🌸 शक्ति के विकास और सदुपयोग का करें प्रयास : शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमण 🌸
-वाशी प्रवास के अंतिम दिवस पर महातपस्वी ने श्रद्धालुओं को दिया शक्ति के विकास का ज्ञान
-वाशीवासियों ने अपने आराध्य के समक्ष व्यक्त की अपनी श्रद्धाभावनाएं
21.02.2024, बुधवार, वाशी, नवी मुम्बई (महाराष्ट्र) : 160वें मर्यादा महोत्सव सहित वाशी में ग्यारह दिनों के प्रवास के लिए जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अधिशास्ता, महातपस्वी, शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने ग्यारह फरवरी को मंगल प्रवेश किया था, तब वाशीवासियों के खुशियों का कोई पारावार नहीं था। प्रवास के साथ ही भव्य 160वें मर्यादा महोत्सव का आयोजन हुआ। इसके साथ ही वाशी का नाम तेरापंथ के इतिहास में भी दर्ज हो गया। तेरापंथ धर्मसंघ के ऐसे महनीय आयोजन सहित मिला ग्यारह दिनों का प्रवास कब पूर्णता की ओर बढ़ गया, वाशीवासियों को इसका आभास भी नहीं हो पाया। वाशी प्रवास के अंतिम दिन बुधवार को जब मर्यादा समवसरण में महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी के मंगल प्रवचन के उपरान्त वाशीवासियों ने अपने श्रद्धाभावों को अभिव्यक्ति दी तो उसमें उनके मनोभाव स्पष्ट झलक रहे थे। मानों उनके स्वरों में एक अरज थी, गुरुदेव! थोड़ा और ठहर जाओ ना। वाशी प्रवास के अंतिम दिन बुधवार को मर्यादा समवसरण में उपस्थित जनता को जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के देदीप्यमान महासूर्य आचार्यश्री महाश्रमणजी ने पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि जीवन में शक्ति का बहुत महत्त्व होता है। शक्ति होती है तो आदमी कहीं गमन कर सकता है, कोई कठिन कार्य भी कर सकता है, भागदौड़ कर सकता है। सारे कार्य शक्ति से ही सम्पन्न हो सकते हैं। इसलिए मानव जीवन में सबल होना एक उपलब्धि होती है। जो निर्बल हो, शक्तिहीन हो, उसके जीवन में मानों बहुत विशेष कमी की बात हो जाती है। इस जीवन में बल के अनेक रूपों को देखा जा सकता है। इनमें पहला है तनबल। चेहरा सुन्दर हो अथवा न भी हो, किन्तु शरीर में शक्ति है, शरीर बलशाली है, ऊर्जावान है, शारीरिक सबलता है तो कोई भी कार्य किया जा सकता है। इसी प्रकार दूसरा बल है मनोबल। आदमी में मन का बल होता है तो कोई असंभव-से दिखने वाले कार्य को भी करने का साहस करता है और वह उस कार्य को पूर्ण भी कर सकता है। मन की शक्ति न हो तो आदमी भला कितना क्या कर सकता है। तीसरा बल बतया गया बचन बल। वाणी का बल भी बहुत बड़ा बल होता है। वाणी में बल है तो आदमी बिना साउण्ड सिस्टम के भी बोले तो दूर तक सुना जा सकता है। परम पूज्य आचार्यश्री तुलसी बिना माइक के ही व्याख्यान देते थे। दूसरी ओर वाणी का प्रभाव के रूप में भी बल की बात है। एक आदमी की वाणी निकली और उसको पूरा करने में लोग जुट गए, जो बोला उसे स्वीकार कर लिया गया। यह वचन बल है। इस संसार में रहने वाले गृहस्थों के जीवन में धनबल का होना भी बड़ा महत्त्वपूर्ण होता है। धनबल से कितने-कितने भौतिक कार्य साधे जा सकते हैं। जनबल का भी बड़ा महत्त्व होता है। लोकतंत्र में चुनाव लड़ना होता है, जिसके साथ जनबल होता है, वह विजयी होता है। इसी प्रकार आदमी के जीवन मंे बुद्धिबल का भी बड़ा महत्त्व होता है। जिसके पास बुद्धि का बल होता है, वह सबल होता है, बुद्धिहीन के पास भला कौन-सा बल हो सकता है। जीवन में धर्म का बल भी आवश्यक होता है। अध्यात्म का बल होना भी आवश्यक होता है। सभी प्रकार के बल शक्ति के माध्यम हैं। जीवन में ऐसी शक्ति हो अथवा उनके विकास का प्रयास किया जाए तो जीवन उन्नत बन सकता है। इसलिए आदमी को अपने जीवन में शक्ति के महत्त्व को जानकर उसके विकास का प्रयास करने तथा उसका सम्यक् सदुपयोग करने का प्रयास करना चाहिए। आध्यात्मिक संदर्भों में शक्ति का विकास और सदुपयोग हो तो और भी अधिक कल्याण की बात हो सकती है। आचार्यश्री के मंगल उद्बोधन के उपरान्त आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में जैन विश्व भारती के पदाधिकारियों ने साध्वी वीरप्रभाजी द्वारा लिखित पुस्तक ‘थ्योरी ऑफ नम्बर्स इन जैन आगम’ पुस्तक को लोकार्पित किया। इस संदर्भ में साध्वी वीरप्रभाजी ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। आचार्यश्री ने पावन आशीर्वाद प्रदान किया। साध्वी स्तुतिप्रभाजी ने गीत का संगान किया। वाशी वासियों की ओर से तेरापंथी सभा वाशी के अध्यक्ष श्री विनोद बाफना, श्री नीरज बम्ब, तेरापंथ युवक परिषद के अध्यक्ष श्री महावीर सोनी व मंत्री श्री अरविंद खांटेड़ ने अपनी श्रद्धासिक्त अभिव्यक्ति दी। स्थानीय तेरापंथ महिला मण्डल की सदस्याओं ने गीत के माध्यम से अपने भावों की अभिव्यक्ति दी।
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