















🌸 परिवार, संगठन व राष्ट्र के लिए अनुशासन आवश्यक : युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण 🌸
-अणुव्रत उद्बोधन सप्ताह के छठा दिन अनुशासन दिवस के रूप में हुआ समायोजित
-आचार्यश्री ने स्वयं पर अनुशासन करने को किया अभिप्रेरित
06.10.2023, शुक्रवार, घोड़बंदर रोड, मुम्बई (महाराष्ट्र) :
जन-जन को सद्भावना, नैतिकता और नशामुक्ति की प्रेरणा प्रदान करने वाले, लोगों के मानसिक संताप का हरण करने वाले, शांतिमय जीवन जीने का मार्ग प्रशस्त करने वाले जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने शुक्रवार को अणुव्रत उद्बोधन सप्ताह के छठे दिन आयोजित अनुशासन दिवस पर उपस्थित जनता को अनुशासन का पाठ पढ़ाया और अनुशासन के द्वारा अपने जीवन के स्तर को उच्च बनाने की प्रेरणा प्रदान की।
जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अनुशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी की मंगल सन्निधि में अणुव्रत उद्बोधन सप्ताह का क्रम चल रहा है। इस सप्ताह का छठा दिन अनुशासन दिवस के रूप में समायोजित हुआ। तीर्थंकर समवसरण में समुपस्थित जनता को तेरापंथ के वर्तमान अनुशास्ता ने लोगों को अपनी अमृतवाणी का रसपान कराते हुए कहा कि आज अणुव्रत उद्बोधन सप्ताह का छठा दिन अनुशासन दिवस के रूप में समायोजित है। किसी भी संगठन, समाज आदि में प्रबन्धन, प्रशासन, व्यवस्था तभी अच्छी तरह संचालित हो सकता है, जब अनुशासन अच्छा हो। अनुशासन के अभाव में तो पूरी व्यवस्था गड़बड़ा सकती है। अनुशासन है तो प्रशासन, शासन व व्यवस्था को सुदृढ़ बनाया जा सकता है।
अनुशासन के दो प्रकार बताए गए हैं-स्वानुशासन और परानुशासन। आदमी को पहले स्वयं पर अनुशासन करने का प्रयास करना चाहिए। जो आदमी स्वयं पर अनुशासन नहीं कर सकता, उस पर दूसरे अनुशासन कर सकते हैं तथा जो आदमी स्वयं पर अनुशासन कर सकता है तो वह दूसरों पर भी अनुशासन कर सकता है। गुरु और शिष्य को देखें तो जो शिष्य पहले गुरु की मर्यादा, व्यवस्था, सम्मान, समर्पण में रहता है, वह कभी उच्च पद को भी प्राप्त कर सकता है। अनुशासित रहना सभी के लिए आवश्यक होता है।
कहा गया है कि कर्त्तव्य और अनुशासन के बिना लोकतंत्र का देवता भी मृत्यु और विनाश को प्राप्त हो जाता है। अनुशासन से स्वयं के साथ दूसरों को भी अच्छा लाभ प्राप्त हो सकता है। अनुशासन के बिना आदमी स्वयं के साथ दूसरों के लिए खतरा बन सकता है। तेरापंथ धर्मसंघ की आचार्य परंपरा को देखें तो हमारे आचार्य अपने पूर्वाचार्यों की अनुशासना में रहे तो वे भी कभी संघ के शास्ता, अनुशास्ता बने। धर्म हो, समाज हो, संगठन या संस्था हो अथवा देश ही क्यों न हो, सभी के लिए अनुशासन आवश्यक होता है। अनुशासित रहकर जीवन के स्तर को उठाने का प्रयास होना चाहिए। इसलिए सभी को अनुशासनयुक्त जीवन जीने का प्रयास करना चाहिए।
आचार्यश्री के मंगल प्रवचन से पूर्व साध्वीवर्या सम्बुद्धयशाजी ने भी उपस्थित जनता को उद्बोधित किया। आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में पहुंचे मुम्बई युनिवर्सिटी के वाइस चांसलर श्री रविन्द्र कुलकर्णी व नवभारत टाइम्स से पूर्व सम्पादक श्री विश्वनाथ सचदेवा ने अपनी अभिव्यक्ति दी। अखिल भारतीय तेरापंथ महिला मण्डल के तत्त्वावधान में आयोजित श्रुतोत्सव के मंचीय उपक्रम में अखिल भारतीय तेरापंथ महिला मण्डल की राष्ट्रीय अध्यक्ष श्रीमती नीलम सेठिया व श्री सुमतिचंद गोठी ने अपनी अभिव्यक्ति दी। आचार्यश्री ने सभी को पावन आशीर्वाद प्रदान किया।






