🌸 अनावश्यक संग्रह से बचे – आचार्य महाश्रमण🌸
- पुज्यप्रवर पुद्गल तत्व को किया व्याख्यायित
- प्रकीर्णक संचय ग्रंथ का हुआ लोकार्पण
25.10.2023, बुधवार, घोड़बंदर रोड, मुंबई (महाराष्ट्र)
अपनी सुदीर्घ पदयात्राओं द्वारा भारत सहित नेपाल, भूटान में भी सद्भावना, ईमानदारी व सदाचार की प्रेरणा देने वाले जैन धर्म के प्रभावक आचार्य युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण जी की मंगल सन्निधि में जैन आगमों के संपादन का गुरूतर कार्य गतिशील है। इसके अंतर्गत ही आगम साहित्य ग्रंथ ‘प्रकीर्णक संचय’ का आज नंदनवन में आचार्यश्री की सन्निधि में लोकार्पण हुआ। मंगल देशना में शांतिदूत ने भगवती आगम सूत्रों की व्याख्या की।
तीर्थंकर समवसरण में उद्बोधन प्रदान करते हुए गुरुदेव ने कहा– छह द्रव्यों में एक मात्र पुद्गल रुपी होता है बाकी अरूपी होते है। पुद्गल की पहचान के लिए चार बातों का उल्लेख किया गया है। वर्ण, गंघ, रस और स्पर्श ये जिनमें होते है वह पुद्गल होता है। पुद्गल का जगत बहुत विराट है और इनके सहयोग व योगदान से हमारा जीवन चल रहा है। पुद्गल के दो प्रकार के है- जीव युक्त व जीव मुक्त। सचित को हम जीव युक्त व अचित को जीव मुक्त कह सकते है। सचित में जमीकंद भी होती है जिसमें एक शरीर में अनंत जीव होते है। जमीकंद आदि का धार्मिक भोजनालयों में उपयोग न हो, यह अच्छी बात है। आहार संयम की बात भी इससे जुड़ सकती है।
आचार्य श्री ने आगे बताया कि परमाणु पुद्गल की लघुतम इकाई है। इन स्थूल नेत्रों से उन्हें नहीं देखा जा सकता। परमाणु चार प्रकार के होते हैं – द्रव्य, क्षेत्र, काल व भाव। द्रव्य परमाणु भी चार प्रकार के होते है पहला अछेद्य। अर्थात उनका छेदन नहीं किया जा सकता, इनको न छेदा जा सकता है और न काटा जा सकता हैं। दूसरा अभेद्य, उनका भेदन भी नहीं किया जा सकता। फिर अदाह्य – उन्हें आग से जलाया नहीं जा सकता और चौथा है अग्राह्य। उन्हें हाथ से ग्रहण नहीं किया जा सकता। ये चारों विशेषताएँ आत्मा में भी होती है। इस प्रकार आत्मा और परमाणु दोनों की विशेषताओं में समानता है। पुद्गल जगत से हमारा काम चलता है पर पुद्गल के संग्रहण व उपयोग में भी हमारा संयम रहे। न ज्यादा संग्रह हो और न अनपेक्षित उपयोग। खाद्य सामग्री, कपड़ों, वाहनों, आभूषणों किसी का भी अनपेक्षित व अनावश्यक उपयोग न हो व सीमाकरण रहे।
कार्यक्रम में ग्रंथ की संपादिका समणी डॉ. कुसुमप्रज्ञा जी ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। जैन विश्व भारती से जुड़े पदाधिकारियों ने ग्रंथ को पूज्य चरणों में भेंट किया।