सुरेंद्र मुनोत, ऐसोसिएट एडिटर
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कोबा, गांधीनगर (गुजरात) ,जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अधिशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, अखण्ड परिव्राजक, शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने बुधवार को नित्य की भांति ‘आयारो’ आगम के माध्यम से समुपस्थित जनता को पावन पाथेय प्रदान किया। इसके साथ ही आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में जैन विश्व भारती द्वारा आचार्य तुलसी विद्या पुरस्कार का आयोजन कर सूरत की स्कूल को यह पुरस्कार प्रदान भी किया गया। इस प्रकार आचार्यश्री की पावन सन्निधि में मानों आयोजित होने वाले कार्यक्रम अनवरत संचालित हो रहे हैं। इस वर्ष के चतुर्मास में शायद ही कोई ऐसा दिन गया हो, जिस दिन किसी अन्य प्रकार के आयोजन न हुए हों। इन आयोजनों के कारण ही प्रेक्षा विश्व भारती का परिसर निरंतर गुलजार बना हुआ है।बुधवार को ‘वीर भिक्षु समवसरण’ में मुख्य मंगल प्रवचन कार्यक्रम में समुपस्थित श्रद्धालु जनता को सर्वप्रथम शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने पावन प्रतिबोध प्रदान करते हुए कहा कि ‘आयारो’ आगम में बताया गया है कि कई प्राणी अंधकार में रहते हैं और जो अंधकार में रहते हैं, एक प्रकार से अंधे के समान ही होते हैं। आंख होने पर भी वह उस समय अंधा होता है। मिथ्यात्व होता है, तो महाअंधकार होता है। इसके कारण दुनिया के कितने प्राणी अंधे बने हुए हैं। मिथ्या दर्शन की सघनता वाले प्राणी अंधे होते हैं। इन अंधेपन को दूर करने का प्रयास हो। जिसके आंखों में ज्योति न हो, जो जन्मांध हो, उसे आंखें मिल जाएं तो उसका जीवन कितना प्रकाशवान हो जाता है। मिथ्यात्व से अभिभूत आदमी भीतर से अंधा होता है। पांच आश्रवों में सबसे बड़ा आश्रव मिथ्यात्व आश्रव है। ऐसे भी जीव हैं, जो अनादिकाल से ही मिथ्यात्व में हैं। जीव के परिणामों से मिथ्यात्व हट जाए तो कितना बड़ा बोझ हल्का हो जाता है। चौदहवें गुणस्थान में एक भी आश्रव नहीं होता। मिथ्यात्व दूर हो, इसके लिए जीव को सम्यक्त्व को प्राप्त करने का प्रयास करना चाहिए। सम्यक्त्व से बड़ा कोई रत्न नहीं होता। यह आश्रवों का जगत है। मिथ्यात्व को दूर करने का प्रयास हो। आदमी को सम्यक्त्व की प्राप्ति हो जाए, सम्यक्त्व से बड़ा कोई मित्र नहीं, सम्यक्त्व से बड़ा कोई लाभ नहीं हो। सम्यक्त्व आत्मा प्राप्त हो जाए तो जीव का मानों कल्याण ही हो सकता है। सम्यक्त्व से आत्मा का लाभ भी हो सकता है।सम्यक् दृष्टि आत्मा, परमात्मा की ओर और मिथ्या दृष्टि भौतिकता व विषय वासनाओं में टिकी हुई होती है। गृहस्थ जीवन में भी सम्यक् दृष्टिकोण रखने का प्रयास करना चाहिए और उस अनुरूप कभी साधना करते-करते मोक्ष के बहुत निकट पहुंचा जा सकता है और कभी मोक्ष की प्राप्ति भी हो सकती है।आचार्यश्री के मंगल प्रवचन के उपरान्त जैन विश्व भारती द्वारा ‘पद्मपुष्प’ शासनश्री साध्वी पद्मावतीजी का जीवनवृत्त साध्वी गवेषणाश्रीजी व साध्वी मयंकप्रभाजी द्वारा रचित पुस्तक को आचार्यश्री के समक्ष लोकार्पित किया गया। इस संदर्भ में आचार्यश्री ने मंगल प्रेरणा प्रदान की। आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में जैन विश्व भारती द्वारा जय तुलसी विद्या पुरस्कार समारोह का आयोजन किया गया, जिसमें वर्ष 2025 का पुरस्कार एस.डी.जैन मार्डन स्कूल (सूरत) को प्रदान किया गया। प्रायोजक परिवार की ओर से श्री विजयसिंह सेठिया ने अपनी अभिव्यक्ति दी। स्कूल संस्थान की ओर से श्री ललित दूगड़ ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। इस संदर्भ मंे आचार्यश्री ने मंगल आशीर्वाद प्रदान किया। इस उपक्रम का संचालन जैन विश्व भारती के मंत्री श्री सलिल लोढ़ा ने किया।