*-प्रेक्षाध्यान द्वारा मन को राग-द्वेष से मुक्त रखने को आचार्यश्री ने किया अभिप्रेरित*
*-शांतिदूत की मंगल सन्निधि में पहुंचे पं
सुरेंद्र मुनोत, ऐसोसिएट एडिटर
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कोबा, गांधीनगर (गुजरात), गुजरात की धरा पर लगातार दूसरा चतुर्मास करने वाले जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अधिशास्ता, सिद्ध साधक, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी वर्तमान में प्रेक्षा विश्व भारती में विराजमान हैं। आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में नवरात्रि के अवसर पर आध्यात्मिक अनुष्ठान का क्रम भी अबाध रूप से गतिमान हैं। इसमें अनुष्ठान में शामिल होने के लिए काफी संख्या में श्रद्धालुओं की उपस्थिति हो रही है। आचार्यश्री भी श्रद्धालुओं पर विशेष अनुग्रह बरसाते हुए इस नवरात्रि के समय में मंगल प्रवचन से पूर्व मंगल मंत्रोच्चार का जप करवाते हैं। जप के द्वारा गूंजित होने वाली ध्वनि पूरे वातावरण को मानों विशुद्ध बना देती है। इस शनिवार को मुख्य प्रवचन कार्यक्रम के दौरान ही पंजाब के राज्यपाल व चण्डीगढ़ के उपराज्यपाल श्री गुलाबचन्द कटारिया भी सपरिवार पूज्य सन्निधि में पहुंचे। उन्होंने आते ही आचार्यश्री को सादर व सविनय वंदन किया। राज्यपाल के आगमन के संदर्भ में राष्ट्रगान हुआ। वे पूरे कार्यक्रम में उपस्थित रहे। आचार्यश्री की मंगलवाणी व मंगल आशीष प्राप्त कर उन्हांेने अपनी भावनाओं को भी अभिव्यक्त किया।नित्य की भांति शनिवार को भी ‘वीर भिक्षु समवसरण’ में उपस्थित चतुर्विध धर्मसंघ को महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी ने आध्यात्मिक अनुष्ठान के संदर्भ में मंत्रों का जप कराया। तुदपरान्त आचार्यश्री के मंगल प्रवचन से पूर्व साध्वीवर्या सम्बुद्धयशाजी ने जनता को उद्बोधित किया। साध्वी सम्बुद्धयशाजी ने उपस्थित जनता को उद्बोधित किया।तदुपरान्त जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी समुपस्थित चतुर्विध धर्मसंघ को ‘आयारो’ आगम के माध्यम से पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि हमारे जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ में 32 आगम मान्य हैं। उनमें भी ग्यारह अंगों में सबसे पहला आगम ‘आचारांग’ है। इस आयारो में कहा गया है कि आदमी को अपने मन को असंयम में नहीं ले जाना चाहिए। इस पूरी दुनिया में दो ही चीजें हैं- जीव और अजीव। इसके अलावा दुनिया में कुछ भी नहीं है। मानव जीवन भी आत्मा और शरीर का मिश्रित स्वरूप है। एक तत्त्व है आत्मा अर्थात् जीव और दूसरा शरीर अर्थात् अजीव। आत्मा जब तक शरीर में रहती है, तब तक जीवन होता है और आत्मा के शरीर से पृथक् हो जाने की प्रक्रिया ही मृत्यु कहलाती है। इस जीवन में शरीर के साथ मन और वाणी भी विद्यमान है। इसमें मन एक ऐसा तत्त्व है, जो सामने स्पष्ट दिखाई नहीं देता। मन अस्पष्ट ही होता है, हालांकि जिसके पास मनः पर्यव ज्ञान होता है, वे ही मन के विषय को जान सकते हैं। इसलिए यहां प्रेरणा दी गई कि आदमी को अपने मन को बुरे कार्यों में लगने से बचाने का प्रयास करना चाहिए। आदमी कोई भी गलत कार्य करता है, उसमें मन का भी बड़ा महत्त्वपूर्ण योगदान होता है। इसलिए आदमी को अपने मन को नियंत्रण और संयम में रखने का प्रयास करना चाहिए। मन को सर्वाधिक गतिशील कहा गया है। मन में बुरे विचार न आएं और मन में चंचलता ज्यादा न आए, इसका प्रयास करना चाहिए।प्रेक्षाध्यान के द्वारा मन की चंचलता को कम करने और मन को राग-द्वेष के भाव से मुक्त रखने का अभ्यास ¬करना चाहिए, साधना करनी चाहिए। आचार्यश्री ने मंगल प्रवचन के दौरान सद्भावना, नैतिकता व नशामुक्ति की भी प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि आज राज्यपाल महोदय का आगमन हुआ है। आचार्यश्री के निकट उपस्थित राज्यपाल महोदय द्वारा व उनकी सुरक्षा में तैनात एक पुलिस अधिकारी द्वारा भी मुखवस्त्रिका लगाई गई थी। आचार्यश्री ने इस संदर्भ मंे भी कहा कि राज्यपाल महोदय लोगों का तो अनेकों बार आगमन हुआ है, लेकिन प्रोग्राम में मुखवस्त्रिका धारण कर बैठना बहुत बड़ी बात है। हम सभी आत्मकल्याण की दिशा में आगे बढ़े। सेवा में निर्मलता और धार्मिकता बनी रहे।आचार्यश्री से मंगल आशीर्वाद प्राप्त करने के उपरान्त पंजाब के राज्यपाल श्री गुलाबचंद कटारिया ने अपने संबोधन में कहा कि मैं परम पूज्य आचार्यश्री महाश्रमणजी को सादर वंदन करता हूं। आचार्यश्रीजी! आज मेरे भाग्य का कोई उदय है, जो आपकी कम समय की वाणी को भी सुनने का अवसर मिल गया, अन्यथा हम जैसे लोग कहीं प्रोग्राम में जाते हैं, भाषण देते हैं और चले आते हैं। आपकी वाणी हमारे जीवन में बहुत कार्य करती है। आपने बहुत कम समय में आत्मा, मन, संयम और वाणी के तत्त्व को समझा दिया। हम समाज के लोग सौभाग्यशाली हैं जो आपकी वर्षों की तपस्या का फल आपकी वाणी के माध्यम से सहज ही प्राप्त हो जा रहा है। भगवान की महावीर की वाणी को जन-जन तक पहुंचाने का कार्य हमारे साधु-साध्वियां कर रहे हैं। मेरा सौभाग्य रहा है कि मुझे आचार्यश्री तुलसी और आचार्यश्री महाप्रज्ञजी के चरणों में बैठने का अवसर मिला। ये राज्यपाल, मंत्रीमण्डल तो जीवन में आएगा, जाएगा, लेकिन मैं ऐसे गुरुओं का श्रावक हूं, यह मुझे अगले जीवन में मिलेगा या नहीं, मैं नहीं जानता। आपकी साधना और तपस्या के बाद निकलने वाली अमृतवाणी बहुत ही प्रभावशाली होती है और दिल को छूती है। मैं आपसे ऐसा आशीर्वाद मांगता हूं कि मैं राजनीतिक के रास्ते पर हूं, लेकिन मरते दम तक आपके श्रावक के रूप में अपने धर्म का पालन करता रहूं। विनयमुनिजी का बहुत आग्रह है कि आपका एक चतुर्मास चण्डीगढ़ में भी हो।तेरापंथ प्रोफेशनल फोरम द्वारा 9वें डॉम्टर्स सम्मेलन का आयोजन किया गया। इस संदर्भ में डॉ. धीरज मरोठी, डॉ. चेतन, डॉ. अनिल जैन ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। इस संदर्भ में आचार्यश्री ने मंगल आशीष प्रदान किया। आचार्यश्री के उद्बोधन के बाद पुनः राष्ट्रगान के साथ कार्यक्रम संपन्न हुआ।