
मौहम्मद हयात गैसावत, जिला ब्यूरो चीफ नागौर
Key Line Times
राजस्थान,मकराना में कुछ महीनों पहले आवारा कुत्तों को लेकर बड़ा मुद्दा उठा था। उसी दौरान मेरी नगर परिषद आयुक्त से बात हुई। उन्होंने दो ऐसी बातें कहीं, जो पहली बार सुनने में तो कड़वी लगीं लेकिन आज जब हालात देख रहा हूं, समझ रहा हूं कि वह सौ प्रतिशत सच थीं।
(1)लोग अपने दरवाज़े के बाहर घर का वेस्टेज खाना डाल देते हैं।
यह वही खाना होता है जिसे हमें खुद नहीं खाना, लेकिन हम सोचते हैं कि बाहर फेंक देंगे तो जिम्मेदारी खत्म।
पर असल में यहीं से मुसीबत शुरू होती है
उस खाने के लालच में आवारा जानवर एक जगह इकट्ठे होते हैं और आसपास के लोगों, खासकर बच्चों और राहगीरों के लिए खतरा पैदा कर देते हैं।
(2)रास्ते में, गलियों में, दूसरों के दरवाज़ों पर खाना डाल देना यह सिर्फ गंदगी नहीं, बहुत बड़ा पाप है।
हमारा धर्म भी सिखाता है कि खाने की कद्र करो, उसे जाया न करो।
पर यहां तो हालात उल्टे हैं।
घरों के बाहर सड़कें गंदी, दरवाज़ों के सामने बदबू, और दोष नगर परिषद पर डाल दिया जाता है।
हमारी हालत कैसी हो गई है?
एक कम्युनिटी है जो रोज़ सुबह 4 बजे उठकर अपने घर के बाहर की सड़क साफ करती है।
और एक हम हैं।
अपने ही दरवाज़े के सामने गंदगी फैला कर बैठे हैं।
जब सड़क के सामने कूड़ा-कचरा पड़ता है तो शिकायत हम करते हैं,
जब जानवर इकट्ठे होते हैं तो गुस्सा हम दिखाते हैं,
पर असल वजह?
हम खुद।
सबसे बड़ा दर्द क्या है?
जब वे लोग जिनका माहौल नमाजी परिवार का हो, जो परहेज़गार कहलाते हों,
वही लोग अपने घर के बाहर रास्ते पर खाना डालें…
तो दिल से एक ही सवाल उठता है।
“अगर शिक्षा, समझ और मजहब से ही दूर हो गए,
तो फिर बाकी लोगों से कैसी उम्मीद?”
धर्म साफ-सफाई सिखाता है।
इस्लाम सिखाता है कि अपने घर के दरवाजे से लेकर सड़क तक साफ रखो।
लेकिन हम उल्टा ही कर रहे हैं।
गंदगी खुद फैलाते हैं और इल्ज़ाम प्रशासन पर लगा देते हैं।
खाना डालना दान नहीं, नुकसान है।
दान का भी एक तरीका होता है।
जानवरों पर रहम करना अलग बात है।
लेकिन रास्ते में, दरवाजों के सामने, यात्रियों की राह में गंदगी फैलाकर जानवरों को बुलाना
यह न दान है, न रहम…
यह सिर्फ अव्यवस्था और गुनाह है।
कितना दुख होता है कि समझाने के बावजूद लोग नहीं मानते।
कई बार कहा
लेकिन लोग अपनी आदत नहीं छोड़ते।
खुद के दरवाजे पर नहीं तो दूसरों के दरवाजे पर खाना डाल देते हैं।
और परेशानी सबको झेलनी पड़ती है।
अंत में…
बात कड़वी है पर सच है।
हम दो गलतियाँ एक साथ करते हैं और नुकसान पूरे समाज का होता है।
आज नहीं समझेंगे तो कल फिर यही मुद्दे सामने खड़े होंगे।
बदलाव चाहिए तो जिम्मेदारी भी लेनी होगी।
शुरुआत “अपने” घर से ही करनी होगी।
✍️मोहम्मद हयात गैसावत जिला ब्यूरो चीफ की लाइन टाइम्स न्यूज़ दिल्ली मकराना

