सुरेंद्र मुनोत, ऐसोसिएट एडिटर
Key Line Times
कोबा, गांधीनगर (गुजरात) ,धर्म की साधना में अहिंसा की आराधना आवश्यक होती है। अहिंसा का पालन करना है तो हिंसा से निवृत्त होना होता है। ‘आयारो’ आगम में बताया गया है कि जो प्रज्ञावान होता है और जो बुद्ध होता है, वह आरम्भ से उपरत होता है। निश्चय नय और व्यवहार नय- ये दो प्रकार की दृष्टियां बताई गई हैं। व्यवहार में स्थूल दृष्टि होती है और निश्चय नय में सूक्ष्म दृष्टि होती है। एक आदमी कहता है मैं अकेला हूं और दूसरा कहता है मेरे साथ मेरा परिवार व मेरा समाज मेरे साथ है। इन दोनों ही बातें सही हो सकती हैं। मैं अकेला हूं वाली बात अध्यात्म के संदर्भ में आदमी अकेलापन की बात सोचता है कि मैं अकेला आया हूं, अकेले कर्म भोग रहा हूं, फिर अकेले ही कर्मों का बंधन कर रहा हूं और एक दिन अकेले ही चले जाना है। इस दृष्टि से मैं अकेला हूं कि बात भी सही है। वहीं व्यवहार नय से देखें तो पूरा परिवार और समाज साथ है तो यह भी बात सत्य है कि कोई कठिनाई आती है, कोई समस्या होती है तो परिवार और समाज के लोग सहयोग करते हैं। बीमारी हो जाने पर परिजन अस्पताल ले जाते हैं, उपचार आदि कराते हैं। इस प्रकार परस्पर सहयोग की वृत्ति भी समाज में देखी जाती है। इसलिए कहा गया भी गया है कि ‘परस्परोपग्रहो जीवनाम्’ अर्थात परस्पर जीवों का सहयोग एक-दूसरे को प्राप्त होता है।जो आदमी प्रज्ञावान होता है, वह निश्चय नय का ध्यान देता है। स्वयं को अकेला मानकर अपनी आत्मा की ओर ध्यान देता है, वह आदमी आरम्भ हिंसा को भी छोड़ देता है। प्रज्ञावान जो है, वह आरम्भ से उपरत हो सकता है। जिसमें विवेक आ गया, वह बुद्ध होता है। वह अपनी आत्मा के हित के विषय में चिंतन करते हुए आरम्भजा हिंसा से बचता है। सावद्य कार्यों से उपरत रहते हुए वह अपनी आत्मा के कल्याण की दिशा में आगे बढ़ने का प्रयास करता है। अपनी आत्मा का कल्याण करने के लिए आदमी को निश्चय नय की दृष्टि से विवेक रखते हुए आगे बढ़ने का प्रयास करना चाहिए। आदमी को अपने भीतर रहना और बाहर जीना चाहिए।जितना संभव हो सके, आदमी को अनासक्ति की भावना रखने का प्रयास करना चाहिए। अनासक्ति की चेतना का विकास होता है तो आदमी हिंसा से भी बच सकता है और अपनी आत्मा को अध्यात्म की दिशा में आगे ले जा सकता है। उक्त पावन पाथेय बुधवार को जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने बुधवार को ‘वीर भिक्षु समवसरण’ में समुपस्थित श्रद्धालुजनों को ‘आयारो’ आगम के माध्यम से प्रदान किया।आगमवाणी का अमृतपान कराने के उपरान्त आचार्यश्री ने ‘तेरापंथ प्रबोध’ के सरस संगान और आख्यान से भी श्रद्धालुओं को लाभान्वित किया। आचार्यश्री के पावन पाथेय के उपरान्त साध्वीवर्याजी ने समुपस्थित लोगों को उद्बोधित किया। अनेकानेक तपस्वियों ने अपनी-अपनी धारणानुसार आचार्यश्री से तपस्या का प्रत्याख्यान ग्रहण किया। मुनि मदनकुमारजी ने लोगों तपस्या के संदर्भ में प्रेरणा दी।