🌸 आश्रवों के निरोध से गुणस्थान का ग्राफ उठता है ऊपर : युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण 🌸
-भगवती सूत्र के माध्यम से गुणस्थानों को शांतिदूत ने किया व्याख्यायित
-ध्यान-साधना के लिए समय निकालने को आचार्यश्री ने किया अभिप्रेरित
08.10.2023, रविवार, घोड़बंदर रोड, मुम्बई (महाराष्ट्र) : महाराष्ट्र की राजधानी मुम्बई, भारत देश की आर्थिक राजधानी मुम्बई व पश्चिमी देशों का भारत में प्रवेश द्वार मुम्बई, मायानगरी के नाम से सुविख्यात मुम्बई में जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता, महातपस्वी, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी का पंच मासिक चतुर्मास हो रहा है। आचार्यश्री के चतुर्मास से मानों यह मायानगरी भी आध्यात्मिकता से भावित बन रही है। प्रतिदिन शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी की अमृतवाणी से बहने वाली ज्ञानगंगा में हजारों की संख्या में श्रद्धालु डुबकी लगाकर अपने बाहरी और भीतरी संताप का नाश करने का प्रयास कर रहे हैं। मुम्बईवासियों के लिए तो रविवार का दिन और विशेष हो जाता है। यह छुट्टी का दिन मुम्बईवासियों के लिए आध्यात्मिक लाभ प्राप्त करने का दिन बन रहा है। रविवार को तीर्थंकर समवसरण में उपस्थित विशाल जनमेदिनी को युगप्रधान, महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी ने मंगल पाथेय प्रदान करने से पूर्व कुछ समय तक प्रेक्षाध्यान आदि का प्रयोग कराया। तदुपरान्त शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने भगवती सूत्र के आधार पर अपने मंगल प्रवचन के माध्यम से पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि भगवती सूत्र में प्रश्न किया गया कि 14वें गुणस्थान वाला साधु अथवा मनुष्य हलन-चलन, बात, विचार नहीं करता, वह मेरू की भांति अडोल होता है। जैन आगमों में 14 गुणस्थान बताए गए हैं। आदमी जैसे-जैसे आश्रवों का निरोध करता है, त्यों-त्यों गुणस्थान का ग्राफ ऊपर उठता जाता है। 14वें गुणस्थान में पांचों आश्रवों का निरोध हो जाता है। पूर्ण निरोध की स्थिति वाला साधु या मनुष्य किसी प्रकार चिंतन, हलन-चलन, भाव आदि नहीं करता। जब तक कि कोई दूसरा उसे न दोलित करे। वह बिल्कुल मेरू-सी स्थिरता को प्राप्त कर लेता है। वह वाणी का भी प्रयोग नहीं करता। वह अपने आप कोई चंचलता नहीं करता। ध्यान-साधना का कोई सबसे अच्छा उदाहरण हो सकता है तो वह 14वें गुणस्थान का आदमी हो सकता है। ध्यान-साधना में तो निर्देशित किया जाता है कि हलन-चलन बंद करें, स्वयं को स्थिर करें, तब भी कोई चंचलता कर सकता है, किन्तु 14वें गुणस्थान वाला प्राणी बिल्कुल अडोल अवस्था में होता है। उसका आयुष्य भी बहुत थोड़ा होता है। वह भव्यात्मा जन्म-मरण से मुक्त होकर मोक्ष को प्राप्त कर लेती है। आदमी को जितना संभव हो सके 24 घंटों में कुछ समय ध्यान के प्रयोग में लगाने का प्रयास करना चाहिए। 24 घंटों में कुछ समय निकाल कर ध्यान, स्वाध्याय, जप आदि किया जा सकता है। समय निकालकर सामायिक को अपनी दिनचर्या के साथ जोड़ा जा सकता है। शनिवार की सायं सात से आठ बजे के बीच की सामायिक तो है ही, इसके साथ अन्य समय में सामायिक जुड़ जाए तो कितने कल्याण की बात हो सकती है। आचार्यश्री के मंगल प्रवचन के उपरान्त जैन विश्व भारती के पदाधिकारियों द्वारा अंतगडदसाओ आगम को आचार्यश्री के समक्ष लोकार्पित किया गया। इस संदर्भ में आचार्यश्री ने अपना पावन पाथेय प्रदान किया। मुनि योगेशकुमारजी ने भी अपनी अभिव्यक्ति दी।