जय माँ यमुना -10
कालीधय वृन्दावन में यमुना तट पर श्री कृष्ण द्वारा कालिया नाग का मर्दन श्री मद भागवत का वर्णन सुनते हुए शुकदेव मुनि राजा परीक्षित से कहते हैं कि हे राजन! एक दिन भगवान श्री कृष्ण अपने बाल सखाओ के साथ गाय चराते हुए यमुना के कालियादेह घाट पर जाते हैं। वहां एक ऐसा विशालकाय घाट था जिसे कालिया घाट के नाम से जाना जाता था जिसमें कालिया नाम का नागराज रहता था! और उसके भयंकर विष के प्रभाव से सारा उस घाट के पास का जल विषैला रहता था। यहां तक इस घाट के ऊपर से गुजरने वाले पक्षी भी उसके विष की गंध से मृत्यु को प्राप्त हो जाते थे। इतना भयंकर विषैला क्षेत्र बना हुआ था! और इस विष की दुर्गंध के कारण ही आसपास एक कदम के वृक्ष के अलावा कोई वृक्ष भी था। और हे राजन! वह कदम का वृक्ष भी इसलिए खड़ा था! क्योंकि एक बार भगवान गरुड़ अमृत पान करते हुए अमृत लेकर के आ रहे थे! और उस पर कदम के वृक्ष पर बैठकर अमृत पान कर रहे थे। तो उसमें से एक बूंद वहां गिर गई। इस कारण व कदम का पेड़ एकमात्र वहां खड़ा था।
जब भगवान श्री कृष्ण कल अपनी गायों को जल पान कराने के लिए इस घाट पर आए थे। तो सब के सब गोप ग्वाल और गाये मूर्छित हो गए थे। और भगवान ने उस समय उनको दिव्य दृष्टि से पुनः सजीव कर दिया था। अतः अब भगवान श्री कृष्ण कालीधय को कालिया नाग से खाली कराने की लीला के लिए आज यहां आए हैं।।
इस प्रकार हेपरीक्षित! भगवान श्री कृष्ण बालसखाओं के साथ कालिया दह के ऊपर आकर भगवान श्री कृष्ण के कहने से गेंद बल्ला का खेल खेलने लगते हैं। आज के दिन भगवान बलदेव जी गाय चराने नहीं आए थे।इस प्रकार गेंद खेलते हुए भगवान श्री कृष्ण के हाथ से गेंद कालिया घाट में चली जाती है। तब ग्वाल बाल कहने लगे कन्हैया हमारी गेंद इस यमुना में चली गई है। भैया अब इसे कौन निकालेगा।तब कन्हैया कहने लगे, सखाओ! तुम्हें मेरे रहते हुए चिंता नहीं करनी चाहिए। क्योंकि मैं अभी गेंद इस यमुना में से निकाल कर लाऊंगा। और फिर हम पुनः यथावत अपना खेल खेलेंगे। ऐसा कह कर के भगवान श्री कृष्ण उस कदम के पेड़ पर चढ़ जाते हैं। और अपनी कमर में अपने दुपट्टे का पेठा बांध लिया और दोनों हाथों से ताली मार कर कन्हैया देखते-देखते यमुना में छलांग लगा जाते हैं। जैसे ही कन्हैया ने कालिया घाट में छलांग लगाई और उसकी जैसी भयंकर आवाज होती है और जल ऊपर उठता है।
इसे देखकर कालिया नाग जाग जाता है जो इससे पहले निद्रा में सो रहा था। उसने देखा कि कोई श्याम सलोना बालक मेरे इस घाट यमुना में आया है। तो कालिया अपने फनो को फैला कर भगवान श्री कृष्ण के ऊपर प्रहार करने के लिए टूट पड़ता है। भगवान श्रीकृष्ण भी पैंतरा बदल बदल करउस सौ फनो वाले कालिया नाग से लड़ने लगे हैं। भगवान श्री कृष्ण को इस प्रकार कालिया घाट यमुना में कूंदा हुआ देखकर सारे के सारे गोप गृवाल जोर-जोर से विलाप करने लगे। कन्हैया कन्हैया कह पुकारने लगे। कुछ ग्वाल बाल बेसुध होकर मूर्छित हो जाते हैं। इसी क्रम में किसी ने जाकर वृंदावन में बाबा नंद यशोदा से कहा कि कन्हैया कालिया घाट यमुना में कूद गया है। सुनते ही बाबा नंद यशोदा रोहिणी व अन्य वृंदावन के गोप गोपियां विलाप करते हुए। हाय! कन्हैया हाय! कन्हैया करते हुए यमुना के तट पर आते हैं।। वहां आकर के देखो तो कालिया नाग जिसके सो फन हैं। वह भगवान श्री कृष्ण को कसकर के पकड़ा हुआ है। और अपने फनो से वार कर रहा था। ऐसा दृश्य देखकर के सभी गोप-
ग्वाल जोर-जोर से हाय कान्हा , कान्हा कह कर विलाप करने लगे। माता यशोदा कालिया घाट यमुना मे कूदने लगी। लेकिन अन्य गोप ग्वालों ने भगवान श्री कृष्ण के पूर्व काल की अलौकिक वीरता को देख कर श्री कृष्ण में विश्वास करके माता यशोदा को कूदने से रोक लिया। और सभी गांव वालों को माता यशोदा रोहिणी व बाबा नंद को भगवान बलदेव जी श्री कृष्ण के वैभव को बताकर विश्वास दिलाते हैं। कि हमारा कन्हैया कालिया नाग का अंत करके सकुशल लौट आएंगा।
छांड़ महावन यावन आते,तौहु दैत्यन अधिक बताते।
बहूत कुशल असुरनतेकरी,अब क्यों दहते निकसतहरी।।
उधर जब भगवान श्रीकृष्ण ने देखा कि मेरे वियोग में सभी गोप ग्वाल सहित मेरी मैया बाबा नंद व मेरे बाल सखा व्याकुल हो रहे हैं तब उन्होंने अपने शरीर को फुलाया जिससे कालिया नाग का शरीर टूटने लगा और भगवान श्रीकृष्ण उसके फाश से मुक्त होकर, उसके फनो के ऊपर आ जाते हैं। और कालिया नाग के सिर के ऊपर नृत्य करने लगे।जिस फन को भी कालिया नाग नीचे झुकाता है। उसी पर जोर से अपनी चरण कमलों से वार करने लगे। प्रभु श्री कृष्णा बंसी बजाते हुए कालिया नाग के सिर पर नृत्य करते हुए प्रगट हुए
तीनलोक को बोझ ले,भारी भये मुरारी।
फणफण पर नाचतफिरे, बाजे पग पटतारि।।
इस दृश्य को देखकर आकाश मंडल में देवताओं के विमानों की झड़ी लग गई और कन्हैया की नाग नथैया लीला देखने लगे। और आज मेरे कन्हैया का एक और नाम हो जाता है।
इस प्रकार हे राजन! कालिया नाग के फनो से रक्त बहने लगा वह पूरी तरह से मूर्छित होने लगा। तब नाग पत्नियां हाथ जोड़कर भगवान श्री कृष्ण के सामने नतमस्तक होकर स्तुति करने लगी। भगवन आप हमारे स्वामी को क्षमा करें, द प्रभु! हम आपके शरणागत हैं। कृपा करके हमारे स्वामी नागराज को क्षमा का अभयदान दीजिए। इसमें हमारे स्वामी का दोष नहीं है क्योंकि प्रभु यह जो विष है हम नाग जाति में आपने हीं तो उत्पन्न किया है। यह हमारी स्वभाविक प्रकृति है। भगवान श्री कृष्ण ने कहा कि हे ना पत्नियों आप मेरी शरण में हो इसलिए मैं तुम्हें अभयदान प्रदान करता हूं। लेकिन अब तुम इस कुंड में नहीं रहोगे। इसलिए अपने स्वामी को लेकर अभी यहां से रमणक दीप को चले जाओ। कालिया नाग भी हाथ जोड़कर कहने लगा भगवन! अगर मैं यहां से रमनदीप को जाऊंगा तो वहां मुझे भगवान गरुड़ अपना काल का ग्रास तब बना जाऐगे। भगवान बोले हे नागराज! अब तुम्हें इसकी चिंता नहीं करनी चाहिए क्योंकि तुम्हारे फनो पर मेरे चरण कमलों के चिन्ह बन गए हैं। उन्हें देखकर महात्मा गरुड़ तुम्हारा कुछ भी नहीं बिगाड़ सकेंगे। और फिर भगवान गरुड़ को बुलाकर नागराज को विश्वास दिला कर अभय दान दिया। तब नागराज अपने परिवार सहित भगवान कन्हैया के श्री चरणों में प्रणाम करके स्तुति करता हुआ सपरिवार कालियादेह को छोड़ कर अपने मूल स्थान रमनदीप को चला जाता है।
भगवान श्रीकृष्ण ने कालीदह घाट पर ही तो कालिया नाग को नथते हुए यमुना को उसके प्रभाव से मुक्ति किया था। इस धार्मिक और एतिहासिक प्रमाण को जीवित रखने के लिए इंदौर रियासत ने वृंदावन में यमुना पर कालीदह घाट का निर्माण कराया। इसकी खूबसूरत वास्तुकला आज भी लोगों को आकर्षित करती है, लेकिन ये प्राचीन घाट अब वृंदावन के अन्य घाटों की भांति विकास की आधुनिकता में खो गया है। घाट के आगे बनी सड़क ने इसे ढक दिया है।
ब्रज में भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं के वैसे तो अनेक स्थान हैं, लेकिन वृंदावन को राधाकृष्ण की लीलाओं के लिए सबसे खास स्थल बताया जाता है। इसके साक्ष्य यहां की लता-पताएं ही नहीं यमुना भी हैं। कहते हैं कि इसी स्थली पर भगवान श्रीकृष्ण ने कालिया नाग का मर्दन किया था। इस स्थल को वृंदावन में यमुना के किनारे कालिया दह घाट के रूप में पहचाना जाता है। लेकिन यह घाट अब अपनी पहचान को खो रहा है।
जय श्री राधे कृष्णा