
(((( “अहम् भक्ता पराधीन“ ))))
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माखन चुरा कर भगवान दूर खड़े मुस्कुरा रहे है! तभी भगवान के परम मित्र मनसुखा आ गए..
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तो मैया मनसुखा से कहती है.. मनसुखा तू आज लल्ला को पकडवाने मे मदद करेगा तो तुझको खाने को मक्खन दूंगी !! तो मनसुखा बातों मे आ जाते हैं।
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जब मनसुखा भी कान्हा को पकड़ने भागे तो कन्हैया बोले.. क्यों रे ब्राहमण तू आज माखन के लोभ मे मैया से मार लगवायगो ??
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सोच ले मैं तो तुझ को रोज चोरी करके माखन खाने की लिए देता हूँ ; मैया तो तुझे सिर्फ आज माखन खाने को देगी !!
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अगर तूने मुझे पकड़ा और मैया से मार लगवाई.. तो तेरा अपनी पार्टी से निकार दुंगो !!
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तो मनसुखा बोले.. देख कान्हा! मैया का क्या है, एक तो वो तुझ से प्यार इतना करती है !! जो तुझको जोर से मार तो लगाएगी नहीं और दो चपत तेरे गाल पे लग जायेगी तो क्या इस ब्राहमण का भला हो जायेगा और माखन खाने को मिल जायेगा चोरी भी नहीं करनी पड़ेगी !!!!
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कान्हा बोले.. अच्छा मेरी होए पिटाई और तेरी होय चराई!! वाह मनसुखा वाह!!
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और ये सब कहते हुए छोटे छोटे पैरों में घुंघरू छन छन करके बज रहे हैं और यशोदा सब कुछ सुन रही हैं और अपने लाल की लीला देख के गुस्सा भी और प्रसन्न भी हो रही हैं!!
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गुस्सा इस लिए हो रही है की इतना छोटा और इतना खोटा !! पकड़ में ही नहीं आ रहा!! और अपने लाल की लीला जिसपे सारा बृज वारी वारी जाता है !
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भगवान् सुंदर लीला कर रहे हैं! तभी मनसुखा ने माखन के लोभ मैं कृष्ण को पकड़ लिया है !! और जोर से आवाज लगायी.. काकी जल्दी आओ!! मैंने कान्हा को पकर लियो है !!
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आवाज सुनकर मैया दौड़ी दौड़ी आई !जैसे ही मैया पास पहुंची.. मनसुखा ने कान्हा को छोड दिया !!
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मनसुखा बोले.. मैया मैंने इतनी देर से पकड़ के रखो पर तू नाए आई तो कान्हा तो हाथ छुडवा के भाग गयो !!
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जब मैया थककर बैठ गयी तो मनसुखा मैया से बोलो.. मैया तू कहे तो कान्हा को पकड़ने को तरीका बताऊँ ? तू इसे अपने भक्तन (सखा और सखी गोपियों ) की सोगंध खवा !!
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मैया बोली.. या चोर को कौन भक्त बनेगो ? फिर भी मैया कन्हैया को सोगंध खवाती है !
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कन्हैया तुझे तेरे भक्तो की सौगंध जो मेरी गोदी मे न आये !!!
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भगवान् मन मे सोचते है “अहम् भक्ता पराधीन“ मैं तो भक्त के आधीन हूँ और वो भागकर मैया के पास चले आते हैं और मैया से बोलते हैं..
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आरी मैया !! अब तू मोये मार या छोड दे.. ले अब मे तेरे हाथ मे हूँ !!!
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मैया बोली.. लल्ला आज मारूंगी तो नहीं ; पर छोडूंगी भी नहीं !! पर तेरी सारी बदमाशी तो बंद करनी ही पड़ेगी!!
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इसलिए मैया रेशम की डोरी से उखल से कृष्ण के पेट को बांध रही हैं !!
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भगवान सोच रहे हैं.. मैया मेरे हाथ को बांधे तो बंध जाऊं!! पैर बांधे तो भी बंध जाऊं !!
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पर मैया तो पेट से बांध रही है ; और मेरे पेट में तो पूरा ब्रहम्मांड समाया है !!
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मैया बार बार बांध रही है ; पर हर बार डोरी दो उंगल छोटी पड़ जाती है !! और डोरी जोडके बांधती है ; तो भी दो ऊँगल छोटी पड़ जाती है !!
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एक ऊँगल प्रेम है और दूसरा है कृपा !! भगवान सोच रहे है कि अगर प्रेम है तो कृपा तो मैं अपने आप ही कर देता हूँ !!
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आज जब मैया थक गयी और प्रेम मैं आ गयी तो प्रभु ने कृपा कर दी और अब मैया ने कान्हा को बाँध दिया है !!!
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संस्कृत मे डोरी को दाम कहते है !! और पेट को उदर कहते है!!
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जब भगवान् को रस्सी से पेट से बांधा तो कान्हा का एक नया नाम उत्पन्न हुआ “दामोदर”.. !!!
((((((( जय जय श्री राधे )))))))~~~~~

