




10-09-2023 बड़ौत
सुर दुर्लभ, नर तन- आचार्य विशुद्ध सागर
जैन दिगम्बराचार्य गुरूवर श्री विशुद्धसागर जी ने ऋषभ सभागार मे जैन मिलन नगर द्वारा आयोजित धर्म सभा में कहा कि- दुःखी होने का मुख्य कारण अज्ञान है, भ्रम है। जो जैसा नहीं है ,वैसा सोचकर विपरीत धारणा बना लेना ही भ्रम है। विपरीत धारणा, भ्रमपूर्ण मान्यता ही दुःखपूर्ण। ज्ञान, वह भी समीचीन हो। सही ज्ञान, भूतार्थ दृष्टि, सत्यार्थ- बोध और बोधि बहुत दुर्लभ है।
परन्तु चौरासी लाख समुद्र में पड़ा रत्न पुनः प्राप्त करना सरल है, योनियों में सुर दुर्लभ मनुष्य पर्याय मिलना अत्यंत कठिन है। दुर्लभ है, नर तन पाना। कोई रत्नमयी स्फटिक शिला पर यदि वस्त्र धोने, वर्तन माजने के लिए स्वर्ण की भष्म बनाये, अपनी मनुष्य पर्याय को भोगों में नष्ट करे, अपने समय को व्यर्थ बकवाद या निंदा में व्यय करे, उससे बड़ा अज्ञानी अन्य कौन हो सकता है। समय को व्यर्थ व्यय करना स्वयं की हत्या है।
नर तन पाकर बोध और बोधि प्राप्त करना कठिन है। सज्जन न दोष करता और न ही किसी अन्य की निंदा करता है। जिसे निज पर करुणा नहीं है, जिसे स्वयं के हित का बोध नहीं है, वही पर के दोष देखने में समय व्यर्थ करता है। आत्म-हितैषी समय का ध्यान रखता है। जो पल निकल जायेंगे वह पुन: नहीं मिलेंगे, समय मूल्यवान है। समय पर समय को समझो, समय पर किया गया कार्य सिद्धि देता है। विद्यार्थी व्यर्थ समय व्यय करे तो ज्ञान हानि, व्यापारी समय व्यर्थ करे तो धन हानि, सम्राट समय व्यर्थ करे तो राष्ट्र हानि, तपस्वी समय व्यर्थ व्यय करे तो तप हानि, कृषक समय पर धान्य न बोये तो सर्व हानि, वाहन चालक चूक जाये तो मौत और सुखार्थी श्रद्धा से चुके तो भव-भव भ्रमण।
समझो, नर तन की दुर्लभता । स्वर्ग के देव भी सज्जन नरों को प्रणाम करते हैं। नर ही नारायण बनते, नर ही तीर्थंकर, नर ही संत, नर ही सर्वज्ञ, नर ही चक्रवर्ती। नर ही भगवान्, नर ही मुक्ति का स्थान।सभा का संचालन मनोज जैन ने किया।मंगलचरन पावनी जैन द्वारा किया गया।
चित्र अनावरण और दीप प्रज्वलन नवीन बब्बल, आदिश जैन,पुनीत जैन, कमल जैन, मयंक जैन द्वारा किया गया। पाद प्रक्षालन सुशांत जैन, पारस जैन गाजियाबाद द्वारा और शास्त्र भेट शरद जैन द्वारा किया गया।
वरदान जैन मीडिया प्रभारी
9719640668






