🌸 *अहंकार रूपी कषाय का त्याग करे मानव: मानवता के मसीहा महाश्रमण* 🌸*-महाराष्ट्र की विस्तृत का यात्रा अंतिम दिन, नवापुर में पधारे महातपस्वी महाश्रमण**-बरसते मेघ के मध्य अध्यात्म जगत के महामेघ ने किया करीब 14 कि.मी. का विहार**-श्रीमती धर्मीबाई गिरिराज अग्रवाल मेमोरियल इंग्लिश मिडियम स्कूल पूज्यचरणों से हुआ पावन**-शनिवार से गुजरात की धरती ज्योतिचरण की चरणरज से होगी ज्योतित**05.07.2024, शुक्रवार, नवापुर, नंदुरबार (महाराष्ट्र) :*साधिक तेरह महीने तक महाराष्ट्र की भूमि पर पंचमासिक चतुर्मास, वर्धमान महोत्सव, मर्यादा महोत्सव, जन्मोत्सव, पट्टोत्सव, अक्षय तृतीया व आचार्यश्री महाश्रमण 50वें दीक्षा कल्याण महोत्सव वर्ष की सम्पन्नता तथा अनेकों दीक्षा समारोह जैसे संघ के महनीय कार्यक्रमों को महाराष्ट्र की राजधानी से लेकर अनेक नगरों, उपनगरों, कस्बों व गांवों आदि में प्रदान करने वाले जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता, युगप्रधान, राष्ट्रसंत आचार्यश्री महाश्रमणजी शनिवार को महाराष्ट्र राज्य से गुजरात राज्य की सीमा में पावन प्रवेश करेंगे। गुजरात प्रवेश के साथ ही वर्ष 2024 में डायमण्ड सिटी, सिल्क सिटी नाम से सुविख्यात सूरत शहर में आचार्यश्री का चातुर्मासिक प्रवेश और निकट हो जाएगा। 15 जुलाई को अपनी धवल सेना के साथ आचार्यश्री सूरत शहर के निर्धारित चतुर्मास प्रवास स्थल में मंगल प्रवेश करेंगे।इसके पूर्व महाराष्ट्र की धरा पर इस विस्तृत यात्रा के अंतिम दिन युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने अपनी धवल सेना के संग चिंचपाडा से मंगल प्रस्थान किया। चारों ओर से घिरे पहाड़ों पर मानूसन के आते ही हरियाली छा गई है। खेतों में कृषकों के कठिन श्रम की गाथा गाती फसलें भी प्रकृति के सौंदर्य को बढ़ा रही थी। जन-जन पर आशीष वृष्टि करते हुए आचार्यश्री गंतव्य की ओर गतिमान थे। कुछ किलोमीटर की यात्रा के पश्चात ही मेघों ने वर्षा प्रारम्भ कर दी तो प्रायः आज के निर्धारित प्रवास स्थल तक पहुंचने के बाद भी होती रही। ऐसा लग रहा था अध्यात्म जगत के महामेघ को आसमान के मेघ महाराष्ट्र की धरा से विदाई दे रहे थे। बरसते मेघ के मध्य अध्यात्म जगत के महामेघ युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी लगभग चौदह किलोमीटर का विहार कर नवापुर में स्थित श्रीमती धर्मीबाई गिरिराज अग्रवाल मेमोरियल इंग्लिश मिडियम स्कूल में पधारे।एक ओर आसमानी मेघ जल की वर्षा से लोगों को शरीर को भिंगो रहे तो मानवता के महामेघ आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी अमृतवाणी रूपी वर्षा से लोगों को आंतरिक रूप से सराबोर बना रहे थे। इस दोहरी वर्षा से अभिस्नात होकर उपस्थित जनता धन्यता की अनुभूति कर रही थी।युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने उपस्थित जनता को पावन प्रतिबोध प्रदान करते हुए कहा कि चौरासी लाख जीव योनियों में मनुष्य जीवन अति महत्त्वपूर्ण होता है। आदमी जीवन जीता है। उसके भीतर अच्छाईयां भी होती हैं तो बुराईयां भी हो सकती हैं। सद्गुण दिखाई देते हैं तो अवगुण भी दिखाई देते हैं। प्रत्येक प्राणी की चेतना कषायों से रंगी हुई होती है। क्रोध, मान, माया और लोभ- ये चार कषाय होते हैं। इनमें एक मान अर्थात अहंकार कषाय भी होता है। आदमी के भीतर ज्ञान का, बल का, धन का, रूप का, सत्ता, एश्वर्य का घमण्ड हो सकता है। घमण्डी आदमी अपना अहित कर सकता है। अहंकार को मदिरापान के समान बताया गया है। इसलिए आदमी को निरहंकार अर्थात् अहंकार से मुक्त रहने का प्रयास करना चाहिए। ज्ञान होने पर भी मौन रहना, बल होने पर भी क्षमा रखना निरहंकारता की बात होती है। आदमी में सबकुछ होने पर भी उसे उसके घमण्ड से बचने का प्रयास करना चाहिए। आदमी को घमण्ड का परित्याग कर विनम्र होने का प्रयास करना चाहिए। कहा गया है कि विद्या का अहंकार नहीं हो, बल्कि विद्या के साथ विनय हो तो वह और सुशोभित होती है। इसी प्रकार जो अभिवादनशील होता है उसके आयुष्य, विद्या, बल और यश की वृद्धि होती है। इसलिए आदमी को अपने जीवन में अहंकार से बचने का प्रयास करना चाहिए। अहंकार से बचते हुए अपनी आत्मा को विशुद्ध बनाने का प्रयास करना चाहिए। आचार्यश्री ने नवापुरवासियों व स्कूल को पावन आशीर्वाद प्रदान किया। क्षेत्रीय विधायक श्री शिरिश कुमार नाईक के पुत्र श्री रोशनकुमार व जिला परिषद की सभापति श्रीमती संगीता भरत गावित ने आचार्यश्री के स्वागत में अपनी भावनाओं को अभिव्यक्ति दी। नवापुर बहू मण्डल ने स्वागत गीत का संगान किया।