



प्रवचन 7-9-23
कारण अनुसार कार्य- आचार्य विशुद्ध सागर
दिगम्बराचार्य श्री विशुद्धसागर जी महाराज ने ऋषभ सभागार मे, धर्म सभा को संबोधित करते हुए कहा कि जैसे अंतरंग में परिणाम होंगे, वैसे भव होंगे। भावों के आधार पर ही भव होते हैं। भावना के अनुसार भाषा होती है। जो कार्य प्रकट दिख रहा है, उसका कोई-न- कोई कारण भी है। कारण के बिना कार्य नहीं होता है। आज जो पूज्यता को प्राप्त हो रहे हैं ,उन्होंने पूर्व में तप, साधना, संयम धारण किया था, उसका सुफल वर्तमान में प्रकट दिख रहा है। कार्य को देखकर रूदन मत करो, उसके कारण को भी समझो।
हमने ही रास्ते में काँटे फेंके हैं, वही चुभ रहे हैं। हमने पाप न किए होते, तो उदय में क्यों आते? भावों से ही आत्मा परमात्मा बनता है। भावो को सँभालो। भाव और भावना से ही भव का नाश होता है। मौन महान साधना है। मौन से सर्वविघ्न-बाधायें टल जाती हैं।
जिसको कार्य- अकार्य का बोध हो, वही श्रेष्ठ मानव है। सज्जन को सदैव हिताहित का बोध होता है। श्रेय -अश्रेय, यश-अपयश, लाभ-अलाभ के विचार पूर्वक ही कार्य करना चाहिए। पवित्र भाव, निर्मल आचरण, सहयोग, पवित्र समता ,सज्जनता की पहचान है। जिस वृक्ष की जड़े मजबूत होती हैं, वह हवा के झोंके में भी अडिग रहते हैं। वैसे ही जिनका आचरण पवित्र और उत्कृष्ट होता है, वह उपसर्ग आने पर भी डगमग नहीं होते हैं।
पाप मत करो, पाप का फल बहुत कष्टप्रद होता है। जियो और जीने दो। जीवन जीना कठिन नहीं है, परन्तु यशस्वी जीवन जीना श्रम साध्य है। जीवन पर्यन्त यश के साथ जीना, यश के साथ प्राप्त होना, बहुत बहुत दुर्लभ है। इस दुनिया में किसी के मृत्यु को पैर सुन्दर हैं, किसी के पंख सुंदर हैं और किसी के उप आचरण सुंदर हैं। चरण और आचरण दोनों सुंदर पुण्यात्मा के ही हो सकते हैं। जीवन में संतोष के लिए अदृष्ट उपलब्धि को भी निहारना चाहिए। दृष्टको ही मत देखो, अदृष्ट को भी निहारो।
सभा का संचालन पंडित श्रेयांस जैन ने किया।सभा मे प्रवीण जैन, धनेंद्र जैन,अशोक जैन, सतीश जैन, वीरेंदर पिण्टी,दिनेश जैन, राजेश जैन,पुनीत जैन, विवेक् जैन आदि थे।
वरदान जैन मीडिया प्रभारी
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