कार्यक्रम के शुभारम्भ से पूर्व आचार्यश्री का तथा स्वामीजी का प्रवास कक्ष में वार्तालाप का क्रम भी रहा, जिसमें धर्म, अध्यात्म, देश, संस्कृति आदि विभिन्न विषयों का पर चर्चा-वार्ता हुई। महावीर समवसरण में आयोजित अणुव्रत उद्बोधन सप्ताह का शुभारम्भ शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी के मंगल महामंत्रोच्चार के साथ हुआ। सूरत के अणुव्रत कार्यकर्ताओं ने अणुव्रत गीत को प्रस्तुति दी। अणुव्रत समिति-सूरत के अध्यक्ष श्री विमल लोढ़ा, अणुव्रत विश्व भारती सोसायटी के उपाध्यक्ष श्री राजेश सुराणा ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। श्री विनोद बांठिया ने प्रेमस्वरूप स्वामी व स्वामी त्यागवल्लभजी का परिचय प्रस्तुत किया। हरिधाम सोखड़ा योगी डिवाइन सोसायटी के स्वामी त्यागवलल्लभजी ने अपने उद्बोधन में कहा कि आज बहुत सौभाग्य कि बात है कि एक दो महापुरुषों के दर्शन का अवसर जनता को मिली है। यह हजारों वर्षों के पुण्यों से यह सौभाग्य प्राप्त हो रहा है। आज सांप्रदायिक सौहार्द दिवस के अवसर पर गुरुहरि प्रेमस्वरूप स्वामीजी महाराज द्वारा लिखित मंगल पत्र का वाचन भी किया। उन्होंने आगे कहा कि मुझे जानकारी मिली कि आचार्यश्री महाश्रमणजी ने हजारों किलोमीटर की पदयात्रा कर जन-जन को सद्भावना, नैतिकता व नशामुक्ति का संदेश दिए हैं। विकृति की दिशा में आगे बढ़ रहे समाज को ऐसे महापुरुषों की मंगल प्रेरणा से अध्यात्म और साधना की ओर बढ़ाया जा सकता है। इस दौरान स्वामीजी ने राजकोट में स्थित अपने परिसर में पधारने की मधुर अर्ज भी की। अणुव्रत अनुशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी ने उपस्थित जनमेदिनी को पावन पाथेय प्रदान करते कहा कि शास्त्रों की कल्याणी वाणियां जीवन में आ जाएं तो जीवन का कल्याण हो सकता है। शास्त्रों में धर्म को उत्कृष्ट मंगल बताया गया है। दुनिया में दूसरों के लिए तथा स्वयं के लिए भी मंगलकामना करता है। मंगल के लिए शुभ मुहूर्त आदि देखने का प्रयास होता है, पदार्थों का प्रयोग भी होता है, किन्तु ये सारे छोटे मंगल हैं, सबसे बड़ा मंगल धर्म होता है। प्रश्न हो सकता है कि जैन धर्म, सनातन, स्वामीनारायण, सिक्ख आदि धर्म मंगल होता है। यहां बताया गया कि अहिंसा, संयम और तप रूपी धर्म सर्वश्रेष्ठ मंगल होता है। मानव जीवन में संप्रदाय का भी अपना महत्त्व है। संप्रदाय का साया मिलता है तो अनुकंपा प्राप्त हो सकती है। तेरापंथ के प्रथम गुरु आचार्यश्री भिक्षु स्वामी और इस प्रकार हमारे नवमे गुरु आचार्यश्री तुलसी हुए। उन्होंने कहा कि कोई जैन बने या न बने अपने धर्म में रहते हुए भी छोटे-छोटे नियमों को स्वीकार कर अपने जीवन उन्नत बनाया जा सकता है। अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य और परिग्रह हर जगह स्वीकार किया जाता है। वेश-भूषा और परिवेश में कुछ अंतर अवश्य हो सकता है कि जहां अहिंसा, संयम, सच्चाई की बात होती है, वहां लगभग समानता होती है। मर्यादाएं, व्यवस्थाएं परिवेश अलग-अलग हो सकते हैं। संप्रदाय तो हमने स्वीकार कर लिया, लेकिन जीवन में धर्म नहीं आया तो फिर क्या अर्थ। अहिंसा का पालन, इन्द्रियों का संयम, तपस्या आदि का लाभ सभी को प्राप्त होता है। आज अणुव्रत उद्बोधन सप्ताह का प्रारम्भ हुआ है। आचार्यश्री तुलसी ने अणुव्रत आन्दोलन चलाया और आज कितने अजैन लोग भी उससे जुड़े हुए हैं। अणुव्रत को बाजार, चौराहों, विद्यालयों और जेल में बंद कैदियों के बीच भी ले जाया जाए, ताकि उनका जीवन भी अच्छा बन सके। ये छोटे-छोटे नियम जैसे मैं नशा नहीं करूंगा, मैं निरपराध की हत्या नहीं करूंगा, ईमानदार रहूंगा, पर्यावरण की रक्षा करूंगा आदि-आदि नियम आदमी के जीवन में आते हैं तो जीवन अच्छा बन सकता है। उद्बोधन सप्ताह का प्रथम दिन सांप्रदायिक सौहार्द दिवस है तो आज दो संप्रदायों का मिलन हो रहा है। आज आप सभी से मिलना हुआ, बहुत अच्छा हुआ। हमारी आपके प्रति आध्यात्मिक मंगलकामनाएं हैं। चतुर्दशी के संदर्भ में आचार्यश्री ने हाजरी का वाचन किया। तदुपरान्त समस्त चारित्रात्माओं ने अपने स्थान पर खड़े होकर लेखपत्र का उच्चारण किया। आचार्यश्री के मंगलपाठ के साथ कार्यक्रम सुसम्पन्न हुआ।
युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण की मंगल सन्निधि में प्रेक्षाध्यान कल्याण वर्ष का भव्य शुभारम्भ….सुरेंद्र मुनोत, ऐसोसिएट एडिटर, Key Line Times महातपस्वी की मंगल सन्निधि में पहुंचे नेपाल के प्रथम पूर्व राष्ट्रपति डॉ. रामबरण यादव* *-आप जैसे महान विभूति दिखाते हैं राह : नेपाल के पूर्व राष्ट्रपति* *-प्रेक्षाध्यान पद्धति सभी के लिए हितकारी : युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण* *30.09.2024, सोमवार, वेसु, सूरत (गुजरात) :* जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अधिशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, अहिंसा यात्रा प्रणेता, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी की मंगल सन्निधि में सोमवार को प्रेक्षाध्यान कल्याण वर्ष का भव्य एवं आध्यात्मिक शुभारम्भ हुआ। इस अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में नेपाल के प्रथम पूर्व राष्ट्रपति डॉ. रामबरण यादव भी उपस्थित हुए। प्रेक्षाध्यान के पचासवें वर्ष के प्रारम्भ के अवसर पर आचार्यश्री की प्रेरणा से प्रेक्षाध्यान कल्याण वर्ष का डायमण्ड व सिल्क सिटि सूरत के महावीर समवसरण से प्रारम्भ होकर वर्ष 2025 के 30 सितम्बर तक चलेगा। महावीर समवसरण में सोमवार को मुख्य प्रवचन कार्यक्रम के लिए युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी पधारे तो पूरा प्रवचन पण्डाल जयघोष से गुंजायमान हो उठा। आचार्यश्री के मंगल महामंत्रोच्चार के साथ कार्यक्रम का शुभारम्भ हुआ। साध्वीवृंद ने प्रेक्षा गीत का संगान किया। सूरत चतुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति के अध्यक्ष श्री संजय सुराणा, अध्यात्म साधना केन्द्र के डायरेक्टर श्री केसी जैन, प्रेक्षा इण्टरनेशनल के अयध्यक्ष श्री अरविंद संचेती, जैन विश्व भारती के अध्यक्ष श्री अमरचंद लुंकड़ ने अपनी-अपनी भावाभिव्यक्ति दी। साध्वीप्रमुखा विश्रुतविभाजी ने प्रेक्षाध्यान कल्याण वर्ष शुभारम्भ के अवसर पर उपस्थित जनता को प्रेक्षाध्यान के विषय में प्रेरणा प्रदान की। नेपाल के पूर्व प्रथम राष्ट्रपति डॉ. रामबरण यादव ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि यह मेरा सौभाग्य है कि मुझे आचार्यश्री महाश्रमणजी के दर्शन करने अवसर प्राप्त हो रहा है। अभी पूरा विश्व घृणा के भावों को दूर करने के लिए संघर्ष कर रही है, ऐसी स्थिति में आचार्यश्री महाश्रमणजी जैसे महान संत की परम आवश्यकता है। मैं इस पावन अवसर पर मैं शुभकामना देता हूं कि भगवान महावीर की कृपा सभी पर बना रहे। मैं आचार्यश्री के विचारों से प्रभावित हूं और उनके दर्शन करने यहां आया हूं। आप जैसे विभूति ही हमें राह दिखा सकते हैं। प्रेक्षा इण्टरनेशनल के आध्यात्मिक पर्यवेक्षक मुनि कुमारश्रमणजी ने इस वर्ष के शुभारम्भ के संदर्भ में आचार्यश्री द्वारा प्रदान किए आशीर्वचनों का वाचन किया। तदुपरान्त युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने उपस्थित विशाल जनमेदिनी को पावन प्रतिबोध प्रदान करते हुए कहा कि आयारो आगम में बताया गया है कि अध्यात्म की साधना में शरीर के प्रति ममत्व भी छोड़ने की बात होती है। आदमी का ममत्व पदार्थों से होता है तो उससे भी ज्यादा ममत्व आदमी का अपने शरीर से भी हो सकता है। इसलिए अध्यात्म की साधना में अपने शरीर के प्रति ममत्व नहीं रखना, उच्च कोटि की साधना होती है। अध्यात्म की साधना में अहंकार और ममकार का भाव त्याज्य माना गया है। आज से प्रेक्षाध्यान कल्याण वर्ष प्रारम्भ हो रहा है। एक वर्ष की कालावधि है। सन् 1975 में परम पूज्य गुरुदेव तुलसी का ग्रीन हाउस में हो रहा था और वहां इस पद्धति का नामकरण हुआ था-प्रेक्षाध्यान। दुनिया में अनेक नामों से ध्यान पद्धतियां चल रही हैं। हमारे तेरापंथ धर्मसंघ में परम पूज्य आचार्यश्री तुलसी के सान्निध्य में प्रारम्भ होने वाले इस कार्य में आचार्यश्री महाप्रज्ञजी (तत्कालीन मुनि नथमलजी स्वामी ‘टमकोर’) मुख्य व्यक्ति थे। इसके प्रधान समायोजक आचार्यश्री महाप्रज्ञजी को देख सकते हैं। प्रेक्षाध्यान पद्धति हमारे धर्मसंघ का एक योगदान है। जैन विश्व भारती के तुलसी अध्यात्म नीडम में शिविर लगते तो आचार्यश्री महाप्रज्ञजी वहीं विराज जाते और ध्यान का प्रयोग कराते। अध्यात्म साधना केन्द्र भी ध्यान-साधना का केन्द्र रहा है। अहमदाबाद का प्रेक्षा विश्व भारती भी प्रेक्षाध्यान से जुड़ा हुआ है। अनेकानेक विदेशी भी इस उपक्रम से जुड़े हुए हैं। इन वर्षों में प्रेक्षाध्यान का रूप काफी निखरा हुआ प्रतीत हो रहा है। इस पद्धति से कोई भी जैन-अजैन व्यक्ति जुड़ सकता है। इस प्रकार देश-विदेश में हुआ है। आज सोश्यल मिडिया और ऑनलाइन क्लास आदि के माध्यम से अधुनिक उपकरणों से सुविधा हो गई है। आज डॉ. रामबरणजी यादव का आगमन हुआ है। नेपाल में मिलना हुआ था। प्रेक्षाध्यान कायोत्सर्ग के रूप में वृद्ध लोगों के लिए भी काफी सहायक भी है। आचार्यश्री महाप्रज्ञजी का स्मरण करें, गुरुदेव तुलसी को याद करें। सभी प्रेक्षाध्यान का यथासंभव प्रचार-प्रसार के साथ करने का भी प्रयास करना चाहिए। यह वर्ष अच्छे ढंग से चले, ऐसी मंगलकामना। इस अवसर पर आचार्यश्री ने उपस्थित जनता को कुछ समय के लिए प्रेक्षाध्यान का प्रयोग भी कराया। प्रेक्षाध्यान के शिविरार्थियों को आचार्यश्री ने उपसंपदा प्रदान की। कार्यक्रम में लिम्बायत विधायक श्रीमती संगीताबेन पाटिल ने आचार्यश्री के दर्शन करने के उपरान्त अपनी भावनाओं को अभिव्यक्ति दी। कार्यक्रम का संचालन प्रेक्षा इण्टरनेशनल के आध्यात्मिक पर्यवेक्षक मुनि कुमारश्रमणजी ने किया।
मासिक एकत्रीकरण में विभिन्न रंगों की कविताओं की प्रस्तुति….सतविंदर कौर,ऐसोसिएट एडिटर, Key Line Times. चंडीगढ़, साहित्य विज्ञान केंद्र चंडीगढ़ के मासिक एकत्रीकरण में केंद्र की प्रिय सदस्य स्वर्गीय किरण बेदी जी को दो मिनट का मौन धारण कर याद किया गया, जो कुछ दिन पहले ही इस दुनिया से विदा हो गई थीं। केंद्र के प्रधान गुरदर्शन सिंह मावी जी ने उनके इस केंद्र से लंबे समय से जुड़े होने और उनके योगदान की सराहना की। राजविंदर सिंह गड्डू ने किरण बेदी के साथ अपने संबंधों का ज़िक्र किया। राजिंदर सिंह धीमान, दर्शन सिंह सिद्धू, सुरजीत सिंह धीर, पाल अजनबी ने कविताओं के माध्यम से किरण बेदी को श्रद्धांजलि अर्पित की। परम दुआबा, तरसेम राज, जसपाल कंवल, गुरदास सिंह दास ने गीतों के जरिए उनकी आत्मा को याद किया। प्रताप सिंह पारस, दर्शन तियूणा, डॉ. मनजीत बल्ल, दविंदर कौर ढिल्लों, बलविंदर ढिल्लों, लाभ सिंह लहिली, सुखदेव सिंह काहलों ने सामाजिक सरोकार से जुड़े गीत प्रस्तुत किए। हरिंदर कालड़ा ने भगवान शब्द की उत्पत्ति पर चर्चा की। भरेपूर सिंह, गुरजीत सिंह जंड, वरिंदर चठा, मलकीत बसरा, तिलक सेठी, परलाद सिंह, चरनजीत कलेर, मलकीत नागरा, सुरिंदर कुमार, सिंह गोसल, चरनजीत कौर बाट, मिक्की पासी, सुखविंदर रफीक ने विभिन्न विषयों को छूने वाली कविताएं पेश कीं। प्रधानमंत्री भाषण में डॉ. दीपक मनमोहन सिंह ने कार्यक्रम की सराहना करते हुए भविष्य में अपना सहयोग बनाए रखने का विश्वास दिलाया। डॉ. अवतार सिंह पतंग ने इस केंद्र की अन्य गतिविधियों पर प्रकाश डाला और सभी का धन्यवाद किया। मंच का संचालन दविंदर कौर ढिल्लों ने बहुत ही सलीके से किया। इस मौके पर हरजीत सिंह, डी.पी. सिंह, कंवलदीप कौर, सुरजन सिंह जस्सल, रीना, दमनप्रीत, सुनील सेठी, डी.पी. कपूर, अमन, मनप्रीत कौर उपस्थित थे।
साध्वी संगीतश्री चौदह नियम कार्यशाला*- जी के सानिध्य में व्रत चेतना जागरण का उपक्रम…कुसुम लुनिया शाहदरा, दिल्ली, श्रमण संस्कृति का मूलभूत अंग है व्रत। जैन , बौद्ध आदि परम्पराओ मे जीवन परिष्कार की दृष्टि से व्रतों को अतिरिक्त मूल्य दिया गया है।वर्तमान युग मे जैन परिवारों मे कुछ व्रतों को अनुष्ठान के रूप में स्वीकार किया जाता है। श्रावक की पहली भूमिका सम्यक दीक्षा होती है, दूसरी भूमिका में व्रत दीक्षा स्वीकार की जाती है।भगवान महावीर ने बारह व्रत रूप संयम धर्म का निरूपण गृहस्थों के लिए किया। दैनिक जीवन मे व्रतों का सीमाकरण करने की विधि है चौदह नियम , इन्हे अपने जीवन मे अवश्य धारण करना चाहिए। युगप्रधान आचार्य श्री महाश्रमण जी की विदुषी शिष्या साध्वी श्री संगीत श्री ने उपरोक्त प्रेरणा शाहदरा सभा के चातुर्मासिक स्थल ओसवाल भवन में चौदह नियम कार्यशाला को संबोधित करते हुए दी। इस अवसर पर साध्वीश्री कमल विभा जी ने प्रतिबोध देते हुए फरमाया कि दैनिक प्रवृतियों के सीमाकरण हेतु 1- सचित्त, 2-द्रव्य, 3-विगय छह, 4- पन्नी, 5- ताबूंल, 6- वस्त्र, 7- कुसुम, 8- वाहन, 9- शयन,10- विलेपन, 11-अब्रह्मचर्य, 12- दिशा, 13- स्नान, 14-भक्त ( आहार) का नियमित उपयोग हेतु व्रत प्रत्याख्यान त्याग आवश्यक है। इससे समुद्र के जल जितना पाप एक लोटे के जल में समा जाता है।सीमाकरण का बहुत महत्व है , अतः सभी को चौदह नियम स्वीकारने चाहिए। साध्वी श्री की प्रेरणा से अधिकाशं व्यक्तियों ने व्रतों को स्वीकार कर धन्यता का अनुभव किया। विशेष ज्ञातव्य रहे कि साध्वीश्री संगीत श्री जी, साध्वीश्री शान्तिप्रभाजी, साध्वीश्री कमल विभाजी और साध्वीश्री मुदिताश्री जी चारो साध्वियां विगत सात वर्षो से स्वयं वर्षी तप की साधना कर रही हैं । आपने शाहदरा क्षेत्र में भी सघन परिश्रम से श्रावक समाज की सार सम्भाल करके घर्म संघ की जडो को सिंचित किया है
आचार्यश्री ने की दिल्ली में सन् 2027 के चातुर्मास की घोषणा…सुरेंद्र मुनोत, ऐसोसिएट एडिटर, Key Line Times उपभोग–परिभोग का सीमाकरण आवश्यक : आचार्य महाश्रमण* *चातुर्मास की अर्ज करने दिल्ली से पहुंचे विधानसभा स्पीकर रामनिवास गोयल* *जैन एकता के बिंदुओं को शांतिदूत ने किया व्याख्यायित* *29.09.2024, रविवार, सूरत (गुजरात)* दिल्ली जैन समाज के लिए आज का दिन चिरस्मरणीय बन गया जब जैन श्वेतांबर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अधिशास्ता युगप्रधान आचार्य श्री महाश्रमण जी ने सन् 2027 चातुर्मास देश की राजधानी दिल्ली में करने की घोषणा की। इन दिनों संयम विहार चातुर्मास स्थल देश भर के श्रद्धालुओं से जनाकीर्ण बना हुआ है वही गत दो दिनों से राजधानी दिल्ली ने वृहद संख्या में श्रावक समाज गुरु चरणों में आगामी चातुर्मास की अर्ज के साथ उपस्थित है। जैन समाज के निवेदन के साथ मानों दिल्ली का सकल समाज जुड़ा हुआ है। इसका प्रत्यक्ष उदाहरण देखने को मिला जब दिल्ली विधान सभा अध्यक्ष श्री रामनिवास गोयल एवं राज्य सभा सांसद श्री लहरसिंह सिरोहिया भी दिल्ली वासियों के साथ इस अर्ज में शामिल होने हेतु आज उपस्थित थे। दिल्ली वासियों की मनोकामना को साकार रूप देते हुए आचार्यश्री ने जैसे ही सन् 2027 का चातुर्मास दिल्ली में करने की घोषणा की हजारों की संख्या में उपस्थित श्रद्धालुओं ने जय जय ज्योतिचरण के नारों से परिसर को गुंजायमान कर दिया। पूर्व में आचार्यश्री का सन् 2025 का चतुर्मास अहमदाबाद, सन् 2026 का लाडनूं (राजस्थान) में घोषित है इसी कड़ी में अब दिल्ली भी जुड़ गया है। महावीर समवसरण में आगम व्याख्या के अंतर्गत मंगल प्रवचन में धर्म देशना देते हुए आचार्यश्री ने कहा– व्यक्ति के भीतर में अनेक संज्ञाएँ व वृतियां होती है, दुर्वृतियाँ व सद्वृतियाँ भी। गुस्सा, अहंकार, लोभ आदि दुर्वृतियों की श्रेणी में व संतोष, शांति व निर्लोभता सही वृत्तियों की श्रेणी में आते है। वर्तमान में साधु साध्वियों में भी पूर्ण कषाय का विलय नहीं होता पर वे सुप्त अवस्था में रहते हैं, कभी अल्प व कभी ज्यादा। परिग्रह की बुद्धि का त्याग करने वाला परिग्रह का त्याग कर देता है। परिग्रह के छूटने के साथ उसका ममत्व व परिग्रह भी कम हो जाता है, भीतरी ममत्व छूटने से बाहरी ममत्व भी छूट जाता है। दुर्वृतियों के कारण व्यक्ति अपराध में भी चला जा सकता है। गरीबी भी उसका एक निमित्त बन सकती है। उपादान मूल व निमित उसका कारण है। राग-द्वेष का निमित मिल जाने से ममत्व की वृद्धि हो जाती है। व्यक्ति इच्छाओं का उपभोग–परिभोग का सीमाकरण करे यह आवश्यक है। बारह व्रत हमारी जीवन शैली को परिस्कृत बना देता है। व्यक्ति के भीतर अनासक्ति की चेतना का विकास हो। भक्तामर के एक श्लोक का उल्लेख करते हुए गुरुदेव ने कहा कि भक्तामर स्तोत्र जैन धर्म का प्रसिद्ध स्तोत्र। जैन एकता के कई बिंदुओं में एक भक्तामर है। नवकार महामंत्र सभी स्वीकार करते है। श्वेतांबर हो या दिगंबर परंपरा भक्तामर दोनो अम्नायाओं में मान्य है। यह जैन एकता का तत्व है। इसी प्रकार तत्वार्थ सूत्र जो उमास्वाति द्वारा लिखित है। सैद्धांतिक ग्रंथ है जो दोनों परंपराओं में मान्य है। भगवान महावीर की निर्वाण शताब्दी आज से लगभग 50 वर्ष पूर्व दिल्ली में वृहद रूप में मनाई गई थी। उस समय में जैन शासन की एकता का एक रूप सामने आया था। एक ग्रंथ श्रमण सुत्तम, जैन प्रतीक एवं जैन ध्वज का यह पचरंगा रूप सभी उस समय सामने आए थे। वर्तमान में भी महावीर जयंती का समारोह सकल संप्रदायों में एक साथ मनाया जाता है। संवतसरी और दसलक्षण पर्व के पश्चात क्षमापना पर्व भी एक साथ मनाया जाता है। कार्यक्रम में साध्वीप्रमुखा श्री विश्रुतविभा जी ने सारगर्भित वक्तव्य प्रदान किया। सूरत के विधायक श्री संदीप देसाई, श्री चन्द्र किशोर झा, श्री अशोक कुमार बैद ने अपने विचार व्यक्त किए। तेरापंथ किशोर मंडल सूरत के सदस्यों ने चौबीसी के गीत का संगान किया। साथ ही बारडोली की श्रीमति ललिता गणेशलाला कुमठ ने 41 दिन की तपस्या का प्रत्याख्यान किया। दिल्ली पधारने के संदर्भ में दिल्ली विधानसभा स्पीकर श्री रामनिवास गोयल ने आचार्य श्री से दिल्ली पधारने हेतु अपने विचारों की अभिव्यक्ति दी एवं दिल्ली में चातुर्मास हेतु अर्ज की। राज्यसभा सांसद श्री लहरसिंह सिरोहिया, पंजाब केसरी की चेयर पर्सन श्रीमती किरण चोपड़ा, श्री सुखराज सेठिया, तेरापंथ महासभा अध्यक्ष श्री मनसुखलाल सेठिया आदि दिल्ली से समागत गणमान्य वक्ताओं ने भी अपना निवेदन व्यक्त किया।