अठाई समय आत्म केंद्रित होने का है – राजेंद्र मुनि
बडौत,पर्यूषण पर्व के प्रथम दिन जैन स्थानक नया बाजार में मंगल प्रवचन देते हुए संघ शास्ता शासन प्रभावक पूज्य गुरुदेव श्री सुदर्शन लाल जी महाराज के सुशिष्य, राज ऋषि श्री राजेंद्र मुनि जी महाराज ने मंगल प्रवचन देते हुए कहा की अठाई पर्व प्रारंभ हो चुके हैं।यह समय आत्म केंद्रित होने का है। आठ के ठाठ निराले हैं ।जैन आगमो में वर्णन है कि देवता तीर्थंकरों के कल्याणक 8 दिन तक मानते हैं जिसे अष्टानिका महोत्सव नाम दिया गया है। हमारे पर्यूषण महोत्सव भी 8 दिन के ही हैं फर्क इतना ही है कि इन आठ दिनों में हमें अधिक से अधिक आत्म केंद्रित रहना होता है। जबकि शेष सभी त्योहारों पर हम शरीर केंद्रित रहते हैं। वैसे तो शरीर- केंद्रित चेतना का एकदम आत्म केंद्रित होना काफी कठिन है। पर ऐसे अवसरों के आने पर यह कार्य कुछ आसान हो जाता है। पर्युषण पर्वों की आराधना पूर्ण त्याग, तप, स्वाध्याय और ध्यान के द्वारा की जाती है।मुनि श्री ने कहा कि अधिक भौतिकता के बाद ही विशुद्ध आध्यात्मिकता की चमक उभरती है ।यह केवल संयोग ही नहीं है कि जैन धर्म के सभी तीर्थंकर राजा राजाओं की संतान थे ।श्री शांति नाथ जी, श्री कुंथुनाथ जी तथा श्री अरनाथ जी चक्रवर्ती सम्राट थे। शेष तीर्थंकर भी राज्य वैभव के असीम सुखों के उपभोक्ता थे। सभी तीर्थंकर समृद्धि के शिखरों को पार करके मुक्ति के राज्य में प्रविष्ट हुए। जैन धर्म में अमीरों और गरीबों को यो तो मुक्ति का सीधा कारण नहीं माना। गरीब से गरीब व्यक्ति भी धर्म साधना, त्याग तपस्या का पात्र बन सकता है तथा अमीर भी उस राह का राहगीर बन सकता है। एक अति समृद्ध आदमी को धन की निरर्थकता का बोध संभवत शीघ्र हो सकता है ।क्योंकि वह धन के अर्जन ,संरक्षण आदि हर पहलू से गुजर चुका है। और संपन्न व्यक्ति जब कहता है कि धन का कमाना दुखमय है, कमाए हुए की रक्षा दुख भरी है। आय भी दुख है,व्यय भी दुख है। इसलिए दुख रूप धन को धिक्कार है तो उस धनी का अनुभव बोल रहा होता है। जबकि कोई दरिद्र बोलता है तो उसकी अ प्राप्ति की कसक बोल रही होती है।इसलिए बंधुओ धन के पीछे ना भागकर इन 8 दिनों मे धर्म कमाकर पुण्य अर्जन करो। त्याग, तपस्या के द्वारा अपने मानव जीवन को सार्थक करो।तभी तुम्हारा मनुष्य जीवन सार्थक है।सभा मे नरेंद्र मुनि जी महाराज ने मंगल प्रवचन दिया।
सभा मे भारी संख्या मे जैन श्रधालु उपस्थित थे।
श्री श्वेतांबर स्थानवासी जैन सोसाइटी बड़ौत