🌸 ऐतिहासिक चातुर्मास संपन्न कर युगप्रधान का प्रथम विहार🌸
– मुंबई महानगर के भीतरी भाग की ओर अग्रसर हुए ज्योतिचरण 🌸
– आध्यात्मिकता से रमणीय बनी रहे मुम्बई की जनता : महातपस्वी महाश्रमण
– नंदनवन से विहार में उमड़ा श्रद्धा का जन सैलाब
28.11.2023, मंगलवार, घोड़बंदर रोड, मुम्बई (महाराष्ट्र) :
बृहत्तर मुम्बई पंचमासिक चतुर्मास परिसम्पन्न कर जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण ने नन्दनवन से प्रातः 10:15 बजे मंगल प्रस्थान किया तो एक बार पुनः मुम्बई महानगरवासियों की श्रद्धा का ज्वार उमड़ पड़ा। अपने आराध्य को चतुर्मास स्थल से विदाई देने के लिए उमड़े श्रद्धालुओं में अपने उपनगरों को आचार्यश्री के चरणस्पर्श से लाभान्वित होने का उत्साह भी स्पष्ट नजर आ रहा था। गूंजते जयघोष के मध्य महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी धवल सेना संग लगभग पांच किलोमीटर का विहार कर मीरा रोड (ई.) में स्थित पटेल हाउस में पधारे। आचार्यश्री का एकदिवसीय प्रवास यहीं निर्धारित है। इस अवसर पर पूर्व विधायक श्री नरेन्द्र मेहता ने भी आचार्यश्री को वंदन कर पावन आशीर्वाद प्राप्त किया। ज्योतिचरण के गतिमान होते ही मायानगरी के मार्ग एकबार पुनः अपने सौभाग्य पर इतरा उठे।
इसके पूर्व तीर्थंकर समवसरण में ही आज का भी मुख्य प्रवचन कार्यक्रम निर्धारित था। विहार से पूर्व मंगल प्रवचन प्रदान करते हुए आचार्यश्री ने कहा कि मृगशर कृष्णा एकम् का प्रभात हो गया है। चतुर्मास की कालावधि अब समाप्त हो गई है। जैन शासन की परंपरा के अनुसार चतुर्मास के दौरान एक ही क्षेत्र में रहना होता है और शेषकाल में उस स्थान से विहार कर देना चाहिए। चतुर्मास में एक स्थान पर रहकर साधना, आराधना, और सेवा की सुन्दर व्यवस्था है तो शेषकाल में भी विहरण करते हुए जन-जन के कल्याण के साथ स्वयं की साधना का भी सुन्दर व्यवस्थापन है। परंपरा के अनुसार चतुर्मास के अंतिम दिनों में राजा प्रदेशी और मुनि कुमारश्रमणकेशी की कथा को आचार्यश्री ने आगे बढ़ाते हुए कहा कि मुनि कुमारश्रमणकेशी की प्रेरणा से राजा प्रदेशी नम हो गया और अपनी परंपरा को छोड़कर श्रमणोपासक बन गया।
वर्तमान समय की लोकतांत्रिक प्रणाली में भी शासन में रहने वाले लोगों में संयम, त्याग, व्रत निष्ठा और कर्त्तव्य परायणता की चेतना हो तो प्रणाली अच्छे ढंग से कार्य कर सकती है। शासन में यदि धर्म न हो, त्याग, संयम और व्रत का अभाव हो तो वह शासन प्रणाली निरंकुश और प्रजा को कष्ट देने वाली हो सकती है। यदि श्रावक कार्यकर्ता हो तो धर्म की अच्छी प्रभावना हो सकती है। हम आचार्यश्री भिक्षु की परंपरा के संत हैं।
मैं मुम्बईवासियों को प्रेरणा देते हुए कहना चाहता हूं कि इस चतुर्मास के दौरान आपके जीवन में जो भी धर्म, व्रत, संयम, नियम आदि से रमणीयता आई हो, उसे बनाए रखने का प्रयास हो और अरमणीयता से बचने का प्रयास हो। यह हमारा बृहत्तर मुम्बईवासियों के लिए धार्मिक-आध्यात्मिक संदेश है। आचार्यश्री ने प्रसंगवश ‘प्रभु तुम्हारे पावन पथ पर’ गीत का आंशिक संगान किया।
आचार्यश्री ने आगे कहा कि चतुर्मास अब सानंद सम्पन्न हो गया है। कितने-कितने चारित्रात्माओं का यहां प्रवास हो गया। चतुर्मास के लिए बृहत्तर मुम्बई में यह सुन्दर स्थान भी प्राप्त हो गया। लम्बे अंतराल के बाद ऐसा सुअवसर प्राप्त हो गया। सभी साधु-साध्वियां खूब अच्छा कार्य करते रहें। गुरुकुलवास में चतुर्मास सुसम्पन्न कर बर्हिविहार को प्रस्थान करने वाली साध्वियों को आचार्यश्री ने मंगलपाठ सुनाया। चतुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति के अध्यक्ष श्री मदनलाल तातेड़ ने अपनी भावना व्यक्त की। अहिंसा भवन के स्थान प्रदान करने वाली स्वर्णाजी आदि ने भी आचार्यश्री के दर्शन कर पावन आशीर्वाद प्राप्त किया। मुम्बईवासियों ने अपने आराध्य के प्रति सामूहिक रूप में कृतज्ञता व्यक्त की।