






प्रवचन
बड़ौत 12/09/2023
“शांति का परम-द्वार – “वैराग्य”- आचार्य विशुद्ध सागर
दिगम्बर जैनाचार्य श्री विशुद्धसागर जी महाराज ने शांतिनाथ दिगंबर जैन मन्दिर मर धर्म सभा में सम्बोधन करते हुए कहा कि – धर्म ही मंगल है, धर्म ही उत्तम है, धर्म ही शरण है और धर्म ही परम-सुख का साधन है। धर्म ही उपकारी है, धर्म ही शांति का द्वार है।
किसी के द्वारा पीड़ित किए जाने पर क्रोध नहीं करना, माध्यस्थ भाव रखना, यही ज्ञानियों का कार्य है। क्रोध द्वेष भी बंध का कारण है और राग भी बंध का कारण है। कषाय पूर्वक जो दूरी बनती है, उसे द्वेष कहते हैं और वैराग्य पूर्वक जो दूरियाँ बढ़ती हैं उसे धर्म कहते हैं। कषाय छोड़ो, कलंक से बचो। कषाय ही कलंकित करती है, कषाय ही अपमानित कराती है । कषाय ही अनर्थ कराती है, कषाय ही संकट में डालती है। क्रोध, मान, माया और लोभ ये चार कषायें हैं। इन चार कषायों के वश होकर ही मानव हिंसा, झूळ चारत कुशील और परिग्रह-संग्रह कर करके दुर्गतिं होता है । चित्त को वश करो, चारित्र धारण करो ।चिंतन करो ? जीवन का उद्देश्य क्या है ? जीवन श्रेष्ठ कैसे बन सकता है? दुःखों से मुक्ति का उपाय क्या है? अपनी शक्ति को पहचानो। संयम धारण करो, आत्म कल्याण करो। संयम ही सुख का साधन है। जिनका सिर दर्द करे, वह विक्स मलम लगाओ, पेड़ा खाओ दर्द भगाओ। संसार के सम्पूर्ण दुःखों से दूर करने वाली कोई औषधि है तो वह जिनवचन हैं, गुरुवाणी है।
हजारों रोगों की दवाई है, मात्र एक मुस्कराहट। खिलता हुआ एक पुष्प हजारों लोगों को मोहित कर लेता है। चित्त विशुद्ध होने पर सर्व-कार्य सिद्ध हो जाते हैं। विशुद्धि के अभाव में धर्म नहीं होता है। धर्म वही श्रेष्ठ है जो दया, करुणा, वैराग्य से परिपूर्ण हो । धर्म की चर्चा करना सरल है, पर धर्म धारण करना कठिन है। इच्छाओं का निरोध ही वैराग्य है। संसार, शरीर और भोगों से विरक्ति ही सत्यार्थ वैराग्य है।
सभा का, संचालन पंडित श्रेयांस जैन ने किया। सभा मे सुरेंद्र जैन,अनिल जैन, नवीन जैन, अनिल जैन, दीपक जैन,सतीश जैन, विनोद जैन आदि थे
वरदान जैन मीडिया प्रभारी




