





🌸 श्रवण शक्ति के सदुपयोग से हो सकता है कल्याण : युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण 🌸
-कान्दिवली प्रवास के दूसरे दिन श्रद्धालुओं ने उठाया गुरुवाणी श्रवण का लाभ
-घोषणा के प्रथम दिन ही चरणस्पर्श को उमड़ा श्रद्धालुओं का ज्वार
30.11.2023, गुरुवार, घोड़बंदर रोड, मुम्बई (महाराष्ट्र) : कान्दिवली के तेरापंथ भवन में प्रवास के दूसरे दिन तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने प्रातःकाल भ्रमण को गतिमान हुए तो अनेकानेक श्रद्धालुओं को अपने-अपने घरों/प्रतिष्ठानों के सम्मुख अपने आराध्य के दर्शन करने व मंगलपाठ अथवा आशीर्वाद प्राप्त करने का सौभाग्य प्राप्त हो गया। भवन परिसर में आयोजित मंगल प्रवचन में युगप्रधान आचार्यश्री ने उपस्थित श्रद्धालुओं को पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि मानव को पांच ज्ञानेन्द्रियां प्राप्त हैं। जिनके माध्यम से वह ज्ञान ग्रहण करता है और उसका अपने जीवन में उपयोग करता है। इनमें एक ज्ञानेन्द्रिय है श्रोत्रोन्द्रिय अर्थात कान। सुनकर आदमी कितना ज्ञान प्राप्त कर सकता है। गुरु, संत, विद्वतजन और तीर्थंकरों की वाणी का श्रवण किया जा सकता है। साधु-संतों की मंगलवाणी का श्रवण करने के दस लाभ बताए गए हैं। साधु-संत द्वारा बताई गई ज्ञान की बातों को और गहराई से जानने व समझने का सुअवसर प्राप्त हो सकता है। जितना देर आदमी मंगल प्रवचन का श्रवण करता है, उसका उतना समय तो शुभ योग में ही बीतता है। ज्ञान की प्राप्ति के साथ-साथ उतना समय शुभयोग में व्यतीत होना भी लाभ होता है। श्रवण का दूसरा लाभ होता है कि श्रद्धालु जितने देर तक प्रवचन श्रवण के लिए उपस्थित होता है, उतनी देर तक वह अन्य सावद्य कार्यों से बच जाता है। सावद्य कार्यों से बचाव होना के अर्थ कि आदमी उतनी देर के लिए कितना हिंसात्मक कार्यों आदि से भी बच सकता है। तीसरा लाभ बताया गया कि सुनने से इतना अच्छा ज्ञान प्राप्त हो सकता है, कभी जीवन में विशेष कल्याण भी हो सकता है। सुनकर जीवन की किसी परेशानी या दुविधा का हल भी प्राप्त हो सकता है। सुनने और जानने से जीवन भी अच्छा बन सकता है। आदमी को अच्छी चीजों को सुनने से अपने कानों का प्रयोग करने का प्रयास करना चाहिए। कान में कुण्डल पहनने से उसकी शोभा नहीं, अच्छी और ज्ञानात्मक बातों के श्रवण से शोभा को प्राप्त होता है। सुनकर आदमी अपने चरित्र का अच्छा विकास कर सकता है और अपने जीवन का कल्याण भी कर सकता है। आचार्यश्री ने परम पूज्य आचार्यश्री तुलसी की मासिक पुण्यतिथि के अवसर पर अपने गुरुदेव का स्मरण करते हुए उनके जीवन प्रसंगों का वर्णन किया। उन्होंने कहा कि बड़े सौभाग्य की बात है कि मुझे परम पूज्य गुरुदेव तुलसी और परम पूज्य आचार्यश्री महाप्रज्ञजी दोनों का शिष्यत्व प्राप्त करने का सौभाग्य प्राप्त हो गया। आदमी को अपने जीवन में अच्छे ज्ञान का विकास करने का प्रयास करना चाहिए। स्थानीय तेरापंथ कन्या मण्डल व स्थानीय महिला मण्डल की सदस्याओं ने पृथक्-पृथक् गीत का संगान किया। स्थानीय तेरापंथ युवक परिषद के अध्यक्ष श्री नवनीत कच्छारा ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। आचार्यश्री के समक्ष ‘सिद्ध मर्यादा महोत्सव’ की झलकियां भी प्रस्तुत की गईं। बुधवार को मंगल प्रवचन में आचार्यश्री द्वारा समस्त आयु वर्ग के पुरुषों के लिए चरणस्पर्श की घोषणा करी तो रात्रि आठ से पहले ही कांदिवली तेरापंथ भवन के भतरी भाग से लेकर बाहरी प्रवेश द्वार तक श्रद्धालुओं की लम्बी कतार लग गई। ऐसे सौभाग्य को प्राप्त करने के लिए श्रद्धालुजन मानों भाग-भाग कर पहुंच रहे थे। आठ बजे के बाद श्रद्धालुओं के सौभाग्य जगा और युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी के चरणस्पर्श प्रारम्भ हुआ तो निर्धारित समय के बाद भी वह क्रम चलता रहा और हजारों श्रद्धालु अपने आराध्य के चरणों का स्पर्श कर अपने भाग्य चमकाए। इसके उपरान्त आचार्यश्री का एक दिवसीय प्रवास गोरेगांव (ई.), एक दिवसीय प्रवास जोगेश्वरी तदुपरान्त चार दिवसीय प्रवास के लिए अंधेरी पहुंचेंगे।





