



जैसी विचारधारा जैसी कार्यशाली- आचार्य विशुद्ध सागर
आचार्य विशुद्ध सागर जी महाराज ने ऋषभ सभागार में आयोजित धर्म सभा में मंगल प्रवचन देते हुए कहा कि मन शुद्ध हो, विचार पवित्र हो, दृष्टि निर्मल हो, तो व्यक्ति कार्य भी श्रेष्ठ ही करता है ।जिसकी दृष्टि विकृत है वह स्रस्टि को भी दोष दृष्टि से देखता है ।अनेकांत दृष्टि ही विशाल दृष्टि हो सकती है। एकांत दृष्टि दूर दृष्टि नहीं हो सकता है। विकास चाहिए तो विचारधारा को पवित्र करो। जिनकी विचारधारा जैसी होगी ,उनकी कार्यशैली भी वैसी होगी। विचारों पर ही जीवन की धारा होती है।विचारों के अनुसार आदमी जिंदगी जीता है। वस्तु सुख नहीं देती है, व्यक्ति के विचार, सोच ही सुख-दुख देती है। जिनके विचार विपरीत है उन्हे सर्वत्र कष्ट होता है। कष्ट से बचना है तो विचारों को पवित्र करना होगा। जो निडर, निशंक ,निर्भर होता है ,वही सच्चा योगी होता है। जो सदा आनंद से पूर्ण होता है समतावान होता है ,चिंता व चाहत से विरक्त होता है, ज्ञान, ध्यान, तप में संलग्न होता है ,वही साधु होता है। जो कर्म निर्जरा के लिए तप करें वही सच्चा तप है। तपस्या करो, कर्म निर्जरा के लिए। तप से ही शोध होता है। जीवन में साधना नदी की धारा की तरह होना चाहिए। नदी की धारा प्रारंभ में पतली होती है और आगे विशाल रूप धारण करती है। ऐसे ही जो भी साधना करो कभी पीछे मत हटो। जो भी करो, पूर्ण भावना से करो। जितने पवित्र परिणाम से कार्य करोगे उतना ही फल मधुर होगा। श्रेष्ठ कार्य का फल सुखद ही होता है ।सही दिशा में किया गया श्रम कभी गलत नहीं होता है।सभा का संचालन पंडित श्रेयांस जैन ने किया। सभा मे प्रवीण जैन, सुनील जैन, अतुल जैन, दिनेश जैन,मनोज जैन, राकेश जैन आदि थे
वरदान जैन मीडिया प्रभारी






