“परमात्मा और अंतरात्मा”
परमात्मा जानता है सब राज,
अंदर से बाहर तक हर कदम।
जो संसार को देखता है,
वही है असली सत्य के पास।
हम कौन हैं, जो तौलें
किसका दोष, किसका पाप।
वही सच्चा है, जो अंतरात्मा से,
देखे इंसान की असली पीड़ा।
सच्चाई तो केवल अंतरात्मा ही जानता है,
कौन खरा है और कौन खोटा।
सच्चा भ्रम केवल परमात्मा रखता है,
बाकी सब झूठा, सब झूठा।
जब किसी से गलती हो जाती है,
तो हम क्यों हो जाते हैं बेसबर।
वह खुद ही समझे, खुद ही जाने,
फिर दुनिया क्यों करती है होड़?
तो सच्चा केवल परमात्मा है,
जो देखता है सब कुछ बिना भ्रम।
हम तो केवल मिट्टी के पुतले हैं,
जो जानते हैं सिर्फ उसके कर्म।
यह कविता परमात्मा और अंतरात्मा के सत्य के संबंध में गुरु अर्जुन देव जी के शब्द “औगण न चितारदा, गल सेती लाइक” के अनुसार बात करती है, और हमें दूसरों के दोषों को न देखने तथा परमात्मा की आज्ञा में रहने की सीख देती है।
सतविंदर कौर
ज़ीरकपुर, चंडीगढ़ पंजाब