🌸 *जो ऋजु उसकी आत्मा शुद्ध : युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण* 🌸*-10 कि.मी. का विहार कर अखण्ड परिव्राजक पहुंचे विसरवाड़ी गांव**-सार्वजनिक कला व वाणिज्य महाविद्यालय में विराजे शांतिदूत**-चतुर्दशी पर आचार्यश्री ने चारित्रात्माओं को दी विविध प्रेरणाएं**04.07.2024, गुरुवार, विसरवाड़ी, नंदुरबार (महाराष्ट्र) :*भारत भर में मानूसन सक्रिय हो चुका है। तीव्र धूप की मानों विदाई हो गयी है, किन्तु वर्षाकाल में होने वाली उमस लोगों को पसीने से नहलाने में सक्षम नजर आ रही है। मानसूनी मौसम में भी जनकल्याण के लिए जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी धवल सेना के साथ महाराष्ट्र के नन्दुरबार जिले में गतिमान हैं। महाराष्ट्र राज्य की विस्तारित यात्रा अब सम्पन्नता की ओर है। आसमान में छाए बादल हवा के साथ गति कर रहे थे और राजमार्ग पर महातपस्वी महाश्रमणजी गतिमान थे। मार्ग में अनेक स्थानों उपस्थित जनता को आशीषवृष्टि करते हुए आगे बढ़ते जा रहे थे। लगभग दस किलोमीटर का विहार कर शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी धवल सेना के साथ विसरवाड़ी गांव में स्थित सार्वजनिक कला व वाणिज्य महाविद्यालय में पधारे।महाविद्यालय परिसर में आयोजित मंगल प्रवचन कार्यक्रम में उपस्थित जनता व चतुर्दशी तिथि होने के कारण उपस्थित चारित्रात्माओं को युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने पावन प्रतिबोध प्रदान करते हुए कहा कि प्रश्न किया गया निर्वाण को कौन प्राप्त कर सकता है? उत्तर दिया गया कि जिसके जीवन में धर्म हो, उसे निर्वाण, मोक्ष की प्राप्ति हो सकती है। पुनः प्रश्न हुआ कि धर्म किसके जीवन में ठहरता है? उत्तर दिया गया कि जो शुद्ध होता है, उसके हृदय में धर्म ठहरता है। एकबार पुनः प्रश्न किया गया कि शुद्ध कौन होता है? उत्तर देते हुए बताया गया कि जो सरल, ऋजुभूत होता है, उसकी आत्मा शुद्ध होती है, उसकी शोधि हो जाती है। जो ऋजुभूत होता है, वह शुद्ध होता है।आदमी को अपने जीवन को शुद्ध बनाए रखने के लिए सरलता, श्रजुता को बनाए रखने का प्रयास करना चाहिए। आत्मा की शुद्धि के लिए आदमी को प्रायश्चित भी करना पड़ता है। प्रायश्चित लेने वाले की आत्मा शुद्ध होती है। आदमी को झूठ बोलने से बचने का प्रयास करना चाहिए। जो आदमी झूठ बोलता है, उसके दिमाग में ज्यादा तनाव होता है। सच्चाई का रास्ता सीधा और सपाट होता है और वह मानसिक रूप से भी शांत होता है।आचार्यश्री ने चतुर्दशी के संदर्भ में चारित्रात्माओं को विशेष प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि चारित्रात्माओं को सरल व ऋजुभूत होना चाहिए। आलोयणा और प्रायश्चित अच्छे करने से का प्रयास करना चाहिए। सरलता से आलोयणा और शुद्ध रूप से प्रतिक्रमण हो जाए तो जीवन में शुद्धि बनी रह सकती है। प्रतिक्रमण में पूर्ण जागरूकता रखने का प्रयास करना चाहिए। प्रतिक्रमण के समय अन्य कोई कार्य नहीं होना चाहिए। इसी प्रकार प्रायश्चित लेने वाले सरलता हो तो प्रायश्चित प्रदाता में गंभीरता हो।आचार्यश्री ने आगे कहा कि आषाढ़ महीने की चतुर्दशी है। इस महीने में चतुर्मास लगता है। चतुर्मास का समय अब निकट है। चतुर्मास अच्छा लाभ उठाने का प्रयास हो। आचार्यश्री की अनुज्ञा से मुनि देवकुमारजी, मुनि खुशकुमारजी व मुनि अर्हम्कुमारजी ने लेखपत्र का उच्चारण किया। आचार्यश्री ने मुनित्रय को दो-दो कल्याणक बक्सीस किए। तदुपरान्त उपस्थित चारित्रात्माओं ने अपने स्थान पर खड़े होकर लेखपत्र का वाचन किया। महाविद्यालय की प्राचार्य श्रीमती जयश्री गावीत ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी व आचार्यश्री से पावन आशीर्वाद प्राप्त किया।