🌸 ज्योतिचरण का स्पर्श पाकर निर्मल हुआ खारघर 🌸
-10 किलोमीटर का विहार कर आचार्यश्री पहुंचे बी.डी. सोमानी इण्टरनेशनल स्कूल
-उपशम, मार्दव, आर्जव व संतोष हैं आत्मयुद्ध के शस्त्र : आचार्यश्री महाश्रमण
-खारघरवासियों ने अपने आराध्य के अभिवंदना में दी भावनाओं को अभिव्यक्ति
-स्थानीय विधायक श्री प्रशांत ठाकुर ने भी किया आचार्यश्री का अभिनंदन
23.02.2024, शुक्रवार, खारघर, नवी मुम्बई (महाराष्ट्र) : 68 वर्षों बाद मायानगरी मुम्बई को आध्यात्मिक आलोक बांटने को पधारे जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के देदीप्यमान महासूर्य आचार्यश्री महाश्रमणजी 200 से अधिक दिनों की यात्रा प्रवास के माध्यम से मायानगरी के आध्यात्मिक ज्योति जलाकर अब क्रमशः बृहत्तर मुम्बई के बाहरी भाग में विहरण करते हुए औरंगाबाद की ओर बढ़ चले हैं। शुक्रवार को प्रातःकाल आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी धवल सेना के साथ सी.बी.डी. बेलापुर से खारघर के लिए गतिमान हुए। अपने आराध्य के चरणों का अनुगमन करते हुए श्रद्धालु भी चल पड़े। लगभग दस किलोमीटर का विहार कर आचार्यश्री खारघर की सीमा में पधारे तो अपने आराध्य की प्रतिक्षा में उपस्थित श्रद्धालुओं ने भावभीना अभिनंदन किया। आचार्यश्री खारघर में स्थित बी.डी. सोमानी इण्टरनेशनल स्कूल में पधारे। यहां से लगभग 900 मीटर दूर स्थित श्री रामसेठ ठाकुर कॉमर्स कॉलेज में आयोजित मुख्य प्रवचन कार्यक्रम में उपस्थित जनता को आचार्यश्री ने पावन प्रतिबोध प्रदान करते हुए कहा कि धर्मशास्त्रों में आत्मयुद्ध की बात बताई गई है। दुनिया में बाहर में भी युद्ध चलते हैं। बाहर का युद्ध भी बाहर होने से पहले आदमी के दिमाग में युद्ध के भाव आते हैं, उसकी योजना बनती है और फिर वह बाहर समरांगण में प्रकट होता है। बाहर का युद्ध तो किस प्रकार विराम को प्राप्त हो अथवा न हो, भीतर की चेतना में अहिंसा और अपरिग्रह की ऐसी चेतना का विकास हो कि युद्ध की आवश्यकता ही नहीं पड़े। युद्ध का कारण कहीं परिग्रह की चेतना और भी कोई कारण हो सकता है, जिसके वशीभूत होकर आदमी युद्ध प्रारम्भ करता है। अपने आपसे लड़ना अर्थात् अपने में रहने वाले कमियों, दोषों को निकालने का प्रयास करना चाहिए। उनकी जड़ें इतनी गहरी होती हैं तो उन्हें निकालना कठिन होता है। उसके लिए आत्मयुद्ध के द्वारा उन बुरे संस्कारों को बाहर निकालने का प्रयास किया जाता है। जैन भाषा में संवर और निर्जरा आत्मयुद्ध की दो आवश्यक हथियार है। संवर के द्वारा अपने आपको सुरक्षित करना और पूर्वकृत कर्मों को निर्जरा के द्वारा क्षीण किया जाता है। आदमी का मुख्य युद्ध मोहनीय कर्म के साथ होता है। मोहनीय कर्म आदमी की चेतना को विकारयुक्त बनाने वाला होता है। गुस्सा, अहंकार, माया, लोभ, राग-द्वेष, घृणा आदि विकृतियां मोहनीय कर्म से संबंधित हैं। इसलिए मोहनीय कर्म को कमजोर करने के लिए आत्मयुद्ध होता है। इस धर्मयुद्ध के मुख्य हथियारों का भी वर्णन धर्मशास्त्रों में किया गया है। मोहनीय कर्म की मुख्य चार जड़े होती हैं-गुस्सा, अहंकार, माया व लोभ। गुस्से पर विजय प्राप्त करने के लिए उपशम की साधना या उसका अभ्यास किया जाता है। अहंकार को जितने के लिए मार्दव का प्रयोग होता है। माया को जितने के लिए आर्जव अर्थात् ऋजुता का अभ्यास किया जाए और लोभ को जितने के लिए संतोष की साधना होती है। इस धर्मयुद्ध में उपशम की साधना, मार्दव का प्रयोग, आर्जव का साथ और संतोष को धारण करने का प्रयास करना चाहिए। हमारे तीर्थंकरों ने भी आत्मयुद्ध किया और विजय प्राप्त कर केवलज्ञान तथा मोक्ष की प्राप्ति भी हो गई। आदमी इतना बड़ा आत्मयुद्ध न भी कर सके तो सद्भावना, नैतिकता और नशामुक्ति रूपी सूत्रत्रयी को अपनाकर आत्मविजय की दिशा में आगे बढ़ने का प्रयास करना चाहिए। आचार्यश्री के मंगल प्रवचन के उपरान्त साध्वीप्रमुखाजी ने भी खारघरवासियों को उद्बोधित किया। आचार्यश्री के स्वागत में स्थानीय तेरापंथी सभा के अध्यक्ष श्री सुरेश पटवारी, बी.डी. सोमनी ग्रुप की ओर श्री धनंजय सोमानी ने अपनी श्रद्धासिक्त अभिव्यक्ति दी। तेरापंथ महिला मण्डल ने स्वागत गीत का संगान करते हुए पूज्यचरणों में आध्यात्मिक भेंट अर्पित की। ज्ञानशाला के ज्ञानार्थियों ने अपनी भावपूर्ण प्रस्तुति दी। तेरापंथ किशोर मण्डल ने गीत का संगान किया। स्थानीय तेरापंथ युवक परिषद के अध्यक्ष श्री लोकेश चोरड़िया ने गीत को प्रस्तुति दी। तेरापंथ कन्या मण्डल ने भी शासनमाता साध्वीप्रमुखा कनकप्रभाजी जीवनवृत्त पर प्रस्तुति दी। स्थानीय विधायक श्री प्रशांत ठाकुर ने अपनी भावनाओं को अभिव्यक्त करते हुए आचार्यश्री का अपने क्षेत्र में हार्दिक स्वागत किया।