सुरेंद्र मुनोत, ऐसोसिएट एडिटर
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कोबा, गांधीनगर (गुजरात) ,गुजरात की धरा पर आध्यात्म की गंगा प्रवाहित करने वाले, जन-जन को सन्मार्ग दिखाने वाले जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अधिशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, युगप्रधान, शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी का कोबा में स्थित प्रेक्षा विश्व भारती में वर्ष 2025 का चतुर्मास अब पूर्णता की ओर है। एक महीने से भी कम समय अवशेष है, इसके बावजूद भी श्रद्धालुओं का अपने आराध्य की सन्निधि में उत्साह के साथ उपस्थित होना उनके श्रद्धा भावों का द्योतक बना हुआ है। गुरुवार को प्रातःकालीन मुख्य प्रवचन कार्यक्रम में आचार्यश्री की अमृतवाणी का श्रद्धालुओं ने लाभ उठाया तो श्रद्धालुओं को साध्वीवर्याजी से भी अभिप्रेरणा मिली। इसके साथ ही अखिल भारतीय तेरापंथ युवक परिषद द्वारा एकत्व अलंकरण/पुरस्कार समारोह का आयोजन किया गया, जिसमें समाज के कई व्यक्तित्वों को अनेक पुरस्कारों से सम्मानित भी किया गया। इसके साथ ही नेत्रदान के संदर्भ में अखिल भारतीय तेरापंथ युवक परिषद को वर्ल्ड बुक ऑफ रिकॉर्ड लन्दन द्वारा प्रमाण पत्र भी प्राप्त हुआ। वर्ष 2026 के वर्धमान महोत्सव का लोगो व बैनर भी आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में लोकार्पित हुआ।गुरुवार को वीर भिक्षु समवसरण में उपस्थित जनता को युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने पावन प्रतिबोध प्रदान करते हुए कहा कि आयारो आगम में एक सूत्र देते हुए प्राणियों के संदर्भ में बताया गया है कि दुनिया में अनेक प्रकार के प्राणी होते हैं। संसारी जीवों को पांच भागों बांटा जा सकता है। एक प्राणी दूसरे प्राणी को कष्ट देते हैं। एक मनुष्य दूसरे मनुष्य को तकलीफ दे देता है। किसी को कष्ट देना, व किसी की हिंसा भी कर देता है। इस प्रकार एक प्राणी दूसरे प्राणी को कष्ट ही नहीं देते, कभी उनकी हिंसा भी कर देता है। यह हिंसा का मानों क्रम है। आदमी को अपने दृष्टिकोण को अहिंसक बनाने का प्रयास करना चाहिए। मनुष्य को तो यह प्रयास करना चाहिए कि जानबूझकर किसी की हिंसा नहीं करे।दुनिया में दृष्टि का बहुत महत्त्व है। शरीर में जो आंख है, वह हमें बाहर की दुनिया से सम्पर्क कराने वाली होती है। इस दृष्टि की तुलना में सम्यक् दृष्टि का बहुत महत्त्व है। दुनिया में विभिन्न प्रकार के प्राणियों की बात होती है। कई हिंसक प्राणी एक-दूसरे प्राणियों को मारकर खा जाते हैं। जिस प्रकार आदमी स्वयं के लिए सुख प्रिय होता है, सुविधा प्रिय होती है, उसी प्रकार दूसरों को भी सुख-सुविधा की इच्छा होती है। जिस प्रकार स्वयं को कष्ट, ईर्ष्या, अपमान आदि-आदि पसंद नहीं है तो वैसा कष्ट भी अन्य प्राणियांे को कष्ट देने, ईर्ष्या, अपमान आदि से भी बचने का प्रयास होना चाहिए। आदमी को स्वयं की तरह ही दूसरे भी प्राणियों को समझने लगे तो वह अहिंसा का सेवन कर सकता है।हिंसा से दुःख पैदा होता है और अहिंसा से सुख और शांति मिलती है। इसलिए आदमी को अपने भीतर अहिंसा की चेतना का विकास करने का प्रयास करना चाहिए, समता का भाव रखने का प्रयास करना चाहिए। अहिंसा की दृष्टि हो जाए तो आदमी की दृष्टि सुदृष्टि हो सकती है। आचार्यश्री ने मंगल प्रवचन के दौरान आचार्य भिक्षु चेतना वर्ष के संदर्भ में दिए गए उद्घोष ‘दृढ़ निष्ठा से करे प्रयास। हो सद्ज्ञान चारित्र विकास’ के नारों से पूरा प्रवचन पण्डाल गूंज उठा। कार्यक्रम में आचार्यश्री के मंगल प्रवचन से पूर्व साध्वीवर्याजी का भी उद्बोधन हुआ।आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में अखिल भारतीय तेरापंथ युवक परिषद द्वारा एकत्व अलंकरण/पुरस्कार समारोह का आयोजन किया गया। इस संदर्भ में अखिल भारतीय तेरापंथ युवक परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री रमेश डागा, मंत्री श्री अमित नाहटा ने अपनी अभिव्यक्ति दी। अखिल भारतीय तेरापंथ युवक परिषद द्वारा वर्ष 2025 का युवा गौरव अलंकरण श्री विजय सुरणा को, आचार्य महाप्रज्ञ प्रतिभा पुरस्कार श्री नवीन बैंगानी को तथा आई.पी.एस. श्री राहुल जैन को आचार्य महाश्रमण युवा व्यक्तित्व पुरस्कार प्रदान किया गया। संदर्भित प्रशस्ति पत्र का वाचन श्री पवन माण्डोत, श्री लक्ष्मीलाल कोठारी व श्री जयेश मेहता ने किया। सभी व्यक्तियों को अखिल भारतीय तेरापंथ युवक परिषद तथा अनेक पदाधिकारियों द्वारा यह अलंकरण व पुरस्कार प्रदान किया गया। अलंकरण व पुरस्कार प्राप्तकर्ताओं ने अपने आराध्य के समक्ष अपने कृतज्ञ भाव व्यक्त किए। आचार्यश्री ने सभी को मंगल आशीर्वाद प्रदान किया। वर्ल्ड बुक ऑफ रिकॉर्ड लन्दन के गुजरात अध्यक्ष से डॉ. अश्विन त्रिवेदी ने अखिल भारतीय तेरापंथ युवक परिषद को नेत्रदान के संदर्भ में प्रमाण पत्र प्रदान किया गया। आचार्यश्री ने इस संदर्भ मंे भी अखिल भारतीय तेरापंथ युवक परिषद को मंगल आशीर्वाद प्रदान किया।बोरावड़ में वर्ष 2026 का वर्धमान महोत्सव आयोजित है। इस संदर्भ में बोरावड़ व्यवस्था समिति के श्रद्धालुओं ने वर्धमान महोत्सव के लोगो व बैनर का अनावरण किया गया। आचार्यश्री ने मंगल आशीर्वाद प्रदान किया।