Surendra Munot, Associate editor all india
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कोबा, गांधीनगर (गुजरात),प्रेक्षा विश्व भारती में विराजमान जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, अहिंसा यात्रा के प्रणेता, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी की पावन सन्निधि में जैन धर्म के महापर्व पर्युषण आध्यात्मिक रूप में समायोजित हो रहा है। शुक्रवार को पर्युषण महापर्व तीसरा दिवस सामायिक दिवस के रूप में समायोजित हुआ।निर्धारित समय पर युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ‘वीर भिक्षु समवसरण’ प्रवचन पण्डाल के मंच पर पधारे तो पूरा प्रवचन पण्डाल जयघोष गुंजायमान हो उठा। आर्जव-मार्दव धर्म पर साध्वीवर्या साध्वी सम्बुद्धयशाजी ने प्रकाश डाला। इस संदर्भ में मुख्यमुनिश्री महावीरकुमारजी ने गीत का संगान किया। सामायिक दिवस पर साध्वी कमनीयप्रभाजी, साध्वी आर्षप्रभाजी व साध्वी काम्यप्रभाजी ने गीत को प्रस्तुति दी। साध्वीप्रमुखा विश्रुतविभाजी ने सामायिक दिवस पर समुपस्थित जनता को पावन प्रेरणा प्रदान कीं।तदुपरान्त तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अधिशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी ने ‘भगवान महावीर की अध्यात्म यात्रा’ के वर्णन क्रम को आगे बढ़ाते हुए कहा कि नयसार की आत्मा प्रथम देवलोक से प्रस्थित होकर मनुष्य भव में पहुंचती है। मानव जन्म मिलना और सुकुल व धार्मिक माहौल में जन्म लेना भी सौभाग्य की बात होती है। भगवान महावीर की आत्मा का जन्म भगवान ऋषभ के संसारपक्षीय पुत्र चक्रवर्ती भरत के पुत्र के रूप में भगवान महावीर की आत्मा आती है। उसका नाम मरीचिकुमार रखा गया है। दादा तीर्थंकर व पिता चक्रवर्ती प्राप्त हुए।भगवान ऋषभ का जब आगमन हुआ तो मरीचिकुमार ने भी उनकी देशना सुनी और उससे प्रभावित हो गया और उसके भीतर दीक्षा की भावना जागृत हो गई। इस प्रकार मरीचिकुमार की दीक्षा भी हो गई। उसने आगम का अध्ययन प्रारम्भ किया। वर्तमान समय में साधु-साध्वियों को आगम स्वाध्याय की प्रेरणा दी जाती है। आगम स्वाध्याय से ज्ञान का विकास होता है। चतुर्मास के दौरान जहां तक संभव हो सके, आगम के स्वाध्याय का प्रयास होना चाहिए। मुनि मरीचिकुमार को साधुपन में कुछ कष्ट हुआ तो वह साधुपन को छोड़ कोई बीच के रास्ते का विचार करने लगे। आचार्यश्री ने साधु-साध्वियों को संयम जीवन को अंत तक पालने की प्रेरणा प्रदान की।आचार्यश्री ने सामायिक दिवस के संदर्भ मे जनता को प्रेरित करते हुए कहा कि आज सामायिक दिवस है। सामायिक में शुद्धता रखने का प्रयास करना चाहिए। सामायिक के दौरान मोबाइल का प्रयोग करना सामायिक का अतिक्रमण की बात हो जाती है। सामायिक के दौरान धर्ममय माहौल होना चाहिए। चतुर्दशी होने के कारण आचार्यश्री की अनुज्ञा से समुपस्थित चारित्रात्माओं ने अपने स्थान पर खड़े होकर लेखपत्र का उच्चारण किया।