सुरेंद्र मुनोत, ऐसोसिएट एडिटर
Key Line Times
कोबा, गांधीनगर (गुजरात) ,आयारो आगम में दो शब्द बताए गए हैं- एक है आज्ञा और दूसरा शब्द है अनाज्ञा। शास्त्रों में वर्णित आदेश, उपदेश, मार्गदर्शन की बातें आज्ञा है और जो अनुपदेश है, अपने मन से किया गया कार्य अनाज्ञा होता है। शास्त्र, आचार्य, गुरु आदि की आज्ञा में नहीं चलने की भावना भी मन में न आए, ऐसा प्रयास होना चाहिए। विद्यार्थी, संगठन के कार्यकर्ता अथवा परिवार के सदस्य ही एक आज्ञा, अनुशासन में चलते हैं। परिवार के मुखिया का आदेश होता है, गुरुओं की आज्ञा और प्रेरणा होती है अथवा संगठन के आवश्यक दिशा-निर्देश होते हैं, उसके हिसाब से चलने वाला व्यक्ति, विद्यार्थी अथवा कार्यकर्ता आज्ञा में होता है और कई विद्यार्थी, व्यक्ति अथवा कार्यकर्ता ऐसे भी होते हैं तो वे उच्श्रृंखल होते हैं। अनुशासन, हितकर मार्ग व कल्याणकारी बातों पर नहीं चलते हैं, भौतिकता व विलासिता में जीवन जीते हैं वे उच्श्रृंखल होते हैं।जो कोई भी आज्ञा, अनुशासन और आदेश-निर्देश व नियमों के अनुसार चलता है, वह जीवन में अच्छा विकास कर सकता है। इसलिए आदमी अपने जीवन में जहां भी रहे, व्यवस्थित मार्ग चलने का, आज्ञा-अनुशासन में चलने का प्रयास और अपने जीवन में अच्छा विकास का प्रयास करना चाहिए। आदमी के जीवन में अनुशासन होना चाहिए। स्वयं के द्वारा स्वयं पर अनुशासन होना चाहिए। अणुव्रत का एक घोष भी है- निज पर शासन फिर अनुशासन। दूसरों का अनुशासन करने की एक अर्हता निज पर शासन करना होता है। आदमी को स्वयं अपनी वाणी पर अनुशासन करने का प्रयास करना चाहिए। जो गलत और बुरा हो, वैसा कार्य आदमी को नहीं करना चाहिए। जो अच्छे कार्य हों, उस दिशा में आदमी को सत्पुरुषार्थ करने का प्रयास करना चाहिए।सेना होती है, वहां भी ट्रेनिंग होती है, डॉक्टर, वकील आदि-आदि क्षेत्रों मंे भी ट्रेनिंग (प्रशिक्षण) आदि का कार्य चलता है। आदमी जिस क्षेत्र में होता है, उसकी अच्छी ट्रेनिंग हो जाती है तो वह अच्छा कार्य कर सकता है। उसी प्रकार हमारे प्रेक्षा प्रशिक्षक हैं, उनकी अच्छी ट्रेनिंग हो जाए तो वह प्रेक्षाध्यान के संदर्भ में दूसरों को अच्छा प्रशिक्षण भी प्रदान कर सकते हैं। उपासक हैं, ट्रेनिंग से अच्छे प्रवक्ता उपासक हो जाएं तो अच्छी बात हो सकती है। इस प्रकार कोई भी अच्छा क्षेत्र हो, उस दिशा में अच्छा सत्पुरुषार्थ करने का प्रयास करना चाहिए। इस प्रकार आदमी को सम्यक् पुरुषार्थ करते रहने का प्रयास करना चाहिए। आज्ञा में पुरुषार्थ और अनाज्ञा पुरुषार्थ करने से बचने का प्रयास होना चाहिए।उक्त पावन पाथेय जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अधिशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, अहिंसा यात्रा प्रणेता, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने शुक्रवार को ‘वीर भिक्षु समवसरण’ में प्रातःकालीन के मुख्य प्रवचन कार्यक्रम के दौरान समुपस्थित श्रद्धालु जनता को प्रदान की। आचार्यश्री की मंगलवाणी के श्रवण से पूर्व श्रद्धालुओं को युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने आध्यात्मिक अनुष्ठान के अंतर्गत अनेक मंत्रों के उच्चारण भी कराए। आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में नवरात्र भर चलने वाला यह आध्यात्मिक अनुष्ठान मानों जन-जन में आध्यात्मिकता की शक्ति का नवीन संचार करने वाला बन रहा है।मंगल प्रवचन के उपरान्त आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में उपस्थित राज्यसभा सांसद श्री लहरसिंह सिरोया ने अपनी भावनाओं को अभिव्यक्त करते हुए कहा कि मैं आपके दर्शन कर अत्यंत शांति का अनुभव कर रहा हूं। मैं आपके समक्ष बोलने के विषय में सोच रहा था तो मुझे पहले तेरापंथ धर्मसंघ के एक स्लोगन ‘निज पर शासन फिर अनुशासन’ आज आचार्यश्री ने इसी विषय पर अपनी प्रेरणा दी मानों यह चमत्कार-सा ही है कि आचार्यश्री ने मेरे मन की भावनाओं का ही वर्णन कर दिया। मेरी प्रार्थना है कि आप ऐसा आशीर्वाद प्रदान करें कि जहां भी रहूं, अपने कार्य में जैन धर्म के सिद्धांतों के सिद्धांतों पर चलता रहूं, यह मेरे जीवन की बड़ी उपलब्धि हो सकेगी। आपके बताए गए मार्गदर्शन पर चलना ही मेरी निष्ठा है। आचार्यश्री ने उन्हें मंगल आशीष प्रदान की।