





🌸 ज्योतिचरण का परस पा पावन हुआ गोरेगांव 🌸
-कान्दिवली में दो दिवसीय प्रवास सुसम्पन्न कर आचार्यश्री पहुंचे संत पायस एक्स कॉलेज
-गरिमापूर्ण होती है विवेकसम्पन्न वाणी : आध्यात्मिक अनुशास्ता आचार्यश्री महाश्रमण
-करुणामूर्ति हैं आचार्यश्री महाश्रमण : फादर डॉ. माइकल रोजारियो
01.12.2023, शुक्रवार, गोरेगांव (ई.), मुम्बई (महाराष्ट्र) : कान्दिवली स्थित तेरापंथ भवन में दो दिवसीय प्रवास सुसम्पन्न कर जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के अनुशास्ता, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने शुक्रवार को प्रातः की मंगल बेला में कांदिवली से मंगल प्रस्थान किया। चौबीस घंटे चलायमान रहने वाला यह आर्थिक महानगर आज अध्यात्म जगत के महासूर्य के चरणों का अनुगमन कर रहा था। कांदिवलीवासी श्रद्धालु अपने आराध्य के प्रति कृतज्ञ भावों को अभिव्यक्त करने के लिए उपस्थित थे तो गोरेगांव में रहने वाले श्रद्धालु अपने आराध्य को अपने घर ले जाने के लिए उत्साह और उत्सुकता के साथ अपने आराध्य के चरणों अनुगमन कर रहे थे। गूंजते जयघोष से प्रातः का वातावरण भक्तिमय बन रहा था। मार्ग में स्थित श्रद्धालुओं पर अपने दोनों करकमलों से आशीष वृष्टि करते हुए आचार्यश्री गंतव्य की ओर गतिमान थे। छह किलोमीटर का विहार कर आचार्यश्री गोरेगांव ईस्ट में स्थित संत पायस एक्स कॉलेज में पधारे। आज का प्रवास यहीं निर्धारित था। इस कॉलेज में पादरी बनाने की पढ़ाई होती है। यह पहला अवसर था, जब अन्य संप्रदाय का कोई आचार्य इस परिसर में विराजमान था। कॉलेज में स्थित एक ऑडिटोरियम में आयोजित मंगल प्रवचन कार्यक्रम में उपस्थित जनता को आचार्यश्री महाश्रमणजी ने पावन प्रतिबोध प्रदान करते हुए कहा कि जीवन में आत्मा मूल तत्त्व है। आत्मा रूपी मूल तत्त्व के साथ शरीर, वाणी और मन भी होता है। इन चारों का संयोग ही जीवन है। मन मूल तत्त्व है तो शरीर से प्रवृत्तियां की जाती हैं, वाणी से बोलते हैं, एक-दूसरे से अपनी बात साझा करते हैं, मन से चिंतन, मनन और मंथन करते हैं। आत्मा, शरीर और मन तो सभी प्राणियों के पास होता है, कितने प्राणियों के पास वाणी की व्यवस्था भी होती है, किन्तु अन्य प्राणी भला क्या और कितना बोल पाते होंगे। मानव के पास वाणी की विशेष विशेषता है। दुनिया में कितनी-कितनी भाषाएं हैं। संस्कृत, हिन्दी, प्राकृत आदि-आदि अनेक भाषाएं हैं। आदमी की भाषा कैसी हो, यह विचारणीय है। वाणी के प्रयोग में आदमी को विवेक रखने का प्रयास करना चाहिए। वाणी से कब, कहां, कैसे, कितना बोलने अथवा न बोलने का विवेक होना सर्वश्रेष्ठ बात होती है। संयम के साथ विवेकपूर्ण बोली गई वाणी गरिमापूर्ण हो सकती है। आदमी को अपनी वाणी को अच्छा बनाने के लिए मितभाषी बनने का प्रयास करना चाहिए। आदमी को अपनी वाणी पर नियंत्रण रखने का प्रयास करना चाहिए। कहां बोलना, कहां नहीं बोलना और कितना बोलना इसका विवेक होना आवश्यक होता है। मौन हो जाना कोई बड़ी बात नहीं, अधिक बोलना भी कोई बड़ी बात नहीं, कम बोलना भी कोई बड़ी बात नहीं, किन्तु वाणी का विवेकपूर्ण होना बड़ी बात होती है। वाणी से बिगड़े कार्य को बनाया जा सकता है और वाणी से बने हुए कार्य को बिगाड़ा भी जा सकता है। इसलिए आदमी को अपनी वाणी का विवेकपूर्ण प्रयोग करने का प्रयास करना चाहिए। भगवान महावीर के बोलने से कितनों-कितनों ज्ञान की प्राप्ति हो गई। आचार्यश्री ने जैन धर्म, तेरापंथ संप्रदाय व उनकी मान्यताओं, तेरापंथ की आचार्य परंपरा, जैन साधुचर्या के साथ यात्रा के दौरान सद्भावना, नैतिकता और नशामुक्ति की प्रेरणा आदि का भी वर्णन किया। आचार्यश्री ने जैन धर्म में आत्मवाद, कर्मवाद और पुनर्जन्मवाद को भी व्याख्यायित किया। कार्यक्रम में साध्वीप्रमुखाजी ने भी जनता को उद्बोधित किया। फादर डॉक्टर माइकल रोजारिया ने आचार्यश्री के स्वागत में कहा कि हम सभी का सौभाग्य है कि आज यहां आचार्यश्री महाश्रमणजी का शुभागमन हुआ है। आपके आने से हम सभी बहुत खुश हैं। आचार्यश्री महाश्रमणजी करुणा की मूर्ति हैं। आप जन-जन को सन्मार्ग दिखा रहे हैं। लोगों में प्रेम बांट रहे हैं। हमारा आपसी प्रेम भी बना रहे, ऐसी हम कामना करते हैं। संत पायस एक्स कॉलेज के प्राचार्य फादर एनिसेटो परेरा ने कहा कि सेंट पायस एक्स कॉलेज समुदाय और फादर माइकल रोजारियों की ओर से मैं आचार्यश्री महाश्रमणजी का हार्दिक स्वागत करता हूं। आपकी उपस्थिति हमारे लिए मानों ईश्वर का वरदान बन गई है। आपका आशीर्वाद हम सभी पर बना रहे। गोरेगांव तेरापंथी सभा के अध्यक्ष श्री छतरलाल सिंघवी, तेयुप अध्यक्ष श्री रमेश सिंघवी, श्री भीमराज चिण्डालिया व श्री राजकुमार ने अपनी आस्थासिक्त अभिव्यक्ति दी।





