
सुरेंद्र मुनोत, सहायक संपादक संपूर्ण भारत
Key Line Times
गाम्भोई, साबरकांठा (गुजरात) ,गुजरात की धरा का मानों भाग्योदय है कि जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी के लगातार दो चतुर्मास हो गए। इतना ही नहीं, इसके साथ अखण्ड परिव्राजक आचार्यश्री ने मानों गुजरात के चप्पे-चप्पे को अपनी चरणरज से पावन बना दिया है। कई क्षेत्र तो ऐसे भी हैं, जहां आचार्यश्री दो-से तीन वर्षों के अंतराल में दूसरी बार भी पधार गए हैं। वर्तमान में महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी धवल सेना का कुशल नेतृत्व करते हुए गुजरात के साबरकांठा जिले में गतिमान हैं।बुधवार को प्रातःकाल युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने हिम्मतनगर से मंगल प्रस्थान किया। हिम्मतनगरवासियों ने अपने आराध्य के श्रीचरणों में अपनी कृतज्ञता अर्पित की। राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 48 पर गतिमान आचार्यश्री धीरे-धीरे राजस्थान राज्य की सीमा के निकट होते जा रहे हैं। प्रातःकाल मौसम में थोड़ी शीतलता भी देखने को मिल रही है। मार्ग में स्थान-स्थान पर खड़े दर्शनार्थियों को मंगल आशीर्वाद प्रदान करते हुए आचार्यश्री लगभग 13 किलोमीटर का विहार कर गम्भोई गांव में स्थित श्री गाम्भोई ग्रुप हायर सेकेण्ड्री स्कूल में पधारे।स्कूल परिसर में आयोजित प्रातःकालीन मुख्य मंगल प्रवचन कार्यक्रम में समुपस्थित श्रद्धालु जनता को युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि आध्यात्मिकता और लौकिकता दो चीजें होती हैं। आध्यात्मिकता में आत्मा की प्रधानता होती है, आत्मा मूल तत्त्व होता है और लौकिकता में शरीर, पुद्गल आदि-आदि चीजें प्रधान रूप से होती हैं। शास्त्र में कहा गया है कि एक आत्मा की ओर मुख करके रहने वाला आत्ममुखी होता है। साधना के क्षेत्र में आत्ममुखी होना बहुत ही आवश्यक होता है। संसार में कितने-कितने लोग पदार्थमुखी भी हो सकते हैं।जहां मोह है, वहां संसार की बात होती है और जहां निर्मोहता होती है, वहां मोक्ष की बात हो सकती है। मोह की ओर रहने से मोक्ष दूर हो जाएगा। मोक्ष की दिशा में आगे बढ़ने वाले से मोह दूर हो जाता है। आदमी को यह चिंतन करना चाहिए कि मैं आत्मा और उसे इस सोच के साथ अपनी आत्मा के कल्याण का कार्य भी करना चाहिए। इस संसार में सभी अकेले हैं और आदमी स्वयं भी एकाकीपन का चिंतन करे। इस संसार में सबके अपने-अपने कर्म होते हैं और उसके अनुसार ही उसे स्वयं ही स्वयं द्वारा किए गए कर्मों के फल को भी स्वयं ही भोगना होता है। इसलिए आदमी को अपने जीवन में प्रतिपल सजग रहने का प्रयास और अपनी आत्मा के कल्याण का प्रयास करना चाहिए। आदमी का दृष्टिकोण अध्यात्मपरक रहे, यह काम्य है।आचार्यश्री के मंगल प्रवचन के उपरान्त समणी अपूर्वप्रज्ञाजी ने ‘अहंकार’ विषय पर अंग्रेजी भाषा में अपनी विचाराभिव्यक्ति दी। स्कूल के प्रिंसिपल श्री कमलेशभाई पटेल ने आचार्यश्री के स्वागत में अपनी भावाभिव्यक्ति दी। आचार्यश्री ने उन्हें मंगल आशीर्वाद प्रदान किया।

