🌸 युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण की मंगल सन्निधि में जैविभा 14वें दीक्षांत समारोह का भव्य आयोजन 🌸
-महाराष्ट्र के राज्यपाल श्री रमेश बैस भी पहुंचे पूज्य सन्निधि में
-ज्ञान परम पवित्र तत्त्व, इसकी प्राप्ति के बाधक तत्त्वों से बचने का हो प्रयास : शांतिदूत महाश्रमण
-वैश्विक शांति के लिए आचार्यश्री महाश्रमणजी जैसे संतों की आवश्यकता : महाराष्ट्र राज्यपाल
-आचार्यश्री के आशीष से संस्थान निरंतर कर रहा है विकास : कुलाधिपति श्री अर्जुनराम मेघवाल
-जीओ के श्री केवी कामत, व प्रोफे. श्री दयानंद भार्गव को प्रदान की गई डीलिट की मानद उपाधि
-विभिन्न विभागों के विद्यार्थियों ने भी प्राप्त की उपाधि, डिग्री व मेडल
19.02.2024, सोमवार, वाशी, नवी मुम्बई (महाराष्ट्र) :
नवी मुम्बई के वाशी उपनगर में ग्यारह दिनों का प्रवास कर रहे जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता, शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी की मंगल सन्निधि में सोमवार को जैन विश्व भारती इंस्टिट्यूट (मान्य विश्वविद्यालय ) के 14वें दीक्षांत समारोह का भव्य आयोजन हुआ। इस समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में महाराष्ट्र के राज्यपाल व मान्य विश्वविद्यालय के कुलाधिपति व भारत सरकार के संसदीय कार्य एवं कानून व न्याय मंत्री श्री अर्जुनराम मेघवाल भी उपस्थित थे। मर्यादा समवसरण के भव्य पण्डाल में आयोजित इस समारोह में मान्य विश्वविद्यालय के सैंकड़ों विद्यार्थी भी उपस्थित थे।
युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी के मंगल महामंत्रोच्चार के साथ कार्यक्रम का शुभारम्भ हुआ। तदुपरान्त समणीवृंद ने अपनी प्रस्तुति दी। जैन विश्व भारती इंस्टिट्यूट (मान्य विश्वविद्यालय) के वाइस चांसलर श्री बच्छराज दूगड़ ने विश्वविद्यालय के संदर्भ में अवगति प्रस्तुत की। कुछ ही समय बाद मंच पर महाराष्ट्र के राज्यपाल व दीक्षांत समारोह के मुख्य अतिथि श्री रमेश बैस भी उपस्थित हुए। उन्होंने आते ही आचार्यश्री को वंदन कर पावन आशीर्वाद प्राप्त किया। तदुपरान्त राष्ट्रगान का संगान हुआ। कुलाधिपति की आज्ञा से दीक्षांत समारोह प्रारम्भ की घोषणा कुलपति द्वारा की गई।
इंस्टिट्यूट के कुल सचिव प्रोफेसर बी.एल.जैन ने जैन विद्या एवं तुलनात्मक धर्म दर्शन विभाग, प्राकृत एवं संस्कृत विभाग, योग एवं जीवन विज्ञान विभाग, अहिंसा एवं शांति विभाग, शिक्षा विभाग, अंग्रेजी विभाग के विभागाध्यक्षों व कालू कन्या महाविद्यालय के प्राचार्य तथा दूरस्थ शिक्षा के निदेशक आदि को अपने-अपने विभागों उपाधि प्राप्त करने वाले विद्यार्थियों को आमंत्रित करने का अनुरोध किया।
जैन विद्या एवं तुलनात्मक धर्म दर्शन विभाग की प्रोफेसर समणी ऋजुप्रज्ञाजी, प्राकृत एवं संस्कृत विभाग के विभागध्यक्ष श्री प्रोफेसर जिनेन्द्रकुमार जैन, योग एवं जीवन विज्ञान विभाग के विभागाध्यक्ष श्री प्रद्युम्न सिंह शेखावत, अहिंसा एवं शांति विभाग के डॉ. रविन्द्रसिंह राठौड़, अंग्रेजी विभाग की प्रोफेसर श्रीमती रेखा तिवारी, दूरस्थ शिक्षा विभाग के निदेशक प्रोफेसर डॉ. आनंदप्रकाश त्रिपाठी ने अपने विभाग के विद्यार्थियों को डिग्री एवं उपाधि प्रदान की कई। इस क्रम में मुनिश्री आलोककुमारजी को योग एवं जीवन विभाग में पीएचडी की डिग्री प्रदान की गई। अपने-अपने विभाग में विशेष स्थान प्राप्त करने वाले विद्यार्थियों को गोल्ड मेडल भी प्रदान किए गए।
इस दौरान मान्य विश्वविद्यालय द्वारा जीओ फाइनेन्सियल के बोर्ड ऑफ डायरेक्टर के चेयरमेन श्री के.वी. कामत व जोधपुर युनिवर्सिटी के संस्कृत विभाग मुख्य विभागाध्यक्ष प्रोफेसर डॉ. दयानंद भार्गव को डीलीट की मानद उपाधि प्रदान की गई। श्री कामत व डॉ. भार्गव के प्रशस्ति पत्र का वाचन डॉ. नलिन के शास्त्री ने किया। दोनों मानद उपाधियों को राज्यपाल महोदय व कुलाधिपति श्री मेघवाल द्वारा प्रदान की गई। इस दौरान मानद उपाधि प्राप्तकर्ताओं ने आचार्यश्री के समक्ष अपनी भावनाओं को अभिव्यक्ति दी।
कार्यक्रम में जैन विश्व भारती इंस्टिट्यूट के कुलाधिपति श्री अर्जुनराम मेघवाल ने विद्यार्थियों के संकल्प कराते हुए अपने अभिभाषण में कहा कि हमारा सौभाग्य है कि आचार्यश्री महाश्रमणजी की मंगल सन्निधि में इस समारोह में संभागी बन रहे हैं। परम पूजनीय आचार्यश्री तुलसी की दूरदृष्टि का प्रतिफल था कि 1991 में इस संस्थान को मान्य विश्वविद्यालय के रूप में ख्यापित किया गया। उन्होंने जाना कि मूल्यपरक शिक्षा नहीं प्रदान की गई तो अच्छे मानवों का निर्माण संभव नहीं हो सकता। यह संस्थान अनेक कार्यों में आगे बढ़ रहा है। इसे आचार्यश्री का निरंतर आशीर्वाद प्राप्त होता रहे।
जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अनुशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी ने उपस्थित उपाधिप्राप्तकर्ताओं को अनुशासन प्रदान करते हुए पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि मानव जीवन में ज्ञान का बहुत महत्त्व होता है। शास्त्र की वाणी है कि ज्ञान से आदमी भावों को जानता है। श्रीमद्भगवद्गीता में ज्ञान के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण बात कही गई है कि ज्ञान के समान कोई चीज पवित्र नहीं होता। ज्ञान को प्राप्त करना और उसके लिए समर्पित होना अपेक्षित होता है। इस ज्ञान प्राप्ति में पांच बाधक तत्त्व हैं- अहंकार, गुस्सा, प्रमाद, रोग व आलस्य। ज्ञान प्राप्त करने वालों को इन पांचों बाधक तत्त्वों से बचने का प्रयास करे। विद्यार्थी अहंकारमुक्त, अपने आपको शांत रखने, प्रमाद से बचने, शरीर व मन को स्वस्थ रखने तथा आलस्य का परित्याग कर सम्यक् पुरुषार्थ करे तो ज्ञान प्राप्ति में सफल हो सकता है।
ज्ञान के साथ आदमी के भाव भी शुद्ध हों, आचरणों में अच्छे संस्कार हो। शिक्षा में संस्कारवत्ता भी रहे। ज्ञान और आचार का साथ-साथ विकास हो तो विद्यार्थी के लिए शिक्षा का अच्छा अर्जक बन सकता है। शिक्षा संस्थान सरस्वती की आराधना के स्थल होते हैं। जहां शिक्षक और विद्यार्थियों के मध्य ज्ञान का आदान-प्रदान होता है। जैन विश्व भारती शिक्षण संस्थान के प्रथम अनुशास्ता परम पूजनीय आचार्यश्री तुलसी स्वयं शिक्षण प्रदान करने वाले थे। उन्होंने अणुव्रत के रूप में ऐसा आन्दोलन चलाया जिसके छोटे-छोटे संकल्पों के माध्यम से जीवन सुफल हो सकता है। अणुव्रत गीत के माध्यम से भी विद्यार्थियों को अच्छी प्रेरणा दी गई है। आचार्यश्री ने अणुव्रत गीत के उस पद्य का संगान करते हुए कहा कि विद्यार्थी परिश्रम के माध्यम से उपाधि ग्रहण करें तो अच्छा हो सकता है। ज्ञान के साथ-साथ चरित्र और संस्कार का भी विकास हो। जैन विश्व भारती इंस्टिट्यूट मान्य विश्वविद्यालय के द्वितीय अनुशास्ता आचार्यश्री महाप्रज्ञजी ने प्रेक्षाध्यान व जीवन विज्ञान की प्रेरणा दी। इसके माध्यम से भी विद्यार्थी अपने जीवन का सुन्दर विकास कर सकता है।
महाराष्ट्र के राज्यपाल व समारोह के मुख्य अतिथि श्री रमेश बैस ने अपने अभिभाषण में कहा कि जैन विश्व भारती के 14 दीक्षांत समारोह में उपस्थित होकर मुझे अत्यंत प्रसन्नता हो रही है। परम पूजनीय संत आचार्यश्री महाश्रमणजी की मंगल सन्निधि में उपस्थित होना भी परम सौभाग्य की बात होती है। आचार्यश्री की शुभ उपस्थिति में उपाधि प्राप्त करना महत्त्वपूर्ण बात होती है। महाराष्ट्र संतों व समाज सुधारकों की भूमि रही है, वर्तमान में आचार्यश्री महाश्रमणजी भी यहां विराजमान हैं, यह हमारा सौभाग्य है। जैन धर्म ने हमेशा शांति व समन्वय को प्रसारित किया है। आचार्यजी सद्भावना, नैतिकता व नशामुक्ति का प्रचार-प्रसार कर रहे हैं। जैन विश्व भारती मान्य विश्वविद्यालय भी बहुत अच्छा कार्य कर रहा है। वर्तमान की विपरीत स्थितियों में ऐसी मूल्यपरक शिक्षा समाज में शांति व सद्भावना को आगे बढ़ाने में सहायक हो रही है। इस शिक्षण संस्थान जैसे अनेक संस्थानों की विश्व को आवश्यकता है। लोगों के जीवन को अच्छा बनाने के लिए पूज्य आचार्यश्री जैसे संतों की प्रेरणा की भी विशेष आवश्यकता है। मंगल प्रवचन के उपरान्त कुलाधिपति की अनुमति से दीक्षांत समारोह को सम्पन्न किया गया। पुनः राष्ट्रगान का हुआ। तदुपरान्त राज्यपाल महोदय ने आचार्यश्री को वंदन कर प्रस्थान किया।