



प्रवचन 29/9/2023 बड़ौत
भगवत भक्ति : मुक्ति का उपाय- आचार्य विशुद्ध सागर
चर्या शिरोमणि आचार्य श्री विशुद्धसागर जी गुरुदेव ने धर्मसभा में सम्बोधन करते हुए कहा कि- “क्षमा वीरों का आभूषण है। क्षमा धर्म का द्वार है। शमा से धर्म प्रारम्भ होता है। शमा सजजनों का आभूषण है। क्षमा आत्मीय गुण है। वाणी में मधुरता साधुत्व की पहचान है। भाषा की मोठेपन से शत्रु भी मित्र बन जाता है। भाषा की कटुता मधुर संबंधों को नष्ट कर देती है।
जैसे गर्भस्थ माँ संतान को सुरक्षित रखती है, माली पुष्पित पौधों की रक्षा करता है, धनिक धन की रक्षा करता है, ऐसे ही विद्वानों को अपनी बुद्धि की रक्षा करना चाहिए। प्रज्ञा की रक्षा करो, प्रज्ञा से ही साहित्य लिखा जाता है और साहित्य से ही धर्म एवं संस्कारों की रक्षा सम्भव है।
गुणियों से ईर्ष्या या प्रतिस्पर्धा मत करो, ज्येष्ठों का सम्मान करो। विद्वानों के सत्संग से गुण ग्रहण करो। जैसी संगति करोगे, वैसा ही आप बनोगे। मंत्रों के माध्यम से पाषाण भी पूज्य हो जाता है। ऐसे ही संस्कारों के प्रभाव से मानव महामानव साधु बन जाता है। साधु की संगति मात्र से मनुष्य संतोषी बन जाता है। इत्र बेचने वाला भवन के सामने से निकल जाय तो कोई खरीदें भी न तो सुगंध तो आ ही जाती है।
भगवान् की भक्ति पूर्वकृत पाप-कर्मों का क्षय कर पुण्य के कोश भर देता है। भक्ति से आनन्द, सुख-शांति का संचार होता है।सभा का संचालन पंडित श्रेयांस जैन ने किया।
वरदान जैन
मीडिया प्रभारी




