
सुरेंद्र मुनोत, राष्ट्रीय सहायक संपादक
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घोड़ाघाटी, राजसमंद (राजस्थान) ,जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अधिशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी वर्तमान में अपनी धवल सेना के साथ भारत की अरावली पर्वतशृंखला से आच्छादित क्षेत्र मेवाड़ की भूमि को पावन बना रहे हैं। शुक्रवार को प्रातःकाल की मंगल बेला में महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी ने नेगड़िया से मंगल प्रस्थान किया। इन क्षेत्रों में सर्दी का प्रभाव स्पष्ट दिखाई दे रहा है, किन्तु सूर्य के आसमान में चढ़ते ही मानों सर्दी गायब-सी ही हो जा रही है। आरोह-अवरोह से युक्त, किन्तु पहाड़ों के मध्य से बने राजमार्ग पर गतिमान युगप्रधान आचार्यश्री अब नाथद्वारा की ओर गतिमान हैं। जन-जन को मंगल आशीष प्रदान करते हुए आचार्यश्री लगभग 11 किलोमीटर का विहार घोड़ाघाटी में स्थित श्री मदन विहार धाम में पधारे। यहां से संबंधित लोगों ने आचार्यश्री का भावभीना स्वागत किया। ज्ञातव्य है कि यह विहारधाम स्थानकवासी श्रमण संघ के मदन मुनि का समाधि स्थल है।विहार धाम परिसर में आयोजित प्रातःकालीन मुख्य मंगल प्रवचन कार्यक्रम में उपस्थित श्रद्धालु जनता को युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि आगम वाङ्मय में विभिन्न विषय प्राप्त होते हैं। प्रसंगों के माध्यम से अध्यात्म की प्रेरणा प्राप्त की जा सकती है। दुनिया क्या है, इस दृष्टि से भी उल्लेख आगम के माध्यम से प्राप्त किया जा सकता है। कहीं-कहीं संवाद-परिसंवाद के माध्यम से ज्ञानात्मक बातें बताई गई हैं। उत्तराध्ययन आगम में परिसंवाद की बात भी आई है। इसके माध्यम एक स्थान पर यह प्रेरणा दी गई है कि आदमी का मन रूपी अश्व उत्तम भी हो सकता है और जो आदमी का मन चंचल हो तो वह दुष्ट अश्व के समान होता है। यह दुष्ट अश्व आदमी को उन्मार्ग में ले जाने वाला हो सकता है। इस घोड़े पर लगाम लगाने का प्रयास भी किया जा सकता है। बताया गया कि मन रूपी घोड़े को श्रुत अर्थात् ज्ञान रूपी लगाम से मन रूपी घोड़े को नियंत्रित किया जा सकता है।मन को दुष्ट अश्व का है तो उसे उत्तम कोटि का अश्व भी बनाया जा सकता है। मन में अच्छे विचार भी आते हैं और बुरे विचार भी आ सकते हैं। आदमी को यह प्रयास करना चाहिए कि ज्ञानार्जन के माध्यम से अपने मन पर अंकुश लगाने का प्रयास करना चाहिए। अध्यात्म की साधना, ध्यान व प्रेक्षा के माध्यम से अपने मन की चंचलता को कम करने का प्रयास करना चाहिए और मन को अच्छा बनाने का प्रयास करना चाहिए।आचार्यश्री ने आगे कहा कि आज नाथद्वारा से पहले स्थानकवासी परंपरा के इस मदन विहार में आए हैं। आचार्य शिवमुनिजी ने तो अनेक बार मिलना हुआ। अन्य भी मुनियों से मिलना हुआ है। स्थानकवासी समाज में भी अच्छी धार्मिक-आध्यात्मिक साधना चले। विहार धाम की ओर से अध्यक्ष श्री मांगीलाल लोढ़ा ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। घोड़ाघाटी महिला मण्डल की सदस्यों ने आचार्यश्री के स्वागत में गीत का संगान किया।सायंकाल आचार्यश्री महाश्रमणजी ने लगभग 5 किलोमीटर का विहार कर राबचा गांव में स्थित श्री अर्जुनसिंह बराठ के निवास स्थान में पधारे, जहां आचार्यश्री का रात्रिकालीन प्रवास हुआ। ऐसा अवसर पाकर बराठ परिवार बहुत उत्साहित नजर आ रहा है।

