Surendra munot, associate editor all india {west bengal}
कोबा, गांधीनगर (गुजरात),जैन धर्म के महापर्व के रूप में प्रसिद्ध पर्युषण महापर्व वर्तमान में गतिमान है। मंगलवार को इस महापर्व का सातवां दिवस था, जिसे जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ की परंपरा में ध्यान दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस महापर्व का शिखर दिवस भगवती संवत्सरी बुधवार को मनाई जाएगी। प्रेक्षा विश्व भारती परिसर में चतुर्मासरत तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अनुशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी की मंगल सन्निधि में पहले से ही हजारों की संख्या में श्रद्धालु उपस्थित होकर इस आध्यात्मिक महापर्व में संभागी बने हुए हैं। इस महापर्व के दौरान मानों निरंतर अध्यात्म की गंगा प्रवाहित हो रही है, जिसमें उपस्थित श्रद्धालु गोते लगा रहे हैं। कभी श्रद्धालु पच्चीस बोल पर आधारित तात्त्विक विश्लेषण से जुड़ते तो कभी आगम के स्वाध्याय के साथ। श्रद्धालुओं को मुख्यमुनिश्री द्वारा दस धर्मों की बात बताई जाती है तो साध्वीप्रमुखाजी आयोजित होने वाले प्रत्येक दिवस के महत्त्व को व्याख्यायित करती हैं। साध्वियां संदर्भित दिवस पर गीत का संगान करती हैं तो कोई न कोई किसी न किसी तीर्थंकर के जीवन प्रसंगों का वर्णन करता है। इस दौरान महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी जनता को ‘भगवान महावीर की अध्यात्म यात्रा’ से जोड़ते हैं। इसके बाद भी श्रद्धालु कभी कायोत्सर्ग आदि-आदि कार्यों से जुड़ते हैं। श्रद्धालु मानों पूरे दिन किसी न किसी प्रकार आध्यात्मिक कार्यों से जुड़े रहते हैं।पर्युषण पर्वाधिराज का सातवां दिन जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अधिशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, अहिंसा यात्रा के प्रणेता, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी की मंगल सन्निधि में ध्यान दिवस के रूप में समायोजित किया गया।‘वीर भिक्षु समवसरण’ में आचार्यश्री महाश्रमणजी के मंगल महामंत्रोच्चार के साथ प्रारम्भ हुआ। मुनि केशीकुमारजी ने तीर्थंकर भगवान पार्श्वनाथ के जीवन प्रसंगों का वर्णन किया। दस धर्मों में एक ब्रह्मचर्य धर्म को मुख्यमुनिश्री महावीरकुमारजी ने व्याख्यायित किया। साध्वी प्रफुल्लप्रभाजी, साध्वी श्रुतिप्रभाजी व साध्वी अवंतिप्रभाजी ने ध्यान दिवस से संदर्भित गीत का संगान किया। साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभाजी ने समुपस्थित जनता को ध्यान के महत्त्व को विस्तारित रूप में बताया।जैन श्वेताम्बर तेरापंथाधिशास्ता, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने पर्युषण पर्वाधिराज के दौरान ‘भगवान महावीर की अध्यात्म यात्रा’ के व्याख्यान क्रम शृंखला को आगे बढ़ाते हुए कहा कि वर्तमान अवसर्पिणी का पंचम अर चल रहा है। चतुर्थ अर की समाप्ति से कुछ समय पूर्व भगवान महावीर की आत्मा दसवें देवलोक से च्यूत होकर वैशाली नगरी में पश्चिम भाग में स्थित ब्राह्मणकुण्ड ग्राम के ऋषभदत्त ब्राह्मण व उनकी पत्नी देवनंदा की कुक्षी वह आत्मा अवतरित होती है। भगवान महावीर की आत्मा उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र में वह आत्मा देवलोक से च्यूत होती है और उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र में ही वे गर्भस्थ होते हैं। देवताओं के मंतव्य से क्षत्रीयकुण्ड ग्राम के त्रिशला व सिद्धार्थ के यहां भगवान महावीर की आत्मा स्थापित कर दिया गया और त्रिशला के गर्भ को देवानंदा में गर्भ स्थापित किया गया। अब त्रिशला को एक महान पुरुष की मां बनने का गौरव प्राप्त होने वाला है। उसने एक साथ चौदह स्वप्न भी देखे। भगवान महावीर गर्भस्थ अवस्था में भी बहुत ज्ञान था। उस बालक ने सोचा कि मैं मां के पेट में हूं तो मेरी चंचलता से मां को कष्ट न हो, इसलिए उन्होंने हलन-चलन बंद कर दिया। इससे माता व्याकुल हो उठीं। उसके बाद भगवान महावीर का जन्म हुआ और बारहवें दिन उनके नामकरण संस्कार की प्रक्रिया पूरी की गई। बालक का नाम वर्धमान रखा गया। बालक वर्धमान की प्रशंसा इन्द्र ने भी की। प्रशंसा भी यथार्थवाद की होनी चाहिए। प्रशंसा कभी अर्थवाद में नहीं यथार्थवाद में होना चाहिए। ऐसा विचार कर एक देव बालक वर्धमान की परीक्षा लेने के लिए धरती पर आया और अनेक प्रकार से उन्हें डराने का प्रयास किया, किन्तु बालक वर्धमान डरे नहीं। बालक वर्धमान बचपन से ही निर्भीक थे। उनकी निर्भीकता से वह देव भी प्रभावित हुआ।