Surendra Minor, Associate Editor All India
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कोबा, गांधीनगर (गुजरात) ,जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अधिशास्ता, अखण्ड परिव्राजक, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने गुरुवार को ‘वीर भिक्षु समवसरण में उपस्थित श्रद्धालुओं को ‘आयारो’ आगमाधारित अपने मंगल प्रवचन में उपस्थित जनता को पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि जैन आगमों में परिषह शब्द आता है, जो निर्जरा और मार्ग से अच्वयन के लिए सहन किए जाते हैं, वे परिषह होते हैं। एक आगम में साधु के 22 परिषहों का वर्णन मिलता है। क्षुधा, पिपासा आदि-आदि। जो साधु परिषहों को जीतने वाला होता है, उसके लिए साधु जीवन में सफलता की बहुत संभावना बन जाती है। जो साधु परिषहों से आक्रांत होकर मार्ग से च्यूत हो जाता है तो उसकी साधुता के जीवन में असफलता की बात हो सकती है।गृहस्थ जीवन में भी कठिनाइयां आ सकती हैं। उसमें भी आदमी को समता और शांति रखने का प्रयास करना चाहिए और अपने धर्म पथ पर आगे बढ़ने का प्रयास हो तो जीवन में एक सफलता की बात हो सकती है कि लाख कठिनाइयों के बाद भी अपना पथ नहीं छोड़ा। यह गृहस्थ जीवन की भी एक सफलता है। जीवन में मुश्किलें, कठिनाइयां, समस्याएं आ सकती हैं। इन परिस्थितियों में भी समता भाव रहना और पथ से च्यूत नहीं होना, एक सफलता की बात होती है। विद्यार्थी विद्या संस्थानों में पढ़ते हैं। शिक्षक उन्हें पढ़ाते भी हैं। पढ़ने वाला अच्छे ढंग से पढ़े और पढ़ाने वाला भी अच्छे ढंग से पढ़ाए तो कभी सफलता भी प्राप्त हो सकती है। दुनिया में कितने-कितने शिक्षण संस्थान हैं, जहां पठन-पाठन का कार्य चलता है। अनेक प्रकार की भाषाओं में पठन-पाठन का कार्य चलता होगा। विद्यार्थियों को विभिन्न विषयों का ज्ञान देने के साथ-साथ अच्छे संस्कार भी देने का प्रयास होना चाहिए। वे अपने जीवन में सहिष्णु बनें, उनके भीतर सहनशीलता का विकास हो। जीवन में कठिनाई आने पर भी अपने नैतिकता, प्रमाणिकता के सिद्धांतों को बनाए रखें। अच्छे रास्ते पर चलने की निष्ठा हो गई, तो अच्छा विकास हो सकता है। अच्छे ज्ञान के साथ-साथ अच्छे संस्कार आ गए तो बहुत अच्छी बात हो सकती है। ज्ञान के साथ चरित्र का विकास भी हो तो जीवन में पूर्णता की बात हो सकती है। जहां ज्ञान का महत्त्व होता है तो वहां आचरण, व्यवहार व चरित्र का भी अपना विशेष स्थान होता है। प्रेक्षा विश्व भारती में आचार्यश्री महाप्रज्ञजी के नाम से विद्यालय है। उसमें पढ़ने वाले विद्यार्थी हैं तो उनके भीतर ज्ञान और चरित्र दोनों का विकास होता रहे।मंगल प्रवचन के उपरान्त आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में जैन विश्व भारती द्वारा आचार्यश्री महाप्रज्ञजी की पुस्तक ‘तेरापंथ दर्शन’ का लोकार्पण किया। आचार्यश्री ने इस संदर्भ में मंगल प्रेरणा प्रदान की। आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में उपस्थित महाप्रज्ञ विद्या निकेतन के विद्यार्थियों ने अपनी अनेक प्रस्तुतियां दीं। विद्या प्रबन्धन कमेटी के चेयरमेन श्री मनोहर कोठारी, शाला प्रबन्धन समिति की ओर से श्री पवन अग्रवाल, छात्रा मेधा संन्यासी ने अपनी अभिव्यक्ति दी। इस दौरान आचार्यश्री के समक्ष विद्यालय के पत्रिका आचार्यश्री के समक्ष लोकार्पण भी किया गया। इस संदर्भ में आचार्यश्री ने मंगल आशीर्वाद प्रदान किया। डॉ. बलवंत चोरड़िया ने अपनी पुस्तक लोकार्पित की। आचार्यश्री ने उन्हें मंगल आशीर्वाद प्रदान किया।