


प्रवचन
बड़ौत 9-9-23
कष्ट का उपाय : कषाय- आचार्य विशुद्ध सागर
दिगम्बराचार्य गुरूवर श्री विशुद्धसागर जी महाराज ने ऋषभ सभागार मे धर्मसभा को संबोधन करते हुए कहा कि – आत्मानुभवन, आत्मानंद, आत्मशांति, आत्माल्हाद का मार्ग है वैराग्य पूर्ण धर्माचरण। सुखार्थी सुख चाहता है, वह बाह्य जगत् प्रपंचों से अपनी आत्म रक्षा करता है। सच्चा साधक पल भर भी व्यर्थ में- व्यय नहीं करता है। जगत कल्याण का उद्यम और स्वात्म-भावना अत्यंत भिन्न-भिन्न है। स्वात्म शांति को छोड़कर जगत् उद्धार का उद्यम भी उचित
नहीं है। स्वात्म हितैषी स्वात्मानंद में ही लीन रहता है।
क्रोध, कृपणता, क्रूरता, अहं, कलह शासक के शासन का अंत कर देती है। स्नेह, दानशीलता, क्षमा, समन्वय और एकता शासक के शासन को वर्धमान करती है। ऐसे ही कषाय की तीव्रता साधक के जीवन को नष्ट कर देती है। कषाय की एक कणिका साधक-संयमी की साधना एवं विशुद्ध परिणामों का घात कर देती है। कषाय कष्टकारी ही होती है। कषायी का अंत दुःखद ही होता है। कषायी को क्षणमात्र भी सुख नहीं मिलता। धनी होना है, तो रात्रि भोजन छोड़ो, गुरुओं का दान दो, प्रभु भक्ति करो।
कषायशील का यह भव एवं परभव दोनों होते हैं। कशाय सर्वनाशकारी होती है। क्षण भर की क्रोध का घात कर देती है। कषाय युक्त कषाय ही दुःखद कषाय, भावों की विशुद्धि की तीव्रता में स्वयं का भी घात कर लेता है। कषाय का का भी आत्म- कल्याण में बाधक है।
विकल्पों से शून्य दिगम्बर-प्रज्ञा का धारक साधक कषाय को कालकूट जहर से भी अधिक घातक मानता है। सज्जन मानव सरलता, शान्तता और नैतिकतापूर्ण जीवन जीते हैं। दुर्जन का जीवन कलुषता युक्त ही होता है। स्वभाव की प्रचण्डता, वैर भाव, झगडालु वृत्ति, क्रूरता, दुष्टता, अडियलपना, कषायों की उग्रता, अनैतिकता कषायेशील दुर्जन की पहचान है। जो समझाने पर भी सत्याचरण न करे, यही दुष्टता का चिह्न है।सभा का संचालन पंडित श्रेयांस जैन ने किया।
सभा मे प्रवीण जैन, दिनेश जैन, पुनीत जैन, मनोज जैन, सुनील जैन, विनोद जैन, सतीश जैन वीरेंदर जैन, अशोक जैन, अनुज जैन, विवेक जैन, अनुराग मोहन आदि थे
वरदान जैन
मीडिया प्रभारी






