सुरेंद्र मुनोत, ऐसोसिएट एडिटर
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कोबा, गांधीनगर (गुजरात), जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अधिशास्ता, अखण्ड परिव्राजक, सिद्ध साधक आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी धवल सेना के साथ कोबा में स्थित प्रेक्षा विश्व भारती में वर्ष 2025 का चतुर्मास सुसम्पन्न कर रहे हैं। अहमदाबादवासी अपने आराध्य की इस कृपा को प्राप्त कर निहाल हैं। प्रेक्षा विश्व भारती का परिसर श्रद्धालुओं की उपस्थिति से गुलजार बना हुआ है। ऐसा लग रहा है मानों इस प्रेक्षा विश्व भारती में किसी नए तीर्थ की स्थापना हो गई है, जहां श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ रही है।सोमवार को प्रातःकालीन मुख्य प्रवचन कार्यक्रम में उपस्थित जनता को शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने ‘आयारो’ आगम के माध्यम से पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि दुनिया में प्रज्ञावान पुरुष भी मिल सकते हैं तो प्रज्ञाहीन व्यक्ति भी प्राप्त हो सकते हैं। जिनमें संयम के प्रति निष्ठा पुष्ट हो गई हो, ऐसे मुनि व साध्वियां संयम का पालन करने में सफल हो सकते हैं। जिनमें प्रज्ञा नहीं हो, जिसमें संयम के प्रति निष्ठा व जागरूकता न हो तो वैसा साधु भी अवसाद को प्राप्त हो सकते हैं, खिन्न भी हो सकते हैं।प्रज्ञा एक ऐसा तत्त्व है जो ज्ञानावरणीय कर्म के क्षयोपशम से होता है। अतिन्द्रिय ज्ञान होता है तो वह भी ज्ञानावरणीय कर्म के क्षयोपशम से होता है। मनः पर्यव ज्ञान भी ज्ञानावरणीय कर्म के क्षयोपशम से होता है। केवल ज्ञान ही ऐसा है जो ज्ञानावरणीय कर्म के क्षय से प्राप्त होता है। शेष सभी चारों ज्ञान ज्ञानावरणीय कर्म के क्षयोपशम से होता है। ज्ञान की चेतना के विकास के साथ-साथ राग-द्वेष से मुक्तता हो जाए, विवेक चेतना का जागरण हो जाए और चारित्र मोहनीय का क्षयोपशम जुड़ जाए तो संयम जीवन का अच्छा पालन हो सकता है। संयम प्रज्ञा के द्वारा गम्य है। प्रज्ञा समीक्षा करने वाली होती है।आज आश्विन शुक्ला चतुर्दशी है और प्रज्ञापुरुष श्रीमज्जयाचार्यजी का जन्मदिवस है। हमारे जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के आद्य अनुशास्ता, परम पूजनीय आचार्यश्री भिक्षु हुए। हमारे धर्मसंघ के चतुर्थ आचार्यश्री का आज जन्म हुआ था। श्रीमज्जयाचार्य को प्रज्ञापुरुष भी कहा जाता है। उनमें श्रुत मानों प्रगाढ़ मात्रा में था। बाहुश्रुत था, तार्किक सक्षमता भी बहुत अच्छी थी। भगवती जोड़ के रूप में उन्होंने राजस्थानी भाषा में इतने बड़े ग्रन्थ की रचना की, जिसमें राग-रागिणियां भी प्राप्त होती हैं। उनके द्वारा रचित चौबीसी ग्रन्थ भक्ति और तत्त्वबोध से भरा हुआ है। वे धर्मसंघ के चतुर्थ आचार्य थे। हमारे धर्मसंघ को सुन्दर, सुव्यवस्थित मानों अनुशासन प्रदान करने वाले आचार्य थे। गुरु के अनुशासन के प्रति जागरूक रहना चाहिए। इतना जो भी जिनके अधिनत्व में हो, उसका अनुशासन पालने का प्रयास करना चाहिए। दूसरों पर अनुशासन करने से पहले ही स्वयं पर अनुशासन करने का प्रयास करना चाहिए। आचार्य कभी किसी को कभी उलाहना भी दे दें तो उसे सहन करने का प्रयास करना चाहिए। वे अनुशासन करने वाले थे। वे व्यवस्था में कुछ परिवर्तन करने वाले भी थे।आचार्यश्री ने चतुर्दशी के संदर्भ में हाजरी के क्रम को संपादित किया। तदुपरान्त उपस्थित चारित्रात्माओं ने अपने-अपने स्थान पर खड़े होकर लेखपत्र का उच्चारण किया। आचार्यश्री ने नवदीक्षित साधु-साध्वियों व समणियों को मंगल प्रेरणा प्रदान की। आचार्यश्री ने बोथरा परिवार को आध्यात्मिक संबल प्रदान किया। आचार्यश्री के मंगल प्रवचन से पूर्व साध्वीवर्याजी ने भी जनता को उत्प्रेरित किया।अणुव्रत लेखक सम्मेलन में उपस्थित प्रसिद्ध लेखक श्री कुमारपालभाई देसाई ने आचार्यश्री के समक्ष अपनी भावनाओं को अभिव्यक्ति दी। अतुल लिमिटेड के मैनेजिंग डायरेक्टर श्री संवेगलालभाई ने भी अपनी श्रद्धाभिव्यक्ति दी। अणुव्रत अनुशास्ता आचार्यश्री ने इस संदर्भ में मंगल पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि अणुव्रत उद्बोधन सप्ताह के मध्य अणुव्रत लेखक सम्मेलन भी हो रहा है। लेखन भी अपने आप में ज्ञानावरणीय कर्म का क्षयोपशम होता है। आज के समारोह में पद्मश्री कुमारपालभाई देसाई आदि के भी वक्तव्य हुए। लेखक सारस्वत साधना करने वाले होते हैं। वे अच्छी सेवा के साथ व्यक्तिगत धार्मिक-आध्यात्मिक साधना को भी विकसित करते रहें, मंगलकामना। विजयनगर, (बेंगलुरु) ज्ञानशाला के ज्ञानार्थियों ने आचार्यश्री के समक्ष अपनी भावपूर्ण प्रस्तुति दी।