सुरेंद्र मुनोत, ऐसोसिएट एडिटर
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गांधीनगर (गुजरात) ,जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, अहिंसा यात्रा प्रणेता, शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने गत 6 जुलाई को वर्ष 2025 के अहमदाबाद चतुर्मास के लिए कोबा स्थित प्रेक्षा विश्व भारती परिसर में महामंगल प्रवेश किया था। चतुर्मास का एक महीने का समय पूर्ण हो चुका है, किन्तु अपने आराध्य की पावन सन्निधि में पहुंचने वाले श्रद्धालुओं का निरंतर तांता लगा हुआ है। श्रद्धालुओं के साथ तेरापंथ समाज की अनेकानेक संगठन मूलक संस्थाओं के अधिवेशन, समारोह, सम्मेलनों का क्रम भी जारी हैं, जिसमें भी बड़ी संख्या में श्रद्धालु उपस्थित होकर इस सुअवसर का लाभ प्राप्त कर रहे हैं। देश-विदेश से पहुंचने वाले श्रद्धालु अपने जीवन को आध्यात्मिकता से भावित कर स्वयं को धन्य महसूस कर रहे हैं। आचार्यश्री भी श्रद्धालुओं को निरंतर आगमवाणी के माध्यम से पावन पाथेय तो प्रदान कर ही रहे हैं, उसके साथ निकट सेवा, दर्शन, मंगल आशीष आदि से भी देर रात तक लाभान्वित कर रहे हैं। ऐसे में श्रद्धालु भी अपने आराध्य के प्रति पूर्ण निष्ठा के साथ इस सुअवसर का लाभ उठा रहे हैं।वीर भिक्षु समवसरण का प्रवचन पण्डाल में गुरुवार को समुपस्थित जनता को युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि शास्त्र में अनुशासन की बात बताई गई है। अनुशासन दो प्रकार का होता है- पहला है आत्मानुशासन और दूसरा है परानुशासन। स्वयं का स्वयं पर अनुशासन होना आत्मानुशासन होता है और दूसरों द्वारा दूसरों पर किया जाने वाला अनुशासन परानुशासन होता है। आत्मानुशासन आत्मा के लिए भी हितकर हो सकता है। व्यक्ति स्वयं अपने मन पर, अपनी वाणी पर और अपने शरीर पर तथा अपनी इन्द्रियों पर नियंत्रण अथवा संयम रखता है, तो वह स्वयं पर स्वयं के द्वारा अनुशासन हो सकता है।आचार्यश्री तुलसी ने अणुव्रत आन्दोलन चलाया। उसमें भी कहा गया कि स्वयं के द्वारा स्वयं का अनुशासन किया जाता है। कहीं-कहीं परानुशासन की आवश्यकता भी हो जाती है, लेकिन आत्मानुशासन सभी के लिए हितकर हो सकता है। लोकतंत्र अथवा राजतंत्र में भी अनुशासन की बात होती है। उसके लिए संविधान, नियम आदि होते हैं। वर्तमान में भारत में लोकतांत्रिक प्रणाली से राष्ट्र संचालित हो रहा है। इस प्रणाली में भी अनुशासन व्यवस्था होती है। उसके लिए भारत का संविधान है। संविधान अपने आप में बड़ा अनुशासन है। परम पूज्य आचार्यश्री भिक्षु ने भी लिखित मर्यादा (संविधान) लिखी। कोई विधान-व्यवस्था होता है तो कोई संगठन, समाज, राष्ट्र आदि का विधिवत संचालन होता है। विधान का कभी लंघन भी हो तो भी विधान का होना परम आवश्यक होता है। जहां नियम का लंघन होता है, वहां दण्ड आदि का भी विधान होता है। दण्ड का विधान होता है तो दूसरे आदमी भी नियमों का लंघन करने से बचेंगे अन्यथा और यदि कोई दण्ड न हो तो दूसरे भी बार-बार नियमों का लंघन करेंगे। इसलिए लोकतंत्र में न्यायपालिका की आवश्यकता होती है।इसी प्रकार आचार्यश्री भिक्षु ने एक अनुशासन की व्यवस्था की। उन्होंने एक नियम दिया कि सभी साधु-साध्वियां एक ही आचार्य के शिष्य होंगे। एक आचार्य के विधान का आज भी अनुपालन हो रहा है। यह एक मर्यादा और अनुशासन है। सभी के जीवन में अनुशासन बना रहे, यह काम्य है।आचार्यश्री के परम पूज्य आचार्यश्री भिक्षु की अनुशासनशैली के विभिन्न पक्षों का वर्णन किया। आचार्यश्री ने आगे कहा कि आज श्रावण शुक्ला त्रयोदशी है। आचार्यश्री भिक्षु जन्म त्रिशताब्दी वर्ष चल रहा है। महामना आचार्यश्री भिक्षु के जीवन के अनेक पक्षों पर चिंतन अथवा वक्तव्य दिया जा सकता है। आचार्यश्री के मंगल प्रवचन के उपरान्त अनेक तपस्वियों ने अपनी-अपनी तपस्या का आचार्यश्री के श्रीमुख से प्रत्याख्यान किया। श्री पारसमूल दूगड़ ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी।