🌸 *पर्वाधिराज पर्युषण का छठा दिन जप दिवस के रूप में हुआ समायोजित
Surendra munot, Associate editor all india
Key Line Times
कोबा, गांधीनगर (गुजरात) ,आध्यात्मिक चेतना के जागरण का महापर्व पर्युषण। धर्म, ध्यान, त्याग, साधना, आराधना के द्वारा अपनी चेतना को जागृत करने वाले इस महापर्व में हजारों की संख्या में श्रद्धालु गुजरात की राजधानी गांधीनगर के कोबा में स्थित प्रेक्षा विश्व भारती में पहुंचे हैं। वे श्रद्धालु नियमित रूप से अपने आराध्य, तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अधिशास्ता, अखण्ड परिव्राजक, युगप्रधान आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में इस महापर्व का पूर्ण लाभ प्राप्त कर रहे हैं।सोमवार को इस महापर्व का छठा दिवस था, जिसे जप दिवस के रूप में समायोजित किया गया। ‘वीर भिक्षु समवसरण’ का विशाल प्रवचन पण्डाल में श्रद्धालुओं की उपस्थिति से मानों छोटा प्रतीत हो रहा था। प्रातः करीब नौ बजे के आसपास युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी मंचासीन हुए। आचार्यश्री के मंगल महामंत्रोच्चार के साथ मुख्य मंगल प्रवचन कार्यक्रम का शुभारम्भ हुआ। मुनि जम्बूकुमारजी (मिंजूर) ने भगवान अरिष्टनेमि के जीवन प्रसंगों का वर्णन किया। मुख्यमुनिश्री महावीरकुमारजी ने तप-त्याग धर्म को व्याख्यायित करते हुए लोगों को उत्प्रेरित किया। साध्वी दीप्तियशाजी व साध्वी रक्षितप्रभाजी ने जप दिवस पर आधारित गीत का संगान किया। साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभाजी ने जप दिवस पर प्रकाश डालते हुए जनता को जप के महत्त्व की प्रेरणा प्रदान की।महातपस्वी, अध्यात्मवेत्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी ने ‘भगवान महावीर की अध्यात्म यात्रा’ के क्रम को आगे बढ़ाते हुए भगवान महावीर की आत्मा के त्रिपृष्ठ भव की आगे की घटनाओं को वर्णित करते हुए कहा कि प्रति बासुदेव अश्वग्रिव द्वारा शेर की समस्या के समाधान के लिए सभी राजाओं की बारी लगाई गई। जब बारी पोतनपुर के राजा की आई तो त्रिपृष्ठ ने अपने पिताजी को रोककर स्वयं सुरक्षा के लिए गया और वहां शेर को अपने हाथों से मार डाला। शेर की मृत्यु का समाचार पाकर प्रति बासुदेव अश्वग्रिव तो भयाक्रांत हो गया कि पंडितजी द्वारा बताई गई भविष्यवाणी तो सही सिद्ध हो गई। वह राजकुमार त्रिपृष्ठ को मारने की योजना बनाने लगा। उसने पोतनपुर नरेश को बधाई पत्र के साथ निमंत्रण भी भेजा समस्या को समाधान करने के लिए सम्मानित करने का प्रस्ताव रखा, लेकिन त्रिपृष्ठ द्वारा उसके उस निमंत्रण को ठुकरा दिया। इससे अश्वग्रिव और त्रिपृष्ठ में युद्ध हुआ और त्रिपृष्ठ द्वारा अश्वग्रिव का वध कर दिया गया और वह वासुदेव बन गया।त्रिपृष्ठ के पूर्व के पुण्य का योग था तो उसे प्रभुत्व व सत्ता की प्राप्ति हुई। सत्ता में आने के बाद आदमी को सेवा करने का प्रयास करना चाहिए। सत्ता की प्राप्ति पूर्व के पुण्याई से हुई है तो उस अवसर का अच्छा लाभ उठाने का प्रयास करना चाहिए। सत्ता प्राप्त हो जाए तो उसके द्वारा जनता की पवित्र सेवा का प्रयास होना चाहिए।एक बार त्रिपृष्ठ संगीत का श्रवण कर रहे थे। उन्होंने अपने सेवा करने वाले से कहा कि जब मुझे नींद आ जाए तो संगीत को बंद करा देना। वासुदेव को नींद तो आ गई लेकिन उसने संगीत नहीं बंद कराया। जब नींद खुली तो अपनी आज्ञा का पालन नहीं हुआ देख उसने सेवक के कान में गर्म शीशा डालवा दिया, जिससे वह मृत्यु को प्राप्त हो गया। त्रिपृष्ठ भव के बाद भगवान महावीर की आत्मा सातवें नरक में पैदा हुई। वहां आयुष्य पूर्ण कर वह आत्मा शेर के रूप में पैदा हुए। उसमें आयुष्य पूर्ण कर पुनः चौथी नरक में आत्मा पहुंचती है। वे अपने तेईसवें भव में पुनः मनुष्य के रूप में जन्म लेते हैं। मूका नाम की नगरी में राजा धनंजय के यहां प्रियमित्र के रूप में जन्मे। भगवान महावीर की आत्मा चौबीसवें भव में सातवें स्वर्ग में पधारते हैं। अपने अगले भव में पुनः राजा नन्दन बने। अपने अंतिम समय में नन्दन भी साधु बने और राजर्षि बन गए। उन्होंने अपने साधुकाल में बहुत लम्बी तपस्याएं कीं। आचार्यश्री के मंगल प्रवचन के उपरान्त मुनि दिनेशकुमारजी के साथ चतुर्विध धर्मसंघ के अपने वर्तमान अनुशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी के नाम मंत्र का कुछ जप का प्रयोग भी किया।