Surendra munot, Associate editor all india {from West Bengal}
कोबा, गांधीनगर (गुजरात),जैन धर्म का पर्युषण पर्वाधिराज आध्यात्मिक वातावरण में निरंतर गतिमान हैं। लाखों-लाखों श्रद्धालु जप, तप, ध्यान, धर्म, आराधना के द्वारा अपने जीवन को आध्यात्मिक साधना के भावित बना रहे हैं। जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता, महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी की मंगल सन्निधि में हजारों की संख्या में श्रद्धालु आध्यात्मिक साधना में रत हैं। पूरे चतुर्मास परिसर में मानों आध्यात्मिकता की अलौकिक लौ प्रज्जवलित हो रही है। सूर्योदय से पूर्व ही श्रद्धालु अपने आराध्य की मंगल सन्निधि में जो धर्म की आराधना में रत होते हैं, वे देर रात तक विभिन्न रूपों में धर्म, अध्यात्म व साधना से जुड़े रहते हैं। शनिवार को पर्युषण महापर्व का चतुर्थ दिवस था, जो वाणी संयम दिवस के रूप में समायोजित हुआ।युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी के मंगल महामंत्रोच्चार से मुख्य प्रवचन कार्यक्रम का शुभारम्भ हुआ। मुनि रत्नेशकुमारजी ने तीर्थंकर शांतिनाथजी के जीवन प्रसंगों का वर्णन किया। मुख्यमुनिश्री महावीरकुमारजी ने लाघव व सत्य धर्म को विवेचित किया। वाणी संयम दिवस पर साध्वी प्रीतिप्रभाजी ने गीत का संगान किया। साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभाजी ने वाणी संयम दिवस पर समुपस्थित श्रद्धालुओं को वाणी संयम की प्रेरणा प्रदान की।तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अधिशास्ता युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने ‘भगवान महावीर की अध्यात्म यात्रा’ क्रम को आगे बढ़ाते हुए कहा कि परम वंदनीय भगवान महावीर की अध्यात्म यात्रा के प्रसंग में भगवान महावीर की आत्मा मुनि मरीचिकुमार के रूप में है। मुनिजी को गर्मी का परिषह सहन नहीं हो पा रहा है। वे साधुपन को छोड़ने का विचार किया। उन्होंने अलग ढंग की साधना के लिए गेरुआ वस्त्र धारण कर, दण्ड और छत्र धारण करने लगा। इस प्रकार वह अलग ढंग से साधना करने लगा। चक्रवर्ती भरत ने भगवान ऋषभ से पूछा कि इस अवसर्पिणी काल में क्या कोई आपकी तरह इस भरतक क्षेत्र में तीर्थंकर प्राप्त करने वाला आपकी सभा में कोई उपस्थित है क्या? तीर्थंकर ऋषभ देव ने कहा कि मेरी सभा में तो नहीं, किन्तु इसके बाहर जो तुम्हारा पुत्र मरीचि है, वह आगे तीर्थंकरत्व को प्राप्त करेगा। यह सूचना मुनि मरीचिकुमार को मिला तो मन में गर्व की भावना भी पैदा हो गई। कुल के प्रति भी अभिमान मन में आने लगा।आदमी को अपने जीवन में कुछ मिले तो आदमी को उसका ज्यादा अहंकार नहीं करना चाहिए, बल्कि उसका सदुपयोग करने का प्रयास होना चाहिए। आदमी शरीर स्वस्थ रहे, अच्छा रहे तो स्वाध्याय भी हो सकता है। शरीर भी सुरक्षित रहे और स्वस्थ रहे। आदमी को न शरीर की सुन्दरता का, न बल का, न धन का, न सत्ता का अहंकार नहीं करना चाहिए। शरीर सक्षम है, स्वस्थ है, सुन्दर है, सत्ता प्राप्त है, धन की प्रचुरता है तो जहां तक संभव हो सके, दूसरों के कल्याण का, दूसरों की सेवा करने का प्रयास करना चाहिए। अहंकार न तो आदमी का आत्मा निर्मल बनी रह सकती है। साधु-साध्वियां सेवाकेन्द्रों के अलावा भी रुग्ण, अक्षम व बीमार आदि चारित्रात्माओं की सेवा भी करते हैं। दूसरों को समाधि पहुंचाने से स्वयं का हित भी सिद्ध हो सकता है।आचार्यश्री ने वाणी संयम दिवस के संदर्भ में पावन प्रतिबोध प्रदान करते हुए कहा कि पर्युषण के अंतर्गत आज वाणी संयम दिवस है। वाणी का संयम होना बहुत अच्छी चीज है, इसके साथ वाणी का विवेक भी होना चाहिए। आदमी मौन करता है, उसका भी अपना महत्त्व होता है, किन्तु मेरा मानना है कि बोलना और मौन करना कोई बड़ी बात नहीं होती, बोलने और मौन रखने में विवेक का होना बहुत बड़ी बात है। बहिर्विहार में रहने वाले साधु-साध्वी जो अग्रणी हैं, उन्हें व्याख्यान देने का प्रयास करना चाहिए। अनुकूलता न हो तो सन्निधि ही दी जा सके तो वह भी किया जा सकता है। बोलना भी उसकी ड्यूटी है तो उससे भी उसकी साधना होती है, उससे उसको निर्जरा का लाभ भी प्राप्त होता है। इसलिए कहां बोलना, कब बोलना, कैसे बोलना आदि भी विशेष बात होती है। इसलिए आदमी को बोलने और न बोलने में विवेक रखने का प्रयास करना चाहिए। आदमी को यह प्रयास करना चाहिए कि जहां तक संभव हो सके, किसी के विषय में अयथार्थ नहीं बोलने का प्रयास होना चाहिए। जहां बोलना उपयुक्त हो वहां बोलने का प्रयास और जहां आवश्यकता न हो तो वहां चुप रहने और थोड़ा कम बोलने का प्रयास करें तो बहुत अच्छी बात हो सकती है। इस प्रकार आदमी को वाणी संयम के प्रति जागरूक रहने का प्रयास करना चाहिए।