









🌸 तप का एक अंग है स्वाध्याय : युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण 🌸
-निरंतर स्वाध्याय में रत रहने को आचार्यश्री ने किया अभिप्रेरित
-जैन विश्व भारती द्वारा प्रज्ञा पुरस्कार समारोह का किया गया आयोजन
21.11.2023, मंगलवार, घोड़बंदर रोड, मुम्बई (महाराष्ट्र) : भारत की आर्थिक राजधानी से ख्यात मायानगरी मुम्बई को जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के देदीप्यमान महासूर्य, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी धर्म और अध्यात्म से भी भावित बना रहे हैं। वर्ष 2023 के पांच महीने के चतुर्मास के दौरान आचार्यश्री ने मायानगरी में अध्यात्म की उस गंगा का निरंतर प्रवाह किया है, जो मानव-मानव के मानस पटल को चीरकाल तक उन्नत मानव जीवन की प्रेरणा प्रदान करती रहेगी। एक सप्ताह से भी कम समय शेष है, किन्तु आचार्यश्री की अमृतवाणी से बहने वाली ज्ञानगंगा का अविरल प्रवाह जारी है। सागर तट पर बसे इस मायानगरी को आचार्यश्री की ज्ञानगंगा ने धर्म और अध्यात्म से अभिसिंचित कर दिया है। मंगलवार को तीर्थंकर समवसरण में उपस्थित श्रद्धालु जनता को महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी भगवती सूत्र में वर्णित आभ्यान्तर तप के एक अंग स्वाध्याय के संदर्भ में पावन प्रतिबोध प्रदान करते हुए कहा कि स्वाध्याय को एक प्रकार का तप ही बताया गया है। स्वाध्याय में रत रहने वाले की भी कर्म निर्जरा होती है। स्वयं अध्ययन करना और दूसरों को भी अध्ययन करवाना दोनों ही रूपों में स्वाध्याय हो सकता है। आदमी पहले स्वयं अध्ययन कर ज्ञान का अर्जन करता है, तभी तो वह दूसरों को भी ज्ञान प्रदान कर सकता है। ज्ञान प्राप्ति के लिए अध्याप्तक अथवा गुरु अपने शिष्यों को पढ़ाते हैं, वाचना देते हैं। यह भी एक प्रकार की सेवा होती है। परम पूज्य आचार्यश्री तुलसी और आचार्यश्री महाप्रज्ञजी ने पहले कितना-कितना ज्ञान अर्जित किया। कितनी गाथाएं कंठस्थ कीं तो उन्होंने कितनों-कितनों को शिक्षित भी किया। स्वाध्याय का पहला प्रकार वाचना है। ज्ञान के विकास के लिए जिज्ञासा, प्रतिप्रश्न भी करना चाहिए। जिज्ञासा होती है तो उस ज्ञान को अच्छे ढंग से समझा जा सकता है। श्रीमद्भगवद्गीता में भी बताया गया कि शिक्षा प्राप्त करने के लिए पहले गुरु को प्रणाम करो, गुरु से ज्ञान प्राप्त करो और गुरु की अच्छी सेवा करो। ज्ञान के विकास के कंठस्थ किए हुए ज्ञान का पुनरावर्तन भी करते रहना चाहिए। पुनरावर्तन से ज्ञान पुष्ट रह सकता है। ज्ञान के विशेष विकास के लिए ज्ञान की अनुप्रेक्षा भी करने का प्रयास करना चाहिए। अच्छे ज्ञान का अर्जन करने के उपरान्त कथा भी करने का प्रयास करना चाहिए। आदमी को पुस्तकों को अपना मित्र बनाने का प्रयास करना चाहिए। धर्मग्रन्थों के स्वाध्याय से विविध प्रेरणाएं प्राप्त हो सकती हैं। स्वाध्याय में लगाया गया समय शुभ योग वाला होता है। पुस्तक एक अच्छा मित्र और शिक्षक भी बन सकती है। आदमी को अपने जीवन में निरंतर स्वाध्याय करते रहने का प्रयास करना चाहिए। आचार्यश्री की मंगल प्रेरणा के उपरान्त साध्वीवर्याजी ने भी उपस्थित जनता को उद्बोधित किया। आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में पहुंचे कैंसर स्पेशलिस्ट डॉ. राजेश कुण्डलिया ने लोगों को कैंसर के लक्षण, पहले जानने की विधि और फिर बचाव को विस्तार वर्णित किया। डॉ. राजेश कुण्डलिया का परिचय श्री सुखराज से सेठिया ने किया। आचार्यश्री ने उन्हें मंगल आशीर्वाद प्रदान किया। आचार्यश्री के समक्ष श्री सुमतिचंद गोठी ने भी अपनी भावनाओं की अभिव्यक्ति दी। आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में जैन विश्व भारती द्वारा प्रज्ञा पुरस्कार सम्मान समारोह का आयोजन हुआ। जिसमें वर्ष 2022 का प्रज्ञा पुरस्कार जैन विश्व भारती और प्रायोजक परिवार द्वारा श्री राजकुमार नाहटा को प्रदान किया। प्रायोजक दूगड़ परिवार की ओर से श्री प्रताप दूगड़ ने अपनी अभिव्यक्ति दी। पुरस्कार प्राप्तकर्ता श्री राजकुमार नाहटा ने अपनी आस्थासिक्त अभिव्यक्ति दी। आचार्यश्री ने उन्हें पावन आशीर्वाद प्रदान किया। इस कार्यक्रम का संचालन जैन विश्व भारती के मंत्री श्री सलिल लोढ़ा ने किया। जैन विश्व भारती के ओरलेण्डो सेण्टर के चेयरमेन श्री देवांग चितलिया व श्री तुसार भाई शाह ने 25 वर्षों की रिपोर्ट श्रीचरणों में अर्पित कर पावन आशीर्वाद प्राप्त किया।




